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गुरुवार, नवंबर 10, 2022

'फटते जब ज्वालामुखी, आते तब भूचाल' (चर्चा अंक 4608)

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।  

आइए पढ़ते हैं आज की चंद चुनिंदा रचनाएँ-

दोहे "आया फिर भूचाल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

फटते जब ज्वालामुखीआते तब भूचाल।

जीव-जन्तुओं पर तभीमँडराता है काल।।

--

जीवन के इस सफर मेंकहीं चढ़ाई-ढाल।

करते बहुत विनाश कोक्षणभंगुर भूचाल।।

*****

संजीवनी

"तब जा सकता था..। अब यहाँ मेरे रहने से ज्यादा उजास फैलेगा। मेरे वृद्ध माता-पिता को सहारा मिलेगा। और विदेशी मृगतृष्णा का क्या है...!"

"सुबह का भूला...!"

 *****

स्त्री की भाषा

उसके हिस्से की ज़मीन के साथ

छीन ली जाती है भाषा भी 

चुप्पी में भर दिए जाते हैं

मन-मुताबिक़ शब्द 

सुख-दुख की परिभाषा परिवर्तित कर  

जीभ काटकर

 रख दी जाती है उसकी हथेली पर 

चीख़ने-चिल्लाने के स्वर में उपजे

शब्दों के अर्थ बदल दिए जाते हैं

ता-उम्र  ढोई जाती है उनकी भाषा

एक-तरफ़ा प्रेम की तरह।

*****

अधिक प्यारा कौन?

"सही जानना चाहते हो तो सुनो! हम अपनी बिटिया को बेटे से अधिक प्यार करते हैं और..." -एक क्षण के लिए रुका मैं।

"और...और क्या?" -मित्र के चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी। उन्हें शायद अपना प्रश्न पूछना सार्थक लगा था।

*****

भारत

जहां अनुशासन और संयम

केवल शब्द नहीं हैं शब्दकोश के

यहां समर्पण और भक्ति

कोरी धारणाएं नहीं हैं !

यहां परमात्मा को सिद्ध नहीं करना पड़ता

वह विराजमान है घर-घर में

कुलदेवीग्राम देवी और भारत माता के रूप में

वह देश अब आगे बढ़  रहा है!

*****

ख़ामोश आंखें - -

*****

पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान के रहस्य क्या कभी खुलेंगे?

पाकिस्तानी सेना, समाज और राजनीति के तमाम जटिल प्रश्नों के जवाब क्या कभी मिलेंगे? इमरान खान के पीछे कौन सी ताकत? जनता या सेना का ही एक तबका? सेना ने ही इमरान को खड़ा किया, तो फिर वह उनके खिलाफ क्यों हो गई? व्यवस्था की पर्याय बन चुकी सेना अब राजनीति से खुद को अलग क्यों करना चाहती है?*****

बेबस-सा सब देख रहा

घृणा जमाती अपना डेरा

ईर्ष्या खेले घर-घर में

निंदा बैठ करे पंचायत

अब पीर पैठती दर-दर में

आस लाज का छिना ठिकाना

जग बैर -क्रोध फल- फूल रहा।

*****

सूरज (बाल गीत)

कलियों को खिलाया सूरज।
भटकों को राह दिखाया सूरज।।

हर प्राणी को भाया सूरज।

 दिन भर जगमगाया सूरज।।
*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


9 टिप्‍पणियां:

  1. अद्यतन लिंकों के साथ बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीय चर्चाकारः रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी लघु रचना को चर्चा मंच के पटल का हिस्सा बनाने के लिए आदरणीय भाई रवीन्द्र जी का ह्रदय-तल से आभार! सभी साथी रचनाकारों को भी आत्मीय बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात! पठनीय रचनाओं के लिंक्स से सजी सुंदर चर्चा! आभार!

    जवाब देंहटाएं

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