सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व पद्यांश आदरणीया अमृता तन्मय जी की कविता 'मुझमें लीन हो तुम.'से -
मैं तुझमें तन्मय
और मुझमें लीन हो तुम
तब तो महक रही हूँ मैं
जैसे अगरू, धूमी, कुंकुम
जैसे बौर, कोंपल, कुसुम
तब तो चहक रही हूँ मैं
वह सब कह कर
कहने की जो बात नहीं
इन टूटे-फूटे वर्णों से छू कर
क्या तुम्हें ही कहती हूँ
ये तो मुझको ज्ञात नहीं
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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उच्चारण: गीत "महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री को नमन"
उन बड़े-बड़े बर्तनों को माँ के द्वारा नीबू की दम पर चमका देना, चमकते बर्तनों की अंदरूनी ख़ुशी देख-देख बच्चों के मुँह में लड्डू फूटना, पेड़े, बेसन की बर्फी और जलेबी का स्वाद आ जाना कितना अबोध और ऊर्जावान एहसास होता था।सत्तर-अस्सी सन वाले बचपन में ये दिन शॉपिंग के नहीं, बसावट के होते थे, मनमुटाव खत्म कर अपने व्यवहार को लचीला और सुहृदय बनाने के होते थे। तब के बच्चों को चूना की झक्क-मक्क दीवारों वाला अपना घर स्वर्ग से भी सुंदर लगता था। एक कोने में दही मथती माँ यशोदा से कम कभी नहीं लगी। माँ के तन की खुशबू आहा! दुनिया की सबसे मँहगी सुगंध से भी बढ़कर लगती थी। आदिम गंध का दीवाना बचपन निर्लिप्त और अनोखा होता था। जिसे सिर्फ स्नेह और दुलार की आकांक्षा के अलावा कुछ चाहिए, का होश ही नहीं होता था।
बहुत सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद । पंछी सा मन चहक उठा ।
हटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचुनिंदा ब्लॉग की सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
धन्यवाद । शुभकामनाएं ।
हटाएंविविधरंगी प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ एवं आभार। आप सबों को नवरात्रि की भी हार्दिक शुभकामनाएँ। माँ सब पर दया दृष्टि करे। सबों के अधरों पर हँसी खिलाये। आभार।
जवाब देंहटाएंशुभ बिजोया
हटाएंआज की चर्चा विशेष रही । इसका हिस्सा बनाने के लिए आपका हार्दिक आभार, अनीता जी । दीवार पर लगे हाथ के थापों की तरह ,अमिट छाप छोड़ गई कुछ रचनाएँ । सादर अभिनन्दन आप सबका । माँ दुर्गा सारे क्लेश हरें । नमस्ते ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर उमदा चर्चा!!❤️
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक समूह
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