फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, अक्तूबर 18, 2022

"यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:"(चर्चा अंक-4585)

सादर अभिवादन

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

(शीर्षक और भूमिका आदरणीया अनीता जी की रचना से)


आज भारत के ज्ञान के प्रभाव से विश्व में परिवर्तन हो रहा है, अब ईश्वर के बताये मार्ग पर अनेक लोग चलने को उत्सुक हैं. वह दिन दूर नहीं जब भारत की बात सुनी जाएगी और सतयुग का सब जगह दर्शन होगा। 


आपने बिल्कुल सही कहा अनीता जी,वो दिन अब दूर नहीं

भारत के लोग अपनी ज्ञान,संस्कार और संस्कृति को फिर से अपनाने

में भले ही झिझक रहें हो मगर, पश्चिमी देशो ने हमारी महत्ता को स्वीकार

कर लिया है।आपका एक-एक कथन सत्य हो....

इसी शुभकामना के साथ चलते हैं,आज की कुछ खास रहनाओं की ओर....

----------------------------


दोहे "बेटों का त्यौहार"

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


नारी नर की खान हैजग की सिरजनहार।

माता अपनी कोख मेंबेटी को मत मार।।

--

बेटों जैसा दीजिएबेटी को भी मान।

सभ्य-सुघड़ सन्तान सेहोता देश महान।।

------------------------------

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:संत कहते हैं, इस जगत के और हमारे भी केंद्र में जो होना चाहिए, वह ईश्वर है. असल में वह जगह तो भगवान की है; किंतु आज उसकी जगह को अहंकार ने घेरा हुआ है.  मुल्कों के अहंकार ने, शासकों के अहंकार ने। अहंकर केवल सेवक है, पर मानव भूल गया है कि वह ईश्वर  की सत्ता के कारण अपना काम कर रहा है. मानव इस मूलभूत तथ्य को भूल गया है और मनमानी करता है; तब उसे लगता है कि जगत सुंदर नहीं है-----------------------सच तो सच है


सच तो सच है ।
कहीं भी कभी भी
सर उठा कर
सीना तान कर
खङा हो सकता है, 
अचानक हमारे सामने,
हमारी आँखों में 
आँखें डाल कर
सीधे दिल में 

झाँक सकता है, 
-----------------------------------

बात रही इतनी

जब कुचल रहे पैरों में

दीनों के सपने में 

आग लगाकर सुख में

बनते हैं अपने 

नदी नाव से पूछ रही 

लहरें हैं कितनी...

--------------


मन चंचल हुआ


मन चंचल हुआ कैसे 

बेमुरब्बत हुआ

किसी का कोई

 ख्याल नहीं रखा |

सिर्फ खुद की ही सोची

और किसी की नहीं

हुआ ऐसा किस कारण

जान न पाई |

----------------------

ख़ुश्बुओं का सुराग - -


और
आकाश । उम्र के सभी पृष्ठ क्रमशः झर
जाते हैं आख़िर में रह जाता है देह
का कमज़ोर जिल्द बाकि, फिर
भी अनपढ़ा रहता है सांसों
का किताब, हज़ारों
से मुलाक़ात
हुई फिर
भी----------------------आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

आमदनी है पाँच सौ,खर्चा करो हजार।
सोचो तेरे जेब की,कितना होगा भार।।

सदा पड़ोसी-दोस्त से,लेना होगा कर्ज।
कर्ज लेने वाले तुम,सदा रहोगे मर्ज।।

कुछ भी लेने के लिए,जाओगे बाजार।

नगद नदारद होयगा,लेना पड़ा उधार।।
--------------------------------


दिल तो दर्पण है टूट जाएगा !!!!!!


काव्य पाठ की दो शैलियाँ तहत और तरन्नुम हैं।तहत में काव्य पाठ का अर्थ है सीधे-सीधे अपनी रचना को बिना गाए हुए श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत करना और तरन्नुम में पढ़ने का अर्थ है रचना को गाकर प्रस्तुत करना। मंच पर लोग अक्सर दोनों ही तरह से अपनी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं।यह बिल्कुल ठीक बात है कि गायन शैली में रचना प्रस्तुति का अपना एक अलग प्रभाव होता है परंतु तहत में रचना पाठ भी अपने ढंग से श्रोताओं पर असर छोड़ता है।
-----------------------------------आज का सफर यही तकमिलते हैं अगले अंक में आपका दिन मंगलमय हो कामिनी सिन्हा 

9 टिप्‍पणियां:

  1. अद्यतन लिकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात! आशा और विश्वास जगाती भूमिका और विविध विषयों पर आधारित रचनाओं के लिंक्स से सजा मंच! आभार कामिनी जी!

    जवाब देंहटाएं
  3. विविध रंगों से सजा हुआ चर्चा मंच हमेशा की तरह मंत्रमुग्ध करता है, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर चर्चा अंक

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।