मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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दोहे "शुरू हुआ चौमास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गरमी का मौसम गया, शुरू हुआ चौमास।
नभ के निर्मल नीर से, बुझी धरा की प्यास।।
सावन आया झूम के, पड़ती सुखद फुहार।
तन-मन को शीतल करे, बहती हुई बयार।।
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"तुम अपरिचित हो!
परिवर्तन का चक्का चाक नहीं है
कि चाहे जब घुमा दो!”
कहते हुए- रुग्ण मनोवृत्ति ईर्ष्या के
अंगारों पर लेट जाती है।
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खामोशी से कर्तव्यों
को करते देखा है ।
जलते अंगारों पे
चलकर बनती रेखा है ॥
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रस की धार बहे जब उर में मन द्वंद्व का ही दूसरा नाम है। देह जड़ है, वह जैसी है वैसी ही प्रतीत भी होती है। देह स्वयं को स्वस्थ रखने का उपाय भी जानती है यदि हम उसे उसकी सहज, स्वाभाविक स्थिति में रहने दें। किंतु मन में लोभ है, जो अनावश्यक पदार्थों से तन को भरने पर विवश करता है। क्रोध में हानिकारक रसायनों को तन में छोड़ता है। योग, व्यायाम व प्राणायाम के द्वारा तन व मन दोनों को स्वस्थ किया जा सकता है पर मन इसे भी अभिमान का विषय बना लेता है। हम आत्मा के आकाश में उड़ना तो चाहते हैं पर विकारों की ज़ंजीरें पैरों में बांधे रहते हैं, यह दोहरापन ही द्वंद्व है जो मानव को चैन से नहीं रहने देता।
डायरी के पन्नों से अनीता--
अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर -उ०प्र० का कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह
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लक्ष्मी शर्मा सीधी साधी आम कहानी की तरह , चल रही यह कहानी क्या एक आम यात्रा वृतांत भर रह जाएगी या अंत से पहले कुछ अप्रत्याशित या अकल्पनीय घटने को आपका इंतज़ार कर रहा है? यह सब तो आपको इस रोचक उपन्यास को पढ़ कर ही पता चलेगा। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।हँसते रहो
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खस्ता काजू नमकपारे (khasta kaju namakpare) दोस्तों, आज हम बनायेंगे बिल्कुल मार्केट जैसे खस्ता काजू नमकपारे। काजू नमकपारे अपने काजू जैसे आकार के कारण दिखने में बहुत अच्छे लगते है इसलिए खासकर बच्चों को ये बहुत पसंद आयेंगे।
आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल--
भास्कर खास: जज वकील से बोले- आपका मामला हम शाम 4 बजे सुनेंगे वकील- माय लॉर्ड, मेरे लिए यह संभव नहीं होगा, आप अगली तारीख दे दें, मुझे साढ़े 3 बजे बच्चे को स्कूल से पिकअप करने जाना है
कही-अनकही--
शुभ काम
मर्यादित रखो भाषा,घर में हो शुभ काम।
आचरण रखो संयमित, खर्चो कुछ भी दाम।।1।।
सुख-शांति
जिस घर गुस्सा वासना,मन में लालच होय।
उस घर नहि हो सुख शांति,यह जानत सब कोय।।2।।
प्रकाश-पुंज अशर्फी लाल मिश्र--
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भारतीय नाट्य परम्परा और बाल नाटक
नाटकों के संदर्भ में जब हम बच्चों की बात करते हैं, तो उसमें तमाम नाटकीय शर्तो के साथ ही कुछ और बातें भी जुड़ जाती हैं, यथा नाटक का विषय बच्चों के अनुकूल होना, सरल भाषा, छोटे संवाद और दृश्य योजना ऐसी, जिसे बच्चे बिना किसी बड़े की मदद के आसानी से स्वयं कर सकें। ये अतिरिक्त बंदिशें बाल नाटकों को और ज्यादा क्लिष्ट बना देती हैं। और जब हम इन कसौटियों पर किसी नाटक को कसते हैं, तभी हमें पता चल पाता है कि वह नाटक बच्चों के अनुकूल है अथवा नहीं।--
चैत की ऋतु गाने वाली हुड़क्या कवि मोहन मुक्त का परिचय: मध्य हिमालय के पिथौरागढ़ ज़िले में गंगोलीहाट के निवासी और रहवासी यह कवि पिछले 13 साल से पत्र पत्रिकाओं में वैचारिक लेखन करता आ रहा है। 'हिमालय दलित है ' पहला कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य.
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क्यों," बीबी जी" गुड़गांव हिसार से भी
बहुत बड़ा शहर है ?
सफाई करते हुए बबली ने सीमा से पूछा
हां इस छोटे से हिसार से तो बहुत बड़ा
"सीमा ने कहा ,क्यों तुमने जाना है वहां ?
अच्छा ! कितना टाइम लगता है यहाँ से जाने में ?
घर कितने बड़े हैं ?
तीन या चार घंटे...
कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se **
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कोई न्याय करे दिल की मसी बनाई है विचारों तक उसे पहुंचाई शब्दों की लेखिनी चुनी है मन में छिपी भावनाओं के शब्द लिए | छापे मन के पटल पर फिर भी कहीं रही कमी अपने शब्दों को आवाज देने में अपने दिलवर को मनाने
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बालकविता "सबको गर्मी बहुत सताए"
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आज के लिए बस इतना ही...!
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Nice post thanks for the post
ReplyDeleteउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर संकलन।
ReplyDeleteमेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु हृदय से आभार सर।
सादर
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर चर्चा, बेहतरीन लिंको का समायोजन।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों के कृतत्व को नमन
बहुत सुंदर संकलन। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सार्थक चर्चा प्रस्तुति ।मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार आपका आदरणीय सर ।
ReplyDeleteशुक्रिया सुंदर चर्चा अंक
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