शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अपर्णा बाजपेयी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "कर्ता-धर्ता ईश्वर है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मैं दरख़्त का पीला पत्रक,
मद्धम सुर में गाता हूँ।
भोजन का अम्बार लगा है,
फिर भी मैं नही खाता हूँ।।
लगीं सूखने शाखाएँ तो,
हरा नही हो सकता हूँ।।
निद्रा में हो सकता हूँ,
पर मरा हुआ नही हो सकता हूँ।।
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कब ढलेगी रात गहरी
वेदनाएँ फिर बढ़ी तो
फूट कर बहती रही सब
आप ही बस आप का है
मर चुके संवेद ही जब
आँधियों के प्रश्न पर फिर
यह धरा क्यों मौन ठहरी।।
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बूंद - बूंद ख़्वाब- -
आज और परसों
के मध्य झूलता
रहता है किसी
लोलक
की
तरह इंसान,
कोई नहीं परिपूर्ण सुखी यहाँ-
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चंद्रहार या चांद बालियां
अम्मा झूठ बोलती हैं
कि चंदा मेरा भाई है,
नहीं जानती रिश्ते-नाते
के न कोई मानी हैं।
समय नहीं है,काम बहुत है
मिलने की न बात करो
चंदा को तुम friend बना लो
Facebook पर add करो
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टूटता विश्वास पल -पल
हो कहीं,जब जान जाऊँ
स्वप्न धूमिल हो गए सब
प्राण को भी अब गवाँऊ।
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बहुत सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमुझे सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार,
रवीन्द्र सिंह यादव जी।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने हेतु असंख्य धन्यवाद व दीपावली की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! सुंदर चर्चा, कुछ लिंक नहीं खुले, आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय।
सादर
बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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