स्नेहिल अभिवादन
गणतंत्र दिवस की तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं। देश की राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी की परेड की रिहर्सल के साथ अनेक राज्यों की सांस्कृतिक झाँकियों की तैयारियाँ और स्कूली बच्चों के विविध रचनात्मक कार्यक्रमों की तैयारियाँ अब अंतिम चरण में हैं। हमारे संविधान पर गर्व करने और उसकी महानता को बरक़रार रखने के संकल्प का दिन गणतंत्र दिवस हमें जी-जान से प्यारा है।
-अनीता लागुरी 'अनु'
-- आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की रचनाएँ-
गणतंत्र दिवस की तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं। देश की राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी की परेड की रिहर्सल के साथ अनेक राज्यों की सांस्कृतिक झाँकियों की तैयारियाँ और स्कूली बच्चों के विविध रचनात्मक कार्यक्रमों की तैयारियाँ अब अंतिम चरण में हैं। हमारे संविधान पर गर्व करने और उसकी महानता को बरक़रार रखने के संकल्प का दिन गणतंत्र दिवस हमें जी-जान से प्यारा है।
-अनीता लागुरी 'अनु'
-- आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की रचनाएँ-
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बाल कविता के माध्यम से राष्ट्रध्वज में
स्थापित रंगों से सुंदर जीवन दर्शन प्रस्तुत किया है
आदरणीय "शास्त्री जी" ने
तीन रंग का झण्डा न्यारा।
हमको है प्राणों से प्यारा।।
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त्याग और बलिदानों का वर।
रंग केसरिया सबसे ऊपर।।
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इसके बाद श्वेत रंग आता।
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आजादी की लड़ाई में शहीदों ने अपना सब कुछ गंवा दिया
निज स्वार्थ को छोड़कर अपने प्राण तक त्याग दिए
उनकी विजय गाथा के ऊपर बहुत ही बेहतरीन आप की श्रद्धांजलि झलक रही है
आइए पढ़ते हैं आदरणीय "अनीता सैनी जी" की कविता
अधिराज्य से पूर्ण स्वराज का,
सुन्दर स्वप्न नम नयनों में सजोये थीं,
नीरव निश्छल तारे टूटे पूत-से,
टूटी कड़ी अन्तहीन दास्ता के आँचल की थीं,
लिखी लहू से आज़ादी की
संघर्ष से उपजी वीरों की लिखी कहानी थी,
मिट्टी हिंद की सहर्ष बोल उठी,
मिटी नहीं कहानी छायाएँ-मिट पायी
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चिंगारी
कभी कोई विवशता,तो कभी कोई मजबूरी रही,
कभी मन ही न हुआ तो कभी मेहनत से दूरी रही,
सुलगते बुझते कर ही लेता है इंसान परिस्थितियों से समझौता,
और फिर न जाने किस किस को दोष देकर
मना लेता है अपने मन को,
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स्वयं के आत्ममंथन के लिए दर्पण से बेहतर विकल्प और कोई नहीं
इसी विषय पर आधारित एक खूबसूरत कविता
आदरणीय "श्री पुरुषोत्तम जी की ब्लॉग से
इसी विषय पर आधारित एक खूबसूरत कविता
आदरणीय "श्री पुरुषोत्तम जी की ब्लॉग से
मुझ में ही!
बही, एक जीवन कहीं,
जीवंत, सरित सी,
वो, बह चला
सलिल,
बे-परवाह, अपनी ही राह,
मुझसे परे,
छोड़ अपने, निशां,
मुझ में ही!
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एक युद्ध सुभाष चंद्र बोस जी ने आजादी के लिए लड़ी थी
आज एक युद्ध अपने ही देश में हो रहे
भीतरघात से बचाव के लिए लड़नी पड़ेगी
बहुत ही खूबसूरत आह्वान किया है
आदरणीय "कुसुम कोठारी जी "ने अपनी रचना में
घात लगाये जो बैठे थे
खसोट रहे वो खुल्ले आम
धर्म युद्ध तो लड़ना होगा
पीड़ा भोग रही आवाम
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खुद को छलकर अपनी इच्छाओं,
जरूरतों को मारकर जीना भी कोई जीना है
मन में आशा के दीप प्रज्वलित करती परिस्थितियों को
अपने अनुकूल ढालने की प्रेरणा देती खूबसूरत
कविता आदरणीय "श्वेता सिन्हा जी "के ब्लॉग से
भोर सिसकती धुंध भरी
दिन की आरी भी कुंद पड़ी
गीली सँझा के आँगन में
कैसे रातें पशमीना हो?
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अपनी ही निज स्वार्थ में डूब कर लोग अपने ही
घरों में अपने ही रिश्तो में अपने ही देश में आग लगाते हैं
बहुत ही खूबसूरती के साथ अपनेे इस मनोदशा को व्यक्त किया है
आइए पढ़ते हैं आदरणीय "अभिलाषा चौहान जी" की कविता
जली तीली कहीं कोई,
जले सपने किसी के हैं।
जला कर राख जो कर दें,
वो अपने किसी के हैं।
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प्रेम
निश्छल प्रेम जब
दोनों तरफ से होता है
तो
उच्चतम पायदान पर जाकर
अध्यात्म बन जाता है
वही
एकतरफा प्रेम
अपनेआप में अधयात्म होता है
वैसे भी ख़ामोशी का मतलब तो ये हो गया कि हम खुद को पूर्णतः शब्दहीन रखना चाहते हैं
या रखते हैं। हम अपने जुबा को ही नहीं अपने मन को भी शब्दों से दूर रखना चाहते हैं।"
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भक्ति
भक्ति में है शक्ति अथाह
है अनोखी वकत उसकी
यदि सच्चे मन से की जाती
कोई न कर पाता बराबरी उसकी
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ताना-बाना
"कहते हैं एक चित्र हजार शब्दों की ताक़त रखता है।
ऐसे में अगर चित्रों को दमदार शब्दों का भी साथ मिल जाए,
तो फिर इस रचनात्मक संगम से निकली कृति सोने पर सुहागा ही है।
" ये शब्द हैं प्रख्यात गायक कुमार विश्वास जी के...ज़ाहिर सी बात है
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
नाई समाज का गौरवशाली इतिहास---।
भारतीय समाज में यह समाज बड़ा ही बुद्धिमान समाज माना जाता है,
गाओं में "नाई समाज" इस समाज के बारे में भिन्न भिन्न प्रकार की किंबदंती बनी हुई है
'वैदिक काल' में हिंदू समाज में जातीय ब्यवस्था न होकर वर्ण व्यवस्था थी
"भगवान श्री कृष्ण" "श्री गीताजी" में कहते हैं
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
नौटंकी ( लघुकथा )
सुबह का समय, पंडित फुदकूराम जी का आगमन-
पंडित फुदकू राम बड़े ही रौब से ऐंठते हुए-
"अरे बनारसी!"
"थोड़ा चकाचक पान तो लगा!"
पनवड़िया बनारसी पान लगाने में मस्त।
"अरे पंडित जी प्रणाम!"
"का हाल-चाल बा ?"
उधर से विद्याधर द्विवेदी बड़ी ही शालीनता से बोले।
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
आज का सफ़र यही तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
अनीता लागुरी 'अनु '
--
ताना-बाना
"कहते हैं एक चित्र हजार शब्दों की ताक़त रखता है।
ऐसे में अगर चित्रों को दमदार शब्दों का भी साथ मिल जाए,
तो फिर इस रचनात्मक संगम से निकली कृति सोने पर सुहागा ही है।
" ये शब्द हैं प्रख्यात गायक कुमार विश्वास जी के...ज़ाहिर सी बात है
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नाई समाज का गौरवशाली इतिहास---।
भारतीय समाज में यह समाज बड़ा ही बुद्धिमान समाज माना जाता है,
गाओं में "नाई समाज" इस समाज के बारे में भिन्न भिन्न प्रकार की किंबदंती बनी हुई है
'वैदिक काल' में हिंदू समाज में जातीय ब्यवस्था न होकर वर्ण व्यवस्था थी
"भगवान श्री कृष्ण" "श्री गीताजी" में कहते हैं
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नौटंकी ( लघुकथा )
सुबह का समय, पंडित फुदकूराम जी का आगमन-
पंडित फुदकू राम बड़े ही रौब से ऐंठते हुए-
"अरे बनारसी!"
"थोड़ा चकाचक पान तो लगा!"
पनवड़िया बनारसी पान लगाने में मस्त।
"अरे पंडित जी प्रणाम!"
"का हाल-चाल बा ?"
उधर से विद्याधर द्विवेदी बड़ी ही शालीनता से बोले।
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आज का सफ़र यही तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
अनीता लागुरी 'अनु '
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बहुत सुन्दर संयोजन
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही कुछ घंटे केलिए ही सही हमें इस खास दिन तो कम से कम अपने संविधान के पालक होने पर गर्व होना ही चाहिए, नहीं तो पूरे वर्ष हम भी उसी " लहरतंत्र , भीड़तंत्र एवं जुगाड़तंत्र " के पीछे भागते रहते हैं, तब भूल जाते हैं की कि इस गणतंत्र का अपना संविधान भी है और उसके प्रति हमारा उत्तरदायित्व भी है ...
जवाब देंहटाएंइस सुंदर प्रस्तुति केलिए अनु जी आपको एवं सभी रचनाकारों को नमन।
सकारात्मक टिप्पणी के लिए... आभार आपका।
हटाएं.. सही कहा आपने शशि जी संविधान के प्रति हमें हमारे उत्तरदायित्व के प्रति जागरूक होना ही चाहिए वरना आजकल के वर्तमान माहौल में तो संविधान की खिल्ली उड़ाने से भी लोग पीछे नहीं हटते हैं..
हटाएंजिस संविधान के नियमों से बंद कर एक आम भारतीय अब तक अपना जीवन निर्वाह करता आया है अगर अब उस संविधान में गलत तरीके से संशोधन करके कुछ किया जाए तो वाकई समाज में असंतुलन की स्थिति पैदा होगी बहुत ही बेहतरीन चर्चा किया आपने धन्यवाद
ढेर सारे उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता लागुरी जी।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी
जवाब देंहटाएं🙏🌹
बहुत-बहुत धन्यवाद अभिलाषा जी
हटाएंउम्दा लिंक्ससे सजा आज का चर्चामंच |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद अनीता जी|
जवाब देंहटाएं...
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आशा जी
जवाब देंहटाएंअनू जी सादर अभिवादन ...मैं आपका प्रशंसक और पाठक हूँ ...संप्रति मैं एक सहित्यिक ब्लॉगर हूँ और आपको अपने ब्लॉग पर आमंत्रित करता हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद अरुण जी जी मैं जरूर आऊंगी आपकी ब्लॉग पर.... आपकी ब्लॉग खुश रहो में आपने बहुत ही रोचक स्तंभ लिखे हैं.🙏
हटाएंबहुत सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील सर
हटाएंइतने बेहतरीन लिंक्स के बीच अपनी रचना को देख पाना वाकई खुश कर देता है.....आपको शुभकामनाएं एवं आभार
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
हटाएंसमसामयिक भूमिका से सजी बहुत सुंदर प्रस्तुति अन्नू.. रचनाओं के साथ की गयी विशेष प्रतिक्रिया बेहद मनभावनी है। सभी रचनाएँ अति उत्तम है।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत आभार।
बहुत-बहुत धन्यवाद दी आपको मेरा प्रयास अच्छा लगा इसकी मुझे बेहद खुशी है
हटाएंबहुत ही सुन्दर भूमिका और शानदार प्रस्तुति प्रिय अनु. सभी रचनाएँ बेहतरीन है. मेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार
जवाब देंहटाएंसादर
जी अनीता जी बहुत-बहुत धन्यवाद हमेशा मार्गदर्शन करते रहिएगा ताकि और भी अच्छा कर पाऊं
हटाएंबेहतरीन चर्चा अंक ,सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से धन्यवाद अनु जी
जवाब देंहटाएं.. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति अनु जी।
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाओं का समागम है आज की प्रस्तुति।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
बेहतरीन संकलन
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