शीर्षक पंक्ति : आदरणीया सुमन कपूर जी
सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आज की प्रस्तुति का आरंभ वरिष्ठ ब्लॉगर साहित्यकार आदरणीया सुमन कपूर जी के काव्यांश से-
सुनो मन -
ठीक इसके पहले
तुम निबंधित हो
ले चलना मुझे
देह से परे की डगर
अकंपित, निर्विघ्न
समाहित कर खुद में
मेरा सारा स्वरूप
मन तुम 'बुद्ध' हो जाना !!
दोहे "देव दिवाली पर्व" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरू पूर्णिमा पर्व पर, खुद को करो पवित्र।
मेले में जाना नहीं, घर में रहना मित्र।।
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कोरोना के काल में, मन हो रहा उचाट।
सरिताओं के आज हैं, सूने-सूने घाट।।
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मन !
जीवन के धरातल पर
उग आयें जब
अभीप्साओं के बीज
आँखों को तर करने लगे
दो बूँद अश्क़
वर्ष दर वर्ष मिटने लगे
उम्र की स्याही
रिश्तों की घनी छाँव भी
देह को तपाने लगे
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रहो संग किसानों के यही है मेरे दिल का नारातपते हैं धुप में तपते ज़मीन को जोतते हैं
मेहनत जीजान से करके सोना उगलते हैं
धुप-छांव हो बरसात फसल प्यार से उगाते हैं
अपना पेट भरने से पेहले औरों का पेट भरते हैं
--अप्सरा सी कौनचारु कांतिमय रूप देखकर
चाँद लजाया व्योम ताल पर
मुकुर चंद्रिका आनन शोभा
झुके झुके से नैना मद भर
पुहुप कली से अधर रसीले
ज्योत्सना पर लालिमा छाई।।
खोल दी आज खिड़कियां रश्मियों ने आवाज दी है
हो गया सबेरा परिंदों की टोलियों ने आवाज दी है
मिट पायी नही कभी जिन्दगी की ये तल्खियाँ
आज किसी की भोली मुस्कुराहटों ने आवाज दी है
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सभी
चेहरे नई उम्मीद के साथ हाथों में
उठाए नव सृजन की पताकाएं,
खुल जाएंगे उस मन्नत
की सुबह, ज़ुल्म ओ
सितम की
बेड़ियाँ,
उस
प्रातः के वक्ष स्थल से होंगी नव -
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भोर की तरह
धूप का अंश होकर,
बादल या आकाश
की तरह,
चंदा-तारों की तरह
रात और चाँदनी की
गवाही पर
जीवन का स्पंदन
महसूसना
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भूलने की बीमारी हो गयी है
उम्र का तकाज़ा है
कुछ भी दिमाग में सहेज कर
नहीं रख पाती अब
यह कैसा भुलावा है !
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पीले पीले सिंदूर से मांग भरेगी । माथे पर बन्नी के बिंदिया सजेगी ।।
काजल से होंगी आंखें काली ।बन्नी बन्ने की होने वाली ।।
छाई बसंत निराली ----------
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गर हो पाता!
तो, मुड़ जाता, मैं, अतीत की ओर,
और, व्यतीत करता,
कुछ पल,
चुन लाता, कुछ, बिखरे मोती!
मैं अपने जीवन में सिर्फ़ इतना भाग्यशाली रहा कि जब मैं कोई सुखी सपना देख रहा होता हूँ तब दुःख मेरे सिरहाने बैठ कर मेरे जागने का इंतज़ार कर रहा होता है।
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दोस्तो, ब्रेड मलाई रोल ब्रेड से बनी ऐसी स्वादिष्ट मिठाई है, जो बनाने में तो एकदम आसान है और खाने एवं देखने में बिल्कुल शाही लगती है। आप इसे एक बार बना कर 4-5 दिन तक स्टोर कर सकते है।
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
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सुंदर चयन और सुव्यवस्थिति प्रस्तुतीकरण के लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ अनीता जी..।मेरे गीत को शामिल करने के लिए आपका अभिनंदन और नमन...।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण... उम्दा चयन
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाएं अति सुन्दर साथ ही हमारी रचना को शामिल करने के लिए आपका आभार व्यक्त करती हूं।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं से सजे संकलन में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ अनु।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
बहुत ही सुंदर चर्चा अंक प्रिय अनीता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंआप सभी को गुरुपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
आज के संकलन में बहुत ही सुन्दर सूत्रों का चयन ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंउत्तम पठन सामग्री का सुंदर संयोजन. रचनाकार वृन्द को हार्दिक बधाई । अति सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंप्रकाश पर्व व देव दिवाली की असंख्य शुभकामनाएं, विविध रंगों से सुशोभित चर्चा मंच अपनी एक अलग पहचान छोड़ती है, मुझे स्थान देने हेतु आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसु मन जी की पंक्तियों पर सुंदर व्याख्यात्मक भूमिका के साथ सुंदर चर्चा अंक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत सुन्दर और चहकती-महकती चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया अनीता सेनी जी।
Aapka bead shukriya meri rachana ko yahan sthan dene ka, aabhar!
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