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गुरुवार, अक्तूबर 27, 2022

'अपनी रक्षा का बहन, माँग रही उपहार' (चर्चा अंक 4593)

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं चंद ताज़ा-तरीन प्रकाशित रचनाएँ-

          दोहे "भइया-दूज का तिलक-पावन प्यार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रोली-अक्षत-पुष्प का, पूजा का ले थाल।
बहन आरती कर रही, मंगल दीपक बाल।।
--
एक बरस में एक दिन, आता ये त्यौहार।
अपनी रक्षा का बहन, माँग रही उपहार।।
*****

काव्य-संग्रह 'टोहके अवतरण दिवस पर

मेरी मानस पुत्री के जन्म पर मेरी माँ उतनी ही ख़ुश है जितनी पहली बार वह नानी बनने पर थी। क़लम के स्पर्श मात्र से झरता है प्रेम अब हम दोनों के बीच। माँ के हृदय में उठती हैं हिलोरें भावों कीं जो मेरी क़लम में शब्द बनकर उतर आते हैं।

 *****

सरोवर

रोज जल भरने आतीं गांव की गोरी 
हँसी खुशी से भर जातीं पूरी वादी
वहां पर एक पवन का झोका आता
साथ अपने ले जाता लहरें वहां की 
मन को उद्द्वेलित कर जाता 
*****

दीपोत्सव: लघुकथा नाटिका

"दीवाली की अतिरिक्त सफाई में पुराने झाड़ू खराब हो जाते होंगे तो नए लाने का विधान शुरू हुआ होगा। पुरानी पीढ़ी की मजबूरी नयी पीढ़ी की परम्परा हो जाना स्वाभाविक है।" संध्या ने कहा।

"धनतेरस पुस्तक मेला शुरू हुआ है। तुम कहो तो ऑन लाइन तुम्हारी पसंद की दो चार पुस्तक मंगवा लूँ?" सुबोध ने कहा।

*****

श्वासों की शुभ दीपावली!...

तब तो तुम मेरे

प्रतिम सुप्रभा से

अप्रतिम चंद्रभा से

रक्तिम आभा में

अकृत्रिम प्रतिभा से

अंतिम प्रतिप्रभा से

प्रकाशित हो रहे हो मुझमें

अणद पिया!

*****

दिवाली की अगली भोर

किंतु अभी है शेष  उजाला

उन दीयों का

जो बाले थे बीती रात

जगमग हुईं थी राहें सारी

गली-गली, हर कोना भू का

चमक उठा था जिनकी प्रभा से

*****

अन्तर प्रवाह--

चंचल समयहथेलियों
से निकल कर तितलियों के हमराह
उड़ चला हैबहुत दूरऊँचे
दरख़्तजंगलपहाड़,
ख़ूबसूरत वादियां,
फूलों से लदी
घाटियों,
से हो
करअंतहीन है उनका ये अनजान सफ़र,

*****

मरतबान, बरनी या इमर्तवान

मर्तबान नगर, भारत की पूर्वी सीमा से सटे हुए बर्मा राज्य के पेगू प्रदेश के इस शहर में बहुत पहले से चीनी मिट्टी के पात्र बनाए जाते रहे थे, जहां से इनका निर्यात होता था। इस नगर के नाम पर ही इन पात्रों को विदेश में 'मर्तबान' कहा जाने लगा । माले, चीन, तिब्बत, जापान, कोरिआ और ओमान जैसी जगहों में भी इनको बनाने का चलन रहा है। मध्य काल में भारत में ये उपलब्ध होने लग गए थे। विदेशी यात्री इब्नबतूता ने अपनी भारत यात्रा के विवरण में इनका वर्णन किया है। मर्तबान शब्द को यूँ तो अरबी मूल का माना जाता है और इसकी व्युत्पत्ति "मथाबान" से बताई जाती है !      *****गिरधर कब अइहैं.. गीत

जब से गए सुधि बिसरि गए हैं

हम उनके बिनु बाँझि भए हैं

ढरक-ढरक दोहज बहे हिय से

अधर खुश्कअनबोल 

राधिकेमधु बोलो कछु बोल

*****

पति पत्नी

कभी-कभी तकरार भी होता।
पर आपस में प्यार भी होता।।
जो आती सुख-दुख की बारी।
दोनों ही बन जाते अधिकारी।।

*****


फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    धन्यवाद रवीन्द्र जी आज के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    भ्रातृ दूज की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    पुस्तक चर्चा में 'टोह' को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सभी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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