शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
गोधन गजधन बाजिधन और रतन धन खान,
जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान।
जीवन में व्यक्ति तत्त्व-दर्शन की अवस्था से गुज़रता है तब उसे संसार की असारता का भान होता है। मन शांति के साथ चिंतन में रम जाता है। व्यक्ति का मन ही दर्पण की भाँति उसे अच्छे-बुरे की सीख देने लगता है। सांसारिक मायामोह से पृथक चिंतक लोककल्याण की अनमोल संभावनाओं से स्वयं को भरता हुआ जीवन के सार तत्त्व को समझने लगता है तब उसके जीवन में दर्शन अपने पांव पसारने लगता है।
सुकून की शीतल हवा के साथ।
उपवन में कलिकाएँ जब मुस्काती हैं,
भ्रमर और तितली को महक सुहाती है,
जीवन की है भोर तुम्हारे हाथों में।
कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।
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ध्यान में लीन हो
मन में एकाग्रता हो
मौन का सुस्वादन
पियूष बूंद सम
अजर अविनाशी।
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लिखना
और
लिखे हुऐ पर
कभी किसी मनहूस घड़ी पर
किसी और दिन
दूसरी बार चिंतन करना
अदभुत होता है
लिखने वाले के लिये भी
और लिखे हुऐ को दुबारा
पाठक के रूप में पढ़े जाने के लिये भी
नभ मंडल में चंद्र चितेरा
विहग की टहकार मध्यम
टहनियों के मध्य बसेरा
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स्वर्ण-से क्षण
हैं हृदय के कोष में,
संचित सभी यादें सुनहली ।
और अँखियों में बसी है
रात पूनम की, रुपहली।
तुम मेरे गीतों को, जलने दो
विरह की अग्नि में !
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उग्रतर होता परिताप है ......
यह कैसी पीड़ा है
यह कैसा अनुत्ताप है
प्रिय-पाश में होकर भी
उग्रतर होता परिताप है
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इस पल में जी लें - -
हैं हर पल नवीनता की ओर, जिसका
कोई भी सीमान्त नहीं, स्वप्न
हो या सत्यानुभूति, सिर्फ़
इस पल में है कहीं
सभी समाहित,
शून्य
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स्वप्न की रजाई | कविता | डॉ शरद सिंह
जाड़े की रात ने
सांकल खटकाई
शीत भी दरारों से
सरक चली आई
पक्के मकानों में
उपले, न गोरसी
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किसान!
खून-पसीना एक कर
दाना-दाना उगाता है
हमारी रसोई तक आकर
जो भोजन बन पाता है
इसीलिए
कभी ग्राम देवता
कभी अन्नदाता कहलाता है
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अब न कलियां कोई मुर्झाए
अब न बागवां कोई आसूं बहाए
बचपन के सपनों की मजबूत नीव हो....
नारी को वस्तु या भोग्या न समझे कोई
अश्क एक दूसरे के आँखों के अपने हो जाए।।
ऐसा कोई गीत लिखों प्रिय..... ।।
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जेष्ठ मध्याह्न~
नल पे बैठ काग
पीता सलिल
2.
रसोईघर~
फूलगोभी के मध्भु
जंग शिशु
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चीन में आज सांस्कृतिक क्रांति (1960 के दशक की) की वजह से एक तिहाई से भी कम आबादी फेंगशुई में विश्वास करती है। खासकर शहरी चीनी युवा फेंगशुई में बहुत कम विश्वास करते है। कम्युनिज्म इन सब चीजों को अंधश्रद्धा मानता है, लेकिन करोड़ों फेंगशुई उत्पाद अन्य देशों में बेचता है!!
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंचर्चा की सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
प्रिय अनिता सैनी जी,
जवाब देंहटाएंयह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरी रचना दर्पण दर्शन'(चर्चा अंक- ३८९९ ) में शामिल की है।
आपको हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
चर्चा मंच में शामिल होना सदैव सुखद अनुभूति देता है।
- डाॅ शरद सिंह
सभी लिंक्स साहित्यिकता से भरपूर हैं ...
जवाब देंहटाएंइन्हें संजोने के श्रम हेतु आपको साधुवाद 💐💐💐
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक प्रस्तुतिकरण ,हमारी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका आभार अनिता जी।
जवाब देंहटाएंसूत्रों का सुंदर संकलन एवं संयोजन अति आकर्षक बन पड़ा है । हार्दिक आभार एवं बधाई ।
जवाब देंहटाएंलगभग सभी लिंक्स पर जाना हुआ।
जवाब देंहटाएं'जो मेरा मन कहे' को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्तम पठन सामग्री का सुंदर संयोजन.सभी रचनाकार को हार्दिक बधाई सुन्दर सृजन हेतु । मुझे संकलन में सम्मिलित करने के लिए आभार । श्रम साध्य प्रस्तुति के लिए आप बधाई की पात्र हैं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक और विचारणीय दार्शनिक भूमिका। चर्चामंच की सदैव आभारी रहूँगी जो मेरी रचनाओं को वृहत्तर पाठकवर्ग तक पहुँचाता रहा है। प्रिय अनिता, आपका विशेष धन्यवाद रचना के चयन के लिए। सस्नेह।
जवाब देंहटाएंव्यक्ति का मन ही दर्पण की भाँति उसे अच्छे-बुरे की सीख देने लगता है। बहुत सटीक सार्थक भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक का संकलन....।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सथान देने हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद।
चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने के लिये मंच का हृदय से आभार।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना के शीर्षक को चर्चा में शीर्ष स्थान पर रख कर जो मान दिया है उससे मैं अभिभूत हूं, बहुत बहुत आभार अनिता आपका। सुंदर व्याख्यात्मक भूमिका सुंदर दर्शनात्मक चिंतन।
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा अंक सभी रचनाएं बहुत सुंदर आकर्षक।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।