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मंगलवार, जुलाई 05, 2011

समय के देवता -- ऐसे भी दिन आयेंगे , हाय ....साप्ताहिक काव्य मंच –53… चर्चा मंच …566

नमस्कार , हाज़िर हूँ एक बार फिर मंगलवार को साप्ताहिक काव्य मंच ले कर ..अक्सर सोचती हूँ कि यह तो आपको पता ही है कि मंगलवार है  और मुझे आना ही है इस मंच को ले कर फिर क्यों लिख देती हूँ कि फिर से हाज़िर हूँ …शायद इस लिए कि मन में कहीं यह तो नहीं खटकता कि आ गयी हूँ तो झेलिये … या फिर कहीं मन में यह भावना तो नहीं कि शायद आप मेरा इंतज़ार कर रहे हों …खैर  अब आप इंतज़ार खत्म कीजिये या झेलिये ..बस मन में भावना कोमल रखियेगा … और भावना का सीधा रिश्ता मन से है तो आज की चर्चा भी प्रारम्भ करते हैं कोमल मन से …
मेरा परिचय डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी ले कर आए हैं --कोमल  मन
सुख में मुस्काता-दुख में आहत होकर रोता है
पत्थर के तन में भी कोमल-कोमल मन होता है

मन के उपवन में सजती है अरमानों की डोली
केशर की क्यारी में फिर क्यों काँटों को बोता है
 मेरा फोटो रश्मि प्रभा जी  पैसे की तुलना भावनाओं से करती हुई कह रही हैं ---ऐसे भी दिन आयेंगे , हाय
ओह !
पैसे में बड़ा वजन होता है
रिश्ता कोई भी हो
पर इसके विपरीत -
प्यार में होता है सुकून
घर नहीं फाइव स्टार होटल का एहसास
लम्बी सी कार
एक नहीं दो चार ...
  मनोज ब्लॉग पर पढ़िए  एक नवगीत ---समय के देवता
समय के देवता!
थोड़ा रुको,
मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।
तुम्हारे पुण्य-चरणों की
महकती धूल में
आस्था के बीज बोना चाहता हूं।
मेरा फोटो मुदिता गर्ग  कहने को तो कहती हैं कि न शायर हूँ और न ही लेखिका …पर  इतनी खूबसूरत गज़ल लायीं हैं कि कहना पड़ता है कि गज़ब लिखा है --
रूह को जानना  नहीं आसाँ

तू मुझे आज़मायेगा कब तक !
रस्म-ए-दुनिया ,निभाएगा कब तक !
छीन कर ख़्वाब, मेरी पलकों से
अपनी नींदें , सजाएगा कब तक !
मेरा फोटो प्रतिभा सक्सेना जी शिप्रा की लहरें पर गहन चिंतन कर लायी हैं --जोड़ घटा 
जीवन में कितने दुख हैं ,
जीवन में कितने सुख हैं,
जोड़ घटा कर देख ज़रा ,थोड़ा सा अंतर होगा .
My Photo मृदुला प्रधान जी का मन उड़ान भर रहा है  लंबी और ऊँची --
मन पंख बिना
जब रातों की परछाईं पर,
पूनम का चाँद
चमकता है,
उजली किरणों के साये में,
तारों का रूप
दमकता है,
My Photo  योगेन्द्र मौदगिल जी की एक बहुत प्यारी रचनाप्यार के प्रतीक ढूँढना ..
जब भी कोई लीक ढूंढना.
प्यार के प्रतीक ढूंढना.
जि़न्दगी है लंबा सफ़र,
साथ ठीक-ठीक ढूंढना.
मेरा फोटो विजय रंजन जी की पढ़िए क्षणिकाएँ ..एक से बढ़ कर एक क्षणिकाएँ
मेरे पाँव खुद ब खुद-
तेरे दरवाजे तक मुझे ले आते,
आज कल मुझे मंदिर जाने की –
आदत सी हो चली है।
My Photo  गीता पंडित जी अपना काव्यात्मक परिचय दे रही हैं --मंजीरे मन के बजते जब जब राग सुनाती मन की कोयल, और अलगनी पर अंतर की भाव - भाव टंग जाता कोमल, नर्तन करती मन की सरगम शब्द स्वयं आकर कुछ कहते, छंद - छंद में अंतर्मन के मुसका जाती कविता उस पल|.. नए बिम्बों से सजी उनकी रचना पढ़िए --जाने क्यों
तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,
जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
मेरा फोटो इस्मत ज़ैदी जी की एक खूबसूरत गज़ल पेश हैहम भी , तुम भी ...
ऐसी गुज़री है कि हैरान हैं हम भी ,तुम भी
आज फिर बे सर ओ सामान हैं हम भी ,तुम भी
क्यों है इक जंग ज़माने में अना की ख़ातिर
जबकि दो दिन के ही मेहमान हैं हम भी , तुम भी
My Photo डा० सविता जी अपने ब्लॉग पर एक खूबसूरत रचना लायी हैं --तुम
पल-छिन जिनको 
देखा करती 
भांप लिया 
मन के तारों ने 
आँखों से मैंने 
देख लिया है 
तुम हो वही.
My Photo आनंद विश्वास जी की खूबसूरत रचना -
मैंने  जाने  गीत  विरह   के,  मधुमासों  की   आस  नहीं  है.
कदम कदम पर मिली विवशता , सांसो में विश्वास  नहीं है.
छल से छला गया है जीवन,
आजीवन  का था समझोता.
लहरों  ने  पतवार  छीन ली,
नैय्या  जाती   खाती  ग़ोता.
My Photo एस० एम० हबीब कहानी बता रहे हैं --कैदी की ज़ुबानी --
मैं क़ैद हूँ.... !!
ज़मीन के नीचे
तहखाने में....
जिसकी नींव लेकर
ऊपर,एक उन्नत भवन
बना दिया गया है,
My Photoयशवंत माथुर  बता रहे हैं आज कल के मौसम के बारे में … एक गहन अभिव्यक्ति के साथ --बरसात का मौसम
कभी जो सरपट दौड़ा करते थे
नज़रें झुकाए जा रहे हैं
दिखा रहे हैं करतब
तरह तरह के
  Chandra Bhushan Mishra Ghafil चन्द्र भूषण गाफिल जी खूबसूरत नज़्म ले कर आए हैं इस बारचांदनी भी जलाया करती है ...
यूँ शबो-रोज़ आया करती है,
याद उसकी रुलाया करती है।
वो मुसाफ़िर हूँ मैं जिसे अक्सर;
चाँदनी भी जलाया करती है।।
Anupamaअनुपमा पाठक  बहुत दिनों बाद लौटी हैं … और लिख रही हैं अपने मन के भाव कुछ इस प्रकार ---
दीया जलाना हम भूल गए ..
व्यस्तताओं के बीच
अपनों से मिलना भूल गए!
जीवन चलता ही रहा
बस जीना हम भूल गए!
मेरा फोटो रेखा श्रीवास्तव जी मना रही हैं --जीत का जश्न--  एक गरीब और विकलांग बच्चे की जीत का जश्न कुछ इस तरह मनाया हमने की आँखें तो भरी ही कुछ कलम भी कह उठी।
राहों में बिछे
काँटों की चुभन
औ'
पैरों से रिसते लहू
से निकली
घावों की पीड़ा,
हौसलों की राह में
रोड़े बन जाती है?
My Photo  श्याम कोरी “ उदय “ जी की गज़ल ---कफ़न का टुकड़ा
गर नहीं लड़ा मैं आज भयंकर तूफानों से
कल छोटी फूंको से भी मैं गिर सकता हूँ !
है कद-काठी मेरी, आज भले छोटी ही सही
पर जज्बातों के तपते तूफां लेकर चलता हूँ !
My Photo  डा० कविता किरण की खूबसूरत नज़्म पेश है --वही रात रात का जागना
वही रोना इक-इक बात पर
तकिये से मुंह को ढांपकर
सर रख के अपने हाथ पर
खाली हवाओं को ताकना !
मेरा फोटो और चर्चा के अंत में …परेशान हैं वंदना जी कि आखिर चवन्नी पीड़ा है क्या ? --पढ़िए उनकी हास्य रचना –=
क्यों इतना शोर मचाया है
हमको ना इतना समझ ये आया है
चवन्नी की विदाई का क्यूँ
इतना शोर मचाया है
ये तो दुनिया की रीत है
आने वाला कभी तो जायेगा
फिर ऐसा क्या माजरा हुआ
जैसे किसी आशिक का जनाजा हुआ
आशा है आपकी पसंद के कुछ परिचित और कुछ अपरिचित चेहरे प्रस्तुत कर पायी होऊँगी .आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा उर्जा प्रदान करती हैं … जाते जाते एक नज़र राजभाषा हिंदी  ब्लॉग पर चंद अशआर   पर भी डालना न भूलें …. संगीता स्वरुप

33 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन लिंक लिए काव्य चर्चा ..... बहुत बढ़िया संकलन संगीताजी , आभार

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  2. जिस प्रकार अग्नि में तपा हुआ सोना ही,
    कुंदन कहलाता है, उसी प्रकार आलोचना की
    दावानल से निकलने बाद ही कविता, कविता
    कहलाती है.एक अच्छा मंच. सुन्दर प्रयास . साधुवाद.
    आनन्द विश्वास.
    अहमदाबाद.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर चर्चा!
    आज पढ़ने के लिए लिंक मिल गये!

    जवाब देंहटाएं
  4. जिस प्रकार अग्नि में तपा हुआ सोना ही, कुंदन कहलाता है,उसी प्रकार आलोचना की दावानल से निकलने बाद ही कविता, कविता
    कहलाती है.एक अच्छा मंच. सुन्दर प्रयास . साधुवाद.
    आनन्द विश्वास.
    अहमदाबाद.

    जवाब देंहटाएं
  5. सुँदर कविता पुष्पों से गुंथी काव्य चर्चा .कई नए और प्रभावशाली लिंक्स मिले .

    जवाब देंहटाएं
  6. सुँदर कविता पुष्पों से गुंथी काव्य चर्चा .कई नए और प्रभावशाली लिंक्स मिले .

    जवाब देंहटाएं
  7. हमेशा की तरह चुनिन्दा फूलों का गुलदस्ता -
    संगीता जी आभार !

    जवाब देंहटाएं
  8. सभी लिंक्स पर पहुँचने की कोशिश है.
    मेरे ब्लॉग को यहाँ स्थान देने के लिये तहे दिल से शुक्रिया.

    सादर

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  9. दीदी ,
    सुन्दर रचनाओं से साक्षात्कार करने के लिए आभार ..मेरी रचना को स्थान दिया मैं कृतज्ञ हूँ ...

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  10. बहुत सुन्दर और शानदार लिंक्स से सजी चर्चा।

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  11. तमाम अनमोल मोतियों के बीच मेरी भी अमानत का एक मोती! संगीता जी आपका बहुत-बहुत आभार

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  12. manmohak rachnaon ka ye silsila bas yun hi chalta rahe....dhanywad.

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  13. @…शायद इस लिए कि मन में कहीं यह तो नहीं खटकता कि आ गयी हूँ तो झेलिये
    आपकी चर्चा झेलनी नहीं पढ़ती बल्कि सार्थक लगती है.आज भी बहुत से अच्छे और अलग से लिंक्स मिले.आभार है आपका.

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  14. उम्दा कविताओं के लिंक्स दिए हैं।
    पढ़ता हूं।

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  15. आपका आभार संगीता स्वरूप जी,
    इस मंच पर मेरा भी "भाव कलश' संजोने के लियें...

    एक से एक सुंदर भाव से भरा आपका चर्चा मंच बहुत भाया... कई नये और ख़ूबसूरत लिंक्स मिले...धीरे धीरे सभी पर जाने की कोशिश...

    आभार और बधाई...


    शुभ कामनाएँ..
    गीता पंडित.

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  16. आद. संगीता दी,
    इस काव्य यात्रा का हर पडाव अपने में अनुपम है.....
    आनंद आ गया...
    सादर...

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  17. इन उम्दा लिंक्स के लिए आभार...सभी पर टहल आये.

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  18. सबसे पहले आपका यह भ्रम दूर कर दिया जाय. आपकी प्रतीक्षा रहती है, मंगलवार के सुप्रभात में क्योकि आप लातिन हैं पूरे सप्ताह भर कि मर्मस्पर्शी कविताएं. और कविता कोई सब्द नहीं होते, सब्द संगः या शब्दजाल नहीं होते. यह तो संपर्शी मन के उदगार और संवेदी वाणी का प्रवाह होती है जो प्रवाहमयी होकर कभी किनारों को तोडती है, कभी जोडती है और कभी कल-कल निनाद करते हुए जीवन स्रोत में बहते हुए कितनी को उनकी समस्याओं का समाधान दिला जाती है है. यह अलग बात है कि उप्चार्कर्ता को इसका आभास हो, न हो?

    सुन्दर संचयन और मर्मस्पर्शी संग्रह के लिए बधाई और आभार.

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  19. संगीता बहुत बहुत धन्यवाद . अभी कुछ वजह से ब्लॉग पर अनियमित हूँ. इसलिए क्षमा चाहती हूँ कहीं भी नहीं पहुँच पा रही हूँ.

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  20. charcha manch me sammilit krne evam umda rachnao se parichit karane ke liye hirday se aabhari hun Sangeeta di..:)

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  21. बहुत सार्थक व् सुन्दर लिंक्स से सजी चर्चा आभार .

    जवाब देंहटाएं
  22. हांफ रही हूँ लेकिन सभी ब्लॉगस् की यात्रा आनंद दे गयी...

    आभार संगीता जी..

    जवाब देंहटाएं

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