मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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बाल यौन शोषण --
बाल यौन शोषण किसी न किसी रूप में सदियों से होता आया है। भले ही वो इजिप्ट, ग्रीक या रोमन बाल वेश्यालयों का इतिहास हो या पाकिस्तान में बाल्की या आशना रीति , नेपाल में देवकी या दक्षिण भारत में देवदासी प्रथा, बाल यौन शोषण सदियों से प्रचलित रहा है, लेकिन समाज में इसे कभी पहचाना नहीं गया। विश्वव में पहली बार पश्चिमी देशों में १९६० में बच्चों के शारीरिक शोषण की पहचान हुई। बाल यौन शोषण के अस्तित्व के बारे में तो १९८० के दशक में विश्व ने पहली बार जाना और माना। भारत जैसे विकासशील देशों में इस सामाजिक समस्या के बारे में जन जागरूकता अभी भी बहुत ही कम है। पता चला है कि विश्व भर में प्रति वर्ष १४ वर्ष से कम आयु के ४ करोड़ बच्चे किसी न किसी रूप में शोषण के शिकार होते हैं...
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
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ग्रीष्म
ग्रीष्म ऋतु
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ग्रीष्म की दुपहरिया
कोयल की कूक से
टूट गयी काँच सी
छत पर के पँखे
सर्र सर्र नाच रहे
हाथों में प्रेमचंद
नैंनों से बाँच रहे...
मधुर गुँजन पर ऋता शेखर 'मधु
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खत से ज़ुदा पन्ने
मेरे दरवाजे पर पड़ा था एक खत,
शायद रात भर पड़ा होगा।
मुझे सुबह मिला था।
रात कितनी तेज बारिश पड़ी थी,
ये उस खत से जाना जा सकता था।
घर के छज्जे के नीचे होने के बाद भी
वो पूरा पानी से तर था...
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कहै घाघ सुन भड्डरी,.....
कौन थे ये दोनों
"घाघ'' जहां खेती, नीति एवं स्वास्थ्य से जुड़ी कहावतों के लिए विख्यात हैं, वहीं ''भड्डरी'' की रचनाएं वर्षा, ज्योतिष और आचार-विचार से विशेष रूप से संबद्ध हैं।घाघ के समान ही लोकजीवन से संबंधित कहावतों में कही गई भड्डरी की भविष्यवाणियां भी बहुत प्रसिद्ध हैं। दोनों समकालीन तो हैं साथ ही यह समानता भी है कि घाघ की तरह भड्डरी का जीवन वृतांत भी निर्विवाद नहीं है। अनेकानेक किंवदंतियां दोनों के साथ जुडी हुई हैं। पर साथ ही यह भी सच है कि जितनी ख्याति जनकवि घाघ को मिली उतनी प्रसिद्धि भड्डरी को नहीं मिल पाई !आज की वर्तमान पीढ़ी इनके बारे में शायद ज्यादा न जानती हो, फिर भी बरसात द्वारे पर है,,,
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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बहुत-बहुत धन्यवाद इस निष्पक्ष मंच पर पथिक की रचना को स्थान देने के लिये। नेत्रों से कम दिखने के कारण और मानसिक परेशानी से लेखन नहीं कर पा रहा हूं।
जवाब देंहटाएंफिर भी इस बात की खुशी है कि यह मंच बनावटी और दिखावटी लोगों के हाथ की कठपुतली नहीं है।जिनके पास " वाह- वाह" के अतिरिक्त किसी तरह की संवेदना नहीं है। जो एक साहित्यकार में होना चाहिए।
मैं सदैव आपका हृदय से आभारी रहूंगा सर।
प्रणाम।
सुप्रभात सर 🙏)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सजा चर्चा मंच, बहुत ही सुन्दर रचनाएँ, मुझे स्थान देने हेतु सहृदय आभार आदरणीय, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
प्रणाम
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा सजा चर्चा मंच |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंरचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंविविधरंगी सुंदर चर्चामंच, आभार मुझे भी शामिल करने के लिए !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचनाएँ,
जवाब देंहटाएं