सादर अभिवादन!
आप सभी सुधीजन का अभिनंदन एवं स्वागत ।
शुक्रवार की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष वासुदेव सिंह जी "त्रिलोचन" की कलम से निसृत कविता से-
बाँह गहे कोई
अपरिचय के
सागर में
दृष्टि को पकड़ कर
कुछ बात कहे कोई ।
लहरें ये
लहरें वे
इनमें ठहराव कहाँ
पल
दो पल
लहरों के साथ रहे कोई ।
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इसी के साथ बढ़ते है आज के चयनित लिंक्स की ओर-
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"कठिन बुढ़ापा बीमारी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
हाल भले बेहाल हुआ हो
जान सभी को ही प्यारी है
उसकी लीला-वो ही जाने
ना जाने किसकी बारी है
ढल जायेगा 'रूप' एक दिन
कठिन बुढ़ापा बीमारी है
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मैने देखा एक साया
उड़ते खग की परछाई-सा
अतृप्ति का भाव दुखों को ओढ़े
सागर-सा सूनापन सुषुप्तावस्था में
तनाव की दरारों से शब्द बन झाँकता।
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दो गज की दूरी रखिए,
सुरक्षित रहिए,
पर याद रहे
कि दिलों के क़रीब होने पर
कोरोना के दिनों में भी
कोई पाबंदी नहीं है.
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दिल्ली सरकार भले ही कितने और कुछ भी दावे करे लेकिन इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि राज्य सरकार दिल्ली के लोगों से कोरोना गाइडलाइनों का पालन कराने में असफल रही है। कोरोना संक्रमण की वास्तविक स्थिति को लेकर भी राज्य सरकार खुद भी कहीं न कहीं मुगालते में रही है।
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आँधियाँ चलीं
दो पँखुरी गुलाब की
बिखर गईं टूटकर
मन पूरे गुलाब की जगह
उन पँखुरियों पर
अटका रहा|
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बड़े रौबदार
महाकार हो।
चीटियाँ तो बस
पैरों तले
यूँ ही मसल जाती हैं ।
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अनजाने रस्तों से
कोई आहट आती है
बुलाती है सहलाती सी लगती
कौतूहल से भर जाती है
जाने किस लोक से
भर जाती आलोक से
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शादी की पचासवीं सालगिरह का गीत (उलाहना गीत )
साथ पच्चास साल गुज़ारे पिया
मैं फूलों से घर को सजाती रही
कोने कोने में दीपक जलाती रही
घर में घुसते ही जाला निहारे पिया
हाँ निहारे पिया..हाँ निहारे पिया
कभी समझे...............
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सात अश्वों पर हो कर सवार
चलदिया सूर्य देशाटन को
एक ही राह पर चला
मार्ग से बिचलित न हुआ |
यही है विशेषता उसकी
जिसने भी अनुकरण किया
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स्वर्ण संध्या, स्वर्ण दिनकर
सब दिशाएँ सुनहरी !
बिछ गई सारी धरा पर
एक चादर सुनहरी !
आसमाँ पर बादलों में
इक सुनहरा गाँव है,
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"तुम मुझ पर व्यंग्य कर रहे हो?"
"अरे नहीं! आओ तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ..
किसी देश में अकाल पड़ गया। लोग भूखे मरने लगे। एक छोटे नगर में एक धनी दयालु पुरुष था। उसने छोटे-छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक रोटी देने की घोषणा कर दी। दूसरे दिन सबेरे एक बगीचे में छोटे-छोटे बच्चे इकट्ठे हुए। उन्हें रोटियाँ बँटने लगीं.. रोटियाँ छोटी-बड़ी थीं।
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आज का सफर यहीं तक…
आप सबका दिन मंगलमय हो..
धन्यवाद ।
"मीना भारद्वाज"
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असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रम साध्य कार्य हेतु साधुवाद
सुन्दर प्रस्तुति.मेरी कविता शामिल की. आभार.
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंपठनीय लिंकों के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
सुंदर भूमिका के साथ अप्रतिम रचनाओं के सूत्रों का संयोजन ! आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज के सुंदर संकलन के लिए आप बधाई की पात्र हैं मीना जी...।मेरे लोकगीत को शामिल करके आपने लोकविधा को फिर से संजीवनी देने का बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया है..।आपको सदर नमन...।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन आज का आदरणीय मीना दी।
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
प्रिय मीना भारद्वाज जी,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह उत्तम पठन सामग्री का सुंदर संयोजन किया है आपने ।
साधुवाद 💐
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏💐🙏
-डॉ. वर्षा सिंह
सुंदर और सार्थक संकलन। हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया मीना जी। मेरी रचना को अंक में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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