मित्रों !
शरद ऋतु धीरे-धीरे पलायन करती जा रही है। वार्षिक परीक्षा सिर पर खड़ी है। इसलिए छात्रों को चाहिए कि वो अपना अधिक से अधिक समय पठन-पाठन में लगायें। फरवरी मास आते ही विभिन्न विषयों के प्रैक्टीकल शुरू हो जायेंगे और उसके बाद वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो जायेंगी।
आज के चर्चा अंक का सन्देश यही है कि छात्रों का काम अध्ययन होता है, अतः वे इसके इतर कार्य न करें। आज के राजनीतिज्ञ अवसरवादी अधिक हैं। इसलिए वे छात्रशक्ति का दुरुपयोग करके अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। ऐसे में महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्रों को अपने बुद्धि-विवेक से कार्य लेना चाहिए। राजनीति करने के लिए तो पूरा जीवन पड़ा है। इस सन्दर्भ में दार्शनिक आचार्य रजनीश का निम्न विचार प्रासंगिक है-
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चर्चा मंच पर प्रत्येक शनिवार को
विषय विशेष पर आधारित चर्चा
"शब्द-सृजन" के अन्तर्गत
श्रीमती अनीता सैनी द्वारा प्रस्तुत की जायेगी।
आगामी शनिवार का विषय होगा -
"हमारा गणतन्त्र"
--
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सबसे पहले देखिए-
उच्चारण पर मेरे कुछ दोहे -
शरद ऋतु धीरे-धीरे पलायन करती जा रही है। वार्षिक परीक्षा सिर पर खड़ी है। इसलिए छात्रों को चाहिए कि वो अपना अधिक से अधिक समय पठन-पाठन में लगायें। फरवरी मास आते ही विभिन्न विषयों के प्रैक्टीकल शुरू हो जायेंगे और उसके बाद वार्षिक परीक्षाएँ शुरू हो जायेंगी।
आज के चर्चा अंक का सन्देश यही है कि छात्रों का काम अध्ययन होता है, अतः वे इसके इतर कार्य न करें। आज के राजनीतिज्ञ अवसरवादी अधिक हैं। इसलिए वे छात्रशक्ति का दुरुपयोग करके अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। ऐसे में महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्रों को अपने बुद्धि-विवेक से कार्य लेना चाहिए। राजनीति करने के लिए तो पूरा जीवन पड़ा है। इस सन्दर्भ में दार्शनिक आचार्य रजनीश का निम्न विचार प्रासंगिक है-
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चर्चा मंच पर प्रत्येक शनिवार को
विषय विशेष पर आधारित चर्चा
"शब्द-सृजन" के अन्तर्गत
श्रीमती अनीता सैनी द्वारा प्रस्तुत की जायेगी।
आगामी शनिवार का विषय होगा -
"हमारा गणतन्त्र"
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मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सबसे पहले देखिए-
उच्चारण पर मेरे कुछ दोहे -
"नंगेपन के ढ़ंग"
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भिखारी
....उसके दुर्बल काया में तेज कंपन होती है। इससे पहले कि वह रिक्शे पर से नीचे गिरता ,उसने किसीतरह स्वयं को संभाल लिया । उसके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था और पांव अलाव की ओर बढ़ते चले गये। चेतनाशून्य हो वह उन भिक्षुकों के बीच जा बैठा था ।
तभी मुखिया जी की आवाज उसके कान में पड़ती है -" अरे देखो ! एक तो छूट ही गया। इसके लिए भी दो दोने लेते आना जरा ? "
यह देख वह जोर से चिल्लाना चाहता था -
तभी मुखिया जी की आवाज उसके कान में पड़ती है -" अरे देखो ! एक तो छूट ही गया। इसके लिए भी दो दोने लेते आना जरा ? "
यह देख वह जोर से चिल्लाना चाहता था -
" भिखमंगा नहीं रिक्शेवाला हूँ मैं..।"
लेकिन, गला उसका रुँध गया ...
लेकिन, गला उसका रुँध गया ...
ग़ज़ल....
अजब तमाशा देखा मैंने -
डॉ. वर्षा सिंह
तब से वह करता है मेरी, मैं करती हूं उसकी बात
अजब तमाशा देखा मैंने, दुनिया के इस मेले में
जिसके जी में जो आता है करता बहकी- बहकी बात...
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नई सुबह
नई सुबह का इंतज़ार है
जब कुछ न हो अखरने के लिये
प्यास बुझ जायेगी अब
आई है बदली ज़मीं पर उतरने के लिये।
# रवीन्द्र सिंह यादव
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अग़ज़ल - 5
शाम हो चुकी है , डूब रहा है आफ़ताब यारो
मुझे भी पिला दो अब तुम
घूँट दो घूँट शराब यारो ।
शाम हो चुकी है , डूब रहा है आफ़ताब यारो
मुझे भी पिला दो अब तुम
घूँट दो घूँट शराब यारो ।
दिन तो उलझनों में बीता ,
रात को ख़्वाबों का डर है
या बेहोश कर दो या फिर
कर दो नींद खराब यारो ...
रात को ख़्वाबों का डर है
या बेहोश कर दो या फिर
कर दो नींद खराब यारो ...
साहित्य सुरभि पर दिलबाग सिंह विर्क
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विधाता छंद
◆गीत◆
■◆संजय कौशिक 'विज्ञात'◆■
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घनानंद से क्षमा-याचना के साथ -
अति टेढ़ो सियासत-मारग है, जहाँ नेकु सराफत, बांक नहीं,
छल-कपट बिना इस बिजनिस में, मिलिहै प्रॉफ़िट की फांक नहीं....
तिरछी नज़र पर
गोपेश मोहन जैसवाल
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किस्मत चौसर (नवगीत)....
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
खेल रही है किस्मत चौसर
फेक रही है कैसे पासे
भ्रमित हो रहा मानव ऐसे
मानवता मिट रही धरा से
1-
जीवन का उद्देश्य भुलाकर
दास बने धन को अपनाकर
तिमिर व्याप्त है सारे जग में
अंतर्मन की चीख मिटाकर
कठपुतली बन जीवन जीते,
कौन ज्ञान के दीपक चासे
मानवता मिट रही धरा से...
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तुलना... तुम्हारे पौरूष से...
तुम चार थे,
मैं एक थी.....!
तुम हैवान थे,
मैं मासूम थी...!
तुम बलवान थे,
मैं लाचार थी....!
तुम कायर दरिंदे थे,
मैं निरीह पशु थी...!
वो तुम्हारी जश्न की रात थी,
मेरी ज़िन्दगी में
लगी बदनुमा दाग थी...!
क्यों .....?
तुम पुरुष थे...?
मैं एक स्त्री थी...।
#अनु
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हमारा देश हमारा परिवार
नजरें छुपा-छुपा कर
तुम जा कहाँ रहे हो
ये देश है हमारा
क्यूँ इसे ठुकरा रहे हो...
vmwteam
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सन्नाटे को गुनना होगा
मन पाए विश्राम जहाँ पर Anita
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हमारे एप्प से ऐसे समझें,
पूरे 2020 में कैसा रहेगा
आपका स्वास्थ्य, व्यक्तित्व, आत्मविश्वास ??
गत्यात्मक ज्योतिष पर sangita puri
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काग़ज़ की नाव
बारिश के पानी में
छम-छम नाचते
पानी के बुलबुले
तैरते देख कर,
जब कोई बच्चा
दौड़ कर आता है,
बड़े चाव से
काग़ज़ की नाव
बना कर
पानी में बहाता है,
और सांस रोके देखता है
नाव डूबी तो नहीं...
छम-छम नाचते
पानी के बुलबुले
तैरते देख कर,
जब कोई बच्चा
दौड़ कर आता है,
बड़े चाव से
काग़ज़ की नाव
बना कर
पानी में बहाता है,
और सांस रोके देखता है
नाव डूबी तो नहीं...
नमस्ते namaste पर noopuram
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पहाड़
यदि आपके मार्ग में पहाड़ बाधा बना हुआ हो तो आप क्या करेंगे? दशरथ मांझी की कहानी हमें प्रेरणा देती है। क्योंकि वह उसे शीघ्रता से अस्पताल नहीं पहुंचा सका, इसलिए त्वरित चिकित्सा न मिल पाने के कारण मांझी की पत्नी का देहांत हो गया; तब मांझी ने वह किया जो असंभव लगता था। उसने अगले बाईस वर्ष पहाड़ खोद कर मार्ग बनाने में लगाए जिससे अन्य गाँव वालों को उनकी आवश्यकता के समय में अस्पताल जाने और चिकित्सा प्राप्त करने में विलम्ब न हो। उसके देहांत से पहले भारत सरकार ने उसके इस प्रयास की सराहना की और उसकी इस उपलब्धि के लिए उसे सम्मानित किया...
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लेख |
लघुकथा : रचना और शिल्प |
मधुदीप
Chandresh
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जी गुरु जी बिल्कुल उचित कहा आपने छात्र शक्ति का जिस तरह से दुरुपयोग हो रहा है वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है । विडंबना यह है कि हम जिसे प्रबुद्ध वर्ग कहते हैं , ऐसे भद्रजन निहित स्वार्थ में अपनी राजनीति चमकाने के लिए कुछ मुद्दों को उछाल कर उससे जाति धर्म संप्रदाय से जोड़कर सियासी बिसात पर शकुनि चाल चल रहे हैं , जिससे ये छात्र पठन-पाठन की जगह इन धूर्त राजनेताओं के शब्दजाल में जा फंस रहे हैं। यह हमारे देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि छात्रशक्ति जो भविष्य की राष्ट्रशक्ति है , वह विखंडित होती जा रही है और इसके लिए देश का प्रबुद्ध वर्ग निश्चित ही जिम्मेदार है ; क्योंकि उसे चिकोटी काटने में बड़ा आनंद आता है, भले ही उसकी लच्छेदार बातों से समाज गुमराह हो जाए और छात्र अपना कर्तव्य भूल कर अपने विद्या मंदिर से लेकर सड़कों पर धरना-प्रदर्शन और आंदोलन का हिस्सा बन जाए।
जवाब देंहटाएंराजनीतिज्ञों का काम है देश को बांटना और हम हैं कि तमाम समाजिक समस्याओं को छोड़कर उनके पीछे दौड़ रहे हैं । उनके बयानों पर टिप्पणी कर रहे हैं , साथ ही युवा शक्ति को भी गुमराह कर रहे हैं । राजनीति को जब तक " प्राण " के पद से नीचे नहीं उतारा जाएगा तबतक हालात में सुधार संभव नहीं है।
मेरी रचना को इस प्रतिष्ठित मंच पर स्थान देने के लिए हृदय से आपका आभार , सभी को प्रणाम।
अच्छा हुआ कि आचार्य रजनीश आज के विद्यार्थियों को राजनीति की बिसात पर मोहरा बनते हुए और उन्हें पिटते हुए देखने के लिए जीवित नहीं हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भूमिका के साथ सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की स्थान देने के लिये सहृदय आभार
सादर प्रणाम
शब्द सृजन में 'हमारा गणतन्त्र'बहुत ही अच्छा विषय है
जवाब देंहटाएंसादर
शास्त्रीजी, काग़ज़ की नाव को तैरने का मौक़ा देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । सभी रचनाकारों को बधाई !
जवाब देंहटाएंअचरज है कि विद्यार्थी हो कर भी जिस चीज़ के लिए लड़ रहे हैं, वो या तो उन्हें ख़ुद पता नहीं, और ना ही तथ्यों का अध्ययन करने की कोई कोशिश । बहुत दुखद है पर सच है ।
बहुत अच्छी.... प्रासंगिक चर्चा...
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
विचारणीय और समयानुकूल भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं से सजा है आज का चर्चा मंच, आभर मुझे भी इसमें शामिल करने के लिए.
जवाब देंहटाएंविविधतापूर्ण अत्यंत सुन्दर संकलन ।
जवाब देंहटाएंसराहनीय भूमिका के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय शास्त्री जी द्वारा। समकालीन चिंतन की रचनाएँ चर्चामंच पर अक्सर प्रस्तुत की जाती हैं। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की प्रथम रचना को चर्चामंच में सम्मिलित करने के लिये सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी।