स्नेहिल अभिवादन
ठंड अपने पूरी उफान पर है, मानो हम से कह रही हो इस घने कोहरे की चादर में तुम सबको लपेटे बिना मैं वापस नहीं जाऊंगा.. पर जाना तो सबको है फिर एक नई ऋतु का आगमन होगा. गर्म कपड़े समेट दिये जाएंगे, बक्सों में बंद कर दिए जाएंगे और सूती कपड़े बाहर दौड़ लगाएंगे.. मानव जीवन-चक्र भी इसी नियम दर नियम अपने गंतव्य की ओर चला जा रहा है। रुकता कुछ नहीं है हाथों में, फिर भी मनुष्य और -और की इच्छा में अपने आज को व्यर्थ कर रहा है!
-अनीता लागुरी 'अनु'
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ -
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ठंड अपने पूरी उफान पर है, मानो हम से कह रही हो इस घने कोहरे की चादर में तुम सबको लपेटे बिना मैं वापस नहीं जाऊंगा.. पर जाना तो सबको है फिर एक नई ऋतु का आगमन होगा. गर्म कपड़े समेट दिये जाएंगे, बक्सों में बंद कर दिए जाएंगे और सूती कपड़े बाहर दौड़ लगाएंगे.. मानव जीवन-चक्र भी इसी नियम दर नियम अपने गंतव्य की ओर चला जा रहा है। रुकता कुछ नहीं है हाथों में, फिर भी मनुष्य और -और की इच्छा में अपने आज को व्यर्थ कर रहा है!
-अनीता लागुरी 'अनु'
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ -
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दादा जी ने अपने तन पर,
कम्बल है लिपटाया।
ओढ़ चदरिया कुहरे की,
सूरज नभ में शर्माया।।
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सदियाँ बीत गईं,
पर तुम मीठे न हुए,
तुमने उन्हें भी खारा कर दिया,
जो मीलों चलती रहीं,
तुमसे मिलने को तरसती रहीं.
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कुण्डलियाँ छंद
●विधान उदाहरण सहित● ....
◆संजय कौशिक 'विज्ञात'◆
चहकते चिड़ियों में, वो शोर नहीं अब,
भौंरे कलियों पे, और नहीं अब!
बदली है फ़िजा, बदल चुका वो सूरज,
बहते झरनों का, शोर नहीं अब!
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●विधान उदाहरण सहित● ....
◆संजय कौशिक 'विज्ञात'◆
कभी कहे वो इत्र, पृष्ठ की स्याही महकी।
अक्षर स्वर्णी वर्ण, कहीं मात्राएं बहकी॥
कह कौशिक कविराय, परे हैं विवाद से हम।
कहती है वो मित्र, तुम्हीं हो जग में *अनुपम*॥
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नदिया जैसा बहता है मन,
इस तट आकर पुलकित होता
उस तट उदग्विन रहता है मन !
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शिद्दत से मुहब्बत का इज़्तिराब देखता हूँ
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हमारे यहाँ अवसाद और व्यग्रता यानी कि
Depression और Anxiety
आज सबसे आम मानसिक विकार हैं |
जाडा इस बार अपने पूरे जोर पर था।
पिछले तीन दिन से बारिश थी
कि थमने का नाम ही न लेती थी।
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कला
पिछले तीन दिन से बारिश थी
कि थमने का नाम ही न लेती थी।
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कला
कला कभी छुपती नहीं,बस चाहे आधार।
मन भीतर आशा जगी,मिल जाता विस्तार।
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तूने अहमियत नहीं दी, ये बात और है
आँखों का वा’दा तो था, तेरे-मेरे दरम्यां।
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हिमनद सारे पिघल रहे हैं
दरक रहे हैं धरणीधर
सागर बंधन तोड़ रहे हैं
नीर स्तर भी हुआ अधर ।
ज्ञानदीप को बुझा, तिमिर का, करता सदा प्रसार है,
शिव के वर से, सत्ता का, उसको, चढ़ गया बुखार है
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हमारी चर्चा मंच की सबसे कर्मठ सक्रिय चर्चाकारा "श्रीमती अनीता सैनी" जी की उपलब्धियों में एक और उपलब्धि बहुत जल्द जुड़ने वाली है. प्राची डिजिटल पब्लिकेशन, मेरठ से उनका कविता-संग्रह 'एहसास के गुंचे' बहुत ही जल्द हम सब के बीच पहुंचने वाला है.
चर्चा मंच की ओर से उनकी आने वाली पुस्तक के लिये ढेर सारी शुभकामनाएँ और हम सब यही आशा करते हैं कि आपकी यह किताब साहित्य के क्षेत्र में ऊंची बुलंदी छुए ....
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धन्यवाद!!🙏
-अनीता लागुरी 'अनु'
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बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता लागुरी जी।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी
हटाएंसुन्दर लिंको का चयन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी
जवाब देंहटाएंसुंदर और बेहतरीन चर्चा अंक
जवाब देंहटाएंhttps://experienceofindianlife.blogspot.com/2020/01/blog-post_17.html
बहुत-बहुत धन्यवाद अभिलाषा जी
हटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद सुशील जी
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी
हटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आपका कविता जी
हटाएंसुन्दर चर्चा.मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आपका
हटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति प्रिय अनु. सभी रचनाएँ बेहतरीन है. मेरी पुस्तक का ज़िक्र करना अंतरमन को छू गया.
जवाब देंहटाएंसादर आभार
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआप से निवेदन है कि मेरी रचना अगर आपको अच्छी लागे जोर जोर से आवाज देता है लहू तो आप अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करे