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मंगलवार, नवंबर 24, 2020

"विश्वास, प्रेम, साहस हैं जीवन के साथी मेरे ।" (चर्चा अंक- 3895)

सादर अभिवादन। 

मंगलवार की प्रस्तुति में आप सभी सुधीजनों

हार्दिक स्वागत । आज की चर्चा का आरम्भ स्मृतिशेष सुभद्राकुमारी चौहान की कविता "मैंने हँसना सीखा" के कवितांश से -

आशा आलोकित करती

मेरे जीवन को प्रतिक्षण

हैं स्वर्ण-सूत्र से वलयित

मेरी असफलता के घन।


सुख-भरे सुनले बादल

रहते हैं मुझको घेरे;

विश्वास, प्रेम, साहस हैं

जीवन के साथी मेरे ।

--

इन्हीं पंक्तियों के साथ बढ़ते आज के चयनित सूत्रों की ओर -


बालकविता "ये हैं चौकीदार हमारे" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

बाँध चेन में इनको लाते।

बाबा कंघी से सहलाते।।


इन्हें नहीं कहना बाहर के।

संगी-साथी ये घरभर के।।


सुन्दर से हैं बहुत सलोने।

लगते दोनों हमें खिलौने।।

---

समाज

एक से समाज नहीं बनाता

होता आवश्यक एक समूह

समान आचार  विचारों वाला

सामंजस्य आपस में हो

तभी स्वप्न समाज का

हो सकता है सफल |

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धुआँ धुआँ हो कहीं हो फिर भी

धुआँ धुआँ सा 

जरा सा सोच में 

चला आया आज 

पता नहीं क्यों 

कोई खबर 

कहीं आग लगने की 

सुबह के अखबार में नहीं दिखी 

फिर भी

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अपना-अपना आसमान

अनेक पीढ़ियों का साक्षी

कर्णप्रिय कलरव का आकांक्षी

एक विशालकाय पेड़ 

धम्म ध्वनि के साथ धराशायी हुआ 

और बेबस चिड़िया का 

नए ठिकाने की ओर उड़ जाना हुआ।

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आदमी

वृक्ष छूने लगते हैं गगन अनायास

आदमी क्यों बौना हुआ है

शांति का झण्डा उठाए

युद्ध की रणभेरी बजाता है

न्याय पर आसीन हुआ

अन्याय को पोषित करता है

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ऐसे हड्डियों को ना फँसाइये .......

काफी सुना था हमने आपकी बड़ी-बड़ी बातों को

खुशनसीबी है कि देख लिया आपकी औकातों को 

कैसे आप इतना बड़ा-बड़ा हवा महल यूँ बना लेते हैं 

और खुद को ही शहंशाहों के भी शहंशाह बता देते हैं

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नया आयाम - -

लोग उम्र

भर

अनवरत पत्थरों को तराशते -

हुए औरों की श्रद्धा को

अंजाम देते हैं,

वो जीवन

को

नया आयाम देते हैं

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भटकना 

सारा दिन भटकती हूँ   

हर एक चेहरे में, अपनों को तलाशती हूँ   

अंतत: हार जाती हूँ   

दिन थक जाता है, रात उदास हो जाती है!  

---

खाली कोना

खाली सा, 

कोई कोना तो होगा मन का!

तेरा ही मन है, 

लेकिन!

बेमतलब, मत जाना मन के उस कोने,

यदा-कदा, सुधि भी, ना लेना,

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पिछले पन्ने की औरतें | उपन्यास | डॉ शरद सिंह

यह उपन्यास मुझे हर बार प्रभावित करता है इसलिए नहीं कि यह मेरी छोटी बहन शरद के द्वारा लिखा गया है बल्कि इसलिए कि इसे हिंदी साहित्य का बेस्ट सेलर उपन्यास और हिंदी साहित्य का टर्निंग प्वाइंट माना गया है। इसे बार-बार पढ़ने की ललक इसलिए भी जागती है कि इसमें एक अछूते विषय को बहुत ही प्रभावी ढंग से उठाया गया है।

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विष भरा अमृत ( कहानी )

पापा ने मेरा नाम अनुपमा रखा था | शायद मेरी मुखाकृति देख कर प्रसन्न हो उठे होंगे | सोचा होगा कि उनकी छोटी सी प्यारी सी अनु बड़ी होकर सारे समाज को मोह लेगी  | वो जिससे भी कहेंगे वह उसे खुशी खुशी विवाह करके अपने घर ले जायेगा और उनकी अनु फूलों की सेज पर बैठी एक रानी की तरह सारे घर पर राज करेगी |

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आपका दिन मंगलमय हो…

फिर मिलेंगे..

"मीना भारद्वाज"

--

8 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा लिंक्स चयन
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा लिंक्स|मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद मीना जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. सुभद्रा कुमारी चौहान की सुंदर कविता से शुरूआत और विविधरंगी विषयों पर आधारित रचनाओं के सूत्र सुझाती चर्चा, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. मनोहारी सूत्रों से सजी चर्चा के लिए हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय मीना दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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