स्नेहिल अभिवादन।
विशेष शनिवारीय प्रस्तुति में हार्दिक स्वागत है।
पिपासा अर्थात प्यास, तृष्णा, चाह, लालसा, लोभ आदि। जीवन में पिपासा अलग-अलग अर्थों में हमारे साथ अपना असर दिखाती रहती है. पिपासा ही है जो जीवन को क्रियाशील बनाये रखने महती भूमिका निभाती है क्योंकि इसके चलते ही अतृप्ति को तृप्ति होने तक लंबा सफ़र तय करना होता है. आइए पढ़ते हैं शब्द- सृजन 4 के विषय 'पिपासा' पर सृजित कुछ रचनाएँ-
-अनीता सैनी
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तन की तृषा भले बुझ जाये,
लेकिन मन रहता है प्यासा,
कभी अमावस कभी चाँदनी,
दोनों करते खेल-तमासा।
मन की बुझती नहीं पिपासा।।
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विभाजित पिपासा
विभाजित पिपासा
व्यथित किया ताप ने
ह्रदय को सीमा तक,
वेदना उभरी कराहकर
रीती गगरी सब्र की अचानक।
हिन्दी-आभा*भारत
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पिपासा
ह्रदय को सीमा तक,
वेदना उभरी कराहकर
रीती गगरी सब्र की अचानक।
हिन्दी-आभा*भारत
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पिपासा
निज स्वरूप को जिसने समझा
सत-पथ राह लुभाता है,
कैसा तृष्णा घट भरा-भरा
बूंद - बूंद छलकाता है ।।
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उस अबोध बच्ची की आपबीती भला जानते भी कैसे ये
भलेमानुस । यदि कानून अपना काम नहीं करे
तो ऐसे ढोगी बाबाओं की जय जयकार होती रहे ?
मीडियावाले भी पहुँच चुके थे। ऐसी घटनाएँ उनके लिए
मसालेदार खबर तब भी थी और आज ढ़ाई दशक बाद भी है ।
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रक्त पिपासा …
मसीहा बन ईसा ने जब चाहा बचाना बुरे को
चाहा मिटाना बुरे का केवल बुरा व्यवहार
रक्त पिपासा वाली भीड़ के हाथों सूली पर
चढ़ा कर हमने ही मारा था एक बेक़सूरवार
बातें जिसने चाही करनी अहिंसा की एक बार
ज़हर की प्याली पिला कर हमने उसे दिया मार
चाहा मिटाना बुरे का केवल बुरा व्यवहार
रक्त पिपासा वाली भीड़ के हाथों सूली पर
चढ़ा कर हमने ही मारा था एक बेक़सूरवार
बातें जिसने चाही करनी अहिंसा की एक बार
ज़हर की प्याली पिला कर हमने उसे दिया मार
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लोभ के शिकंजे में,मन फँस जाता है।
जिंदगी में कभी तृप्त नहीं हो पाता है।
लोभ की पिपासा भ्रष्टाचार पनपाती है।
बुद्धि-विवेक को वह चाट जाती है।
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'मन की तृष्णा'
अतृप्त तृष्णाएं अनन्त और असीम हैं ।
निस्सार संसार में यही जीवन की रीत है ।।
कोल्हू का बैल मानव भ्रम में जीता रहता सदा ।
स्पर्धाओं में भागते-दौड़ते कभी कम नही हुई व्यथा
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ग्यान पिपासा
जिसके मन में ग्यान पिपासा।
ग्यान की जिसे है अभिलाषा।
ग्यानामृत उसके घर बरसेगा।
ग्यान पान कर मन हरषेगा।
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रक्त पिपासा
परिवर्तन ने रचा ऐसा खेल
सुंदर सुकोमल मन में बस गया
दुनियाभर का बैर
करना नहीं चाहता वह तांडव
पर घर कर जाता है
मन-मस्तिष्क में उसके जब
ईर्ष्या और क्रोध का कीड़ा कुलबुलाता है
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सपनों के चंदन वन महके
चंचल पाखी मधुवन चह
चख पराग बतरस जोगी
मैं मन ही मन बौराई रे
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बर्फ़-सी पिघलती है पिपासा
स्वतंत्रता की उजली धूप में मानुष,
अँगूठा अपना दाँव पर लगा रहा,
पसार दिया अपना हाथ मैंने भी,
उन्मादी मस्तिष्क नजात दर्द से पा गया।
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आज का सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।
- अनीता सैनी
बहुत सुंदर , सार्थक एवं ज्ञानवर्धक प्रस्तुति एवं उसकी भूमिका है।
जवाब देंहटाएंवास्तव में पिपास मनुष्य केलिए वरदान है और अभिश्राप भी, यदि हमारी पिपासा का केंद्र ज्ञान , प्रेम एवं भक्ति है, तो हम निश्चित ही बुद्ध बनने के मार्ग पर है और यदि वह विषय वासनाओं की ओर है, तब हमारा पतन तय है ।
इसी से संबंधित मैंने भी एक सत्य घटना का उल्लेख्य अपने ब्लॉग पर किया है। जिसे इस मंच स्थान देने केलिए आपका आभार हृदय से आभार अनीता बहन एवं सभी रचनाकारों का शब्द आधारित सृजन सराहनीय ।
पिछले दो दिन अस्वस्थ रहने के कारण मंच पर अपनी टिप्पणी नहीं दे सका था।
उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई । शुभ प्रभात ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति. शब्द-सृजन के विषय 'पिपासा'पर उत्कृष्ट रचनाओं का सृजन हुआ है. सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंआज की विशेष प्रस्तुति में मेरी रचना शामिल करने के लिये बहुत-बहुत आभार अनीता जी.
वाह बहुत सुन्दर अंंक।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक विषय पर बेहद सुंदर और विविधापूर्ण सराहनीय रचनाएँ पढकर बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय संकलन में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत आभारी हूँ अनु।
सस्नेह शुक्रिया।
बहुत सुंदर प्रस्तुति 👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏🌷 मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व लाजवाब संकलन । मेरी रचना को संकलन में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं से सजा शानदार चर्चा मंच...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
शानदार प्रस्तुति , पिपासा पर अद्भुत रचनाएं आत्म मुग्ध करती सी ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी पिपासा को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।