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संस्मरण "मालिक के वफादार और सच्चे चौकीदार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मैंने अपने ओवरकोट की जेब में इस प्यारी सी पिलिया को रखा और अपने घर आ गया। छोटी नस्ल की यह पिलिया सबको बहुत पसन्द आई और इसका नाम जूली रखा गया।--
मगरमच्छ, वह भी शाकाहारी ! सहसा विश्वास ही नहीं होता ! यह ठीक वैसा ही लगता है जैसे कोई कहे कि शेर घास खा कर जिंदा है ! ज्यादातर पानी में रहने वाले, इस डरावने उभयचर का नाम सुनते ही डर से रोंगटे खड़े हो जाते हैं ! जिस प्राणी से पानी में शेर और हाथी जैसे ताकतवर जानवर भी सामना करने से कतराएं ! जिसके खूंखार दांत एक झटके में किसी के भी टुकड़े-टुकड़े कर सकने में सक्षम हों ! जो पानी में रहने वाले जीवों का काल हो ! वह शाकाहारी .....! पर हमारा संसार भरा पड़ा है, विस्मित करने वाले आश्चर्यजनक, अविश्वसनीय, हैरतंगेज कारनामों से ! इस जगत में क्या कुछ नहीं हो सकता !
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डिनर अब संध्या रोज शाम को कभी चार बजे, कभी पांच बजे या कभी छे बजे अपने घर से निकल पड़ती है. पास के मॉल में चली जाती है, बाज़ार में घूम लेती है या फिर मंदिर चली जाती है. कभी कभी सोसाइटी के छोटे से पार्क में हमारे पास बैठ जाती है. पर सबसे पहले बिटिया को मेसेज कर देती है की नीचे बैठी हूँ. बंगला-हिंदी की खिचड़ी भाषा में अक्सर हमसे बतिया भी लेती है. यूँ कहती हैं, वहां तो हम डिनर के टाइम जाएगा पोहले नहीं जाएगा!
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इक पैर का जलवा तुझको दिखाना होगा
घुप अंधेरा है कोई दीपक जलाना होगा ।
इन अंधेरों से अब आंख मिलाना होगा।।
मेरे वज़ूद की वज़ह मैं ही हूं तू नहीं -
तेरा ऐलान हर दीवार से मिटाना होगा ।।
The Partnership : for the protection of human rights in Balochistan and Sindhudesh
गिरीश बिलौरे मुकुल
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राजकमल प्रकाशन के साथ मनाइए 'किताब तेरस'
देश के अग्रणी प्रकाशन संस्थानों में से एक राजकमल प्रकाशन 14 अक्टूबर से 18 अक्टूबर 2022 के बीच
'किताब तेरस' का आयोजन कर रहा है।
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किया गया यह कार्यक्रम पाठकों को काफी पसंद आएगा। इस दौरान राजकमल प्रकाशन की वेबसाईट पर मौजूद पुस्तकों पर पाठकों को निम्न छूट उपलब्ध होंगी:
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टाबर टोळी (बच्चों के लिए देश का पहला अखबार)
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छंदा सागर (छंद के घटक "गुच्छक") गुच्छक गणों के आधार पर तीन से छह लघु दीर्घ वर्णों का विशिष्ट समूह है। 8 गणों में वर्ण जुड़ कर गणक बनाते हैं। ये गण और गणक सम्मिलित रूप से गुच्छक कहलाते हैं। गुच्छक कहने से उसमें गण भी आ जातें हैं और गणक भी आ जाते हैं। इस प्रकार गुच्छक तीन से छह लघु दीर्घ वर्णों का विशिष्ट क्रम है जिसका संरचना के आधार पर एक नाम है तथा वर्ण संकेतक (ल, गा आदि) की तरह ही एक संकेतक है। छंदाओं के नामकरण में इसी संकेतक का प्रयोग है। इस पाठ में गणकों के नाम के रूप में कई नयी संज्ञायें एकाएक पाठकों के समक्ष आयेंगी। यदि किसी पाठक को वे कुछ उबाऊ लगें तो उनमें अधिक उलझने की आवश्यकता नहीं है। गणक की संरचना के आधार पर प्रत्येक गणक विशेष को एक संज्ञा दे दी गयी है जिनका आगे के पाठों में नगण्य सा प्रयोग है। पाठकों को केवल हर गुच्छक के संकेतक को समझना है। ये संकेतक ही समक्ष छंदाओं के नामकरण के आधार हैं।
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मेरी दुनिया विमल कुमार शुक्ल
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गली सुनसान थी और सड़क उदास.
मेरा ध्यान कैसे न जाता कि वह आदमी लगातार मेरा पीछा कर रहा था. इंटरनेट के प्रचलन के बाद जो भाषा प्रयोग की जाने लगी है उसमें कहूं तो वह मुझे ‘फॉलो’ कर रहा था.
संजय ग्रोवर
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एक ग़ज़ल : सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता
सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता ,
ख़ुदा क़सम कि मैं खुद से जुदा नहीं होता ।
हमारे इश्क़ में शायद कमी रही होगी-
सितमशिआर सनम क्यों खफा नहीं होता ।
आपका ब्लॉग आनन्द पाठक
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आर्यों के आक्रमण का सिद्धांत मनमाना प्रतीत होता है मंजीत ठाकुर
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आज के लिए बस इतना ही...!
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बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसदा की तरह सुन्दर संकलन ! मुझे सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति, सादर नमन💐
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंविविधता से सजाया सुंदर अंक।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका।
सादर सस्नेह।
मैंने दो बार टिप्पणी की पर नहीं दिख रही शायद स्पैम में गई हो देखें कृपया।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा संकलन
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