मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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गजल,
" प्रियतम तुम्हारा प्यार "
(राधा तिवारी " राधेगोपाल " )
आप दोनों (राधा और गोपाल) को
वैवाहिक वर्षगाँठ की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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जड़-चेतन
अम्बर के आनन में जब-जब,
सूरज जल-तल से मिलता है।
कण-कण वसुधा के आंगन में,
सृजन सुमन शाश्वत खिलता है।
जब सागर को छोड़ यह सूरज,
धरती के ' सर चढ़ जाता है!'
ढार-ढार कर धाह धरा पर,
तापमान फिर बढ़ जाता है...
सूरज जल-तल से मिलता है।
कण-कण वसुधा के आंगन में,
सृजन सुमन शाश्वत खिलता है।
जब सागर को छोड़ यह सूरज,
धरती के ' सर चढ़ जाता है!'
ढार-ढार कर धाह धरा पर,
तापमान फिर बढ़ जाता है...
बिन पैरों चलती बातें
आँखों से निकली बातें
यहाँ वहाँ बिखरी बातें
अफवाहें, झूठी, सच्ची
फ़ैल गईं कितनी बातें...
शक्ति जगे भीतर जब पावन
हमें सत्य को पाना नहीं है, उसे अपने माध्यम से प्रकट होने का अवसर देना है. परमात्मा को देखना नहीं है उसके गुणों को स्वयं के भीतर पनपने का अवसर देना है. आदिम युग में मानव ने जब परमात्मा की ओर पहली-पहली बार निहारा होगा तो उस अदृश्य शक्ति से सहायता की गुहार लगाई होगी...
डायरी के पन्नों से पर Anita
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बच्चों को नमन
मेरी नानी का घर मथुरा शहर मैं ही था शहर का आखरी कोना ये मैं ६० वर्ष पूर्व की बात बता रही हूँ अब वः आखरी कोना नहीं है उसके बाद तो शहर का बुत विस्तार हो गया है तब ओह बहुत सुंदर जगह थी घर के सामने बड़ी सी खुली जगह उसके तीन ओरे माकन एक ओरे मंदिर फिर यमुना का घाट दूसरी तरफ पक्की सड़क पार करते ही शहर आ जाता था मतलब यह है कभी शहर और गाँव के बीच बहुत खेत थे लेकिन शहर ने अब बढ़ कर गाँवो को समेत लिया है गाँव शहर का ही हिस्सा हो गया है ...
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उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति। सादर आभार।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन संयोजन है आदरणीय डॉ. शास्त्री जी, मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा अंक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसादर