फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, जनवरी 25, 2020

"बेटियों के प्रति संवेदनशील बने समाज" (चर्चा अंक - 3591)

स्नेहिल अभिवादन। 

    बेटियाँ किसी भी समाज के लिये अनमोल धरोहर होती हैं। वे अलग-अलग रिश्तों में बँधकर दो परिवारों के बीच सेतु-सा विशिष्ट जवाबदेह भार अपने ऊपर उठाकर चलतीं हैं और परिवार,समाज व देश को संस्कारित करतीं हुईं अपना सर्वश्रेष्ठ सृष्टि की नियमावली के अनुसार अर्पित करतीं हैं। 
आज समाज में बेटियों के प्रति क्रूरता और अपराधों के बढ़ते भयानक आँकड़े डरावने हैं जिनमें अधिकाँश हिस्सा पुरुष अत्याचार का है तो कुछ हिस्सा स्त्री पर स्त्री के अपराध और क्रूरता का भी है। समाज को बेटियों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिये सर्वाधिक ज़रूरी है कि परिवारों में बेटों को स्त्री की इज़्ज़त का पाठ पढ़ाया जाय और स्त्री अपनी बेटी और बहू में भेद की सीमा से बाहर आये। 

सूचना 
शब्द-सृजन-5 का विषय 'हमारा गणतंत्र' गणतंत्र दिवस यानी रविवार 26 जनवरी 2020 को प्रस्तुत किया जायेगा। 
सादर सूचनार्थ।   

-अनीता सैनी 

**

आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
 

गीत 

"मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") 

**
ज्ञान और अज्ञान

असीम है ज्ञान और अज्ञान की भी सीमा नहीं है मानव के सह लेता है जन्म और मृत्यु का दुःख काट लेता है वृद्धावस्था भी रो-झींक कर सामना करता है रोग का पर क्या कहें दुःख के उस भंडार का जो लिए फिरता है अपने कांधों पर
जिस समाज में लैंगिक असमानता और
 भ्रूणहत्या जैसी कुरीतियाँ आज भी मौजूद हैं, 
वहां संवेदनशील और सहयोगी सामाजिक व्यवस्था ही
 बालिकाओं के जीवन की दशा बदल सकती है |

तू क्या लाया था जो लेकर जाएगा
मृगतृष्णा की चाह में एक दिन मारा जाएगा
पंच तत्वों से निर्मित ये ढलती काया
अमर तत्व के तेरे विश्वास को झुठलायेगा
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए

**

और, मैं चुप सा

 

 कविता "जीवन कलश"

**

माहिया छंद ●संजय कौशिक 'विज्ञात'●

 

**
स्याह परतों के नीचे : 

दीपक हमारा बुझाकर न सोचो ,
 तुम्हारा मकां ज्यादा रोशन दिखेगा!! 
लड़खड़ाते हुओं को उठाकर दिखाओ, 
उनके आशीष से दिन तुम्हारा बनेगा!!
**
ज़िन्दगी भी कहाँ अपनी होकर मिली
गर ख़ुशी भी मिली, वो भी रोकर मिली
मसखरा बन हँसाया जिन्हें उम्र भर
मिला उनसे कुछ तो ये ठोकर मिली
**
वसंत की आहट - नई कहानी

तब चलेंगे न दूर पहाड़ों की यात्रा पर" 
वह हमेशा की तरह हंस दिया और दोनों 
के बीच का जीवन वसंत खिल उठा। 
एक बार फिर दोनों उन्ही रास्तों पर… 
**

उस कील का धन्यवाद

जिसने संभाले रखा

पुरे वर्ष उस कैलेंडर को

जिसमे हंसी ख़ुशी की

तारीखे दर्ज थी

साल बदलते रहे

हर नए साल पर

**

बजट 2020 : एक ग़ज़ल 

और कुछ उम्मीदें - डॉ. वर्षा सिंह

बजट केन्द्र का ऐसा हो जो राहत देने वाला हो

निर्धन के घर में भी सुख को दावत देने वाला हो

मंहगाई पर अंकुश वाला बजट बने कुछ अब ऐसा

बिगड़ी स्थितियों को बेहतर हालत देने वाला हो

**

विज्ञान

My Photo

न्यूटन की गति ने मारी है मति
नापने के मानक कर रहे अति ।
दिन भर दीवार को धक्का दिया
लोगों ने फिर निकम्मा क्यों कहा ।
जो भारी है उसका अधिक जड़त्व
जल का क्यों अलग चार पर घनत्व।[ 4℃]
**
बाट ( बाट जोहती ग्रामीण स्त्रियाँ )

वैद बुलाऊँ कैसे घर में 
 जेवर साहू खाया,
अब तो माटी धूरी उड़त है 
सूखा खेत गँवाया। 
लाज-शरम बस बाक़ी हमरी 
बस धन यही बचाया, 
ठकुरा हमको देख-देखकर 
गली-गली पगलाया। 
**
आज का सफर यही तक 
कल फिर मिलेंगे। 
- अनीता सैनी 

12 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा अनीता बहन, निश्चित ही लिंगभेद हमें नहीं करना चाहिए। समाज में बेटियों की अहम भूमिका होती है। स्त्री से ही घर है परिवार है और हमारा समाज है। एक स्त्री में एक साथ पत्नीत्व, मातृत्व और गृहिणीत्व जैसे गुण समाहित रहते हैं, परंतु स्त्रियों के लिए, बेटियों के लिए पुरुष से कहीं अधिक महिलाएँ शत्रु हैं। उसे ताना देने में सास , ननद और महिला रिश्तेदार सदैव ससुर ,पति और देवर से कहीं आगे होती हैं । अतः महिलाएँ स्वयं विचार करें कि बेटियों को समानता का अधिकार एक बहू के रूप में अथवा सास को माँ के रूप में देना वे कब शुरू करेंगी।
    सवाल यह भी है कि स्त्री अपने पुत्रों के कल्याण के लिए ही व्रत क्यों रहती है , बेटियों केलिए क्यों नहीं ?
    सुंदर प्रस्तुत है, कल के विशेष अंक की प्रतीक्षा रहेगी। सभी को प्रणाम।


    जवाब देंहटाएं
  2. वर्तमान को चेताती बहुत सुन्दर और उपयोगी चर्चा।
    अनीता सैनी जी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत शानदार प्रस्तुति
    उम्दा रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  4. बेटे-बेटियों में फ़र्क करना प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध है. पशु-बल के आधार पर श्रेष्ठता का नियम जंगल के जानवरों के बीच लागू किया जा सकता है, सभ्य समाज के इंसानों के बीच नहीं. बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार दिए जाने से भी अधिक आवश्यक है, उनको समुचित सुरक्षा प्रदान करना. लेकिन याद रहे, बेटियों को अधिकार देने के साथ-साथ हमको उन्हें उनके कर्तव्यों के प्रति भी सचेत करना होगा. माँ-बाप की जायदाद में अगर उनका हिस्सा अपने भाइयों के बराबर होना चाहिए तो उनके प्रति उनकी ज़िम्मेदारी भी भाइयों की जिम्मेदारियों के बराबर होनी चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति एवं आज की भूमिका में बेटियां ही बेटियां छाई हुई है... सही कहा आपने बेटियां समाज के अनमोल धरोहर है वह दो अलग-अलग परिवारों को एक करके एक नया परिवार शुरु करती है.. वह अलग बात है कि कहीं कहीं स्वार्थ आ जाता है और परिवार बिखर जाते हैं पर फिर भी बेटियां तो बेटियां ही होती हैं इस शानदार भूमिका के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद और साथ ही अन्य सभी रचनाएं बहुत अच्छी है और मेरी रचना को भी शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. बेटियां होती है अनमोल, खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. बेटियों के प्रति संजोयी गई चर्चा बेहतरीन है।

    मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन और लाजवाब प्रस्तुति अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    बेहतरीन रचनाओं का गुलदस्ता है आज की प्रस्तुति।बेटियों की सामाजिक स्थिति पर सार्थक चर्चा करती भूमिका।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।



    जवाब देंहटाएं
  10. शानदार चर्चा 👌👌👌 सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक 🙏

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।