शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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पता
ठिकाने को उनकी रजामंदी क्या मिलीपता अपना मैं भूल आया उनके पते पे
अब खत लिखुँ या भेजूँ संदेशा
मशवरा कैसे करूँ इन घरोंदों से
मौसम जो बदला आशियानें का...
RAAGDEVRAN पर
MANOJ KAYAL
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सुनहरे सूरज का उगना
रेशमी धागे पर
हम अपने बाहरी और भीतरी अस्तित्व से ही नही
बल्कि उस समाज से भी बनें हैं
जहां हमसब रहते हैं
और जिसकी संरचना से बाहर होने की कोशिश
एक छलावा हो सकती है
चाहे जिस रुप में साकार हो...
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यह काटता नहीं है
....युगवाणी के जुलाई 2019 के अंक में प्रकाशित राजेश सकलानी के कॉलम ‘अपनी दुनिया’ का एक हिस्सा यहां प्रस्तुत है। *वो फुर्तीला और चौकन्ना है। उसकी ओर देखो तो डर लगता है। एक सिहरन उठती है और शरीर बचाव के लिए तैयार होने लगता है। एक सुरक्षात्मक प्रतिहिंसा जायज हो जाती है...
लिखो यहां वहां पर विजय गौड़
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रात सावन की...
अज्ञेय
तुम्हारी कोयल की पुकार
तुम ने पहचानी क्या
मेरे पपीहे की गुहार...
तुम ने पहचानी क्या
मेरे पपीहे की गुहार...
मेरी धरोहर पर
Digvijay Agrawal
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खोल पंख फिर उड़ो गगन में
अपना अपना सपना देखो
उन सपनों में अपना देखो
तुझे सजन मिलना मुमकिन
तब सदा खोज तू उसे स्वजन में
खोल पंख फिर उड़ो गगन में...
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सुप्रभात,
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
सुप्रभात सर 🙏)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌,
मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आप का
सादर
बहुत सुंदर सराहनीय विविधापूर्ण रचनाओं से सजी प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी सर। आभारी हूँ सर मेरी रचना को भी शामिल ककियन आपने।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया और आभार आपका !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसदा प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद शास्त्रीजी.
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी रचनाओं के बीच जगह मिलना लौटरी लग जाने जैसा है.
इस महत्वपूर्ण, विविधतापूर्ण चर्चा में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु अत्यंत हार्दिक आभार 🙏
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