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बुधवार, अक्तूबर 19, 2022

"सच्चे चौकीदार" (चर्चा अंक-4586)

 मित्रों!

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें 

और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है 

बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या 

लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ 

आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। 

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संस्मरण "मालिक के वफादार और सच्चे चौकीदार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

मैंने अपने ओवरकोट की जेब में इस प्यारी सी पिलिया को रखा और अपने घर आ गया। छोटी नस्ल की यह पिलिया सबको बहुत पसन्द आई और इसका नाम जूली रखा गया। 

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बाबिया एक शाकाहारी मगरमच्छ 

मगरमच्छ, वह भी शाकाहारी ! सहसा विश्वास ही नहीं होता ! यह ठीक वैसा ही लगता है जैसे कोई कहे कि शेर घास खा कर जिंदा है ! ज्यादातर पानी में रहने वाले, इस डरावने उभयचर का नाम सुनते ही डर से रोंगटे खड़े हो जाते हैं ! जिस प्राणी से पानी में शेर और हाथी जैसे ताकतवर जानवर भी सामना करने से कतराएं ! जिसके खूंखार दांत एक झटके में किसी के भी टुकड़े-टुकड़े कर सकने में सक्षम हों ! जो पानी में रहने वाले जीवों का काल हो ! वह शाकाहारी .....! पर हमारा संसार भरा पड़ा है, विस्मित करने वाले  आश्चर्यजनक, अविश्वसनीय, हैरतंगेज कारनामों से ! इस जगत में क्या कुछ नहीं हो सकता !

कुछ अलग सा 

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डिनर  अब संध्या रोज शाम को कभी चार बजे, कभी पांच बजे या कभी छे बजे अपने घर से निकल पड़ती है. पास के मॉल में चली जाती है, बाज़ार में घूम लेती है या फिर मंदिर चली जाती है. कभी कभी सोसाइटी के छोटे से पार्क में हमारे पास बैठ जाती है. पर सबसे पहले बिटिया को मेसेज कर देती है की नीचे बैठी हूँ. बंगला-हिंदी की खिचड़ी भाषा में अक्सर हमसे बतिया भी लेती है. यूँ कहती हैं, वहां तो हम डिनर के टाइम जाएगा पोहले नहीं जाएगा!

 

Sketches from life 

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इक पैर का जलवा तुझको दिखाना होगा 

घुप अंधेरा है कोई दीपक जलाना होगा ।

इन अंधेरों से अब आंख  मिलाना होगा।।

मेरे वज़ूद की वज़ह मैं ही हूं तू नहीं -

तेरा ऐलान हर दीवार से मिटाना होगा ।। 

The Partnership : for the protection of human rights in Balochistan and Sindhudesh 

गिरीश बिलौरे मुकुल

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राजकमल प्रकाशन के साथ मनाइए 'किताब तेरस' 

देश के अग्रणी प्रकाशन संस्थानों में से एक राजकमल प्रकाशन 14 अक्टूबर से 18 अक्टूबर 2022 के बीच 

'किताब तेरस' का आयोजन कर रहा है। 

पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किया गया यह कार्यक्रम पाठकों को काफी पसंद आएगा। इस दौरान राजकमल प्रकाशन की वेबसाईट पर मौजूद पुस्तकों पर पाठकों को निम्न छूट उपलब्ध होंगी: 

एक बुक जर्नल 

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16-31 October 2022 

टाबर टोळी (बच्चों के लिए देश का पहला अखबार) 

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छंदा सागर (छंद के घटक "गुच्छक") गुच्छक गणों के आधार पर तीन से छह लघु दीर्घ वर्णों का विशिष्ट समूह है। 8 गणों में वर्ण जुड़ कर गणक बनाते हैं। ये गण और गणक सम्मिलित रूप से गुच्छक कहलाते हैं। गुच्छक कहने से उसमें गण भी आ जातें हैं और गणक भी आ जाते हैं। इस प्रकार गुच्छक तीन से छह लघु दीर्घ वर्णों का विशिष्ट क्रम है जिसका संरचना के आधार पर एक नाम है तथा वर्ण संकेतक (ल, गा आदि) की तरह ही एक संकेतक है। छंदाओं के नामकरण में इसी संकेतक का प्रयोग है। इस पाठ में गणकों के नाम के रूप में कई नयी संज्ञायें एकाएक पाठकों के समक्ष आयेंगी। यदि किसी पाठक को वे कुछ उबाऊ लगें तो उनमें अधिक उलझने की आवश्यकता नहीं है। गणक की संरचना के आधार पर प्रत्येक गणक विशेष को एक संज्ञा दे दी गयी है जिनका आगे के पाठों में नगण्य सा प्रयोग है। पाठकों को केवल हर गुच्छक के संकेतक को समझना है। ये संकेतक ही समक्ष छंदाओं के नामकरण के आधार हैं। 

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया 

Nayekavi 

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कविता  सड़क 

आकिब जावेद

 

आवाज सुख़न ए अदब 

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चन्द्र 

एक चन्द्र नभ राजे, दूजो चन्द्र मुख चन्द्र,
तीजो चन्द्र माँगबेंदी माथ पे दिखानो है।
चौथो चन्द्र पतिदेव सामने जो दीख गए,
करवा में चार चन्द्र मन अनुमानो है।
साथ ही जिन क्षेत्रों में चन्द्रमा आज दिखाई नहीं पड़ रहा है, उस क्षेत्र की बहनों के लिए अतिरिक्त पंक्ति
रूप लखि चन्द्रमुखिन चन्द्रमा लजाइ के,
सामने न आवे मेघ मध्य जा लुकानो है।। 

मेरी दुनिया  विमल कुमार शुक्ल

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फ़ॉलोअर लघुकथा 

गली सुनसान थी और सड़क उदास.

मेरा ध्यान कैसे न जाता कि वह आदमी लगातार मेरा पीछा कर रहा था. इंटरनेट के प्रचलन के बाद जो भाषा प्रयोग की जाने लगी है उसमें कहूं तो वह मुझे ‘फॉलो’ कर रहा था. 

संजय ग्रोवर

saMVAdGhar संवादघर 

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एक ग़ज़ल : सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता 

सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता ,

ख़ुदा क़सम कि मैं खुद से जुदा नहीं होता । 

 

हमारे इश्क़ में शायद कमी रही होगी-

सितमशिआर सनम क्यों खफा नहीं होता । 

आपका ब्लॉग आनन्द पाठक 

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आर्यों के आक्रमण का सिद्धांत मनमाना प्रतीत होता है मंजीत ठाकुर

बीसवीं सदी की शुरुआत तक इतिहासकार मानते थे कि भारत में पहले असभ्य पाषाणयुगीन लोग रहते थे और करीब 1500 ईसापूर्व में जब आल्प्स की पहाडियों के पास से ‘आर्य’ घोड़ों पर चढ़कर और लोहे के हथियारों के साथ आए तब जाकर यहां पर एक नए युग की शुरुआत हुई. औपनिवेशिक इतिहासकार इस आक्रमण का ही परिणाम भारतीय सभ्यता का विकास मानते हैं. इन इतिहासकारों के मुताबिक, आर्य आक्रमण सिद्धांत ही एकमात्र सिद्धांत है.

लेकिन, इन इतिहासकारों का मुताबिक, 1500 ईसापूर्व में आर्य इधर आए थे (200 बरस के स्टैंडर्ड डेविएशन के साथ भी) तो भी यह तारीख तय करना एकदम से मनमाना था. असल में, इस तारीख के पीछे ‘उनके पास’ कोई पुरातात्विक या लिखित साक्ष्य नहीं था. 

गुस्ताख़ 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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8 टिप्‍पणियां:

  1. सदा की तरह सुन्दर संकलन ! मुझे सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार

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  2. अच्छी प्रस्तुति, सादर नमन💐

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  3. बहुत शानदार प्रस्तुति!
    विविधता से सजाया सुंदर अंक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका।
    सादर सस्नेह।

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  4. मैंने दो बार टिप्पणी की पर नहीं दिख रही शायद स्पैम में गई हो देखें कृपया।

    जवाब देंहटाएं

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