स्नेहिल अभिवादन।
विशेष शनिवारीय प्रस्तुति में हार्दिक स्वागत है।
जिजीविषा अर्थात जीने की प्रबल इच्छा। जीवन के प्रति सकारात्मकता ही उसे सार्थक बनाती है, नये रंग भरती है।
जीवन अपना पथ चुनता है और लक्ष्य की तलाश में जीवट भरे अनुप्रयोग उसे ख़ूबसूरती प्रदान करते हैं।
शब्द-सृजन के तीसरे अंक का विषय था 'जिजीविषा'।
आइए पढ़ते हैं कुछ रचनाएँ जो जिजीविषा को केन्द्रीय भाव बनाकर सृजित हुईं हैं-
- अनीता सैनी
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रहती है आकांक्षा, जब तक घट में प्राण।
जिजीविषा के मर्म को, कहते वेद-पुराण।।
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जीने की इच्छा सदा, रखता मन में जीव।
करता है जो कर्म को, वो होता सुग्रीव।।
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तिमिर के पार जिजीविषा
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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जीने की इच्छा सदा, रखता मन में जीव।
करता है जो कर्म को, वो होता सुग्रीव।।
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तिमिर के पार जिजीविषा
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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विकल है आज तो बेकल मन
परिवेश में गूँजता
चीत्कार का व्याकुल स्वर,
प्रभा-मंडल में यह कैसा नक़ली आलोक
नीरव निशा की गोद में
तनिक विश्राम करके
उठ खड़ी होती है जिजीविषा
अनायास सिहरन का उन्मोचन कर।
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ठिठुरी भीगी अधज धुआं उगलती लकड़ियाँ अकड़ी ..सूजी ..नीली पड़ी तुम्हारी ठंडी अंगुलियां बता रही यह राज कि वे दिन भर कितना श्रम करती हैं... **
घना अंधेरा कांधे पर
उठाये निरीह रात के
थकान से बोझिल हो
पलक झपकाते ही
सुबह
लाद लेती है सूरज
अपने पीठ पर
समय की लाठी की
उंगली थामे
जलती,हाँफती
अपनी परछाई ढोती
चढ़ती जाती है,
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कभी खुशियों के किनारे लगती
कभी मन के झंझावातों में फस
वहीं गोल-गोल घूमती रहती
आस नहीं छोड़ती तूफ़ानों से लड़ती
तप्त रेगिस्तान में
या गहन अंधकार में
जिंदगी के जंगल में
निराशा के कूप में
बेवफाई के जाल में
धोखे के मकड़जाल में
अविश्वास के खेल में
नफरतों के ढेर में
किसी जाल में फंसे पक्षी सा
फड़फड़ाता जीवन
मृत्यु को मान प्रियतमा
कर देना चाहता अंत
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है राहें औऱ भी नजरे तो उठा !
उम्मीदें बढा फिर चलें तो जरा !
वजह मुस्कुराने की हैं और भी,
जो नहीं उस पर रोना तो छोड़े जरा...
यही सीख जब अपनाने लगी
एक नयी सोच तब मन में आने लगी
देख ऐसी कला उस कलाकार की
भावना गीत बन गुनगुनाने लगी.......
आस हैं और भी.....राह हैं और भी....
है राहें औऱ भी नजरे तो उठा !
उम्मीदें बढा फिर चलें तो जरा !
वजह मुस्कुराने की हैं और भी,
जो नहीं उस पर रोना तो छोड़े जरा...
यही सीख जब अपनाने लगी
एक नयी सोच तब मन में आने लगी
देख ऐसी कला उस कलाकार की
भावना गीत बन गुनगुनाने लगी.......
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उम्मीदें जब टूट कर बिखर जाती है,
अरमान दम तोड़ते यूँ ही अंधेरों में ।
कंटीली राहों पर आगे बढ़े तो कैसे ?
शून्य पर सारी आशाएं सिमट जाती हैं ।
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क्यों घबरा जाते है।
टूट जाते हैं , बिखर जाते हैं
जब परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं होती
क्यों उस जामुन के पौधे की तरह
खुद में #जिजीविषा समाहित किये ,
जीने का प्रयास हम नही करते ,
मनुष्य होना आसान नहीं..?
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जिजीविषा की नूतन इबारत
अविज्ञात मलिन आशाओं को समेटकर,
अनर्गल प्रलापों से परे,
विसंगतियों के चक्रव्यूह तोड़कर,
जिजीविषा की नूतन इबारत,
मूल्यों को संचित कर वह लिखना चाहती है |
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आज का सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।
कल फिर मिलेंगे।
- अनीता सैनी
विषय आधारित अंक बहुत ही सुंदर और सकारात्मकता का संदेश दे रहा है ।श्रमसाध्य प्रस्तुति केलिए अनिता बहन आपको एवं सभी रचनाकारों को नमन । भूमिका और इन रचनाओं को पढ़कर मुझे भी कुछ स्मरण हो आया है। अपनी बात गीत की इन पंक्तियों से शुरू करता हूँ-
जवाब देंहटाएंदिल है छोटा सा, छोटी सी आशा
मस्ती भरे मन की, भोली सी आशा
चाँद तारों को, छूने की आशा
आसमानों में उड़ने की आशा..।
जब मैं घर छोड़ कर अंजान राह पर निकला था तो रोजा फिल्म का यह गीत मुझे अत्यंत पसंद था ।
प्रतिदिन बनारस से मिर्जापुर का लंबा सफर, पुनःशाम छह से रात साढ़े नौ बजे तक पैदल ही अखबार वितरण ,समाचार लेखन सब कुछ कर लेता था, क्योंकि आगे बढ़ने की एक आशा मन में थी...।
सुखमय जीवन जीने की प्रबल इच्छा थी । मन में प्रेम का भाव था। लोगों को अपना बनाने की चाहत थी । जीवन के प्रति अनुराग था ।
यही तो जिजीविषा (जीने की इच्छा) है..।
प्रणाम...।
विषय विशेष पर आधारित सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
जिजीविषा के इतने खूबसूरत रंग, लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की अनुपम'शब्द सृजन'प्रस्तुति में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा अंक ,सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजिजीविषा पर आधारित लाजवाब रचनाए
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति.....
मेरी रचनाओं को यहाँ स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार।
सुंदर और सकारात्मक शब्द जिजीविषा पर लिखी सभी रचनाएँ अति सराहनीय है। जीवन के गहन तिमिर संघर्षों में आशा की ज्योति होती है जिजीविषा।
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई।
मेरी रचना शामिल करने कके लिए बहुय आभारी हूँ अनु।
सस्नेह शुक्रिया।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा अंक।सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमुझे यह आर्टिकल पड कर बहुत अच्छा लगा कि हमारे देश भी technlogy के मामले आगे बड रहा है। मैंने भी अपना ब्लॉग बनाया है चाहे तो आप एक बार अवश्य visit करें ।
जवाब देंहटाएंMahakal Status
Hello Readers..
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