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बुधवार, नवंबर 09, 2011

"दिल को देखो : चेहरा न देखो ! " (चर्चा मंच-693)

नमस्कार मित्रों बुधवासरीय चर्चा में आपका एक बार फ़िर स्वागत है। चारो ओर महंगाई के नाम से हाहाकार मचा हुआ है। केंद्र सरकार से लेकर विपक्षी तक  एक दूसरे पर आकथू आ थूऊऊऊऊऊऊऊ  करने में लगे हुये हैं। पर महंगाई का राजनीतिक अर्थशास्त्र  यह कहता है कि साहब अब कीमते कम नही हो सकती। इस महंगाई ने अब सिस्टेमिक महामारी का रूप ले लिया है और नतीजतन रिक्शा वाले से लेकर नाई मोची किसान सबने अपनी सेवाओं के दाम बढ़ा लिये हैं। ऐसे मे  "जियो और जीने दो!"        में डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी मूक प्राणियों के दर्द का अहसास कर रहे हैं और हम सोच रहे हैं कि जब इंसान और उनका पेट ही कट रहा है तो समाज मे बाकि मूल्यों के क्या मायने रह जाते हैं। लेगाटम समृद्धी सूचकांक मे भारत 105 देशों मे 88वें नंबर पर था। यह तो बात पिछले साल की हुयी जब घोटालों का भंडाफ़ोड़ नही हुआ था।
खैर साहब स्वराज्य करूण जी कह रहे हैं कि  दिल को देखो : चेहरा न देखो !   ।  पर इस बात पर विदेशो से चंदा मांग ऐश करने वाले स्वयंसेवी संगठन तत्काल  विदेशियों को  स्लम टूर   करा देते हैं। धनंजय सिंग जी ने खूबसूरती से झुग्गी झोपड़ियों के तस्वीरें बेच जीने वालो का चित्रण किया है। चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल    जी ने चिकनी राह बुलाए गाफिल!    में इस व्यवस्था मे परिवर्तन करने की कोशिश करने वालों की कठिनाई व्यक्त की है। दूसरी ओर नेता गण चाहते हैं कि हम  स्वामी अग्नि्वेश को बिग बॉस   में देख अपना दिल बहला ले । ऐसे में विलक्षण प्रतिभावान प्रवासी क्रांतिकारी -लाला हरदयाल   की याद आती है उन्होने विदेश में रह कर भारत के लिये जिंदगी होम कर दी। पर इस के लिये जज्बा  संजय शर्मा हबीब जी की रचना दिल है कि मानता नही   का होना चाहिये वरना जिन मुश्किलों का सामना अन्ना हजारे कर रहे हैं आम आदमी तो ठहर ही नही सकता।
पिछले बुधवार की मेरी चर्चा पर डा अनवर जमाल खान साहब ने आपत्ती दर्ज की थी कि मै चर्चा मंच का दुरूपयोग कर रहा हूं और उनको बदनाम कर रहा हूं। इस परिपेक्ष्य में घटना क्रम देना मेरा कर्तव्य है। उनकी एक रचना क्यों मर रहे हैं उच्च शिक्षित हिन्दू युवा ?  में उनका तर्क था कि हिंदू युवा उच्च शिक्षा के कारण मर रहे है सो ऐसी शिक्षा बंद करनी चाहिये। इस पर मैने एक पोस्ट लिखी मुस्लिम युवा आत्मह्त्या  क्यों नही करते ...    उन्होने इसके बाद पोस्ट लगाई 6 लाख आत्महत्याएं ?   कुल जमा सार यह कि हिंदू धर्म आत्महत्या को रोकने मे अक्षम है। सो साहब हमने पोस्ट लगा दी डा. अनवर धमाल खान की आत्महत्या 
हांलाकि इसके पहले वे हरदम विवाद पैदा करते थे और हमे तो बकायदा इनवाईट भी किया था कि दवे जी हमारे विरोध मे लिखें तो हम दोनो का प्रचार होगा। पर जब हमने यह दो पोस्ट लगाई तो वे फ़ाउल फ़ाउल चिल्लाने लगे। चलिये इन सब विवादो का फ़ायदा कुछ नही समय ही खराब होता है। मां शारदा का आशीर्वाद उसे ही मिलता है जो देश और समाज को जोड़ने का काम करे, सर्वधर्म सर्व हिताय लेखन करे।
शेष अगले बुधवार को!

16 टिप्‍पणियां:

  1. कई महत्वपूर्ण विषयों पर विभिन्न ब्लॉगों में प्रकाशित सामग्री का सुंदर सार-संकलन तैयार किया है आपने . सराहनीय प्रस्तुतिकरण . मुझे भी जगह मिली. आपका बहुत-बहुत आभार .

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  2. हम चर्चा मंच के नियमित पाठक हैं। पिछले बुधवार की चर्चा में भाई अरूणेश दवे जी ने हमारे विरूद्ध लिखी एक पोस्ट को प्रमुखता से यहां पेश किया लेकिन हमने उस पर टिप्पणी नहीं दी क्योंकि एक व्यंग्यकार को हक़ है कि वह जो कहना चाहता है कहे।
    अरूणेश जी को शायद हमसे ऐसी ख़ामोशी की अपेक्षा नहीं थी। सो वह अगले बुधवार की प्रतीक्षा करते रहे और आज यहां उन्होंने हमारे विरूद्ध लिखी व्यंग्यात्मक पोस्ट्स के लिंक भी दिए और यह भी बताया कि हमारा नज़रिया क्या है ?
    अपनी पोस्ट्स के और दूसरों की पोस्ट्स के लिंक्स देना तो उनका हक़ है लेकिन उन्होंने हमारा नज़रिया जो बताया है वह एक अनाधिकार चेष्टा है।
    सभी ब्लॉगर्स यह अच्छी तरह जानते हैं कि
    1. मौलाना वस्तानवी का विरोध करने वाले आलिमों को हमने ऐलानिया ग़लत कहा।
    2. अन्ना हजारे का विरोध करने पर हमने मौलाना अहमद बुख़ारी साहब के नज़रिये और तरीक़े को ग़लत कहा।
    3. इंडिया इस्लामिक सभागार दिल्ली में नाच गाना होने के बाद हमने कहा कि ‘मुसलमानों का परम चरम पतन‘ हो चुका है।

    इसी सिलसिले में हमने एक पोस्ट में कहा है कि उच्च शिक्षा को समस्याओं का समाधान समझा जाता है लेकिन जैसे जैसे उच्च शिक्षा बढ़ रही है, युवा वर्ग और देश की समस्याएं भी बढ़ रही हैं। इसका मतलब यह है कि इस आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में कहीं न कहीं कुछ कमी ज़रूर है।
    4. हमने कहा है कि
    जब हम मुसलमानों को दूध का धुला साबित नहीं कर रहे हैं तो फिर आप कैसे कुछ भी कह सकते हैं ?
    ‘लिव इन रिलेशनशिप‘ में रहने वाली लड़कियां सभी उच्च शिक्षित हैं।
    आधुनिक शिक्षा भारतीय नौजवान लड़कियों को यह बना रही है।
    इमोशनल अत्याचार नामक सीरियल में देखो कि क्या कर रहे हैं पढ़े लिखे हिंदू ?
    ...................
    हमारा कहना यह है कि इन्होंने हिंदू का लेबल लगा लिया है लेकिन हिंदू होने के लिए कुछ साधना करनी पड़ती है वह इन्होंने की ही नहीं है। अगर ये उस साधना को करते तो ये इन कुकर्मों को कभी न करते।
    बताओ हमारी बात कहां ग़लत है ?
    यही बात जरायम पेशा मुसलमानों के लिए कहता हूं कि मुसलमान का केवल लेबल लगा लिया है। इस्लामी क़ायदे क़ानून पर चलते तो वे दूसरों की तबाही का ज़रिया न बनते।
    देखिए लिंक :
    http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%B9-%E0%A4%B9-%E0%A4%89%E0%A4%9A-%E0%A4%9A-%E0%A4%B6-%E0%A4%95-%E0%A4%B7-%E0%A4%A4-%E0%A4%B9-%E0%A4%A8-%E0%A4%A6-%E0%A4%AF-%E0%A4%B5

    ...और लुत्फ़ की बात यह है कि यह पूरी पोस्ट एक समाचार मात्र है जिसमें हमारी लिखी हुई केवल 3 पंक्तियां हैं और उन तीनों पंक्तियों में एक शब्द भी हिंदू धर्म की आलोचना में नहीं है।
    ......और यह भी सही है कि हम लोगों के विरोध को सकारात्मक रूप में ही देखते हैं और अपने विरोधियों को हमेशा अपने प्रचारक के रूप में ही देखते हैं। इनसे हमें अभी तक लाभ ही हुआ है। यही वजह है ज़्यादातर विरोधियों से हमारे दोस्ताना ताल्लुक़ात हैं।
    वैसे भी हम इन्हें दिल का बुरा नहीं मानते, बस ग़लतफ़हमी का शिकार ही मानते हैं।

    चर्चा मंच के व्यवस्थापक , पाठक और सभी लेखकों को शुभकामनाएं।
    भाई अरूणेश दवे जी को विशेष तौर पर शुभकामनाएं !!!

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  3. फिट है बॉस ! पर टीआरपी बढ़ाने के लिए आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे से बचना चाहिए.
    वैसे ब्लोगिंग की राजनीती से दूर रहता हूँ,लेकिन लगता है की जूतम-पैजार की दोस्ताना स्टाईल काफी काम आती है.

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  4. अति सुन्दर सार संक्षेपण दवेश जी गागर में सागर भर दिया आपने .बधाई .सभी लिंक्स सुन्दर तारतम्य पूर्ण संयोजन .

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  5. वाह...बहुत ही बढि़या लिंक्‍स संयोजन ।

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  6. चर्चा मंच के माध्यम से बाक़ी सब समाचारों से अवगत हुआ।

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