झगड़ा-झंझट को झटक, झूलन-झगरू चूम |
मध्यस्थी के मर्म में, घोंपे चाक़ू झूम |
घोंपे चाक़ू झूम, रीति है झारखण्ड में -
झगड़े में मत घूम, कटेगा फिरी-फण्ड में |
नक्सल छ: इंच छोटा करेगा
या
पुलिस एंकाउन्टर कर देगी
जीत उसी की होय, बन्धु दम जिसका तगड़ा |
जरा दूर से देख, बड़े मल्लों का झगड़ा ||
निवेदन:- देवनागरी लिपि में अपने ब्लॉग-मित्रों का जीवन-परिचय प्रेषित करने का कष्ट करें |
अपना प्रोफाइल भी, देवनागरी लिपि में अद्यतन करने की कृपा करें |
एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)।
सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक।
सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन।
जनवरी, 2011 में "सुख का सूरज"
और "नन्हें सुमन"
दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
हँसता गाता बचपन (बाल कविता संग्रह) और धरा के रंग (कविता संग्रह) प्रेस में हैं
"सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला, क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ।
सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में
हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है-
Posted by ताऊ रामपुरिया
प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है।
मैं एक गृहिणी हूँ। मुझे पढ़ने-लिखने का शौक है । मैं जो भी महसूस करती हूँ, निर्भयता से उसे लिखती हूँ। अपनी प्रशंसा करना मुझे आता नही इसलिए मुझे अपने बारे में सभी मित्रों की टिप्पणियों पर कोई एतराज भी नही होता है। मेरा ब्लॉग पढ़कर आप नि:संकोच मेरी त्रुटियों को अवश्य बताएँ। मैं विश्वास दिलाती हूँ कि हरेक ब्लॉगर मित्र के अच्छे सृजन की अवश्य सराहना करूँगी। ज़ाल-जगतरूपी महासागर की मैं तो मात्र एक अकिंचन बून्द हूँ। आपके आशीर्वाद की आकांक्षिणी हूँ।
दर्द को आवाज़ देती हूँ तब ज़िन्दगी से मिलती हूँ यूँ ज़िन्दगी के खामोश सफ़र को सुलगती चिता पर रख देती हूँ कुछ ऐसे ज़िन्दगी से मिल लेती हूँ
एक बहता हुआ दरिया हूँ एक उडता हुआ ख्वाब हू एक दर्द भरी आवाज़ हूँ एक दर्द भरा साज़ हूँ एक गिरती हुई दीवार हूँ एक बिना सुर का साज़ हूँ एक खामोशी का पैगाम हूँ जो कभी किसी दिल तक किसी धडकन तक पहुँचा ही नही मै वो अनदेखा ख्वाब हूँ
किसी की पसन्द नही……… तो क्या किसी की चाह नही………… तो क्या देखो ना फिर भी ………सांसें चल रही हैं
शब्दो मे भी हरारत उतर आती है जब रूह बीहडों मे कसमसाती है |
मेरा जन्म २२ सितंबर १९७९ को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ। मेरी प्रारंभिक शिक्षा प्रतापगढ़ में ही हुई। तदोपरांत मैंने प्रौद्योगिकी संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय (अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) से प्रौद्योगिकी में स्नातक की परीक्षा २००२ में तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की से प्रौद्योगिकी में परास्नातक की परीक्षा २००४ में उत्तीर्ण की। तत्पश्चात २००४ से अब तक मैं एनटीपीसी लिमिटेड में कार्यरत हूँ। वर्तमान में मैं एनटीपीसी की कौलडैम परियोजना, जो बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश में हैं, में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत हूँ। काव्य पठन एवं लेखन में मेरी रुचि कविता कोश देखने के बाद २००९ में बढ़ी, इसके पहले मैंने केवल कुछ एक छुटपुट कविताएँ ही लिखी थीं। मुझे कविता का हर रूप पसंद है और मेरी कोशिश रहती है कि मैं काव्य के हर रूप का रसास्वादन करूँ। ऐ मेरे वतन, नहीं कर सके, कभी काल भी, ये जुदा हमें। मैं मरा तो क्या, मैं जला तो क्या, मेरे अणु रहेंगे यहीं कहीं॥ |
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एक सरल सीधा भावुक इन्सान -मुझे नफरत, भेद-भाव ,अन्याय, घृणा ,भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार और वे बहुत सी बातें जो जायज नहीं हैं बिलकुल ही नहीं सुहाती हैं | -बच्चों और फूलों से प्यार है |-जो दोस्ती के काबिल हैं उनसे दोस्ती रखना पसंद है | -माँ बाप को अंत तक चाहने वाले पसंद हैं | -नारियों को उनका यथोचित सम्मान देने वाले पसंद है | -नारियां व पुरुष जो अपने भारत की संस्कृति को आज भी अपने दिल से लगाये हैं और अंधी दौड़ में शामिल नहीं हैं बहुत पसंद हैं | -बच्चों को शिक्षित बनाने वाले और अनुशासन प्रिय लोग बहुत पसंद हैं | -और ढेर सारे प्यारे बेबाक ईमानदार लोग जो इस श्रेणी में आते हैं पूजनीय और वन्दनीय हैं | -जय हिंद जय भारत शुक्ल भ्रमर ५ भ्रमर का दर्द और दर्पण |
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जन्म 1962, ग्राम – रेवाड़ी, ज़िला – समस्तीपुर, बिहार शिक्षा – स्नातकोत्तर जन्तुविज्ञान (एमएससी जूऑलजी) पत्र पत्रिकाओं में लेखन, कादम्बिनी, मिलाप, राजस्थान पत्रिका, जनसत्ता, वागर्थ आदि में लेख, कहानी, आकाशवाणी हैदराबाद पर कविताएं प्रसारित। पेशे से भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय, में निदेशक पद पर कार्यरत। सचिव, कोलकाता नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति। बस मौला ज्यादा नहीं, कर इतनी औकात सिर ऊँचा कर कह सकूं, मैं मानुष की जात | मनोज जी की यह प्रस्तुति देखिये-- आदरणीय पाठक वृन्द को अनामिका का नमन ! आप सब नें पिछले लेखों में जीवन - विजयिनी महादेवी जी की पृष्ठभूमि को जाना और उनके बचपन के अतरंग प्रसंगों का रसास्वादन किया. अब उनके वयस्क जीवन काल की प्रतिभा निखर कर सामने आने लगी है...तो चलिए आगे की उनकी अनुभूतियों से अभिभूत होते हैं... |
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उत्तर प्रदेश में पैदा हुए और जो हाथ लगा पढ़ डाला। जो विषय सामने आया हमने उसे ही पढ़ लिया। सत्य की खोज की, धर्म की खोज की और बरसों की साधना के बाद पता यही चला कि हर जगह सत्य और न्याय का उपदेश दिया गया है जिसे पसंद तो हरेक करता है और चलता कोई इक्का दुक्का ही है। लोगों के सामने यह धर्मतत्व आ जाए, जिसका उपदेश हरेक देश और हरेक काल में दिया गया है, हमारा प्रयास यही है। मानवीय मूल्यों की रक्षा ऐसे ही होगी और विश्व शांति भी ऐसे ही आएगी। जब तक इन बुनियादी मूल्यों का चलन समाज में आम नहीं होगा तब तक मानव जाति का कल्याण हो नहीं सकता। हम इस मिशन को समर्पित हैं, यही हमारा परिचय है। दुनिया बहुत से दार्शनिकों के दर्शन, कवियों की रचनाओं और लोक परंपराओं के समूह को हिन्दू धर्म के नाम से जानती है। मनुष्य की बातें ग़लत हो सकती हैं बल्कि होती हैं। इसलिए उन्हें मेरे कथन पर ऐतराज़ हुआ लेकिन मैं ईश्वर के उन नियमों को धर्म मानता हूं जो ईश्वर की ओर से मनु आदि सच्चे ऋषियों के अन्तःकरण पर अवतरित हुए। ईश्वर के ज्ञान में कभी ग़लती नहीं होती इसलिए धर्म में भी ग़लत बात नहीं हो सकती। ऋषियों का ताल्लुक़ हिन्दुस्तान से होने के कारण मैं उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहता हूं। मैं धर्म के उसी सनातन स्वरूप को मानता हूं जो ईश्वरीय है और एक ही मालिक की ओर से हर देश-क़ौम में अलग-अलग काल में प्रकट हुआ। उसमें न कोई कमी कल थी जब उसे सनातन और वैदिक धर्म के नाम से जाना जाता था और न ही कोई कमी आज है जबकि उसे ‘इस्लाम‘ के नाम से जाना जाता है। |
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कभी-कभी मुझे लगता है कि ऊपर ने वाले मुझे क्या सोचकर इस पृथ्वी पर भेजा है और जब भेजा ही है तो चलो ऊपर वाले की बनायी, इस दुनिया को तसल्ली से देख ही लिया जाये ताकि ऊपर वाला भी कहे कि क्या-क्या देखा, जब बताने बैठूँगा तो ऊपर वाला भी सुन कर आश्चर्य में पढ जायेगा कि मैंने तुझे वहाँ भेजा था, सजा देने को (मृत्यु लोक में सब सजा पाने के लिये ही तो आते है) और तूने वहाँ पर की मौज। ऊपरवाला करेगा, अचरज बारम्बार | मृत्य-लोक में मौज की, बदल सजा को यार | बदल सजा को यार, पैर में चक्कर तेरे | बस प्रकृत से प्यार, घूमता शाम सवेरे |
कह रविकर कविराय, हृदय में रहे शिवाला | करे विश्व कल्याण, कृपा कर ऊपरवाला ||
अब क्या करे ऊपर वाला भी।मैं ठहरा मनमौजी जाट, सिरफ़िरा जाट, सनकी जाट,
पागल जाट, दीवाना जाट, मतवाला जाट। मैं मेहनती, मनमौजी, कंजूस, पक्का-घुमक्कड हूँ। मैं घूमने के मामले में एकदम सिरफ़िरा हूँ। ना पीने को पानी चाहिए, ना खाने को खाना,
मुझे चाहिए बस घूमना ही घूमना,
जहाँ भी घूमने जाता हूँ, पूरी जायज कंजूसी दिखाता हूँ। मेरा साल में एक-दो बार तो घूमना होता नहीं है। कब कितने दिन बाद मेरी खोपडी कही बाहर घूमने के लिये तडफ़ उठे, मैं खुद नहीं जानता? मैं चाय, बीडी, सिगरेट, गुटका, पान, तम्बाकू, अंडा, मीट, मछली, शराब,आलसीपन और रिश्वत से सख्त नफ़रत करता हूँ।जाट रे जाट तेरे तो हो गये ठाट ही ठाट, हाय जाट!, सौलह दूनी आठ, नहीं यार"जहाँ जाट वही ठाट"। अरे! छोडो! जिस काम से आये हो वो तो बताओ। MOBILE-09716768680
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सच तो ये है कि लोगों के बारे में लिखते-लिखते खुद को भूल गया हूं। वैसे मैं पत्रकार हूं। करीब 15 साल तक हिंदी के तमाम राष्ट्रीय समाचार पत्रों में काम करने करने के बाद अब दिल्ली पहुंच चुका हूं। यहां मैं न्यूज चैनल से पिछले छह साल से जुड़ा हूं। मैं यूपी के मिर्जापुर का निवासी हूं, लिहाजा मेरी शुरुआती पढ़ाई यहीं हुई, बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री और कानून की पढाई पूरी की। इसके बाद पूर्वांचल विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री हासिल करने के बाद मीडिया से जुड़ गया। मीडिया से जुडे़ होने के कारण मुझे सत्ता के नुमाइंदों को काफी करीब से देखने का मौका मिलता है। यहां देखता हूं कि हमाम में सब......यानि एक से हैं। इसी पीड़ा को मैं शब्दों में ढालने की कोशिश करता हूं। |
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मोम हूं , यूं ही पिघलते एक दिन गल जाऊंगा फ़िर भी शायद मैं कहीं जलता हुआ रह जाऊंगा... मूलतः काव्य-सृजक हूं। काव्य की हर विधा में मां सरस्वती की कृपा से लेखनी निरंतर सक्रिय रहती है। अब तक 3000 से अधिक छंदबद्ध गीत ग़ज़ल कवित्त सवैये कुंडलियां दोहे सोरठे हिंदी राजस्थानी उर्दू ब्रज भोजपुरी भाषा में लिखे जा चुके हैं मेरी लेखनी द्वारा । 300 से भी ज़्यादा मेरी स्वनिर्मित मौलिक धुनें भी हैं । मंच के मीठे गीतकार-ग़ज़लकार के रूप में अनेक गांवों-शहरों में काव्यपाठ और मान-सम्मान । आकाशवाणी से भी रचनाओंका नियमित प्रसारण । 100 से ज़्यादा पत्र - पत्रिकाओं में 1000 से अधिक रचनाएं प्रकाशित हैं । अब तक दो पुस्तकें प्रकाशित हैं- राजस्थानी में एक ग़ज़ल संग्रह रूई मायीं सूई वर्ष 2002 में आया था , हिंदी में आईनों में देखिए वर्ष 2004 में । कोई 5-6 पुस्तकें अभी प्रकाशन-प्रक्रिया मे हैं! स्वयं की रचनाएं स्वयं की धुनों में स्वयं के स्वर में रिकॉर्डिंग का वृहद्-विशाल कार्य भी जारी है।चित्रकारी रंगकर्म संगीत गायन मीनाकारी के अलावा shortwave listening और DXing करते हुए अनेक देशों से निबंध लेखन सामान्यज्ञान संगीत और चित्र प्रतियोगिताओं में लगभग सौ बार पुरस्कृत हो चुका हूं । CRI द्वारा चीनी दूतावास में पुरस्कृत-सम्मानित … … और यह सिलसिला जारी है … !! मोबाइल : ०९३१४६८२६२६ आज की पेशकश ** * एक ग़ज़ल बिना भूमिका के हाज़िर-ए-ख़िदमत है* *बुलंदी की कई बातें ज़ुबां नीचीमें कहता हूं* *ग़ज़ल उर्दू में कहता हूं**, ग़ज़ल हिंदी में कहता हूं* *यहां तक…भोजपुरी में**, मादरी बोली में कहता हूं* *ग़ज़ल फ़न है**,... |
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कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ | जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं || |
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मेरी पैदाइश बस्ती ज़िले के एक मध्यवर्गीय जमींदार परिवार में हुई लेकिन मेरे पैदा होने तक जमींदारी की सारी ठीस मटियामेंट हो चुकी थी बस ऐठन ही बाकी थी। मेरे वालिद ने उच्चशिक्षा हेतु मेरा दाख़िला इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कराया पर मेरी पढ़ाई के दौरान ही उनका इन्तकाल हो गया जिस-किस तरह शिक्षा पूरी की इकलौती औलाद होने के नाते मुझे वापस आना पड़ा घर को सम्भालने। पढ़ाई-लिखाई में शौक़ था और ख़ुदानख़ास्ता गाँवं के ही क़रीब एक महाविद्यालय के पुस्तकालय में नौकरी मिल गयी सो यह शौक़ भी पूरा होता रहा। मीर तथा ग़ालिब की ग़ज़लें पढ़-पढ़कर हुई तुकबन्दी की शुरुआत ने ग़ाफ़िल बना दिया। अब बतौर ग़ाफ़िल आपके सामने हूँ। आप सुधीजन से मेरी यही इल्तिजा है कि- याँ पे तो बिन बुलाए चले आइए ज़नाब! ख़ुश होइए भी और ख़ुशी लुटाइए ज़नाब! अब आ ही गये मेरे अंजुमन में तो रुकिए, जाना है तो चुपके से चले जाइए ज़नाब! बन तो गया हूँ बुत मैं, भले संगेमरमरी, अब छोड़िए भी और ना बनाइए ज़नाब! 'ग़ाफ़िल' हूँ मेरी बात हँसी में उड़ाइए, ख़ुद पे यक़ीन हो तो मुस्कुराइए ज़नाब! -ग़ाफ़िल |
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया . सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे . एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए की अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ . आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.आंसू ही उमरे-रफ्ता के होते हैं मददगार, न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार.
मिलने पर मसर्रत भले दुःख याद न आये, आते हैं नयनों से निकल जरखेज़ मददगार. |
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मैं नारी हूं। नारी ह्रदय की वेदना और पीडा़ मुझ में भी है। लेकिन नारी होने पर मुझे गर्व है। मैं नारी मन की वेदना को अपने कलम में ढाल कर उस एहसास को एक नई सोच व नई दिशा देना चह्ती हूं । यही मेरा सपना है। शुरुवात नई है, शौक पुराना है मंजिल दूर है. रास्ता अंजाना है.” |
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साहित्य और संगीत मेरी ज्ञानेन्द्रियां हैं, इन्हीं के द्वारा मैं दुनिया को देखता और महसूस करता हूं। |
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यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! कविता मेरे लिये ईश्वर के निकट आने का प्रयास है. |
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कार्यकाल में देश के सुदूर जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण के दौरान असीम गरीबी,शोषण,भ्रष्टाचार और मानवीय संबंधों की विसंगतियों से निकट से सामना हुआ, जिसने मन को बहुत उद्वेलित किया. समाज में व्याप्त विसंगतियाँ जब मन को बहुत उद्वेलित कर देती हैं, तो अंतस के भाव कागज़ पर उतर आते हैं. |
शब्द साधना राह कठिन/ शब्द-शब्द से दीप बनेंगे/ तमस रात में लिख देंगे/ शब्दों में ना बेर भरेंगे। पूर्ण चन्द्र की रात, किसी ने ताजमहल के अनुपम सौंदर्य को निहारते बितायी होगी तो किसी ने जैसलमेर के रेतीले धोरों पर स्वर्ण रेत कणों को खिलखिलाते सुना होगा। लेकिन इन सबसे परे शारदीय पूर्णिमा पर मैंने जंगल का राग सुना। चारों ओर पहाड़ों से घिरा जंगल, बीच में एक छोटा सा बाँध, ऊपर से चाँद की मद्धिम रोशनी, कहीं जुगनू चमक उठता तो ऐसा लगता कि तारा लहरा कर चल रहा है। आज के कुछ लिंक्स यहाँ हैं | (१) ** *दिल की बात दौलत तक*** *पहुँची और तमाम हो गई*** (२)
अगर आपके पास टीवी नहीं है और आप टीवी खरीदने का इरादा रखते हैं तो फिलहाल आप अपना इरादा टाल दीजिए। कारण कि हो सकता है कि टीवी आपको मुफ्त मिल जाए। जी हां उत्तर प्रदेष चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दल बम्पर सेल लेकर आ रहे हैं । (३) कई बार रक्तसम्बन्ध न होते हुए भी हम किसी अन्य से मानस-रक्तसम्बन्ध बना लेते हैं...............या बनाने का प्रयास करते हैं ..............या तलाश में लगे रहते हैं .......मनुष्य की यह सहज वृत्ति है.पश्चिमी देशों के विपरीत हम भारतीय दैहिक-रक्तसंबंधों के विकल्प स्वरूप मानसिक-रक्तसंबंधों की तलाश में कई बार तो पूरा जीवन ही बिता देते हैं......(४) आज घर आया तो पता चला कि भाई प्रशांत भूषण पिट गए.....कारण जाना तो पता चला कि साहेब चाहते थे कि कश्मीर में जनमत संग्रह करवा लिया जाए....... और उसके जरिये कश्मीर के भविष्य का फैसला हो जाए....... वाह वाह क्या बात है........ लेकिन इसमें नई बात क्या है ??? संयुक्त रास्ट्र संघ ने तो १९४८ में हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा मामला ले जाने पर यही प्रस्ताव पारित किया है........ लेकिन हमने नहीं माना........ तब भी ...... और उसके बाद आज तक ........फिर आज भला उस प्रसंग को पुनः कुरेदने क़ी आवश्यकता ??? ...... शायद नहीं थी..... (५) पहला दृश्य...
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी मिशन के सलाहकार ताहिर हुसैन अंद्राबी ने मंगलवार को यूएन महासभा में बहस में हिस्सा लेते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर भारत का कभी अभिन्न अंग नहीं रहा है और कश्मीर घाटी में शांति चुनाव से नहीं संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के मुताबिक जनमत संग्रह से आएगी... दूसरा दृश्य... दिल्ली में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट परिसर में मशहूर वकील और टीम अन्ना के सदस्य प्रशांत भूषण की ताबड़तोड़ लाइव पिटाई...हमला करने वाला एक शख्स 24 साल का इंद्र वर्मा मौके पर ही धरा गया...दो हमलावर भाग गए...उनके नाम तेजिंदर सिंह बग्गा और विष्णु बताए जा रहे हैं...इंद्र वर्मा का कहना है कि प्रशांत भूषण पर इसलिए हमला किया क्योंकि उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान को देने की बात | आज के कुछ लिंक्स यहाँ हैं- (६)कभी तो आयेगी सुबह , कभी तो रात जायेगी / प्रकाश की किरण कभी तो,फिर से मुस्कुरायेगी / ये अन्धकार की निशा , मनोविकार की निशा , विशाल भार सी निशा , दुरत पहाड़ सी निशा , हटेगी मार्ग से कभी, कभी तो बी... (७) गोयबल्स अब भी ज़िंदा है पहले भारत में था अब भोपाल में है .भोपाल भी भारत में ही है .उसी के भोपाली संस्कार पहले अन्ना जी को चेतावनी देतें हैं कि आप गलत हाथों में खेल रहें हैं और फिर एक पटकथा लिखते हैं .दो तीन शातिर लड़कों को पकड़तें हैं और उनसे अन्ना के साथी प्रशांत भूषण की पिटाई करातें हैं
(८) थकावट थी इसलिए रात को जल्दी ही सो गया ! अचानक श्रीमतीजी की आवाज से चौंक गया,'अजी सुनते हो ! कई दिनों से पानी ठीक से नहीं आ रहा है,ज़रा टंकी तो देख कर आओ !कहीं कुछ लीक-वीक तो नहीं हो रहा है ! मैं अलसाया-सा उठ बैठा,सीढ़ी ढूँढने लगा तो उसके दो डेढ़के (पैर रखने वाले डंडे) नदारद मिले.मैं पड़ोसी के यहाँ जाकर उसकी सीढ़ी से अपनी छत पे पहुँचा !
(९)क्या प्रशांत भूषण की पिटाई सही है या प्रशांत भूषण का बयान सही था ?????? प्रशांत भूषण ने 25 सितंबर को वाराणसी में प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में कश्मीर के संबंध में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दिया था...ये रहा वो बयान...क्या प्रशांत भूषण की पिटाई सही है या प्रशांत भूषण का बयान सही था
(१०) यादें....अशोक सलूजा . कहानी पुरानी....एक आने की!!! मेरी ज़ुबानी यादें ....बचपन की!!! यादें....किशोरावस्था की !!! यादें ..यादें ..यादें ही रह जाएँगी बस!! इस अवस्था की ....??? (११) | {भावपूर्ण मुद्रा में कविता पाठ करते "हबीब साहब"} |
समस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा "भारतीय" की और से सादर प्रणाम, आदाब, सतश्री अकाल !! आप सभी के लिए आज "अभियान भारतीय" के मार्गदर्शक एवं प्रेरणाश्रोत आदरणीय संजय मिश्रा "हबीब" जी की "अभियान भारतीय" पर लिखित रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ | आप सभी अपने विचारों से आशय अवगत कराएँ...!!
“अभियान भारतीय” जन जन के मन का गान लिए, हर भेदों का अवसान लिए है सूर्य धरा पर उग आया भारतीयता का अभियान लिए.
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(12)समीक्षाहरीश प्रकाश गुप्त, सतीश सक्सेना जी की यह कविता “वेदना” उनके ब्लाग “मेरे गीत” पर विगत 21 सितम्बर, 2011 को प्रकाशित हुई थी। कविता के भाव बहुत मर्मस्पर्शी और स्वाभाविक हैं। सतीश जी ने सरल शब्दों में इसे इस प्रकार वास्तविक-सा प्रस्तुत किया है कि कविता सजीव हो उठी है। यह वर्तमान सामाजिक परिवेश का यथार्थ है, जन-जन की अनुभूति है। निश्चय ही उन्होंने समाज के इस चेहरे को बहुत समीप से व बहुत स्पष्ट रूप में देखा है तथा अनुभव किया है और इसको ही उन्होंने इस गीत के माध्यम से शब्द देने का प्रयास किया है। इसीलिए उनका चित्रण पाठक के बिलकुल करीब पहुँच संवेदना जगाता है। (13)क्या धोका देना ,किसी को परेशान करना ,झूठ बोलना .किसी की सरलता का फायदा उठाकर अपने को चतुर और दूसरे को बेवकूफ समझना ये हम इंसानों की फितरत है /और इससे हम किसका भला कर रहे हैं /कुछ लोग इस तरह की हरकतें करते हैं और इस कारण सही जरुरत मंद इंसान की मदद करने में भी लोग विस्वास नहीं करते/ (१४)
मुझे पता है तुम्हें पा नहीं सकता कितना भी चाहूँ ह्रदय की कामना पूरी कर नहीं सकता फिर भी हिरन सामान मरीचिका देख खुश होता आशा में निराश नहीं होता निरंतर (१५)नम हुई आँखों को कैसे पढ़ा उसने मेरे भीतर के सन्नाटों को कैसे सुना उसने मैंने तो सिरहाने रख छोड़े थे एहसासों को कब धीरे से खींच पहना उसने - रूठी खुद थी , पर मुझे ही मनाया उसने एक पन्ने की सौगात दे लुभाया उसने .... रश्मि प्रभा |
पूजनीय माँ-पिताजी को लेखन करते देख कर बचपन से ही लेखन की ओर इनका भी रुझान रहा है। मात्र 8 वर्ष की आयु मे ही इनकी एक कविता आगरा के स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र मे प्रकाशित हो चुकी है और समय समय पर प्रकाशित होती रही हैं। अधिकांशतः कविता लिखना पसंद करते हैं किन्तु यदा कदा लेख भी लिख लेते हैं। इनके बारे मे और अधिक विस्तार से यहाँ जाना जा सकता है।कभी कभी लगता है हम इन्सानों को क्या हो गया है। इंसान होते हुए भी क्या इंसान कहलाने लायक हम रह गए हैं? कनुप्रिया जी की फेसबुक वॉल पर शेयर किये गए इस चित्र को देख कर तो यही लगता है। क्या हम इतने पत्थर दिल हो गए हैं कि एक नन्ही सी जान को कूड़े के ढेर मे चीटियों के खाने के लिए छोड़ दें? हम कामना करते हैं अगला जन्म इंसान का मिले और कहीं अगले जन्म मे खुद हमारे साथ भी ऐसा हुआ तो?
खैर इस ह्र्द्यविदारक चित्र को देख कर कुछ और जो मन मे आया वह यहाँ प्रस्तुत है- मैं कौन हूँ मुझे नहीं पता ये क्या हो रहा है नहीं पता चोट मुझ को लगी जख्म कहाँ कहाँ बने |
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति. जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं। लेखन स्वान्त सुखाय के लिए.( ये ग़ज़ल आपा "मरयम गज़ाला" जी को समर्पित है जो अब हमारे बीच नहीं हैं ) समझेगा दीवाना क्या बस्ती क्या वीराना क्या ज़ब्त करो तो बात बने हर पल ही छलकाना क्या हार गए तो हार गए इस में यूँ झल्लाना क्या |
"रविकार" जी आपने बहुत परिश्रम करके आज का चर्चा मंच सजाया है!
जवाब देंहटाएं--
आपके श्रम को नमन करता हूँ!
आभार!
शास्त्री जी से सहमत हूँ। बहुत मेहनत की गयी है। बड़े ब्लॉगरों का संक्षिप्त परिचय एक ही जगह पाकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंरविकार" जी आपने बहुत परिश्रम करके आज का चर्चा मंच सजाया है!
जवाब देंहटाएंपुस्तकीय यात्रा के लिये ढेरों बधाईयाँ, बड़े ही सुन्दर सूत्र।
जवाब देंहटाएंब्लोगर परिचय विहंगावलोकन अच्छा कसावदार रहा .लघु कलेवर में बड़ी सामिग्री .क्या कहने हैं आपके रविकर जी ,मुबारक .
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविकर जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही मेहनत से आपने आज का चर्चामंच सजाया है।
मुझे यहाँ शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
सादर
चर्चामंच अपनी उत्तम सेवा के लिए पहचाना जाता है। निष्पक्षता इसका विशेष गुण है। कोई बड़े से बड़ा एग्रीगेटर भी ऐसा नहीं है, जिसकी निष्पक्षता पर हिंदी ब्लॉगर्स ने अपना संदेह न जताया हो। बड़े बड़े हिंदी एग्रीगेटर्स के ढेर हो जाने के बाद भी हमें कभी उनकी ज़रूरत महसूस ही नहीं हुई तो इसमें ‘चर्चा मंच‘ की भी अहम भूमिका रही है।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच से जुड़े हरेक चर्चाकार ने अपना सर्वश्रेष्ठ पेश करने की कोशिश की है। ऐसी ही चर्चाओं के सिलसिले की एक कड़ी के तौर पर यह कड़ी है जिसे आदरणीय दिनेश गुप्ता ‘रविकर‘ जी ने पेश किया है।
लिंक्स की चर्चा एक फ़न है और रविकर जी ने इस फ़न को इसकी ऊंचाई तक पहुंचा दिया है। यह चर्चा देखकर इसका यक़ीन हरेक को हो जाता है। इस चर्चा में सिर्फ़ लिंक्स ही नहीं हैं बल्कि ब्लॉगर्स का परिचय भी है और उनके फ़ोटो भी हैं। सर्वश्रेष्ठ कोटि की यह चर्चा एक अनुपम यादगार है और हिंदी ब्लॉगिंग को समृद्ध करने वाले जिन ब्लॉगर्स का परिचय इसमें कराया गया है, उनके लिए तो यह वास्तव में एक संग्रहणीय पोस्ट है।
एक स्वर्णिम पोस्ट की रचना कर हिंदी ब्लॉगिंग को समृद्ध करने के लिए रविकर जी वास्तव में ही बधाई के पात्र हैं।
इस सुनहरी चर्चा में रविकर जी ने हमें भी शामिल किया है, जिसके लिए हम उनके दिल से शुक्रगुज़ार हैं। मालिक उन्हें इसका अच्छा बदला दे और उनकी क़ाबिलियत में इज़ाफ़ा करे,
आमीन !
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रविकर जी ने कर दिया कमाल
बहुत मेहनत और लगन से चर्चा मंच सजाया है और मेरा परिचय भी शामिल करने के लिये हार्दिक आभारी हूँ आपकी…………बहुत सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंरविकरजी ने बहुत अच्छी चर्चा का गुलदस्ता सजाया/उसमे एक एक लिनक्स को फूलों की तरह लगाया /मेरी पोस्ट को भी उस गुलदस्ते में पिरोया /आपका बहुत बहुत शुक्रिया शुक्रिया /बधाई आपको इतना अच्छा चर्चा मंच सजाने के लिए /
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात हे साहब! परिचय-प्रस्तुति का आपका यह प्रयास बहुत ही सार्थक और सराहनीय है। धन्यवाद और बधाई
जवाब देंहटाएंदूसरों की शादी के एलबम में हमेशा व्यक्ति अपनी फोटो तलाशता है, जब दिख जाती है तो खुश हो जाता है। अच्छा लगा अपना फोटो चर्चा मंच पर देखना। आभार।
जवाब देंहटाएंbahut hi mehnat se badiya inks ke saath vistrit charcha prastuti ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएंbahut mehnat see banaayee charchaa,badhaayee
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुतीकरण..मेरा परिचय शामिल करने के लिये आभार ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंआपकी मेहनत को सलाम
posted at 10.10 pm
जवाब देंहटाएंआपको आना मुनासिब न लगा -
कौन हूँ ? मैं आप का अपना सगा |
मैं निठल्ला, काम में मशगूल था -
मसरूफियत के बाद बैठा हूँ ठगा ||
बहुत मेहनत और लगन से चर्चा मंच सजाया है और मेरा परिचय भी शामिल करने के लिये हार्दिक आभारी हूँ ....
जवाब देंहटाएंरविकर जी,
जवाब देंहटाएंक्या कहने ......बहुत ही सुन्दर लिंक्स दिए आपने....... खेद है की कल मै उपलब्ध नहीं रह पाया ...... जीविकोपार्जन हेतु चाकरी करनी आवश्यक जो है....... आपकी टिप्पणिया बहुत अच्छी लगी...... धन्यवाद.....
सही है तटस्थ रहना पाप होना भी नहीं चाहिए। फिर उस के बाद क्या सही और क्या ग़लत। इन की परिभाषाएँ तो इंसान खुद ही बदलता रहता है। अलग अलग समय पर हमारे दृष्टिकोण बदलते ही रहते हैं।
जवाब देंहटाएंआ. शास्त्री जी और रविकर जी आप दोनों की मेहनत स्पष्ट दिख रही है।
पोस्ट्स की लिंक्स के बाद अब ब्लोगर्स का परिचय - यह एक अच्छा क़दम है। इतने बड़े बड़े ब्लोगर्स के बीच अपने आप को देख कर मन बहुत प्रसन्न है। सच कहने में संकोच कैसा जी...........
गुजर गया एक साल
आपने चर्चा को एक अलग ऊंचाई देने का प्रयास किया है।
जवाब देंहटाएंआपने चर्चा को एक अलग ऊंचाई देने का प्रयास किया है।
जवाब देंहटाएंअब तक का सर्वोतम चर्चामंच लगा, क्या कुछ नहीं है इसमें। हमें तो सब कुछ मिला।
जवाब देंहटाएंइन्तजार लम्बा रहा, आने में क्यूँ देर |
जवाब देंहटाएंकहो घुमक्कड़ बंधुवर, कैसा चक्कर फेर ||
बहुत बहुत आभार ||
देर पर दुरुस्त ||
आदरणीय दिनेश गुप्त "रविकर जी "
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आप का .आप की मेहनत को सलाम ..हमारे प्रिय मित्रो के बारे में संजीदा जानकारी और एक दुसरे से परिचय कराने का जो नायाब तरीका और सिलसिला आप ने आरम्भ किया है वह काविले तारीफ़ है ..प्रभु आप की लेखनी में और धार दें और बुलंदियों तक आप को पहुंचाएं ...
आप ने मेरा भी यानी "भ्रमर" का परिचय मित्र गण से कराया मन खुश हुआ नहीं तो हम वन्जारों से देश दुनिया में भटकने वालों के पास इतना वक्त कहाँ की सब कभी मिल एकाकार हो जाएँ दिल की कह सकें सुन सकें इस चिटठा जगत के माध्यम से एक प्रयास सतत चलता रहता है की दुनिया में शांति कायम हों सब को भरपेट भोजन मिले और सुकून भरी प्यारी जिन्दगी ...
झरने सा कल कल बहते पत्थरों के बीच रगड़ते घिसते खेत बाग़ वन जंगल पहाड़ियों आदि हर समाज के बीच हमेशा एक सुन्दर सन्देश पहुँचाना और जो कुछ भी संभव हो भला करना .........
वसुधैव कुटुम्बकम की खातिर ....एक लक्ष्य है ..काश हमारे सभी प्रिय नागरिक एक स्वच्छ समाज सुसंस्कृति भावी पीढ़ी तैयार करें और इस देश को बुलंदियों तक पहुंचाएं ताकि हमारा भारत अपना सच्चा स्थान दुनिया की चोटी पर चढ़ पा ले अपना तिरंगा फहराए हम फिर शास्त्रार्थ में ज्ञान से सब को मात दे दें ...
अनुरागी भ्रमर ५
जल पी बी
१५.०५.२०११
मुझे तो आज पता चला कि इतने सारे ब्लॉगरों का परिचय एक साथ एक ही जगह पर है। इस मेहनत के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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