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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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गीत "दीप मन्दिर में जलाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
निलय से अज्ञान के तम को भगाओ।
ज्ञान का इक दीप मन्दिर में जलाओ।।
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मन स्वदेशी है, स्वदेशी खाद-पानी चाहिए,
नीर में सरिताओं के अविरल रवानी चाहिए,
नौजवानों में समन्दर सी जवानी चाहिए,
बंजर धरा को उर्वरा फिर से बनाओ।
ज्ञान का इक दीप मन्दिर में जलाओ।।
उच्चारण
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कथा भाई-दौज की - भाई बहिन के अटूट प्रेम की गाथा बचपन में भाई दौज की सुबह से ही हमें याद करा दिया जाता था कि दौज की कहानी सुने बिना और भाई को टीका किए बिना पानी भी नही पीना है । जब हम नहा-धोकर तैयार होजातीं तब दादी या नानी तुलसी के चौरा के पास आसन डाल कर ,घी का दिया जलाकर हमारे हाथ में घी-गुड़ देकर दौज की कहानी शुरु करतीं थीं ।
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मेरे मन का संयम
मेरी चाहत है खोलो मन की ग्रंथियां
मन को भरम से दूर करो
फिर देखो सोचो समझो
मन को ज़रा सा सुकून दो |
तभी जीवन की उलझने
पूरी तरह सुलझ पाएंगी
Akanksha -asha.blog spot.com
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नोटों पर लक्ष्मी-गणेश का सुझाव
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इंडोनेशिया का करेंसी नोट |
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल करेंसी नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें छापने का जो सुझाव दिया है, उसके पीछे राजनीति है। अलबत्ता यह समझने की कोशिश जरूर की जानी चाहिए कि क्या इस किस्म की माँग से राजनीतिक फायदा संभव है। भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व को जो सफलता मिली है, उसके पीछे केवल इतनी प्रतीकात्मकता भर नहीं है।
जिज्ञासा
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बेरोज़गारी यह बीजेपी वाले खुद तो ढंग से लोगों को रोज़गार दे नहीं पा रहे हैं और जो लोग इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं, उनकी आलोचना करते रहते हैं। अब देखिये न, इस निराशा के चलते एक पार्टी के सैकड़ों लोग केवल एक आदमी को रोज़गार दिलाने के लिए उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा तक गली-गली में पैदल चल कर अपने पाँव रगड़ रहे हैं। इसी तरह एक और पार्टी के कर्ता-धर्ता अपनी पुरानी रोज़ी-रोटी छिन जाने के डर से नया रोज़गार पाने के लिए गुजरात की ख़ाक छान रहे हैं। इन्हें रोज़गार मिलेगा या नहीं, यह तो ईश्वर ही जाने, किन्तु बेचारे कोशिश तो कर ही रहे हैं न! इनकी मदद न करें तो न सही, धिक्कारें तो नहीं😏।
गजेन्द्र भट्ट हृदयेश
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ग़ज़ल समझना ही न चाहो तुम--
समझना ही न चाहो तुम, कहाँ तक तुमको समझाते
हम अपनी बेगुनाही की कसम कितनी भला खाते
तुम्हे फ़ुरसत नहीं मिलती कभी ख़ुद की नुमाइश से
हक़ीक़त सब समझते हैं ज़रा तुम भी समझ जाते
गीत ग़ज़ल और माहिया आनन्द पाठक
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शत-शत वन्दन-
शत-शत वन्दन प्रभु हे,चित्रगुप्त त्राता, विधि के मानस-पुत्र, कर्मगति निर्णायक, अवधपुरी में प्रकट धर्महरि विख्याता! --
मुस्कान
पिछले दिनों हमने एक गायत्री हवन करवाया था। प्रसाद में खीर बननी थी। तय हुआ कि खीर के साथ एक-एक केला दिया जाय और एक-एक छोटा वाला गुलाब-जामुन भी खीर में डाल दिया जाय। एक रोज पहले शाम को हम मित्र राजेश के साथ दो-तीन मिठाई-दुकानों पर गये, पर सबने यही कहा कि एकाध घण्टे पहले बोलने से काम बन जाता- यानि 100 नग छोटे गुलाब-जामुन बनाने लायक खोआ (मावा) वे मँगवा लेते। अब नहीं हो सकता।
कभी-कभार जयदीप शेखर
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न जन्नत देखा, न जहन्नुम देखा, जो कुछ देखा, यहीं देखा
तमाम ग़ज़लों में अपने समय का समाज, आम आदमी की अजीयतें, प्रेम का पलायन ,अभावग्रस्त जीवन का संघर्ष, अव्यवस्था, महंगाई, शोषण से अभिशप्त जीवन जीने की बाध्यता को लेकर आए। साथ ही दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल की जो रहनुमाई की उसका अनुकरण करते हुए आगे की पीढ़ियां नए परिदृश्य रचने के लिए, बदलाव के बयार को लाने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं -
"दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर
और कुछ हो या ना हो आकाश-सी छाती तो है"।
निधि सिंह की ग़ज़लों में यही आश्वासन नज़र आता है -
" बहुत मुमकिन है सोता फूट जाए
कई बरसों से हम पत्थर रहे हैं।"
लिखो यहां वहां भारती सिंह
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नई तस्वीरें , नई ग़ज़ल दोस्तों! कुछ तस्वीरों के साथ आनंद लीजिए मेरी एक नई ग़ज़ल का :बैठता है दिल घुटन से क्या करें, अश्रु झरते हैं नयन से क्या करें। आप ही बतलाइए मुँह-ज़ोर ये, बात हम-से कम-सुख़न से क्या करें। ©️ओंकार सिंह विवेक
मेरा सृजन
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इलू डॉक्टर ‘इलू के सन्देश संग,सबकी मांगे खैर, सबसे राखे दोस्ती, नहीं किसी से बैर’ मेरे दोस्त ! मेरे सबसे प्रिय छात्र और बहुत से विषयों में मेरे गुरु ! मेरे बड़े भाई ! खुश रहो, आबाद रहो, स्वस्थ रहो !, मस्त रहो ! हम सबको तुम्हारी, तुम्हारे प्यार की और तुम्हारे मार्ग दर्शन की, आज भी ज़रुरत है. 'इलू', डॉक्टर पांडे !
तिरछी नज़र गोपेश मोहन जैसवाल
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बाघ एक रात - रवि बुले बॉलीवुड स्टोरी बॉक्स
कहानी
वह एक लेखक था जो टीवी धारवाहिकों के लिए लिखा करता था। वह अपने घर में अकेला रहता था और एक अजीब डर से पीड़ित था। उसका सबसे बड़ा डर यह था कि वह अकेले कमरें में बंद है और बाघ आ जाये।
जब भी उसके घर में बिजली जाती उसे लगता उसे फ्लैट के बाहरी कमरे में एक बाघ है जो उसका शिकार करने के लिए तत्पर है।
एक बुक जर्नल
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आज के लिए बस इतना ही...!
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