एक ओर जहाँ दुनिया में विश्वयुद्ध का खतरा मँडरा रहा है, वहीं हमारे देश में भी आये दिन हिंसक प्रदर्शन और जुलूसों का दौर थमता दिखाई नहीं दे रहा है। जो चिन्ता का विषय है। नागरिकता कानून भारत के हित में है लेकिन देश के चन्द धर्मान्ध लोगों और कुछ राजनीतिज्ञों ने वर्गविशेष को भ्रमित किया हुआ है। चर्चा मंच के माध्यम से मेरी माँग है कि ऐसे सिरफिरों पर देशद्रोह के मुकदमें दर्ज करायें जायें और अलगाववादी इदारों पर तत्काल प्रतिबन्ध लगाये जायें। जिससे कि देश में अमन-चैन स्थापित हो सके।
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चर्चा मंच पर प्रत्येक शनिवार को
विषय विशेष पर आधारित चर्चा "शब्द-सृजन" के अन्तर्गत
श्रीमती अनीता सैनी द्वारा प्रस्तुत की जायेगी।
आगामी शनिवार का विषय होगा
"जिजीविषा"
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दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में श्रीमती जी को नियमित जाँच के लिए बरेली ले गया
था। वहाँ चिकित्सकों ने एंजियोग्राफी कराने की सलाह दी थी। 3 जनवरी को उनको एंजियोग्राफी
के लिए मेडिसिटी रुद्रपुर में ले गया। जिसमें उनकी दो धमनियाँ 99% और 70% ब्लॉक थी। इसलिए उनकी
एंजियोप्लास्टी करानी पड़ी। तीन दिनों से बहुत परेशान था। कल देर शाम को उनको
डिस्चार्ज कराकर घर ले आया हूँ। अब वो अच्छा महसूस कर रही हैं। इससे मेरी चिन्ता
भी कम हो गयी हैं और मन को भी सुकून मिला है।
मंच के माध्यम से मैं अपने सभी सहयोगी चर्चाकारों और मित्रों को दृदय से धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने फेसबुक-व्हाट्सप, फोन और मेल के माध्यम से अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित की हैं।
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मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक।
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सबसे पहले देखिए-
"मेरी गुरुकुल की पहली यात्रा"
बात लगभग 60 वर्ष पुरानी है। श्री रामचन्द्र आर्य मेरे मामा जी थे जो आर्य समाज के अनुयायी थे। उनके मन में एक ही लगन थी कि परिवार के सभी बच्चें पढ़-लिख जायें और उनमें आर्य समाज के संस्कार भी आ जायें। बिल्कुल यही विचारधारा मेरे पूज्य पिता जी की भी थी।* * मेरी माता जी अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं और मैं अपने घर का तो इकलौता पुत्र था ही साथ ही ननिहाल का भी दुलारा था। इसलिए मामाजी का निशाना भी मैं ही बना। अतः उन्होंने मेरी माता जी और नानी जी अपनी बातों से सन्तुष्ट कर दिया और मुझको गुरूकुल महाविद्यालय**, **ज्वालापुर (हरद्वार) में दाखिल करा दिया गया...
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मुतमइन बैठा हूँ
मैं तो घने पेड़ की छाँव में डूबने को जब सूरज हो
सुनसान राहों पर
ख़ुद को बचाकर चलना
कोई रहगुज़र-ए-दिल
तो होगी ज़रूर
जो ले आएगी मुझ तक.........?
#रवीन्द्र सिंह यादव
Ravindra Singh Yadav
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जब जला आती हूँ अलाव कहीं...
ये मन
धूं-धूं जलता है
जब ये मन
तन से रिसते
ज़ख़्मों के तरल
ओढ़ के गमों के
अनगिनत घाव
जब जला आती हूँ
अलाव कहीं
धीमी-धीमी आंच पर...
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कविता - 2 विवशता
बड़ी देर से
इंतजार था कुत्ते को
रोटी के टुकड़े का
और जैसे ही
इंतजार समाप्त होने को आया
घट गई एक अनोखी घटना ...
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मेहनतकशों का चहेता शायर :
मख्दूम
मेहनतकशो के चहेते इंकलाबी शायर मख्दूम मोहिउद्दीन का शुमार हिन्दुस्तान में उन शख्सियतो में होता है , जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी आवाम की लड़ाई में गुजार दी | उन्होंने सुर्ख परचम तले आजादी की लड़ाई में हिस्सेदारी की और आजादी के बाद भी उनकी ये लड़ाई असेम्बली व उसके बाहर लोकतांत्रिक लड़ाइयो से जुडी रही , आजादी की तहरीक के दौरान उन्होंने न सिर्फ साम्राजी अंग्रेजी हुकूमत से जमकर टक्कर ली बल्कि आवाम को सामंतशाही के खिलाफ भी बेदार किया |
मख्दूम एक साथ कई मोर्चो पर काम कर सकते थे , गोया कि , किसान आन्दोलन ,
दरेड यूनियन , पार्टी और लेखक संघ के संगठनात्मक कार्य सभी में वे बढ़ --चढ़कर हिस्सा लेते और इन्ही मशरुफियतो के दौरान उनकी शायरी परवाज चढ़ी अदब और सामाजिक बदलाव के लिए संघर्ष रत नौजवानों में मखदूम की शायरी इन्ही जन संघर्षो के बीच पैदा हुई थी...
दरेड यूनियन , पार्टी और लेखक संघ के संगठनात्मक कार्य सभी में वे बढ़ --चढ़कर हिस्सा लेते और इन्ही मशरुफियतो के दौरान उनकी शायरी परवाज चढ़ी अदब और सामाजिक बदलाव के लिए संघर्ष रत नौजवानों में मखदूम की शायरी इन्ही जन संघर्षो के बीच पैदा हुई थी...
शरारती बचपन पर sunil kumar
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साथी कभी साथ ना छूटे।
तेरी राहें देखते देखते,कितनी सदियाँ गुजारी मैंने।सूनी गलियों में जाकर,सिर्फ ख़ाक ही छानी मैंने।अब देर ना कर मेरे पास तू आ,बिंदिया काजल चूड़ी कंगन,तेरे लिए मँगा ली मैंने।साथी अब कभी साथ ना छूटे,रब से यही दुआ माँगी मैंने।
Nitish Tiwary
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नवगीत: व्यंजना बिखरी पड़ी हैं
संजय कौशिक 'विज्ञात'
व्यंजना बिखरी पड़ी हैं
स्वर रहित ये गीत, कैसा ?
टूटती सरगम मधुर जब
साँस को बिन ताल देखा
आ रहा है याद फिर से
वो लड़क पन ख्याल देखा
आज टूटी खाट में वो
ये समय का हाल देखा
टूटता संगीत देखा
सोचता ये मीत, कैसा ?
व्यंजना बिखरी पड़ी हैं
स्वर रहित ये गीत, कैसा ...
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माँ - एक एहसास
एक और पन्ना कोशिश, माँ को समेटने की से ... आपका प्रेम मिल रहा है इस किताब को, बहुत आभार है आपका ... कल पुस्तक मेले, दिल्ली में आप सब से मिलने की प्रतीक्षा है ... पूरा जनवरी का महीना इस बार भारत की तीखी चुलबुली सर्दी के बीच ...
लगा तो लेता तेरी तस्वीर दीवार पर
जो दिल के कोने वाले हिस्से से
कर पाता तुझे बाहर
कैद कर देता लकड़ी के फ्रेम में
न महसूस होती अगर
तेरे क़दमों की सुगबुगाहट
घर के उस कोने से
जहाँ मन्दिर की घंटियाँ सी बजती रहती हैं ...
स्वप्न मेरे पर दिगंबर नासवा
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हाईजैक ऑफ़ पुष्पक ... -
भाग- १ -
( आलेख ).
... साल में कुछ दिन किसी भी विषय पर तथाकथित दिवस मना कर हम एक सुसंस्कृत नागरिक होने का प्रमाण दे देते हैं। आज तो यह और भी आसान है , सोशल मिडिया पर अपनी उस करतूत की सेल्फ़ी को चिपका कर चमका देना।
हम कभी "दिवस" को "दिनचर्या" में बदलने की भूल नहीं करते।कर भी नहीं सकते। कौन रोज-रोज की परेशानी मोल ले भला। ये ठीक उस ढोंग की तरह है - जैसे हमने दिल्ली सरकार की यातायात वाली Odd-Even वाली शैली में धर्म से जोड़कर मांसाहार-शाकाहार की नियमावली बना डाली है। मंगल, गुरु, शनि को शाकाहार और बाक़ी दिन मांसाहार।
हमने बाल-दाढ़ी कटवाने-बनाने के भी दिन तय कर रखे हैं। इन सोच के मुताबिक़ तो प्रतिदिन Shave करने वाले Clean Shaved अम्बानी को फ़क़ीर होना चाहिए था शायद।
युवा पीढ़ी को युवा होने के पहले ही हम उसके जन्म के पूर्व ही कई सारे अपने पुरखों से मिले रेडीमेड पूर्वाग्रहों के बाड़े में कैद कर देते हैं। उसे अपनी महिमामंडित अंधपरम्पराओं और विडम्बनाओं से ग्रसित कर देते हैं। ज्यादा से ज्यादा अंक-प्राप्ति वाली पढ़ाई की भट्ठी में झोंक देते हैं।
Subodh Sinha
नागरिकता कानून को लेकर सबसे अधिक शोर सभ्य समाज के वे जेंटलमैन मचा रहे हैं जिनके हाथ में कलम है। वे ऐसे उत्तेजक विचार व्यक्त कर रहे हैं जैसे कोई बड़ा काला कानून यह हो।
जवाब देंहटाएंउन्हें देश की शांति व्यवस्था से नहीं मतलब, उन्हें तो अपनी लेखनी एवं बयान के माध्यम से
चिकोटी काट- काट कर स्वयं को कथित प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष समाज का अगुआ कहलाने में कहीं अधिक आनंद आ रहा है। देश जाए भाड़ में उनसे क्या ?
**** आपके गुरुकुल का संस्मरण सुंदर रहा। बालमन ऐसा ही होता है जहाँ स्नेह मिलता है, वह उसे छोड़कर अन्य स्थान पर नहीं टिकता है।
***पिछले दिनों पूज्य माताजी के उपचार के दौरान भी आपने साहित्य जगत से जुड़े अपने कर्तव्यों का पालन जिसतरह से निर्विकार भाव से किया यह विपरीत परिस्थितियों में हमसभी का मार्गदर्शन करेगा।
गुरुजी, मंच पर इतनी सुंदर चर्चा और प्रत्येक रचनाओं के साथ आपकी टिप्पणी सदैव की तरह सराहनीय है इन्हीं शब्दों के साथ सभी को प्रणाम।
सहमत आदरणीय.
हटाएंआभार शास्त्री जी। और हां, मैं समझता हूँ, उस जमाने मे मामाजी ने आपको एक बहुत ही सुयोग्य राह दिखलाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार ।
जवाब देंहटाएंदेशद्रोह को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने व एक मानदण्ड को न लांघने की समुचित व्यवस्था का होना नितांत आवश्यक है साथ ही इसका अनुपालन विधिपूर्वक मान्य होनी चाहिए, ताकि इस पर पॉलिटिक्स की कोई गुंजाइश न रहे।
जवाब देंहटाएंआभार।
बहुत अच्छी बात बताई आपने .. माताजी की तबीयत सुधर रही है. जल्द उनके पूरी तरह से स्वस्थ होने की कामना करती हूँँ.. आपकी जिजीविषा की सराहना करनी होगी उन विकट परिस्थितियों में भी आपने चर्चा मंच का साथ नहीं छोड़ा रोज ही चर्चा मंच पर उपस्थित रहे संकलन तैयार किया फेसबुक पर सक्रिय नजर आए सच में नमन है आपकी हिम्मत को..।
जवाब देंहटाएंपक्ष कहूं या विपक्ष कहूं दोनों की ही राजनीति ने छात्रों के भविष्य को दांव पर लगाना शुरू कर दिया है चयनित रचनाएं सभी एक से बढ़कर एक है
व्यवस्था इतनी बढ़ गई है कि ना तो मैं चर्चा मंच पर आ पा रही हूँँ नहीं अन्य किसी काम को सही ढंग से कर पा रही हूँँ..
आंटी की तबियत में सुधार हो रहा हैं यह जानकर खुशी हुई। ईश्वर और उन्हें स्वास्थ्य लाभ दे।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को "चर्चा मंच" में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी।
शास्त्रीजी, नमस्ते. काकी का स्वास्थ्य पूरी तरह से सुधर जाए, यह प्रार्थना है ईश्वर से. तनाव,खानपान और व्यायाम पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है ह्रदय रोगियों के लिए. डॉक्टर ने विस्तार से निर्देश दिए ही होंगे.
जवाब देंहटाएंआपकी कर्मठता और कार्य के प्रति समर्पण से बहुत कुछ सीखने को है. प्रयास जारी रहेगा.
बहुत प्यारा चर्चा अंक. गुलफ़ाम को भी स्थान देने के लिए हार्दिक आभार.
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंत्वरित चिकित्सा
जवाब देंहटाएंहरदम लाभ देती है
शुभकामनाएँ
सादर
आपका सेवाभाव, आपका अनुराग, चिकित्सकों की सशुल्क शल्य-चिकित्सा सेवा और प्रकृत्ति की सकारात्मकता ... इन सब के मिलेजुले असर का देन .. और जीवन-साथी का स्वस्थ हो जाना .. ऐसे सुकून भरे लम्हों की बौछार में भींगे हुए अभी आप को सपत्नीक सादर नमन ...
जवाब देंहटाएंसाथ ही आभार आपका रचना/विचार साझा करने हेतु ...
(वैसे "आभार आपका" कहना तो बस एक औपचारिकता भर है ..बस यूँ ही ... हर बार की तरह ... जैसे हर बार आप रचना साझा तो करते ही हैं प्रेमवश साधिकार ... और आपका साझा करने वाला सन्देश एक औपचारिकता ही तो होता है .. ब्लॉग-जगत वाला .. है ना !...)
ईश्वर की अनुकम्पा और त्वरित चिकित्सा व
जवाब देंहटाएंआपके प्रेम और विश्वास से आदरणीया आंटी जी को स्वास्थ्य लाभ हो,यही शुभकामनाएं 🙏🌷
आदरणीया भाभी जी के स्वास्थलाभ हेतु शुभकामनाएं। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनमस्कार शास्त्री जी ! अमर भारती जी की अस्वस्थता की सूचना से चिंता हो गयी है ! आशा है आपकी सेवा परिचर्या और चिकित्सकों के उपचार से वे शीघ्र ही पूर्णत: स्वस्थ हो जायेंगी ! आप स्वयं दक्ष चिकित्सक हैं ! मेरी अनंत अशेष शुभकामनाएं !'जिजीविषा' विषय पर अपनी एक पुराणी रचना का लिंक भेज रही हूँ आशा है चयनकर्ताओं को रचना पसंद आयेगी ! https://sudhinama.blogspot.com/2014/11/blog-post_8.html! साभार सादर !
जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी जी
हटाएंसादर प्रणाम
आप की रचना का लिंक ओपन नहीं हो रहा कृपया अपनी रचना का लिंक भेजे
आदरणीय सर के नम्बर है =7906360576