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शनिवार, नवंबर 21, 2020

'प्रारब्ध और पुरुषार्थ'(चर्चा अंक- 3892)

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।  

          प्रारब्ध और पुरुषार्थ का फेर बड़ा निराला है जिसमें कोई पूर्ण आस्था रखता है तो कोई इसे व्यर्थ का चिंतन मानता है। प्रारब्ध अर्थात पूर्व जन्मों के कर्मों का फल अर्थात अगर कोई कष्टकारी जीवन भोग रहा है तो कहा जाता है कि यह उसके पूर्व जन्मों के कुकर्मों का परिणाम है जिसका मंतव्य है कि व्यक्ति इस जन्म में भी ऐसे कुकृत्य न करे जिनसे उसे अगले जन्म में भी कष्ट भोगने पड़ें। 
        प्रारब्ध और पुरुषार्थ का संबंध बहुत घनिष्ट है क्योंकि पुरुषार्थ से जीवन की तस्वीर बदली जा सकती है और कष्टमय जीवन को सुधारकर सुखमय जीवन की दिशा में बढ़ा जा सकता है।
-अनीता सैनी 

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-  

-- 

बालगीत 
"सीधा प्राणी गधा कहाता" 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सीधा प्राणी गधा कहाता,
सिर्फ काम से इसका नाता।
भूखा-प्यासा चलता जाता।
फिर भी नही किसी को भाता।।

--
निर्धन दीन निस्हाय निर्बल
कैसा प्रारब्ध ढो रहे
अकर्मण्य भी बैठे ठाले 
नित निज भाग्य को रो रहे
टपक रहा था श्रम जब तन से 
रोटी का आधार बनी।
--

सफ़ाई

हमारी नातिन बड़ी सफ़ाई पसन्द है .
 एक बार की बात है मेरा कंघा नहीं मिल रहा था.
वह बोली,'नानी मेरा ले लीजिये .' 
'ढूँढ रही हूँ.अभी मिल जायेगा,जायेगा कहाँ !'
 ' मुझे पता है आप किसी के कंघे से बाल नहीं काढतीं .
मेरा बिल्कुल साफ़ रखा है .
आपने उस दिन ब्रश से साफ़ किया था ,तब से वैसा ही रखा है. ' 
--
नित, खुद होकर नत-मस्तक,
मुझ पत्थर को, पावस में परिणत कर,
अभिभूत कर गए तुम!
--

अनुबंध है प्रेम..

प्राण से प्राण के मध्य

ब्रह्माण्ड सा असीमित

बंधनमुक्त

मगर फिर भी..

बंधनों में ही पल्लवित

असंख्य परिभाषाओं से 

अंलकृत..

--
निर्लिप्त, सुख दुःख के पाशों से मुक्त,
सभी उत्कण्ठाओं से अवकाश, उस
चन्द्र विहीन उल्का पात के
नभ में, हमने देखा
था परस्पर
का वो
श्वासरोधी मिलन, नव जागरण का -
अग्निचूर्णक उदय, हिमयुग का
पुनर्विगलन, उस महाकाश
में उभरे थे, दिव्य
--
--

सच की मूरत ढाली, अपना दोष यही
गढ़ी न सूरत जाली, अपना दोष यही

न्यायालय से न्याय न वर्षों मिल पाया
जेबें अपनी खाली, अपना दोष यही
--
कुछ तो जरूर होगा, कहीं कुछ
मेरे अंदर की शक्तियों का संतुलन 
जो परिलक्षित होता रहा हर सदी में 

 व्रतों से सुख समृद्धि और विश्वास 
 जीवन भर का साथ 
मांग लेती रही मैं ?
--
 वह दिन बहुत सुन्दर दिखता है
जहां बिखरी हों रंगीनियाँ अनेक
पर होता कोसों दूर वास्तविकता से
मन को यही बात सालती है |
मनुष्य क्यों स्वप्नों में जीता है
वास्तविकता से परहेज किस लिए
क्या कठोर धरातल रास नहीं आता
यही सोच सच्चाई से दूरी बढाता |
--
हवाओं को 
छन्नी में छान 
आम की 
लकड़ी के धुएँ से
यह किसने ...
पवित्र बनाया है !!

आज पक्षियों के
 कलरव में
किसने ...
जोश जगाया है!!
--
आज से ठीक 56 साल पहले हमारी स्वर्गीया बहनजी की शादी हुई थी. बहनजी हम चारों भाइयों से बड़ी थीं और हमारे लगभग पूर्ण-निर्दोष बड़े भाई साहब को छोड़ कर हम तीन भाइयों पर रौब-दाब के गांठने के मामले में वो हमारे परिवार में सबसे आगे रहा करती थीं.घर का सबसे छोटा और वो भी सबसे उपद्रवी सदस्य होने के कारण बहन जी का कान-खिंचाई का प्रसाद प्राप्त किये बिना मेरा कोई सवेरा जाता हो, ऐसा मुझे तो याद नहीं पड़ता,
--
"देख रही हो इनके चेहरे पर छायी तृप्ति को? इन सात सालों में आज माया पहली बार रसियाव (गुड़ चावल) बनाई... बहुत अच्छा लगता है जब वह सबके पसन्द का ख्याल रखती है!"
"रसियाव बनाना कौन सी बड़ी बात है ? और यह क्या दीदी तुम भी न माया की छोटी-छोटी बातों को अनोखी स्तब्धता तक पहुँचा देती हो.. , चल्ल, हुह्ह्ह..!,"
"यही तो बात है छुटकी! रसम, सांभर यानी इमली जिसके रग-रग में भरा हो वह मीठा भात पका कर तृप्त करे तो है बड़ी बात..।"
"साउथ इंडियन होकर बिहारी से शादी...,"
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• लाल मिर्च पावडर आप अपने स्वादानुसार कम-ज्यादा कर सकते है। 
• आयुर्वेद के अनुसार रात भर भीगा हुआ मेथी दाना सेहत के लिए बहुत ही उपयोगी होता हैं। मेथीदाने में इतने गुण हैं कि वो अपने साथ दुसरे पदार्थों के दुर्गुण भी खत्म कर देता हैं। इस अचार में मेथीदाना डाला गया हैं। जिस अचार में मेथी दाना होता हैं वो अचार बच्चे से बुजुर्ग तक कोई भी खा सकता हैं। अतः सीमित मात्रा में इसका सेवन सेहत के नुकसानदायक न होकर फायदा ही करेगा। अति तो कोई भी चीज की बूरी होती हैं।
--
 सुबह के नौ या दस बजे होंगे ,पूरी सोसायटी में दीपोत्सव की चहल पहल है ।  पटाखों पर लगे प्रतिबंध के बावजूद भी जगह जगह बिखरे बम-पटाखों के अवशेष साक्ष्य हैं इस बात के कि कितने जोर-शोर से मनाई गयी यहाँ दीपावली । आज सफाई कर्मी भी घर-घर से दीपावली बख्शीश लेते हुए पूरी लगन से ऐसे सफाई में लगे हैं मानो पटाखों के सबूत मिटा रहे हों...
स्कूल की छुट्टी के कारण सोसायटी के बच्चे पार्क में धमा-चौकड़ी मचा रहे हैं । कुछ बच्चे ढ़िस्क्यांऊ-ढ़िस्क्यांऊ करते हुये खिलौना गन से पटाखे छुड़ा रहे हैं ,तो कुछ अपने-अपने मन पसंद खेलों में व्यस्त हैं ।
--
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर फिलेंगे 
आगामी अंक में 

@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

13 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर लिंक आज के अंक की |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा।
    मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर और व्यवस्थित चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीया अनीती सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात
    सभी को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. नमस्कार अनिता जी,
    मेरी कृति को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आपका कोटि कोटि आभार और अभिनंदन..।चयनित लेख,कहानी और कविता प्रशंसनीय हैं..।सादर ..।

    जवाब देंहटाएं
  6. राम राम सा अनीता जी, पूरा का पूरा संकलन जबरदस्त है....एक से बढ़ कर एक रचनायें....आज बहुत द‍िनों बाद आ सकी हूं चर्चामंच पर ...परंतु आते ही मन तृप्त हो गया...बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति अनीता जी ।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं, सुन्दर संकलन व आकर्षक प्रस्तुति, मेरी रचना को शामिल करने हेतु ह्रदय से आभार - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुन्दर सराहनीय चर्चा प्रस्तुति ...सभी रचनाएं बेहद उत्कृष्ट... मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद आपका।

    जवाब देंहटाएं
  10. मेरी कविता की पंक्ति को शीर्ष पर स्थान देकर आपने अभिभूत कर दिया।
    सुंदर विस्तृत व्याख्यात्मक भूमिका।
    शानदार लिंक चयन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

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  11. 🌺☘️🙏 मेरी पोस्ट को चर्चामंच में शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार 🌺☘️🙏

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