स्नेहिल अभिवादन।
विशेष शनिवारीय प्रस्तुति में हार्दिक स्वागत है।
निशा अवसान के साथ आरम्भ होता है भोर का जो जीवन में प्रतीक है एक नये दिन के नये कर्म पथ का ।
प्रात:कालीन बेला ..,सूर्योदय की लाली , पक्षियों का मधुर कलरव ।
विश्राम के बाद प्रकृति का जीव जगत एक नये उत्साह से अग्रसर हो उठता है
अपने नव निर्माण की ओर ।
"शब्द सृजन "की आज की विशेष प्रस्तुति में दिये गये
शीर्षक 'विहान" पर आपके अवलोकन हेतु सुप्रसिद्ध साहित्यकारों की कविताओं के अंशों की झलकियां -
अरुण की आभा तुम्हारे देश में,
है सुना, उसकी अमिट मुसकान है;
टकटकी मेरी क्षितिज पर है लगी,
निशि गई, हँसता न स्वर्ण-विहान है।
"रामधारी सिंह 'दिनकर'
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मेरे जीवन का आज मूक
तेरी छाया से हो मिलाप
तन तेरी साधकता छू ले
मन ले करुणा की थाह नाप।
उर में पावस, दृग में विहान
हे चिर महान।
"महादेवी वर्मा"
आज की प्रस्तुति में 'विहान ' शब्द पर आधारित रचनाओं को लेकर मैं हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं इन ख़ास रचनाओं को -
-अनीता सैनी
आज की प्रस्तुति में 'विहान ' शब्द पर आधारित रचनाओं को लेकर मैं हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं इन ख़ास रचनाओं को -
-अनीता सैनी
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गीत
"हो रहा विहान है"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मतकरो कुतर्क कुछ, सत्य स्वयं सिद्ध है,
हौसले से काम लो, पथ नहीं विरुद्ध है,
यत्न से सँवार लो, उजड़ रहा वितान है।
पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।।
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रथ पर विहान के हो सवार
मुँह फेरकर
उदास चाँद ने ओढ़ ली है
कुहाँसे की घनी चादर,
ख़ामोश हैं
बुलबुल, तितली, भँवरे
पूस की रात में झरता
फाहे-सा नाज़ुक हिम-तुषार।
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लो आया नया विहान
बरसता सावन ,मेघों का मंडराना,
तितलियों की सुंदरता,न जाने क्या-क्या?
जिनका कोई मूल्य नही चुकाना
पर जो अनमोल है' अभिराम भी ।
लो आया नया विहान।।
पर जो अनमोल है' अभिराम भी ।
लो आया नया विहान।।
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"विहान"
सुरम्य सुरभित नव विहान ,
तुमसे है मुझे कुछ मांगना ।
मेरे और अपनों की खातिर ,
ऊर्जस्विता की है कामना ।।
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"विहान"
सुरम्य सुरभित नव विहान ,
तुमसे है मुझे कुछ मांगना ।
मेरे और अपनों की खातिर ,
ऊर्जस्विता की है कामना ।।
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नवल विहान
बर्फ,ठिठुरती निशा प्रहर
कंपकपाते अनजान शहर
धुंध में खोये धरा-गगन के पोर
सूरज की किरणों से बाँधूँ छोर
सर्द सकोरे भरूँ गुनगुनी घाम
मलिन मुखों पे मलूँ नवल विहान
**मनोकामना
विहान नववर्ष का
भावों के उत्कर्ष का
प्रेम भाव खिल उठे
द्वेष राग मिट चले
ऐसा नव विहान हो
खुशियों का जहान हो
कोई दुखी न दीन हो
दुखों के पल क्षीण हो
कामना ये मन में पली
खिल उठे अब हर कली
**
नव विहान
राग-द्वेष में क्या रखा है
नवयुग का निर्माण हो
जनमानस के जीवन में
सुखद भरा विहान हो
महक उठे वन-उपवन
महक उठा यह संसार
अम्बर से धरती तक
खुशियों की दस्तक देने
आया नव विहान
**
कब आएगा साहिब!...
कई कराहें दबी थीं, कई साँसें थमी थीं
यूँ तो जला वतन था, था तब तो ग़ुलामी का दौर
कई चीखें उभरी थी, कई इज्ज़तें लुटी थीं
जली थी सरहद, था जब मिला आज़ादी को ठौर
करते तो हैं सभी धर्म-मज़हब की बातें, फिर क्यों
जल रहा आज तक यहाँ चौक-चौराहा चँहुओर
फिर घायल कौन कर रहा, लहू में सरेराह सराबोर
किस दौर में हैं भला .. सिसकियाँ थमी यहाँ
सुलग रही हैं आज भी बेटियों की साँसों की डोर
कब सुलगेगा साहिब! सुगंध लुटाता लोबान
यूँ तो जला वतन था, था तब तो ग़ुलामी का दौर
कई चीखें उभरी थी, कई इज्ज़तें लुटी थीं
जली थी सरहद, था जब मिला आज़ादी को ठौर
करते तो हैं सभी धर्म-मज़हब की बातें, फिर क्यों
जल रहा आज तक यहाँ चौक-चौराहा चँहुओर
फिर घायल कौन कर रहा, लहू में सरेराह सराबोर
किस दौर में हैं भला .. सिसकियाँ थमी यहाँ
सुलग रही हैं आज भी बेटियों की साँसों की डोर
कब सुलगेगा साहिब! सुगंध लुटाता लोबान
कब आएगा साहिब! ऐसा एक नया विहान ...
कलावन्त विहान में लीयमान
खग-वृंद के कलनाद में अतृप्त,
अनवरत ऊँघती अकुंचित व्याकुलताएँ,
नादमय उन्मुक्त संसृति स्मृति,
गूँजती घन घटाओं के आँगन में,
पुनीत पल्लव कुसुमन पुलकित,
क्षण-क्षण हुए शून्य में भाव-विभोर |
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आज का सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।
आज का सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।
- अनीता सैनी
जवाब देंहटाएंजिस सुबह की खातिर जुग-जुग से, हम सब मर-मर कर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम जहर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, इक दिन तो करम फर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी ॥
ये साहिर लुधियानवी के गीत की पंक्तियाँ हैं।
विहान की प्रतीक्षा सृष्टि में हर प्राणियों को रहती है, परंतु ऐसी सुबह हो जो कि मानवीय संवेदनाओं से भरा हो, जहाँ प्यार को प्यार मिले, आपसी सद्भाव हो,श्रम का उपहास न हो , छल से पद -प्रतिष्ठा पाने वालों का जयकार न हो, हाँ ऐसी सुबह हो कि फिर किसी को मेरा नाम जोकर का वह राजू बनकर औरों के मनोरंजन के लिए टूटे हुए दिल को लेकर झूठे ठहाके लगाने न पड़े।
अनिता बहन नववर्ष की इस प्रथम विषय आधारित प्रस्तुति में " विहान " शब्द का चयन आपसभी चर्चा कारों की संवेदनशीलता को दर्शाता है और रचनाकारों ने भी अपनी कलम से कुछ ऐसा ही किया है। आप सभी को नमन।
लाजवाब अंक।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा अंक।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
विहान शब्द पर बेहतरीन सृजन किया है रचनाकारों ने. विहान जीवन में आशाओं का अक्षय पुँज है जो जिजीविषा को सकारात्मक आयामों से जोड़ता है.
जवाब देंहटाएंसारगर्भित भूमिका के साथ प्रशंसनीय प्रस्तुतीकरण. सभी सम्मिलित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ. शब्द सृजन में मेरी रचना शामिल करने के लिये बहुत-बहुत आभार अनीता जी.
अनीता जी ! "शब्द सृजन" के अन्तर्गत इस लाजवाब अंक के "विहान" शीर्षक के तहत मेरी रचना साझा करने के लिए आभार आपका ... हार्दिक शुभकामनाएं .. क़ुदरत हर पल आपके साथ सकारात्मक रहे ...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति अनिता जी 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति अनीता जी । मेरे सृजन को प्रस्तुति में सम्मिलित करने के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति कालजयी रचनाओं के साथ शुभारंभ
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक संकलन....
सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
नववर्ष मंगलमय हो।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
सादर
वाहह!!बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.. आज के दिन शीर्षक पर आधारित यह आयोजन रचनाकारों के बहुमुखी प्रतिभाओं को और भी मुखर रूप में आने के लिए बेहतर मौका देगा...मै ही अब तक इसका हिस्सा नहीं बन पाई ..😢..💐👌
जवाब देंहटाएंपर सभी रचनाओं का जवाब नही ..
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्द सृजन का यह अंक।
जवाब देंहटाएंभूमिका,सूत्र संयोजन सुगढ़ और सराहनीय है।
सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक है।
सभी को बहुत शुभकामनाएँ।
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार
बहुत लगन और प्रेम से सजे इस सुंदर अंक के बहुत सारी बधाई अनु।
सस्नेह शुक्रिया।
अनुपम विहान की चर्चा प्रस्तुति
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