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सोमवार, जुलाई 04, 2022

'समय कागज़ पर लिखा शब्द नहीं है'( चर्चा अंक 4480)

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

शीर्षक व काव्यांश आदरणीया जी की रचना 'समय से -

समय है एक अदृश्य नदी भी

जिसके प्रवाह में

बहते जा रहे हैं जन्म

चाहे अनचाहे छिनता और मिलता जा रहा है बहुत कुछ

तो कहाँ संभव है समय के एक भी अंश को विस्मृति के अथाह में उंडेलना

या नज़रअंदाज़ करके खुद को मूर्ख बनाना

जबकि यह तय है कि वह लौटकर तो नहीं आने वाला

पर उसकी छाप ताउम्र रहने वाली है

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-  

--

ग़ज़ल "चूस मकरन्द भँवरे किनारे हुए" 

उनके आने से दिलकश नज़ारे हुए
मिल गई जब नज़र तो इशारे हुए
--
आँखों-आँखों में बातें सभी हो गईं
हो गये उनके हम वो हमारे हुए
समय कागज़ पर लिखा शब्द नहीं है
गर ऐसा होता
तो उसे मिटाकर
अपने मन माफिक अंदाज में लिख दिया जाता
सँवारकर, सजाकर
और रख लिया जाता उसे तिजोरी में संभालकर
पर समय तो
टुकड़ा है ज़िंदगी का
--
शांत भाव का ढोंग रचा था 
खोल रखी थी बैर बही 
अवसर की बस बाट जोहता 
अंदर ज्वाला छदक रही 
चक्रवात अन्तस् में उठता 
भाव शून्य में ठहर गए ।।
--
 धुआं धुआं  सा उठ रहा है हर
तरफ, कुम्हलाए दरख्तों में
झूलते से हैं नफ़रत के
झाग, ये कैसा
जूनून सा
छाया
है
हर सिम्त, 
मेरा क्या है , पँख तुम्हारे 
चढ़ बैठूँ मैं पल में चौबारे 
घूँट-घूँट मैं पीती तुझको 
रब है रब है , जीती तुझको 
आ जाओ बस , दमको मोरे अँगना 
--
इस दुनिया की बुनियाद
कुदरती कहर तक है

जमीं से रिश्ता जोड़े रख
'विंकल' बुलंदी लहर तक है
जितने  भी  रंग  ऋतुऐं  बदले,
उन्हीं में उसका आना जाना है।
आभा जो कुसुम बन निखरी,
उसको  नहीं  कुम्हलाना  है। 
--
भूख यह शब्द 
शब्दकोष से हटाने वाली है 
और इस शब्द को अब 
चुनावी घोषणा पत्र में 
शामिल किया जाएगा
--
लड़की ने मुझसे आगे निकलने के लिए चिल्लाते हुए तेज दौड़ना शुरू किया तो मैंने खुद को चैलेंज दिया कि हारना नहीं है और पूरी ताकत से दौड़ते हुए अपने से कम से कम 45 साल छोटी इस लड़की को हरा दिया मतलब अभी इतने बुड्ढे नहीं हुए कि बच्चे आगे निकल जाएँ !
--
" बेटा, बहुत अच्छा किया, तुम लोगों ने….!” नरेन्द्र ने खुश होकर कहा।
" अब खाना लगवा दूँ…भूख लगी होगी ? उठते हुए सुधा ने कहा।
"वाह, मम्मी खाना देखते ही सच बहुत जोर से भूख लगने लगी है !” अपनी  प्लेट में सब्जी  परोसते  मनिका खुशी से चहकी। 
" वाह…सच मम्मी खाना बहुत अच्छा बना है !”शेखर ने भी खाते- खाते कहा।
--
आज का सफ़र यहीं तक 

@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति|
    आपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी!

    जवाब देंहटाएं
  2. हार्दिक आभार अनीता जी…सारी रचना पढ़ती हूँ इत्मिनान से 🙏😊

    जवाब देंहटाएं
  3. इतनी प्यारी प्रस्तुति में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका अनिता जी।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक और पठनीय है।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    भूमिका में विभाजी का सार्थक पद्यांश।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  4. अनिता जी चर्चा में शामिल करने का बहुत बहुत धन्यवाद । कुछ ब्लोग्स पर कमेंट नहीं कर पा रही ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर नमस्कार दी।
      पता नहीं क्यों प्रतिक्रिया स्पेम में जा रही हैं। मुझे भी आमंत्रण हेतु दो तीन बार ब्लॉग पर जाना पड़ता है।
      आप आए हृदय से आभार।
      सादर

      हटाएं
  5. हार्दिक आभार अनीता महोदया, मेरी गजल को स्थान देने का।

    उम्दा लिंकों का समागम

    जवाब देंहटाएं

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