जी।
सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
मन की वीथी एक सार्थक वाक्यांश है जिसमें सर्वाधिक लुभावना शब्द है 'वीथी' जिसका प्रचलित अर्थ है दीर्घा अथवा गैलरी। मन की वीथियों का भ्रमण एक प्रकार से रोमांचकारी होने के साथ-साथ विस्मयकारी भी हो सकता है। मन एक काल्पनिक भाववाचक संज्ञा है जिसका हमारे जीवन में गहरा संबंध है। मन की वीथियों उप-वीथियों में भ्रमण करना निस्संदेह एक सृजनात्मक अनुभव होता है। आजकल लोग शरीर से स्वस्थ होते हुए भी मन की जटिल उलझनों में बुरी तरह फँसे हुए पाए जाते हैं। कहावत है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत...
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
पथ में जो मिला मुझे, मैं उसी का हो गया।
स्वप्न के वितान में, मन गगन में खो गया।
शूल की धसान में, बबूल छाँटता रहा।
काव्य की खदान में, धूल चाटता रहा।।
हाथों की लकीरों के पहले
अंगुलियों का होना
यह प्रमाणित करता है कि
कुछ पाने के पहले कुछ करना होता है।
यह किस्मत साथ तभी देती है
जब हम अभ्यास करते हैं
और यह अभ्यास तभी रंग लाता है
जब किस्मत साथ हो।
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आओ कर लें
कुछ छोटी - छोटी बातें
जो बड़ों के लिये
साधारण ही होती हैं
लेकिन
हम तो बस खुश हो लेते हैं
प्यार से
किसी के चूम लेने भर से
या फिर यूं ही
किसी की गुदगुदी से
हमारे लिये
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ऐ तुमचाँद
कभी किसी भाल पर
बिंदिया से चमकते हो
कभी घूँघट की आड़ से
झाँकता गोरी का आनन
कभी विरहन के दुश्मन
कभी संदेश वाहक बनते हो
क्या सब सच है
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विभिन्न सम्प्रदायों के समूह,
विचारधाराओं की विविधता
संकीर्ण मानसिकता वाले
शब्दार्थ से बदलकर
मानव को मनुष्यता का
पाठ भुलाकर
स्व के वृत में घेरनेवाला
'धर्म' कैसे हो सकता है?
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अचानक चाँद बादलों में छिप जाता है,
अतृप्ति का भाव मन में जगाता है,
पर थोड़ी देर में बादल छंट जाते हैं,
दूधिया चाँदनी फिर से बरसने लगती है .
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आज जून वापस आ गए हैं, हैदराबाद के प्रसिद्ध बिस्किट का एक डिब्बा लाए हैं। तेनाली राम में राज्य के क्रोध ने सब मर्यादाएं तोड़ दी हैं। कहा भी जाता है, क्रोध क्षणिक पागलपन ही होता है, जो व्यक्ति को उसकी स्मृति ही भुला देता है, उसे याद ही नहीं रहता वह कौन है, कहाँ है, किससे बात कर रहा है ? आज योग दिवस के लिए उसने एक इ-कार्ड बनवाया है
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वो दर्द जो गया नही वो जज़्बात जो कहा नही
नीर आंखों से झरते रहे विकल मन कुछ कहा नही।।
जो मिला नही मुझे उसका कुछ गिला नही,
उम्मीदों की लौ बुझी नही हौसलों ने हार माना नही।।
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हर रूप में हारी हो
बेटी होने के नाते
प्राथमिकताओं से
जो भाई के पक्ष में रहीं…
बीवी होने के नाते
कर्तव्यों से
जो सिर्फ तुम्हारे हिस्से में रहे…
माँ होने के नाते
त्यागसे जो सदा तुम्हारा
फ़र्ज़ रहा…
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका और पठनीय सूत्रों से सजी बहुत सुंदर प्रस्तुति। में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार अनु।
जवाब देंहटाएंसस्नेह शुक्रिया।
सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा के शीर्षक के रूप में मेरी रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता । बहुत सुन्दर लिंक संयोजन.. तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद। सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद अनीता जी।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली भूमिका के साथ सुंदर रचनाओं का चयन, आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक लिंकों के साथ व्यवस्थित चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
सभी रचनाये बहुत सुन्दर, हमारी रचना को चर्चा में शामिल करने केलिए आभार।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनीता सैनी 'दीप्ति' जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा रही आज की। अधिकांश लिंक्स मैंने समय निकाल कर पढ़ ही डाले। बहुत शुक्रिया आपका... अच्छे लिंक्स संयोजन हेतु 🙏🍁🙏
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह