सादर अभिवादन।
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यह कैसी हवा चली है कि
सुकून बेचैनियों में बदल गया है!
दिलों में दूसरों के लिये स्थान सिकुड़ रहा है
और मेलजोल के जज़्बात खाक़ में मिल रहे हैं।
उम्मीदों के चमन में ज़हरीले फूल पनप गये हैं।
अजीब माहौल है यहाँ-वहाँ धुएँ के बादल छाये हैं
और लोग घुटनभरी साँसों के साथ ज़िंदा हैं।
आपसी विश्वास थककर चूर गया है
और तरोताज़ा हवा में साँस लेने के लिये हाँफ रहा है।
प्रगति के सोपान चढ़ती सभ्यता के दौर में
सही-ग़लत का मूल्यांकन करनेवाले
आज संदेह के घेरे में हैं
क्योंकि समाज का दृष्टिकोण बहुआयामी हो चुका है।
-रवीन्द्र सिंह यादव
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शब्द-सृजन-6 का विषय है-
'बयार'
इस विषय पर अपनी रचना का लिंक सोमवार से शुक्रवार (शाम 5 बजे तक ) चर्चामंच की प्रस्तुति के कॉमेंट बॉक्स में प्रकाशित कर सकते हैं।
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की चुनिंदा रचनाएँ-
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चल हट जा ना झूठे
सुन तेरी बातें
हम तुझसे ही रूठे
यह झूठ बहाना है
कर प्यारी बातें
अब घर भी जाना है
*****
"हाइकु"
शुभ्र गगन~ गूंजे जयहिंद सेधरा अखंड ।.. पुनीत पर्व~ जन गण मन में भारतवर्ष ।.. *****
तिरंगा उदास क्यूं
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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गीत
"गणतन्त्र दिवस"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कोरी बातें
मुझे मेरे बचपन में देशप्रेम बहुत समझ में नहीं आता था।
आजाद देश में पैदा हुई थी और सारे नाज नखरे आसानी से पूरे हो जाते थे।
लेकिन झंडोतोलन हमेशा से पसंदीदा रहा।
स्वतंत्रता दिवस के पच्चीसवें वर्षगांठ पर पूरे शहर को सजाया गया था।
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कोरी बातें
मुझे मेरे बचपन में देशप्रेम बहुत समझ में नहीं आता था।
आजाद देश में पैदा हुई थी और सारे नाज नखरे आसानी से पूरे हो जाते थे।
लेकिन झंडोतोलन हमेशा से पसंदीदा रहा।
स्वतंत्रता दिवस के पच्चीसवें वर्षगांठ पर पूरे शहर को सजाया गया था।
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चौपाल में हुक़्क़े संग धुँआ में उठतीं बातें
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सुधा की कह मुकरियाँ
चंचल मन में लहर उठाए
आंगन भी खिल खिल मुस्काए
मैं उसकी आवाज़ की कायल
क्या सखि साजन? ना सखि पायल
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जन्मों का फेरा (माहिया छंद)
चल हट जा ना झूठे
सुन तेरी बातें
हम तुझसे ही रूठे
यह झूठ बहाना है
कर प्यारी बातें
अब घर भी जाना है
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"हाइकु"
शुभ्र गगन~ गूंजे जयहिंद सेधरा अखंड ।.. पुनीत पर्व~ जन गण मन में भारतवर्ष ।.. *****
तिरंगा उदास क्यूं
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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धुएँ के बादल
अधखुली खिड़की से,
धुएँ के बादल निकल आए,
संग साथ में सोंधी रोटी
की खु़शबू भी ले आए,
सुलगती अँँगीठी और
अम्मा का धुआँ-धुआँ
धुएँ के बादल निकल आए,
संग साथ में सोंधी रोटी
की खु़शबू भी ले आए,
सुलगती अँँगीठी और
अम्मा का धुआँ-धुआँ
होता मन..!
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शेर-ओ-अदब का ये शहर
जो ढूँढ़ते हो अदब,तहज़ीब अगर
तो अवध की गलियों में आ जाना
और चाहते हो गर मुस्कुराना तो
दिल -ए-लखनऊ से दिल लगाना।
दिल्ली है सहमी हुई, लफ्जों की भूख बढ़ी
दौड़ों, भागों..अंधेरे आयेंगे, उजाले जायेंगे,
और कुछ हो न हो पर..पहरेदारी के आड़े
इसकी, उसकी,सबकी टोपी खूब उछालें जायेंगे,
"अरे!"
"यह बात तो हमने भी सुनी है!"
छगन मिसिर,
"हाँ..!"
"ठीक ही है!"
"पंचर बनाते-बनाते कहीं गाँव की इज़्ज़त पर ही न पंचर चिपका दे!"
*****
लिख सौहार्द की नई परिभाषा;
प्यार जीता नफरत हारी ,
बो हर दिल में नयी आशा ;
हर कोई अपलक देख रहा -
इस प्यार की शक्ति को !
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"यह बात तो हमने भी सुनी है!"
छगन मिसिर,
"हाँ..!"
"ठीक ही है!"
"पंचर बनाते-बनाते कहीं गाँव की इज़्ज़त पर ही न पंचर चिपका दे!"
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नमन न्यायपालिका
समय बढ़ गया आगे,
लिख सौहार्द की नई परिभाषा;
प्यार जीता नफरत हारी ,
बो हर दिल में नयी आशा ;
हर कोई अपलक देख रहा -
इस प्यार की शक्ति को !
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"सैनिक---देश के"
उसने सैनिक मार गिराये,
तुमने बंकर उडा दिये........
ईंट के बदले पत्थर मारे,
ताकत अपनी दिखा रहे........
संसद की कुर्सी पर बैठे,
नेता रचते शेर रे...........
एक दिन सैनिक बनकर देखो,
कैसे निकले रेड रे.........
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
सशक्त, समसामयिक भूमिका ,विविधता भरी प्रस्तुति साथ ही शब्द-सृजन का विषय भी वर्तमान वातावरण के अनुरूप।
जवाब देंहटाएंसभी को प्रणाम।
गणतन्त्र से जुड़े उपयोगी और पठनीय लिंक।
जवाब देंहटाएंबसन्त के अवसर पर शब्द सृजन का विषय "बयार" बहुत प्रासंगिक है।
आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
धूएँ के बादल यह सुनते ही मन मस्तिक में ग्रामीण परिवेश तैरने लगता है,, रिश्तो में जहरीले धुएं की चादर चढ़ने लगी.. सारगर्भित भूमिका के साथ बहुत ही अच्छी संकलन आप ने तैयार की है
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को भी स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
बहुत सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवींद्र जी, प्रणाम, मुझ जैसे, कोने में पड़े रहने वाले अतिलघु लेखक को इस दीर्घ मंच पर स्थान देने हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! मेरी लघुकथा को इस चर्चित मंच पर आपने इतना मान दिया एक बार पुनः आपका धन्यवाद ! सादर 'एकलव्य'
जवाब देंहटाएंसशक्त भूमिका के साथ बहुत सुन्दर प्रस्तुति । आपका बहुत बहुत आभार मेरे सृजन को मंच प्रस्तुति में सम्मिलित करने के लिए ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक्स बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंप्रभावी भूमिका के साथ सामायिक विषयों पर लिंक।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
मेरी रचना को शामिल करने के लिये आभार।
सारगर्भित भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु सहृदय आभार.
सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसचमुच लोग घुटनभरी साँसों के साथ जिंदा हैं। आज का कटु सत्य.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भूमिका के साथ बढ़िया लिंक्स का समायोजन. सभी रचनाकारों को बधाइयाँ. मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏
सुंदर चर्चा 👌👌👌
जवाब देंहटाएंशानदार भूमिका के साथ बेहतरीन चर्चा अंक सर ,सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसही-ग़लत का मूल्यांकन करनेवाले आज संदेह के घेरे में हैं क्योंकि समाज का दृष्टिकोण बहुआयामी हो चुका है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक भूमिका के साथ लाजवाब चर्चा मंच
शानदार लिंकों का संकलन
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ।
सुंदर,पठनीय अंक आदरणीय रविंद्र जी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार ।सभी रचनाकारों को मेरी शुभकामनायें। 🙏🙏🙏।
जवाब देंहटाएंविचारणीय भूमिका और सुंदर प्रस्तुति के संग लाजावाब अंक। सभी रचनाएँ बेहद उत्क्रष्ट। सभी को खूब बधाई। मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर ।सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंचिंतन देती सारगर्भित भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक संयोजन।
सभी रचनाकारों को बधाई
मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।