स्नेहिल अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
(शीर्षक और भूमिका आ.कुसुम जी की रचना से )
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क्षितिज मिलन की
मृगतृष्णा है
धरा मिलन का
राग लिखूँ मैं ।
आज नया एक गीत लिखूँ मैं ।
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चलते हैं, आज की कुछ खास रचनाओं की ओर.........
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मुफ्त में मिलती नहीं सौगात हैं
तंज करने से बिगड़ती बात हैं
हो सके तो वक्त से कुछ सीख लो
सामने आकर खड़ी अब मात हैं
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कहा जाता है कि बच्चे प्रभु का रूप होते हैं !
पर प्रभु को भी इस धरा को, प्रकृति को, सृष्टि को बचाने के लिए
कई युक्तियों तथा नाना प्रकार के हथकंडों का सहारा लेना पड़ा था !
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वीणा का गर
तार न झनके
मन का कोई
साज लिखूँ मैं।
आज नया एक गीत लिखूँ मैं।
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विकल्प हमेशा ऐसा ही होता है
जब चाहो
साथ रखो
जब चाहो
नजरअंदाज करो
वि
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार
सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।
ReplyDeleteरचना पसंद आयी सो आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी।
बहुत ही सुंदर चयन आदरणीय कामिनी दीदी।सराहनीय प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन संकलन
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक रचनाएँ।
विशेषकर
आज नया एक गीत लिखूँ मैं बहुत पसन्द आई।
मेरी रचना को यहां जगह देने के लिये बहुत आभार सखी ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति । सभी रचनाएँ अत्यन्त सुन्दर । सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteमुग्ध करती सभी रचनाएँ और आकर्षक प्रस्तुति, कुछ उपयोगी घरेलू टिप्स मंच को परिपूर्णता प्रदान करते हैं - - मुझे शामिल करने हेतु आभार।
ReplyDeleteआप सभी स्नेहीजनों का तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर अभिवादन
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