स्नेहिल अभिवादन।
विशेष रविवारीय प्रस्तुति में हार्दिक स्वागत है।
मायका अर्थात माँ-पिता का घर जिसे छोड़कर ससुराल जानेवाली स्त्री अपनी जड़ों से हमेशा जुड़ी रहती है. मायके में यदि माँ न हो तो एक अपूर्णता, ममत्य का अभाव, एक ख़ालीपन और मनमीत की कमी सालती रहती है. मायका अर्थात लाड़-दुलार, संस्कारों की पूँजी के साथ फलने-फूलने के लिये खुला आसमान.
बदलते मूल्यों के दौर में मायके का माहौल भी प्रभावित हो रहा है.
-अनीता सैनी
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
विशेष रविवारीय प्रस्तुति में हार्दिक स्वागत है।
मायका अर्थात माँ-पिता का घर जिसे छोड़कर ससुराल जानेवाली स्त्री अपनी जड़ों से हमेशा जुड़ी रहती है. मायके में यदि माँ न हो तो एक अपूर्णता, ममत्य का अभाव, एक ख़ालीपन और मनमीत की कमी सालती रहती है. मायका अर्थात लाड़-दुलार, संस्कारों की पूँजी के साथ फलने-फूलने के लिये खुला आसमान. बदलते मूल्यों के दौर में मायके का माहौल भी प्रभावित हो रहा है.
-अनीता सैनी
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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संस्मरण
"बाबा नागार्जुन और चालबाज कवि"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बाबा
नागार्जुन की तो इतनी स्मृतियाँ मेरे मन व मस्तिष्क में भरी पड़ी हैं
कि एक
संस्मरण लिखता हूँ
तो दूसरा याद हो आता है।
मेरे व वाचस्पति जी (तत्कालीन हिन्दी विभागाध्यक्ष-राजकीय महाविद्यालय,
खटीमा) के एक चाटुकार मित्र थे।
जो वैद्य जी के नाम से मशहूर थे।
वे अपने नाम के
आगे ‘निराश’ लिखते थे। अच्छे शायर माने जाते थे।
आजकल तो दिवंगत हैं।
परन्तु धोखा-धड़ी और झूठ
का व्यापार इतनी सफाई व सहजता से करते थे कि पहली बार में तो कितना ही
चतुर
व्यक्ति क्यों न हो उनके जाल में फँस ही जाता था।
सोच धरा की लता,सुता भी
स्वयं खड़ी निज पैरों पर
झाड़-पेड़ पर चढ़ती फिर भी
करे भरोसा गैरों पर
पुलकित नव तरुणाई फँसती
जाकर देखो कैरों पर
मर्म-पर्श से विचलित छन की
बाँसुरिया भी टूटी-फूटी
कुछ नया होना चाहिए
इस धरती पर
कुछ नया
कुछ और नया होना चाहिए
चाहिए
अल्हड़पन सी दीवानगी
जीवन का
मनोहारी संगीत
अपनेपन का गीत
**कुछ नया
कुछ और नया होना चाहिए
चाहिए
अल्हड़पन सी दीवानगी
जीवन का
मनोहारी संगीत
अपनेपन का गीत
बिखेरना आसान है,
समेटना कठिन है (कविता)
एक महल जो दे रहा चुनौती
उंचे गगन में सिर उठाये तना है।
उसकी नींव में पलीता लगाओ मत
कितनों की पसीने की बूंद से बना है।
उसको हवाले मत करो आग के,
जलाना आसान है, बुझाना कठिन है।
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माँ बिन मायका
माँ बिन मायका
वही बरामदा है और बरामदे में बिछा हुआ तख्त भी वही है,
वही बरामदा है और बरामदे में बिछा हुआ तख्त भी वही है,
जो आज से कई साल पहले भी हुआ करता था और
उस पर बैठी देविका आज भी अपने
मायके से ससुराल जाने को तैयार बैठी थी
पर आज यहाँ के दृश्य के साथ-साथ रिश्ते, रिश्तेदार,
भावनाएँ और सोच सब बदल चुके थे।
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जिजिविषा
पिछला महीना बहुत व्यस्तता वाला रहा
और हाल इस नवजात महीने में भी वही है।
सुकून के कुछ पल तलाश रही हूँ
लेकिन वो मिल नहीं पा रहे इसलिये थोड़ा धीर धर कर बैठी हूँ।
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कुछ जीवनोपयोगी दोहे-3
समय को कम न आँकिए,समय बड़ा बलवान।
भूपति भी निर्धन हुए, गया मान सम्मान।।
भूपति भी निर्धन हुए, गया मान सम्मान।।
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ढूँढता है तू आवाज़ फिर नया
घास की हरियाली नहीं जाती यूहीं
ओस दर ब दर भी गर छाया हुआ
क्या पता कहते किसे हैं बिजलीयाँ
मोम सा जलता है और ज़ाया हुआ
ओस दर ब दर भी गर छाया हुआ
क्या पता कहते किसे हैं बिजलीयाँ
मोम सा जलता है और ज़ाया हुआ
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वंदनवार
एक दिन अकस्मात
झर गए यदि सब पात,
ऐसा आए प्रचंड झंझावात ..
ना जाने क्या होगा तब ?
सोच कर ह्रदय होता कंपित।
**
सरकारी नौकरी में संवेदनहीनता
की पराकाष्ठा है कोटा ट्रेजडी
राजस्थान का कोटा… जी हां,
वही कोटा जहां बच्चे मर रहे हैं
और मुख्यमंत्री अशोक गहलौत
सीएए के विरोध में मार्च निकाल रहे हैं।
बच्चे मर रहे हैं और स्वास्थ्य मंत्री व
प्रभारी मंत्री अपने स्वागत में कारपेट बिछवा रहे हैं।
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करीब
वंदनवार
एक दिन अकस्मात
झर गए यदि सब पात,
ऐसा आए प्रचंड झंझावात ..
ना जाने क्या होगा तब ?
सोच कर ह्रदय होता कंपित।
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सरकारी नौकरी में संवेदनहीनता
की पराकाष्ठा है कोटा ट्रेजडी
राजस्थान का कोटा… जी हां,
वही कोटा जहां बच्चे मर रहे हैं
और मुख्यमंत्री अशोक गहलौत
सीएए के विरोध में मार्च निकाल रहे हैं।
बच्चे मर रहे हैं और स्वास्थ्य मंत्री व
प्रभारी मंत्री अपने स्वागत में कारपेट बिछवा रहे हैं।
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करीब
करीब हो
बहुत करीब
फिर भी करती हूँ
जतन हर पहर
तुम्हें और करीब लाने का
तुम्हें महसूस करने लगी हूँ
हथेलियों में
मगर फिर भी
ढूंढती हूँ
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दुआ
कविता "जीवन कलश"
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दुआ -ए-हयात
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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आज का सफ़र बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
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- अनीता सैनी
आज का सफ़र बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
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- अनीता सैनी
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जवाब देंहटाएं"अच्छा साहित्यकार बनने से पहले
अच्छा व्यक्ति बनना बहुत जरूरी है।"
बिल्कुल सही कहा गुरु जी आपने, ब्लॉक जगत पर आकर मुझे साहित्यकारों के असली- नकली चेहरे का आभास हुआ ।कुछ लोग संवेदनाओं के पुजारी बने हुये हैं ।लेकिन ,स्वार्थ सिद्धि में वे नंबर एक हैं। मैंने महसूस किया कि ऐसे साहित्यकार सिर्फ कागजों पर संवेदनाओं की बात करते हैं। ऐसे लोग मीठा बनकर सारे समाज को अपनी ओर खींचते हैं। शीर्ष पर आने के लिए हर संभव झूठा वाह-वाह किया करते हैं।
परंतु ये अच्छे इंसान कभी नहीं बन सकते, साहित्यकार तो दूर की बात है। जिस तरह से हजार रुपए लेने के रहस्य पर से पर्दा हट गया। उसी तरह से एक न एक दिन इनके चेहरे से भी नकाब हट जाता है और जनता इन्हें नकार देती है।
साहित्यकार का काम पाठकों का मन बहलाना ही नहीं है। वह समाज का पथ प्रदर्शक होता है, वह हमारे मनुष्यत्व को जगाता है ,सद्भाव का संचार करता है, हमें दृष्टि देता है।
परंतु इससे पहले उन्हें स्वयं भी मनुष्य बनना होता है
अनिता बहन आज आपकी प्रस्तुति के माध्यम से यह अनमोल संस्मरण पढ़ने को मिला।इसके लिए आपका आभार और सभी को प्रणाम।
संशोधनःब्लॉक को ब्लॉग पढ़ा जाए..
जवाब देंहटाएं"बदलते मूल्यों के दौर में मायके का माहौल भी प्रभावित हो रहा है"
जवाब देंहटाएंसार्थक विचार के साथ सुन्दर चर्चा।
आपका आभार अनीता सैनी जी।
बहुत सुंदर चर्चा, लेखनी हरवक्त कुछ कहती है
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाएँ 👌 सुंदर चर्चा 👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसही कहा माँँ बिन मायका कहाँँ सुहाता आता है, मायके की दहलीज पर कदम रखते ही याद आ जाती है वह बातें अरे बिट्टू आ गई तू कॉलेज से..!! बहुत ही अच्छी भूमिका बांधी है आपने.. और रही बात चयनित रचनाओं की उसमें आप हमेशा से ही बहुत ही बेहतरीन रचनाएं चुनकर लाती हैं जिन्हें पढ़ने में वाकई बहुत आनंद महसूस होता है..!
जवाब देंहटाएंवाह!प्रिय सखी ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण भूमिका के साथ विविधतापूर्ण रचनाओं का अनूठा संगम ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति जिसमें आदरणीय शास्त्री जी का अनमोल संस्मरण समाहित है जो महाकवि बाबा नागार्जुन के साथ उनका सानिध्य दर्शाता है. जीवन की ऐसी अमूल्य पूँजी ही सदैव ऊर्जावान बनाये रखती है.सारगर्भित भूमिका के साथ
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का चयन किया गया है.
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
लाजवाब रचनाओं से सजा शानदार चर्चा मंच।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मिलित करने का आभार
सादर
बहुत ही शानदार चर्चा अंक एक से बढ़कर एक संकलन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
सभी रचनाएं आत्ममुग्ध करती।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
रविवार सोच में पड़ गया होगा.
जवाब देंहटाएंइस चर्चा ने कोई ना कोई
संवेदना का तार
ज़रूर छुआ होगा.
अनीता जी, सादर आभार. सारगर्भित चर्चा. शामिल हो कर बहुत अच्छा लगा.
सर्दियों में जैसे फूल ही फूल खिल उठते हैं. इसी तरह सारी रचनाएं खिली-खिली हैं.