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रविवार, अक्टूबर 02, 2022

"गाँधी जी का देश"(चर्चा-अंक-4570)

सादर अभिवादन रविवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है(शीर्षक और भुमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)

सत्य-अहिंसा से बना, भारत का गणतन्त्र।
पग-पग पर सद-भाव के, यहाँ गूँजते मन्त्र।।
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आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के जन्म दिवस पर
 उन्हें सत सत नमन करते हुए चलते हैं 
आज की कुछ खास रचनाओं की ओर....
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दोहे "गाँधी जी का देश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


अपना भारतवर्ष हैगाँधी जी का देश।
सत्य-अहिंसा के यहाँमिलते हैं सन्देश।।
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चाहे काल भविष्य हो, वर्तमान या भूत।
सत्य-अहिंसा का किला, रहे सदा मजबूत।।
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गांधी जी ने यही कहा थाबापू के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। वह सत्य और अहिंसा के प्रति पूर्ण समर्पित थे। वह समय के पाबंद थे, नियमित भ्रमण करते थे, शाम को उनके सत्संग का भी समय निश्चित था। वह सात्विक व शाकाहारी भोजन के हिमायती थे। उनके आश्रमों के नियम बहुत कठोर थे और उस समय के लिए संभवतः आवश्यक भी थे। देश की आज़ादी के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं को उन्हें गढ़ना था। वह वस्तुओं का समुचित उपयोग करना चाहते थे, काग़ज़ का एक टुकड़ा हो या पैर रगड़ने वाला छोटा सा पत्थर, उनके लिए महत्वपूर्ण थे। -------------------------------“नेह के धागे” (कहानी)


कुछ वर्ष पहले मैं उसके पड़ोस में रहा करती थी और वो गर्मियों में अपने
मम्मी-पापा के साथ अपने पैतृक घर आया करता था। उसका दिन का
अधिकांश समय मेरे घर मेरे और मेरे बच्चे के साथ बीतता था
मैं यह सब सोच ही रही थी कि प्रणाम की मुद्रा में झुकते हुए उसने कहा-’आण्टी पहचाना ?’
स्नेह से उसके सिर पर हाथ रखते हुए मैंने उसका वाक्य पूरा करते हुए कहा - ‘करण’ ।
उसके साथ मंदिर की सीढ़ियाँ उतरते हुए कहा- तुम्हे कैसे भूल सकती हूँ ?
-------------------------------गाँव बुलाते हैं

रिक्त डेरा शून्य गलियाँ

पीपली संताप ओढ़े

खाट खुड़खुड़ रो रही है

इस बिछावन कौन पोढ़े

पाथ गाँवों के पुकारे 

हे पथिक अब लौट आओ।

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लकीरें


उसने पीछे मुड़कर देखा, फिर बर्तन धोने लगी।

”तुम्हें दुख नहीं होता?”

दूसरी ने धुली कटोरियाँ उठाते हुए कहा।

”पत्तों-सरीखे हैं दुख,अभी ड्योढ़ी तक झाड़ू से बुहारकर आई हूँ !” 

अगले ही पल साड़ी से हाथ पोंछते हुए, 

हल्की रोशनी में सपाट हथेली पर उसने लकीरें उगानी चाहीं।

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६६७.रोटियाँ


वैसे तो रोटी का आकार 

कुछ भी हो सकता है,

पर भूखे लोगों को भाती हैं 

गोल-गोल रोटियाँ. 

रोटी गोल होती है,

तो भ्रम पैदा होता है 

कि उसका कोई छोर नहीं है. 

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पहली मुलाक़ात


नर्सरी क्लास में चार साल के दो बच्चे- एक लड़का और एक लड़की डेस्क पर बैठे थे।
 सकुचाए, चुपचाप। गालों पर आँसू सूख चुके थे। घर जाने का कोई चांस नहीं।
 मिस अच्छी थीं इसलिये टॉफ़ी और चिप्स खाने की इजाज़त मिल गई थी।
 कुछ बच्चे अभी भी रो रहे थे। पर बीच की डेस्क पर बैठे ये दोनों बच्चे अब शान्त थे।
 लड़का मन ही मन सोच रहा था कि-मम्मी ने कहा था, रोना नहीं, तो मैं तो बस थोड़ा सा रोया, बाकी बच्चे तो अभी तक रो रहे हैं। लड़की भी यही सोच रही थी। उसके आँसू बीच-बीच में टपक जा रहे थे जिन्हें वह जल्दी से पोंछ ले रही थी। अपने ओंठ भींचे, आँखों को बार बार झपकती वह कुछ अधिक सतर्क भी लग रही थी।
---------------------------राजू श्रीवास्तव और इन्द्रधनुष क़ातिल

राजू श्रीवास्तव नहीं रहे। एक गंभीर लेख लिखने की योजना थी मेरी लेकिन 
इस कार्य को स्थगित करके उस असाधारण कलाकार को श्रद्धांजलि देना मुझे उचित लगा
 जिसने हास्य के संसार में अपनी एक पृथक् पहचान बनाई।
 हंसी और मुस्कान बिखेरकर गजोधर भैया लाखों-करोड़ों के दिलों में बस गए।
 कानपुर से मुम्बई आए इस साधारण चेहरे-मोहरे के कलाकार में 
नक़ल उतारने (मिमिक्री करने) का नायाब हुनर था।
--------------------इतना लिख कि लिख लिख कर कारवान लिख दे

चल रहने दे सब जमीन की बातें
कभी तो कोशिश कर थोड़ा सा आसमान लिख दे

लिखते लिखते घिस चुकी सोच
छोड़ एक दिन बिना सोचे पूरा एक बागवान लिख दे

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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे 
आपका दिन मंगलमय हो 
कामिनी सिन्हा 

8 टिप्‍पणियां:

  1. रचनाओं का वैविध्यपूर्ण संकलन है यह अंक। मेरे आलेख को इसमें स्थान देने हेतू आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर चर्चा।
    सभी पाठकों को महात्मा गांधी जयन्ती और पं. लाल बहादुर शास्त्री जी की जयन्ती पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
    मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,
    कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर चर्चा.मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  4. विविधताओं से परिपूर्ण बेहतरीन सूत्रों से सजी लाजवाब प्रस्तुति । मेरी पोस्ट को सार्थक और श्रमसाध्य प्रस्तुति में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात ! बापू व शास्त्री जी की जयंती पर सभी पाठकों व रचनाकारों को बधाई, सुंदर चर्चा प्रस्तुति, आभार मन पाए विश्राम जहाँ को यहाँ स्थान देने के लिए !

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर चर्चा!!
    सभी लिंक्स पठनीय आकर्षक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार आपका कामिनी जी।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर संकलन।
    स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सभी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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