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शनिवार, अगस्त 22, 2020

'जयति-जय माँ,भारती' (चर्चा अंक-3801)

सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
भारत दुनिया के साथ करोना महामारी से जूझ रहा है।बरसात के मौसम में देशभर में बाढ़ के हालात चिंताजनक हैं।अपराधों का अंधाधुंध बढ़ता ग्राफ क़ानून व्यवस्था के खोखलेपन का सबूत बन बिखर रहा है न्याय व्यवस्था में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर बहस छिड़ी हुई है। बेकारी और बेरोज़गारी अब दिनों दिन सुरसा-सी बढ़ती जा रही है। सामाजिक सद्भाव नफ़रत के निशाने पर है।देश हिंसक गतिविधियों के लिए दुनिया में बदनाम हो रहा है। सीमा पर चीन, पाकिस्तान, नेपाल से टकराव बढ़ता जा रहा है।
ऐसे में हम सबको इन समस्याओं से निजात के लिए अपना-अपना यथासंभव योगदान देना चाहिए ताकि तस्वीर साफ़ हो और भावी पीढ़ियों के लिए दुश्वारियाँ कम की जा सकें।
-अनीता सैनी 
आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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शारदा,शंकर-सहोदरि ,सनातनि,स्वायम्भुवी,
सकल कला विलासिनी , मङ्गल सतत सञ्चारती.
ज्ञानदा,प्रज्ञा ,सरस्वति , सुमति, वीणा-धारिणी
नादयुत ,सौन्दर्यमयि ,शुचि वर्ण-वर्ण विहारिणी.
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बटोही ख़ुद मय सफ़र दम तोड़ दिये
सौ बरस की दूरी तूने क्यो खिंचवाई हैं
टोहत जिया,अखियां छलक दरिया भई
बैरन असुयो रंग काजल उतार लायी हैं
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दोहे | सखी, दोस्त, मित्र पर 
डॉ (सुश्री) शरद सिंह 

सखियां करती थीं सदा, दुख-सुख साझा रोज।
अब वो सखियां ग़ुम हुईं, मन करता है खोज।।
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682. रूह (10 क्षणिकाएँ) 
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एक रूह की तलाश में   
कितने ही पड़ाव मिले   
पर कहीं ठौर न मिला   
कहीं ठहराव न मिला   
मन का सफ़र ख़त्म नही होता   
रूहों का नगर जाने कहाँ होता है ?   
रूहें शायद सिर्फ़ आसमान में बसती हैं ! 
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डूब के उभरना - - 


धूसर नदी, एकाकी नील कंठ,
और झूलती बरगद की
जटाएं, लौह सेतु
और दूरगामी
रेल, एक
मौन थरथराहट, दूर तक है एक
अजीब सा सन्नाटा, जाना भी
चाहें तो आख़िर कहाँ जाएं ।
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लौटना जरूरी है 
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लौट आना भी उतना ही ज़रूरी है
जितना लौटने की उम्मीद लगाए रखना
तुम भी लौट आना एक दिन
उम्मीदों की उम्र लंबी रहेगी।
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राजा मानसिंह तोमर 

ये राजा थे तोमर कुल के
दुश्मन से डटकर युद्ध किया
जब शीश झुकाया दुश्मन का 
संदेश जगत को वीर दिया।
ललित कला हो या रणकौशल
शीश झुकाते अभिमानी का।
मुख सांक...
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सुनो स्त्री
जंजीर सिर्फ लोहे की
ही नहीं होती
वह पांव में पायल
गले में मंगलसूत्र
माथे पे सिंदूर
हाथों में चूड़ियां
या फिर
करवा चौथ
तीज
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छद्म भावों से घिरे !... 
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ना प्रेम ही करते बना
ना ज्ञान ही पाया घना
ना मीत ही कोई बना
ना जीत ने तुमको चुना ।
चलते रहे कदम-कदम
कितने अभावों से घिरे !
क्यूँ जी रहे हो जिंदगी
यूँ छद्म भावों से घिरे !
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आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में🙏
अनीता सैनी 

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9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर और व्यवस्थित चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति, आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।‌

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका आभार आदरणीया अनीता जी - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  4. एक और सुन्दर चर्चा अंक।
    आभार मुझे भी शामिल करने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  5. गंभीर भूमिका के साथ सुंदर चर्चा अंक अनीता जी,आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाये

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति,
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी।‌

    जवाब देंहटाएं
  8. चर्चामंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार अनिताजी। बहुत अच्छी भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति। आप सभी को गणेशोत्सव की शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं

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