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मंगलवार, अक्तूबर 11, 2022

"डाकिया डाक लाया"(चर्चा अंक-4578)

सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

(शीर्षक और भुमिका आदरणीया रंजू भाटिया जी की रचना से)

रंजू जी की रचना से एक पुराने गीत का बोल याद आ गया 

डाकिया डाक लाया

खुशी का पयाम कहीं

कहीं दर्दनाक लाया 

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सही कहा है रंजू जी ने 

डाकिया ,बना एक कहानी

रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी


रिश्ते अब अजनबी से हो गए हैं।

बड़ी शिद्दत से याद आती है डाकिया और खत की खैर, चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...

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ग़ज़ल "मँहगाई को दुनिया में बढ़ाया है"

 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



जलाया खून है अपनापसीना भी बहाया है
कृषक ने अन्न खेतों मेंपरिश्रम से कमाया है

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सुलगते हैं घरों में, जिसके दम पर शान से चूल्हे,

उसी पालक कोसाहूकार ने भिक्षुक बनाया है

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डाकिया डाक लाया



पढ़ कर खतों की इबारतें

कई सपनों को सजाया जाता जाता था

सुख हो या दुख के पल

सब को सांझा अपनाया जाता था

कभी छिपा कर उसको किताबों में

कभी कोने में लटकती तार की कुण्डी से

अटकाया जाता था

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अक्टूबर के अनाहूत अभ्र


हे अक्टूबर के अनाहूत अभ्र !

 ये अल्हड़ आवारगी क्यों ?

प्रौढ़ पावस की छोड़ वयस्कता 

चिंघाड़ों सी गरजन क्यों ?

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मैं जब तुम बनकर जीती हूँ

मैं जब, तुम बनकर जीती हूँ

तब मैं जी रही होती हूँ आकाश

हृदय पर उगते उन्मुक्त भाव

धूप के टुकड़े से सींच रही होती हूँ 

भोर के क़दमों की आहट पर 

क्षितिज-सा समर्पण जी रही होती हूँ 

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अभी शेष है जीना


जीने की तैयारी में ही 

लग जाती है सारी ऊर्जा 

घर को सजाते-सँवारते 

थक जाते हैं प्राण 

 मन को सहेजते-सहेजते  

चुक जाती है शक्ति 

फिर कब जियेगा कोई 


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चाँद.. वर्ण पिरामिड


हाँ 
नीला
अंबर
तारा गृह
शोभायमान
सजा चंद्रयान

ज्योति प्रदीप्यमान ।।

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आज भी हैं...



मांडवी, उर्मिला,यशोधरा,सीता

हर घर में आज भी है!

परिणीता होकर परित्यकता सा

जीवन जीती आज भी हैं!

सप्तपदी के वचनों में बंधी

चलती पीछे-पीछे आज भी हैं!

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वैतरणी

टाँक दिया रूह को उस पीपल की शाखों पर l

दर्द कभी रिस्ता था जिसकी कोमल डालों से ll


सावन में भी पतझड़ बातों से मुरझा गया पीपल l 

सूना हो गया चौराहा उजड़ गया पीपल राहों से ll

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मेहंदी डिज़ाइन- भाग 10

कहा जाता हैं कि मेहंदी की महक रिश्तों को भी महकाती हैं। इस साल 17 अक्टूबर 2018 को करवा चौथ का व्रत हैं। आइए, इस करवा चौथ पर हाथों पर सुंदर-सुंदर मेहंदी डिजाइन सजाकर अपने रिश्तों को महकाइएं...
----------------------------------चलते चलते हाजिर है मेरी एक रचना"एक रिश्ता ऐसा भी"
आज सुबह से ही वसुधा का  दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। ऐसा अक्सर होता था और मन  को शांत करने के लिए वसुधा खुद को घरलू कामों में व्यस्त कर लेती थी, आज भी वो यही कर रही थी। लेकिन आज धड़कने बेकाबू हुई जा रही थी ऐसी अनुभूति उसे 30 सालों बाद हो रही थी। कामों में व्यस्त होने के वावजूद आज घबड़ाहट बढ़ती ही जा रही थी। वो मन बहलाने के लिए मोबाईल पर कुछ गाने बजाने के लिए फोन उठाई ही थी कि फोन की घंटी बज उठी





--------आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे आपका दिन मंगलमय हो कामिनी सिन्हा 


9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात! विविधरंगी रचनाओं का सुंदर गुलदस्ता! आभार मुझे भी आज के मंच पर स्थान देने के लिए कामिनी जी!

    जवाब देंहटाएं
  4. विविध रचनाओं से सज्जित सुंदर सराहनीय अंक।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन।

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति
    मेरी रचना को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु दिल से धन्यवाद कामिनी जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर संकलन।
    स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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