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बुधवार, नवंबर 04, 2020

"चाँद ! तुम सो रहे हो ? " (चर्चा अंक- 3875)

 मित्रों!

बुधवार की चर्चा में 

मेरी पसन्द के कुछ लिंक देखिए।

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करवा चौथ सुहागिन महिलाओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान का पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।
ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।
यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।

भारत देश में वैसे तो चौथ माता जी के कही मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से "चौथ का बरवाड़ा" पड़ गया। चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने की थी।

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करवाचौथ विशेष "मेरे प्रियतम तुम्ही मेरी आराधना"  

कर रही हूँ प्रभू से यही प्रार्थना।
ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।।
चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो,
उन्नति की सदा सीढ़ियाँ तुम चढ़ो,
आपकी सहचरी की यही कामना।

उच्चारण  

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चाँद ! तुम सो रहे हो ? 

ठिठुर रही  ज़िंदगी 
सड़क किनारे मानव, 
मन बेहाल  रहा !

ओस  की  बूँदें, 
झुँझला रही ज़िंदगी 
हवा का झौंका, 
हठ के ताव लगा रहा  !

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  • बड़ा महँगा पड़ा मुझे दोस्त बनाना   
  • किसे अपना कहें हम, किसे बेगाना 
    मुहब्बत का दुश्मन है सारा ज़माना। 

    उसने सीखे नहीं इस दुनिया के हुनर 
    चाँद को न आया अपना दाग़ छुपाना। 

दिलबागसिंह विर्क, Sahitya Surbhi  

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  • नदी तुम माँ क्यों हो ..... 

  • सभ्यता की वाहक क्यों हो...?

    आज ज़ार-ज़ार रोती क्यों हो...?  
    जीवनदायिनी नदिया का 
    आज हमने क्या हाल किया है?
    समाज का सारा कल्मष 
    नदियों में उढ़ेल दिया

Ravindra Singh Yadav, हिन्दी-आभा*भारत 

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सागर: साहित्य एवं चिंतन | पुनर्पाठ 13 | समग्र दृष्टिकोण | पुस्तक | डॉ. वर्षा सिंह 

 इस बार पुनर्पाठ के लिए मैंने चुना है एक ऐसी पुस्तक को जो जीवन के विभिन्न पक्षों को गहन दृष्टिकोण के साथ व्याख्यायित करती है। यह पुस्तक है चिंतक एवं विचारक मोतीलाल जैन की पुस्तक ‘समग्र दृष्टिकोण’। 

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एक अगोचर वह अनदेखा 

भरा-भरा घर किन्तु हृदय में

इक खालीपन सदा सताता,

सुना है कि कोई बिरला ही 

भरे रिक्तता को मुस्काता !

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सागर विशाल सी गहराई तुम में 

सागर विशाल सी  गहराई तुम में

उसे पार न  कर पाऊँ

कैसे उसमें डूबूं बाहर निकल न पाऊँ 

गहराई की थाह न पाऊँ |

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अयोध्या में राम के रावण वध कर  लौटने पर दिवाली (कहानी) 

राम ने अयोध्यावासियों को संबोधित करते हुए कहा, " मेरे सर्व प्रिय अयोध्यावासी, अभी मुझे प्रतीत हो रहा है कि रावण और उसकी सेना से लड़ते हुए मुझे इतनी शक्ति, इतनी ऊर्जा कहाँ से मिल रही थी। वह सारी ऊर्जा मुझे आपके तप, त्याग, तितिक्षा से मिल रही थी। वहाँ दिख तो रहा था कि एक राम लड़ रहा है। वस्तुतः मैं आप सबों के अंदर बसे राम की ऊर्जा के साथ लड़ रहा था। रावण से राम नहीं, पूरी अयोध्या लड़ रही थी।  

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ग्रीष्म परिधानों वाली लड़कियाँ  (कालजयी अंग्रेजी कहानी) 

मूल अंग्रेजी कथाकार - इर्विन शॉ 

हिंदी अनुवाद - सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी  

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, सत्यार्थमित्र  

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पटरियाँ 

रेलगाड़ी की पटरियाँ

चलती चली जाती हैं,
किसी पटरी से मिलती हैं,
तो किसी से बिछड़ती हैं,
कभी जंगलों से गुज़रती हैं, 

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लम्हों की सौगात ... 

बिखरे लम्हों के हर मोती चुन लायेंगे
लरजती साँसों के धागे से माला बनायेंगे
थकना तो सिर्फ कुछ लम्हों की सौगात है 
ऐ ज़िंदगी तुझको क्या जीना सिखायें हम
यादों के दिये में आशा के दीप जलायेंगे हम
कहती #निवी  बिखरे ज़िंदगी जितना चाहे 
प्यार की आस से इसको जी के दिखायेंगे  

निवेदिता श्रीवास्तव, झरोख़ा  

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किया है बर्बाद मसीहा बनकर  ( व्यंग्य )   जनता इक बेबस महिला है जिसको तलाश थी ऐसे देवता की जो उसको आदर पूर्वक सम्मान के साथ बराबरी के अधिकार पाने को भरोसा दे सकता हो। ये जिसको खुद उसने चुना था अपने वादे निभाना भूलकर छिपे इरादे पूरे करने को लोकलाज को त्यागकर सत्ता के मद में चूर खुद को सेवक नहीं मालिक समझ बैठा है। रखवाली करने की जगह जो पहले पुरखों ने छोड़ा था उसको मौज मस्ती में गुलछर्रे उड़ाने अंधे की तरह रेवड़ियां बांटने अपनों को देने में लगा है। घरबार छोड़ चुका है लगता है उसका मत है अवसर मिला है शान पूर्वक जी भरकर उड़ाओ खूब तमाशे लगाओ महफ़िल लगाओ अपनी वाह वाह करवाओ और ऐसा करने वालों को खज़ाने की चाबी का मालिक बनाओ। जनता नासमझ है उसको उल्लू बनाओ और खुद अंधे होकर रास्ता सबको दिखाओ। क़र्ज़ लो घी पिए जाओ कहावत पुरानी तुम दोहराओ , संतान अच्छी तो धन संचय क्यों खूब खाओ खिलाओ और संतान खराब तो धन संचय क्यों वो उड़ाएगी तुम भी उड़ाओ। जनता से कह दो जहनुम में जाओ। 

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उर्दू बह्र पर एकबातचीत :  क़िस्त 000  अरूज़ की कुछ बुनियादी बातें ]बहुत दिनों बाद जब अपने ब्लाग के इस श्रृंखला के पुनरीक्षण और परिवर्धन करने की सोच रहा था तो
ध्यान में आया कि अरूज़ की कुछ बुनियादी बातें  ऐसी थीं जो इस इस  श्रृंखला में सबसे पहले आनी चाहिए थी जिससे
पाठक गण को आगे के क़िस्तों को समझने/समझाने में सुविधा होती । जब तक यह बात 
ध्यान में आती तबतक बहुत विलम्ब हो चुका था और 75-क़िस्त लिखा जा चुका था । ख़ैर कोई बात नहीं।
जब जगे तभी सवेरा।
यह वो बुनियादी बातें है जिनका ज़िक्र हर क़िस्त में आता रहता है और वज़ाहत करती रहनी पड़्ती है । इसीलिए सोचा कि ये सब बातें
यकजा कर लूँ जिससे क़िस्तों में  बारहा ज़िक्र न करना पड़े। 
इसी लिए इस क़िस्त की संख्या 000 डालना पड़ा.जो क़िस्त 01 से पहले आना चाहिए था । 

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निर्मम, जाने न मर्म! 

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सदा ऊर्जित होगा मन जो जगत में विकास करना हो तो ऊर्जा के नए-नए स्रोत चाहिए. सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में वैज्ञानिक नयी खोजें कर रहे हैं। भीतर विकास करना हो उसके लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता है। हम भोजन, जल, निद्रा और श्वास से ऊर्जा को ग्रहण करते हैं। ध्यान भी एक सहज और सशक्त साधन है जिससे हम मानसिक और आत्मिक ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं। 

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करवाचौथ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

आज के लिए बस इतना ही।

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8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात ...
    विविध आयामों में सजी इस उम्दा प्रस्तुति हेतु बधाई व आभार।

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  2. ख़ूबसूरत प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल करने हेतु आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत शानदार भूमिका के लिए और मेरी रचना को आज स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
    शुभ करवा चौथ |

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  4. विविधताओं से परिपूर्ण लिंकों से सजी बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।

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  5. आदरणीय डॉ. रूपचंद्र शास्त्री जी,
    सादर अभिवादन 🙏
    हमेशा की तरह बेहतरीन लिंक्स का संदर संयोजन किया है आपने।
    चर्चा मंच एक ऐसा मंच है, जिसमें शामिल होने पर मिलने वाली ख़ुशी को शब्दों में व्यक्त करना सहज नहीं।
    मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏🍁🙏
    शुभकामनाओं सहित
    भवदीया,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. विविध रंगों से सजा चर्चामंच मंत्रमुग्ध करता है - - मेरी रचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।

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