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शनिवार, जुलाई 09, 2022

"ग़ज़ल लिखने के सलीके" (चर्चा-अंक 4485)

 मित्रों! शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है!

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ग़ज़ल "ग़ज़लग़ो ग़ज़ल लिखने के सलीके को बताता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) 

रदीफों-काफ़ियों को, जो इशारों पर नचाता है
ग़ज़लग़ो ग़ज़ल लिखने के, सलीके को बताता है
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देखकर जाम-ओ-मीना, फसल शेरों की उगती है
मिलाकर दाल-चावल, शान से खिचड़ी पकाता है

उच्चारण 

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बापू 

भाव सरिता बहती आखरा 

मौण रौ माधुर्य बापू।।

बढ़े-घटे परछाई पहरा

दुख छळे सहचर्य बापू।।

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हाथ आंगळी पग पीछाणै

सुख रौ जाबक रूखाळो।

सूत कातता उळझ रया जद 

सुळझावै नित निरवाळो।

तिल-तिल जळती दिवला बाती 

च्यानण स्यूं अर्य बापू।। 

गूँगी गुड़िया अनीता सैनी "दीप्ति"

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" तुम्हें गीतों में ढालूँगा सावन को आने दो....." 

 "छाई बरखा बहार पड़े अंगना फुहार....", 

"पड़ गए झूले सावन रुत आई रे...."

"पुरवा सुहानी आई रे ऋतुओं की रानी आई रे...." 


ऐसे कितने ही अनगिनत गीत है जो आज भी जब सुनाई पड़ते हैं तो मन खुद-ब-खुद झूमने लगता है। 

"पीली पीली सरसों फूली 

पीले उड़े पतंग 

अरे पीली पीली उडी चुनरिया 

ओ पीली पगड़ी के संग 

गले लगा के दुश्मन को भी 

यार बना लो कहे मलंग 

आई झूम के बसंत,झूमो संग संग में 

आज रंग लो दिलों को एक रंग में   

मेरी नज़र से 

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आगरा - झुनझुन कटोरा 

झुनझुन कटोरा – आगरा के दीवानी कचहरी के परिसर में स्थित यह एक बहुत सुन्दर इमारत है और कदाचित ताजमहल से भी बहुत पहले की बनाई हुई है ! इससे जुड़ा किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है ! कहते हैं एक बार शेरशाह सूरी से युद्ध करते हुए बादशाह हुमायूं की जान पर बन आई थी ! Sudhinama 

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दवाई (कहानी)  हालाँकि बारिश की रफ़्तार थोड़ी कम हो गयी थी, इसीलिये मैंने बूढ़े बाबा को मेन. रोड से अपनी कार मोड़ने के पहले उतार कर कहा था, "बाबा ठीक से घर तो पहुँच जाओगे,…" ,

'हाँ बाबू, तूने इस बारिश में मेरे लिए इतना कर दिया यही काफी है। 
अब ये दवाई मेरी पोती की जान जरूर  बचा लेगी ।" marmagya.net 

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एक गीत - डॉ शिवबहादुर सिंह भदौरिया 

बैसवारे की मिट्टी में साहित्य के अनेक सुमन खिले हैं जिनकी रचनाशीलता से हिंदी साहित्य धन्य और समृद्ध हुआ है. स्मृतिशेष डॉ 0 शिव बहादुर सिंह भदौरिया भी इसी मिट्टी के कमालपुष्प है. 15 जुलाई सन 1927 को ग्राम धन्नी पुर रायबरेली में आपका जन्म हुआ. हिंदी नवगीत को असीम ऊँचाई प्रदान करने वाले भदौरिया जी डिग्री कालेज में प्रचार्य पद से सेवानिवृत हुए और 2013 में परलोक गमन हुआ. उनके सुपत्र भाई विनय भदौरिया जी स्वयं उत्कृष्ट नवगीतकार हैं और प्रत्येक वर्ष पिता की स्मृतियों को सहेजने के किए डॉ 0 शिवबहादुर सिंह सम्मान दो कवियों को प्रदान करते हैं.
स्मृतिशेष की स्मृतियों को नमन 

बैठी है 
निर्जला उपासी 
भादों कजरी तीज पिया |

अलग -अलग 
प्रतिकूल दिशा में 
सारस के जोड़े का उड़ना |

किन्तु अभेद्य 
अनवरत लय में 
कूकों, प्रतिकूलों का का जुड़ना | 

सुनहरी कलम से 

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निदा फ़ाज़ली से क्षमा-याचना के साथ चंद गुस्ताखियाँ 

धूप तो धूप है फिर इसकी शिकायत कैसी

अबकी बरसात में कुछ पेड़ लगाना साहब

निदा फ़ाज़ली

एक नेक सलाह 

सांप तो सांप हैं डसने की शिकायत कैसी

आस्तीनों में उन्हें फिर न पालना साहब 

तिरछी नज़र गोपेश मोहन जैसवाल 

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आजादी मेरा ब्रांड (पुस्तक समीक्षा) 

 "छाई बरखा बहार पड़े अंगना फुहार....", 

"पड़ गए झूले सावन रुत आई रे...."

"पुरवा सुहानी आई रे ऋतुओं की रानी आई रे...."  

कुछ मेरी कलम से  kuch meri kalam se ** 

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"दो धर्मों की संक्षिप्त व्याख्या" 

इस देश में धर्म केवल एक ही है, भावनाएँ भी केवल एक ही धर्म की आहत होती हैं, अपमान केवल एक ही धर्म का होता है, बात भी उसी धर्म की होती है, वोट भी वही धर्म देता है, बुद्धिजीवी वर्ग, राजनीतिक लोग, मिडिया, न्यायालय भी उसी धर्म के अपमान को अपमान मानता है, इस धर्म का अपमान होने पर गला काटना, जुबान कटना जायज ठहरा दिया जाता है, और तो और जब इस धर्म की बात होती है तो देश में बेरोजगारी, महंगाई, अर्थव्यवस्था, विकास, शिक्षा सब कुछ ठीक रहता है और वो धर्म है "इस्लाम" राष्ट्रचिंतक 

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चलो भोले लेकर कांवड़ - बम बम भोले सावन का महीना आरंभ होने जा रहा है और इसी के साथ आरंभ होने जा रही है भोले के प्रिय भक्तजनों की चिरप्रतीक्षित कांवड़ यात्रा. इस बार कांवड़ यात्रा की महत्ता कुछ अधिक है क्योंकि दो साल से कोरोना के प्रतिबंधों के साये में भक्तजनों की आस्था को भी बाँध दिया गया था, उनके स्वास्थ्य की परवाह किए जाने के मद्देनजर देश - प्रदेश के प्रशासन द्वारा, पर इस बार कोरोना की लहर भी कमजोर है भारतीय सरकार द्वारा वैक्सीनेशन के कारण और कुछ भोले के भक्तों के हौसलों के कारण. 

All India Bloggers' Association ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन 

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बालकवि बैरागी: एक नायाब इंसान 

 प्रभाकर श्रोत्रिय

शीर्ष स्थानीय पदों पर बैठकर कैसे अहंकारविहीन रहा जा सकता है, यह सीखना हो तो बैरागीजी जैसे उदाहरण कम मिलेंगे। वे मध्य प्रदेश में मन्त्री रहे हैं, केन्‍द्र में मन्त्री स्तरीय और सांसद रहे हैं। देश की अनेक नीति निर्धारिक समितियों में रहे हैं, लेकिन उनसे मिलकर किसी आत्मीय को यह बोध नहीं हो सकता कि वह बालकवि से कमतर है। यह एक ही गुण बड़प्पन कहने के लिए काफी है। 

एकोऽहम् 

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लभ 'मिरेज' (लघुकथा) 

'सुनो, ये चार लाख वाली बात माँ  जी के सामने मत बकना। मुँह पर ताला लगा लो अब! और, यह भी गठरी बांध लो कि हमारा अरेंज नहीं, लव मैरेज है।'

'भगवान आपका लभ 'मिरेज' बनाए रखे', यह कहते हुए  बाई तेजी से निकल गई। 

विश्वमोहन उवाच 

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माँ काली 

रायटोक्रेट कुमारेन्द्र 

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गोस्वामी बिंदु जी की संगीतमय भक्ति

   -हरिशंकर राढ़ी 

बिंदु जी भले ही साहित्य में सम्मिलित न किए गए होंकिसी भी पाठ्यक्रम में उनको किंचित स्थान नहीं मिला होकिंतु वे आज भी भक्ति संगीत में रस लेने वालों के लिए आनंद और मधुरता के एक बड़े स्रोत हैं। देशभर के तमाम बड़े भजन गायक गोस्वामी बिंदु जी के पदों और गज़लों को अपनी गायकी का हिस्सा बनाते ही हैंहिंदीभाषी प्रदेशों की भजन मंडलियाँ और कीर्तन गायक भी उनके भक्तिगीतों के बिना नहीं चल पाते। सच तो यह है कि गोस्वामी बिंदु जी भारतीय मनीषा और संत परंपरा की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। उनके पद और भक्तिमय गज़लें गंभीर और अलग भाव से ओत-प्रोत हैं। उनका भक्ति साहित्य कुछ उसी प्रकार के शास्त्रीय संगीत से सज्जित है जैसा कि भक्तिकाल के संत कवियों का था। 

इयत्ता 

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दास्ताँ - एक प्रेम की  

जिन टेढ़े-मेढ़े रस्तों से गुजारते हैं चरवाहे
जहाँ की मेढों पे खिलते हैं गहरे लाल रंग के जंगली फूल
जहाँ धूप के साथ उतरती है कच्ची सरसों की खुशबू
उसी के पास खेतों से आती है चूडियों की खनक 
और तुम्हारी हँसी की आवाज़ में घुलती 
पाजेब की धीमी छन-छन 

स्वप्न मेरे दिगम्बर नासवा

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प्रेम देखता है 

**********
गांव के बूढ़े बरगद के नीचे बैठकर
कुछ बूढ़े कहते हैं 
प्रेम अंधा होता है

कुछ शहरी बूढ़े
बगीचे में बिछी 
बेंचों पर बैठकर कहते हैं
प्रेम पागल होता है  

उम्मीद तो हरी है ... 

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फौज नौकरिया रे हारी..कजरी 

अरे रामा पियवा चले लद्दाख़,

फौज नौकरिया रे हारी 

मैंने भेजा है अरती उतार,

फौज नौकरिया रे हारी ॥ 

जिज्ञासा के गीत 

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कहां मज़दूर अब तक घर गए हैं 

ग़ज़ल-- ओंकार सिंह विवेक
ये  जो  शाखों  से  पत्ते  झर  गए  हैं,
ख़िज़ाँ  का ख़ैर  मक़दम  कर गए हैं।

कलेजा  मुँह को  आता है ये सुनकर,
वबा  से   लोग   इतने  मर   गए  हैं।

मेरा सृजन 

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औरों के ग़म कैसे बाँटें ? स्वर्गीय जगजीत सिंह जी की गाई हुई और रियाज़ ख़ैराबादी साहब की रची हुई एक ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद है जिसके बोल हैं - वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता; किस घर में ख़ुशी होती है, मातम नहीं होता ? सच ही तो है। कोई विरला ही होता है जिसे जीवन में कभी दुख न मिला हो। ग़मगीन इंसान ख़ुद को इस गीत के बोलों से भी तसल्ली दे सकता है - दुनिया में कितना ग़म है, मेरा ग़म कितना कम है (जिसे हिन्दी फ़िल्म 'अमृत' के लिए आनंद बक्षी जी ने रचा तथा अनुराधा पौडवाल जी व मोहम्मद अज़ीज़ जी ने गाया)। लेकिन दुखते दिल को तसल्ली इतनी आसानी से कहाँ मिलती है ? 

jmathur_swayamprabha जितेन्द्र माथुर

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बाल कहानी 

*भोली-भाली मोरपंखी*  
*बड़ी मनमौजी और हंसमुख थी। हमेशा चिड़ियों की तरह चहकती-गुनगुन करती और** अपना लहंगा पकड़ ठुमकने लगती। जब वह फिरकनी की तरह घूमती तो लगता मोर ने अपने रंगबिरंगे चमकीले पंख फैला रखे हैं। पापा अपनी लाड़ली को छेड़ते-“मोरपंखी -मोरपंखी तेरे पंख कहाँ? 
बालकुंज 

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आस्था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताओं के बीच संतुलन जरूरी है 

जिज्ञासा 

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आज़ादी ए फ़रेब 

अग्निशिखा : 

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न्याय 

पावन मंच को नमन

न्याय

न्याय के मंदिर में 

आँखों पर पट्टी बांधे 

मैं न्याय की देवी ..

प्रतीक्षा रत  ...

कब दे पाऊँगी न्याय सबको... 

काव्य कूची 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति। मेरे ब्लॉग को "चर्चामंच" देने के लिए आपका बहुत आभार शास्त्री जी।🌻🙏

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  2. सभी को सादर नमस्कार 🙏
    आमंत्रण स्पेम में चले जाते है। कृपया समय मिलने पर अवश्य देखे, शास्त्री जी सर के कहने पर कुछ ब्लॉग पर दुबारा आमंत्रण भेजे है मैंने।
    बहुत ही सुंदर संकलन है।
    सभी रचनाएँ पढ़ते हैं।
    सादर

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    उत्तर
    1. 🙏 नमस्कार सर
      मेरे लेख पर आमंत्रण तो स्पैम में चला गया था जो मैंने ठीक कर लिया है मगर प्रस्तुति में मेरा लेख नहीं आया है शायद कोई तकनीकी गलती होगी।
      कोई बात नहीं, मैं कल की प्रस्तुति में जोड़ लेती हूं,, मेरे लेख का चयन करने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार 🙏

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    2. मुझसे ही भूल हो गयी थी।
      इस कारण चर्चा में आपकी पोस्ट नहीं आयी।
      अब लगा दी है।

      हटाएं
  3. बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा, वाह वाह वाह!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत धन्यवाद आपका मेरे ब्लॉग के लिंक को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  5. मित्रों!
    कभी-कभी टिप्पणियाँ स्पैम में चली जाती हैं। इसलिए आप अपने मेल बॉक्त में टिप्पणियाँ जरूर देख लिया करें और जो टिप्पणी जरूरी हो उसको इनबॉक्स में ले जाया करें। फिर टिप्पणी स्पैम में नहीं जायेगी।

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  6. विविधरंगी संकलन है यह - ठीक भारतवर्ष की तरह। मेरे आलेख को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार।

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  7. विविधता से भरा, श्रमसाध्य कार्य का द्योतक सुंदर सराहनीय अंक । मेरी कजरी को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय सर । सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  8. आज चर्चामंच में बहुत ही सुन्दर रचनाओं को संकलित किया गया है ! मेरे आलेख को आपने इसमें सम्मिलित किया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  9. आप के इस चर्चा मंच मे केवल हिन्दी साहित्य को ही प्रमुखता दी जाती है या अन्य बिषयो पर भी चर्चा या आलेख प्रकाशित किये जाते है जैसे चिकित्सा स्वास्थ्य या विश्व मे प्रचलित चिकित्सा की जानकारीयो पर भी चर्चा या लेखो को जगह मिलती है या नही ।

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    उत्तर
    1. आप के मंच मे हम अपनी रचनाये कैसे भेज सकते है कृपया बतलाने की कृपा करिये

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    2. आप अपने ब्लॉग में फॉलोवर्स का विजेट लगा लीजिए।

      हटाएं
  10. प्रभावी रचनाओं से सुसज्जित बहुत सुंदर सूत्र संयोजन
    साधुवाद

    सभी सम्मलित रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुरंगी पुष्प गुच्छों से सजा सुंदर गुलदस्ता। अत्यंत आभार।

    जवाब देंहटाएं

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