सादर अभिवादन।
दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।
परंपराएँ समय के साथ आंशिक वांछित परिवर्तनों को अपनाकर अपना स्वरुप समाजग्राही बनातीं रहतीं हैं जो परिवर्तन के साथ और ख़ूबसूरत हो जातीं हैं लेकिन आतिशबाज़ी,जुआ,नशाख़ोरी जैसी सामाजिक बुराइयाँ अब खलने लगीं हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम का माता सीता और अनुज लक्ष्मण जी के साथ 14 वर्षों के वनवास की अवधि पूरी करके अयोध्या लौटना महान ख़ुशी का विषय रहा होगा अतः उनके स्वागत में जनता ने दीप मालाओं के साथ अपने उल्लास को उजागर किया होगा लेकिन इतना तय है कि अयोध्यावासियों ने पर्यावरण का नाश करनेवाली बारूद का प्रयोग नहीं किया होगा क्योंकि यह तो कुछ सदियों पुरानी खोज है अतः लोग पटाखों के इस्तेमाल पर सरकारी प्रतिबंध का विरोध अपनी धार्मिक भावनाओं से जोड़कर न देखें।
चर्चामंच परिवार की ओर से आपको उजाले के पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
-अनीता सैनी
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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मनमोहक सबको लगें, झालर-बन्दनवार।
जगमग करती रौशनी, सजे हुए बाजार।।
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काजू मन ललचा रहे, महँगे हैं बादाम।
लेकिन श्रमिक-किसान की, नहीं जेब में दाम।।
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हजारों दिये जलाओ घर में
झुलाओ झालरें पूरे शहर में
तम तिमिर यूं मिटेगा नहीं
अगर राम ना बसा हो तेरे उर में।
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बिखरे हुए हैं, कुछ नीलकंठ के पंख,
शुष्क नदी के किनारे, खोजती
है ज़िन्दगी, पदचिन्हों के
नीचे, जल स्रोत के
लुप्त ठिकाने,
समय भर
न सका,
सीने
शुष्क नदी के किनारे, खोजती
है ज़िन्दगी, पदचिन्हों के
नीचे, जल स्रोत के
लुप्त ठिकाने,
समय भर
न सका,
सीने
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श्री
सौम्यी
अत्ययी
दीपोत्सव
उलूकोदय
श्रीहीनासंचयी
ग्रस्तोदयाक्षक्रीड़ा।{01.}
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बनावटी उजालों से
लाख सज संवर जाएं
मनोकामना के
ऊँचे महल
फिर भी
अंधेरे के आने की आशंका बनी रहती है
लेकिन
कुम्हार का बनाया
मिट्टी का एक दिया
कच्चे घरों में
अपनी टिमटिमाहट कायम रखता है,
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दीप का त्यौहार है दीपावली
शीत का श्रृंगार है दीपावली
रह न पाए मैल मन में रंच भर
ज्योति की जलधार है दीपावली
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सितारे आसमान में जगमगाएं जैसे
दीप जगमगाएं घर पर दिवाली की रात में
करना है स्वागत आगत धन लक्ष्मी का
उत्साह से भरा है सभी का मन |
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सोनजुही के सपने वाले
याद आ गए दिन अलबेले ।।
लहक-लहक कर चलता था
जब माटी का गुड्डा मतवाला
गुड़िया पीठ झुकाये रचती
चौका, पूड़ी हलुए वाला
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वह कौन है,
जिसकी आवाज़
हर ओर सुनाई देती है,
जिसकी हँसी
हमेशा कानों में गूंजती है?
कई दिन बीत गए,
जिसे विदा किए,
पर जिसकी सूरत
हर तरफ़ दिखाई पड़ती है.
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तेरे जार में रोज़ कटता मेरा हाथ है
तेरे प्यार में
निकालने जाता हूँ
नानखटाई
और
कट जाता मेरा हाथ है
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आया है बाल दिवस का त्योहार
चाचा नेहरू लेकर आए सबके लिए उपहार
मुन्नू को मिली कार
चुन्नू के लिए मोटर कार
डिंपी के ले आया गुड़ियों का संसार
सिम्मी के लिए है रोबोट तैयार
आया है बाल दिवस का त्योहार
चाचा नेहरू लेकर आए सबके लिए उपहार
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वह खुद ताड़ के पेड़-सी अडिग रहने की बात करते हुए प्रेमी को विचलित न होने की सलाह देती है। वह खुद को अभिव्यक्त कर पाने में असफल पाती है। उसका मन समय के भँवर में उलझ गया है, लाज-शर्म में डूब गया है, जीवन पथ पर हार गया है, लेकिन वह कहती है -
आज का सफ़र यहीं तक
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
समस्त सुधीजनों को दीपपर्व की मंगलकामनाएं।
ReplyDeleteसुंदर संकलन.मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार।
ReplyDeleteप्रिय अनीता सैनी 'दीप्ति' जी,
ReplyDeleteदीपावली के दिन आज चर्चा मंच भी दैदीप्यमान हो रहा है बहुरंगी साहित्यिक प्रकाश से। इसके लिए आपके श्रम को साधुवाद 🙏
ईश्वर से प्रार्थना है कि इसी तरह ज्ञान का उजाला चर्चा मंच के माध्यम से फैलता रहे। सभी सुधीजन को दीपावली पर्व की अनंत शुभकामनाएं 💥🍁💥
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
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बहुत सुन्दर और जगमगाती चर्चा प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका आभार अनीता सैनी जी।
सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteसराहनीय संग्रहनीय संकलन हेतु साधुवाद
ReplyDeleteदीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को । मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
सभी को दीप पर्व की अनन्य शुभकामनोएं । एक सक एक वेहतरीन प्रस्तुतियां।
ReplyDeleteदीपावली की सभी को शुभकामनाएं
ReplyDeleteसार्थक भूमिका के साथ सुंदर सूत्र संयोजन
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर