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शुक्रवार, जनवरी 31, 2020

"ऐ जिंदगी तेरी हर बात से डर लगता है"(चर्चा अंक - 3597)

स्नेहिल अभिवादन।
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     आज हम चर्चामंच पर स्वागत करते हैं अतिथि चर्चाकार के रूप में युवा रचनाकार आँचल पाण्डेय जी का। आज की प्रस्तुति में पढ़िए आँचल जी की चिंतनपरक भूमिका के साथ उनकी पसंद की रचनाएँ-
-अनीता लागुरी 'अनु'

बसे हिय प्रेम तो विष प्याला
          सुधा कलश हो जाए।
        मीरा गिरधर के गुण गाए,
         शिव नीलकंठ कहलाए।
- आँचल
--
          आप सभी आदरणीय जनों को सादर प्रणाम। मैं आँचल पाण्डेय अतिथि चर्चाकार के रूप में 'चर्चा मंच' के आज के अंक में आप सुधि पाठकों का हार्दिक अभिवादन करती हूँ। साथ ही आदरणीय शास्त्री सर और आदरणीय रविंद्र सर को हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ जो आपने मुझ पर विश्वास कर मुझे यह सुअवसर प्रदान किया। आदरणीया अनु दीदी की भी आभारी हूँ जिनके अनुग्रह पर मैं आज चर्चा अंक के साथ प्रस्तुत हूँ।
          अब अवसर का लाभ उठाते हुए आज आप सबके साथ वो भाव साझा करती हूँ जिसने प्रथम  बार कक्षा ८ में मुझसे क़लम चलवायी। 'मानवता का घटता स्तर' जिसका कारण मैंने जाना 'प्रेम का अभाव' और बस प्रभु इच्छा से प्रेम की प्रभुता लिखने बैठ गयी।
           'प्रेम' जो इस सृष्टि का आधार है और मनुष्यता का सार भी। प्रकृति जिसका अवतार है और जो मन के विकारों का उपचार है। प्रेम ही मनुष्य को पतन से प्रगति की ओर ले जाता है। कर्तव्यनिष्ठ और सदाचारी बनाता है। करुणा इसका शृंगार है और क्षमा इसका अलंकार। जिस हृदय में प्रेम ने डेरा डाला वहाँ घृणा, ईष्या, क्रोध जैसे विनाशक भाव नही पनपते। प्रेम तो ब्रम्ह है। प्रेम वो शक्ति है जो हलाहल को अमृत बना दे। प्रेम ही तो मनुष्यता है। अब विचार कीजिए यदि हमारे मानव समाज में प्रेम बयार चल पड़े  तो?
घृणा का व्यापार बंद हो जाएगा, हिंसा थम जाएगी, धर्म-जाति का भेद भी न होगा। न कोई लूट मचेगी न कोई अपराध होगा बस संसार में सत्य होगा, धर्म होगा और आनंद होगा।
           तो चलिए इसी प्रेम की पवित्रता को धारण करते हुए बढ़ते हैं आज के लाजवाब लिंक्स की ओर।
-आँचल पाण्डेय 
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          शुभारंभ करते हैं आदरणीय शास्त्री सर के अनुपम सृजन से। बसंत का स्वागत करता ये सुंदर गीत - ' आया बसंत '

 
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डगमगाते ही सही कदम बढ़ाए रखना, ठोकरें बहुत हैं! हौसला संभाल भाई। खेल जीतने की खातिर किसी को दांव ना लगाना।
संघर्ष का पर्याय है ज़िंदगी। तप कर ही खरा होना है। पर अपने सुख की खातिर किसी के घर में आग लगाना क्या ठीक है? ज़िंदगी का यही शऊर सिखाती आदरणीय रवीन्द्र सर की उत्तम पंक्तियाँ - 'शायद देखा नही उसने
मेरी फ़ोटो
काट लेता है कोई शाख़ 
घर अपना बनाने को, 
शायद देखा नहीं उसने 
चिड़िया का बिलखना। 
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हर रिश्ते में प्रीत की रीत निभाती
एक स्त्री सत्य में शीतल बयार सी होती है
 पढ़िए आदरणीय अनीता मैम की अनुपम रचना
"दिलों में बहती शीतल हवा में.. हवा हूं.!
भाई से बिछड़ी बहन की राखी मैं, 
स्नेह-बंधन में बँधी नाज़ुक कड़ी हूँ, 
बचपन खिला वह आँगन की मिट्टी मैं, 
गरिमा पिया-घर की बन के सजी हूँ, 
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
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हर पल हर लम्हा कुछ कहता है
तो चलिए अब इन लम्हों की भी सुनते हैं
आदरणीय पुरुषोत्तम सर जी की रचना "लम्हा में
लम्हे, कल जो भूले,
ना वो फिर मिले, कहीं फिर गले,
कभी, वो अपना बनाए,
कभी, वो भुलाए,
करे, विस्मित ये लम्हे,
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अब चलिए सास बहू के अनोखे प्रेम को भी देख लेते हैं
सुखांत लिए आदरणीय ध्रुव सर की यह लघु कथा "अम्मा गिर गई"..
लाजवंती को दिन में ही चाँद-तारों के दर्शन होने लगे थे! 
किरीतिया लाजवंती के सर पर अपना हाथ फेरने लगी 
जो बुख़ार होने की वज़ह से अत्यंत गर्म था!
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वो राधा की श्वास सखी,
चिनमय चिदानँद माधव
बृषभानु सुता श्रृंगार सखी,
आज न कोई आना मधुबन में
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ख़ुद ही गिराती है फिर उठाने भी आ जाती है।
 यह ज़िंदगी भी न बड़ा सताती है। चलिए दो बातें इससे भी कर आते हैं। 
आदरणीया अनु दीदी के संग - 'ऐ ज़िंदगी तेरी हर बात से डर लगता है-
 चलो माना तू हँसने के मौक़े भी देती है
मगर समंदर कब कश्तियों को
बिना भिगोये पार जाने देता है
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Image result for बसंत के चित्र
           कलम सृजन को जाग उठी है,जाग उठा है 
वन उपवन।नूपुर कुदरत की बाजी रे, सखी देखो आया ऋतुराज बसंत।
अभी कल ही बसंत पंचमी बीती है। 
चहुँ ओर उत्सव की धूम है। 
आइए हम भी आदरणीया रेणु दीदी के संग इस उत्सव का आनंद लेते हैं 
- 'ऋतुराज बसंत है आया '                  
मयूरों का नर्तन ,   भवरों   का गुंजन  और कोयल  की कूक   मानो इसके स्वागत का  मधुर  गान है  | 
आम के पेड़ों पर उमड़ी  मंजरी  और नीम के सफेद फूलों  से महकती गलियां तो कहीं गेंदे के फूलों की कतारें   देखते ही बनती है   |  
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बिल्कुल सही कहा कभी वनीला कभी चॉकलेट कभी अनानास जिंदगी यूं ही खट्टी मीठी पड़ाव के साथ गुजराती जा रही है आइए शुभा जी की खट्टी मीठी  स्वादो के संग कविता "जिंदगी "का मजा ले..
कभी वनीला सी ,
  कभी चॉकलेट सी 
    कभी अनानास सी 
   तो कभी नारंगी सी खट्टी -मीठी 
   धीरे -धीरे स्वाद जीभ में घुलाती सी
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 बेफिक्री धूप की इतनी बढ़ गई की ठंड उसके सामने से निकल कर सब को अपने आगोश में ले रहा है I
 ठंड के ऊपर "डॉ जेनी शबनम जी की दस "हाइकु" का आनंद लें

 बिफरा सूर्य 
  मनाने चली हवा 
  भूल के गुस्सा।    
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  चलते चलते ज़रा बिल्ली रानी की कैट वॉक भी देख लेते हैं। 
आदरणीया सुधा मैम के संग इस मज़ेदार बाल गीत का आनंद लेते हुए 
' बिल्ली रानी - बाल गीत '
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आज का सफ़र यही तक 
फिर मिलेंगे आगामी अंक में 
अनीता लागुरी 'अनु '

36 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम की भाषा मनुष्य न जाने कब समझ पाएगा। कल अपने प्यारे बापू की पुण्यतिथि थी, परंतु देश का हृदय हिंसा से जल रहा था । अब तो हर घटनाक्रम को वोट बैंक की राजनीति जोड़कर देखा जाता है।
    डिबेट के दौरान जिस तरह से हमारे समाज के पढ़े-लिखे जिम्मेदार लोग कल आग उगल रहे थें। उसे देख क्या हमारे राष्ट्रपिता की आत्मा रुदन नहीं कर रही होगी।
    खैर, साहित्यकारों को सृजन के माध्यम से इस ईश्वरीय गुण ( प्रेम) का निरंतर पोषण करते रहना चाहिए , क्योंकि वह समाज का पथप्रदर्शक है।
    और आज की जो अतिथि चर्चाकार सुश्री आँँचल पाण्डेय हैं की लेखनी निरंतर इसी प्रेमरस की अमृतवर्षा कर रही है। गरीमा, शिवता और सौंदर्य से भरे आपके सृजन को देख हमें हर्ष है कि हमारा साहित्य जिन युवाओं के हाथ में है, वे हमारे समाज का पथप्रदर्शन करते रहेंगे।
    जब अंतर्जगत का सत्य बहिर्जगत के सत्य के संपर्क में आकर संवेदना उत्पन्न करता है, तभी इस तरह के साहित्य की सृष्टि होती है।
    यही प्रेम है , इस कोमलता को नष्ट न होने दिया जाए।
    सराहनीय भूमिका एवं श्रेष्ठ रचनाओं के चयन केलिए आपकी लेखनी को नमन आँँचल जी।
    सभी को प्रणाम।


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    1. गरीमा के स्थान पर गरिमा पढ़ा जाय।

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    2. शशि जी सहमत हूं आपकी बातों से वर्तमान में साहित्यकारों को अपनी सृजनात्मकता के साथ प्रेम का पोषण करते रहना चाहिए आपकी टिप्पणियां .. हमेशा से ही साहित्यिक विचारों को बेहद खूबसूरती से मन की भावनाओं में लपेट कर आप प्रस्तुत कर देते हैं आपके विचारों को नमन यूं ही साथ बनाए रखिएगा और और धन्यवाद

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    3. आदरणीय सर सादर प्रणाम। उचित कहा आपने आज राजनीति का एक ही आशय रह गया है 'चुनाव'। इससे अधिक तो शायद इन्हें अपने कर्तव्यों का ज्ञान भी नही। अब तो बापू के आँसू भी थक हार कर सूख गए होंगे। जो हालात देश में हो रखे हैं वो एक भयानक भविष्य की ओर संकेत कर रहे जो चिंताजनक है। खैर...अब प्रेम और भाईचारा तो बस किस्से कहानी का हिस्सा लगता है। किंतु अब नफ़रत के दमन को इस किस्से कहानी वाले प्रेम को वास्तविकता में प्रकट होना होगा।

      आदरणीय सर उत्साहवर्धन करते आपके सराहना और आशीष युक्त शब्दों के लिए हार्दिक आभार। सादर प्रणाम।

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  2. प्रिय आंचल बेहद खुशी हो रही है तुम्हें चर्चा मंच के मंच पर अतिथि चर्चाकारा के रूप में देखकर ....अपनी लेखन की शुरुआती दिनों की यादों को बेहद खूबसूरती से तुमने अपने शब्दों में पिरो दिया... प्रेम जिस हृदय में बसता है चाहे किसी भी रूप में उस इंसान के अंदर कहीं ना कहीं नेक कर्म की भावना छुपी रहती है.. बहुत अच्छा लगा अपनी छोटी सी भूमिका में तुमने प्रेम की महत्ता पर प्रकाश डाला दुनिया में जिस तरह से नफरत फैल रही है अभी बेहद जरूरी है यह तुम्हारे जैसे युवाओं को आगे आकर अपने विचारों से दुनिया को अवगत कराना चाहिए... वरना बापू के इस राष्ट्र में गोलियां लहराने वाले युवाओं के हाथ दिन-ब-दिन बढ़ जाएंगे..
    चयनित रचनाओं को भूमिका के साथ प्रस्तुत करना मुझे भी बहुत अच्छा लगता है तुमने वाकई में यह कार्य बेहद अच्छी तरीके से किया है
    तुम्हारी विचारों और कलम की ताकत में भगवान का आशीर्वाद हमेशा बना रहे निरंतर अपने विचारों में दृढ़ इच्छाशक्ति कायम रखना ... तुम्हें ढेर सारी शुभकामनाएं जानती हूं आने वाले समय में एक बेहतरीन लेखिका के रूप में उभर कर आओगी साथ ही मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...💐

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    1. आदरणीया दीदी जी सादर प्रणाम।
      उचित कहा आपने प्रेम की बोली ही गोलियों को थाम सकती हैं। और बिगड़ते काम बना सकती हैं।
      अतिथि चर्चाकार के रूप में हमे प्रस्तुत करने हेतु हम हृदय से आभार व्यक्त करते हैं। आपके सानिध्य और सहयोग के बिना ये कहाँ संभव था। आपके नेह से भरे शब्दों ने सदा ही मेरा मनोबल बढ़ाया है। आपके आशीर्वचनों के लिए बेहद शुक्रिया। पुनः प्रणाम। सुप्रभात।

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  3. बहुत सुन्दर और संतुलित चर्चा।
    आपका आभार आँचल पाण्डेय जी।
    चर्चा मंच परिवार में आपका स्वागत है।

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    1. आदरणीय सर सादर प्रणाम। ' चर्चा मंच ' जैसे चर्चित मंच पर एक चर्चाकार के रूप में प्रस्तुत होना तो बड़े ही गर्व की बात है। हम पर विश्वास कर हमे यह सुअवसर प्रदान करने हेतु बेहद शुक्रिया। ' चर्चा मंच ' नए लेखकों को आगे बढ़ने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करने हेतु जो सुअवसर प्रदान कर रहा वह बेहद सराहनीय है।
      मंच की ख्याति यूँ ही बढ़ती रहे इसी कामना के संग पुनः आभार। सुप्रभात।

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  4. आदरणीया आँचल  जी आपका आभार जो आपने मुझ जैसे छोटे-से मेढक जैसे लेख़क को इस चर्चित मंच पर जगह दी! आजकल लोग मुझ जैसे लेखकों की शिकायत वाशिंगटन डीसी से करने लगे हैं और उन्होंने ने मेरी पोस्टों को अज़ायबघर में ही रखना उचित समझा परन्तु आप जैसे महानुभावों की वज़ह से हमें कहीं न कहीं थोड़ी बहुत जगह मिल ही जाती है इस चर्चित लोकतंत्र में  ।   सादर 'एकलव्य'        

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    1. आदरणीय सर सादर प्रणाम। आपकी रचनाएँ तो तलवार की तेज़ धार को धारण करती हैं। देश और साहित्य के प्रति आपकी चिंता आपकी रचनाओं में स्पष्ट है। साहित्य को समृद्ध करती आपकी रचनाओं को अपनी प्रस्तुति में सजा देखना तो गर्व का विषय है। उचित पथ पर रुकावटें बहुत होती हैं किंतु यही हमारी क्षमताओं को उभारती हैं। ऐसे रोकटोक आपकी रचनाओं को अपने लक्ष्य तक पहुँचने से नही रोक सकती इसी विश्वास के साथ हार्दिक आभार। सुप्रभात।

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  5. बधाई आँचल जी को एक सुन्दर चर्चा प्रस्तुत करने के लिये।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम। शुभ संध्या।

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  6. वाह!प्रिय आँचल ,इतनी खूबसूरत चर्चा ! अपनी प्रथम रचना में कितने खूबसूरत भाव लेकर आई आप ,मन प्रसन्न हो गया । मेरी रचना को आपने पसंद किया ,दिल से धन्यवाद ।

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    1. बेहद शुक्रिया आदरणीया दीदी जी। सादर प्रणाम। शुभ संध्या।

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  7. उत्तर
    1. धन्यवाद आदरणीया मैम। सादर प्रणाम। शुभ संध्या।

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  8. उत्तर
    1. बेहद शुक्रिया आदरणीय सर। सादर प्रणाम। शुभ संध्या।

      हटाएं
  9. " जिस हृदय में प्रेम ने डेरा डाला वहाँ घृणा, ईष्या, क्रोध जैसे विनाशक भाव नही पनपते। प्रेम तो ब्रम्ह है। प्रेम वो शक्ति है जो हलाहल को अमृत बना दे।"
    बहुत खूब आँचल जी ,लाज़बाब भूमिका के साथ आपकी प्रथम प्रस्तुति भी लाज़बाब हैं। आपको और सभी रचनाकारों को भी ढेरों शुभकामनाएं

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम। शुभ संध्या।

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  10. बहुत ही सुन्दर भूमिका प्रेम जैसे गंभीर मानवीय मूल्य पर प्रिय आँचल सभी रचनाएँ बेहतरीन. बहुत ही सुन्दर सजी है चर्चामंच की प्रस्तुति. मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है. मेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार.
    सादर स्नेह

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    1. बेहद शुक्रिया आदरणीया मैम। सादर प्रणाम। शुभ संध्या।

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  11. चर्चा मंच पर आपको अतिथि चर्चाकार के रूप में देखकर बहुत खुशी हुई प्रिय आँचल ।
    आपकी भूमिका में सरलता सहजता और एक आकर्षण है ।
    मुग्ध करती भूमिका,
    सुंदर लिंक चयन
    शानदार प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    सदा अनुपम चर्चा पर पर आगे बढ़ो।

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    उत्तर
    1. आपके नेह आशीष का फलस्वरूप है आदरणीया दीदी जी। हार्दिक आभार। सादर प्रणाम। शुभ संध्या।

      हटाएं
  12. यहाँ उपस्थित आप सभी आदरणीय जनों को पुनः प्रणाम। आप सभी के सुंदर शब्दों और शुभकामनाओं ने मेरा खूब उत्साह बढ़ाया। ' चर्चा मंच ' पर एक चर्चाकार के रूप प्रस्तुत होना मेरे लिए गर्व और हर्ष का विषय रहा। आदरणीय शास्त्री सर,आदरणीय रवीन्द्र सर और आदरणीया अनु दीदी को पुनः आभार हमे यह सुअवसर प्रदान करने हेतु। सादर नमन। शुभ संध्या।

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  13. आदरणीया आँचल पाण्डेय जी ने चर्चाकार के रूप मे अपनी अतिथि भूमिका के द्वारा 'चर्चा मंच' में जान फूंक दी है। यह मंच अब आँचल जी, अनीता जी, अनु जी के रूप में नवोदित और सक्षम चर्चाकारों के साथ पहले से ज्यादा सशक्त और ऊर्जावान दिखने लगा है। ये सभी एक सशक्त कवयित्री होने के साथ सरस्वती स्वरूप भी हैं ।
    हमारी असीम शुभकामनाएं व हमारा प्रणाम स्वीकार करें ।

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    1. आदरणीय सर सादर प्रणाम। देर से आने के लिए क्षमा चाहूँगी।
      उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।
      हम तो अभी बहुत छोटे हैं अतः आपका प्रणाम स्वीकार नही कर सकते। आप बस अपना आशीष दीजिए।

      हटाएं
    2. आँचल जी, हमने साक्षात सरस्वती को प्रणाम किया है जो आपके स्वरूप में परिलक्षित हैं । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  15. प्रिय आंचल, सबसे पहले तुम्हें आज की विशेष रचनाकार बनने पर हार्दिक बधाई। अपने साहित्य लेखन की तरह आज की प्रस्तुति में मन के कल्याणकारी भावों को सुंदर शब्दों में सहेजती भूमिका शानदार है। चर्चित मंच का अतिथि रचनाकार बनना बहुत बाद सौभाग्य है। सभी सुंदर , भावपूर्ण रचनाओं का संयोजन सराहनीय है। आज ब्लॉग जगत को फिर से एकता के सूत्र में पिरोने किया जरूरत है। पिछले कुछ दिनों मे ब्लाग जगत में एक शून्यता सी व्याप्त हो गयी है । आशा है फिर से वही सहयोग और सौहार्द का समय वापिस आयेगा। प्रेम पर तुम्हारे विचार वंदनीय है। प्रेम यदि निस्वार्थ हो तो ये मानवता की सबसे बडी मिसाल बनता है। हमेशा इन्ही सात्विक विचारों साथ आगे बढती रहो। इस विशेष उपलब्धि पर मेरा ढेरों प्यार और शुभकामनायें।चर्चा मंच को भी हार्दिक बधाई। मेरी रचना को आज के अंक में सुंदर टिप्पणी के साथ स्थान मिला, जिसे लिए आभार और शुक्रिया। 🌹🌹🌹🌹🌹💐💐💐

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    1. आदरणीया दीदी जी सादर प्रणाम। देर से आने के लिए क्षमा करिएगा। उचित कहा आपने चर्चा मंच पर एक चर्चाकार के रूप में आना वास्तव में बड़े गर्व की बात है। आपके नेह आशीष ने सदा ही मेरा मनोबल बढ़ाया है। आपके सुंदर शब्दों हेतु बेहद शुक्रिया।

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  16. चर्चामंच पर आपका हार्दिक स्वागत है आँचल जी।

    आपकी भूमिका बहुत प्रासंगिक है जो आपकी चिंतन-शैली को दर्शाती है।

    बेहतरीन रचनाओं का चयन करते हुए एक सरस प्रस्तुति अपने प्रथम प्रयास में सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की है।

    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने हेतु बहुत-बहुत आभार।

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    उत्तर
    1. आदरणीय सर सादर प्रणाम। आपने हम पर विश्वास कर जो हमे यह सुअवसर प्रदान किया इस हेतु हम आपके हार्दिक आभारी हैं। आपने सदा ही एक गुरु की तरह हमारा उचित मार्गदर्शन किया है। आपके शब्द आशीष हेतु बेहद शुक्रिया।

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    2. ...और देर से आने के लिए क्षमा करिएगा।

      हटाएं
  17. बधाई आँचल जी इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए!

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