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मंगलवार, मई 04, 2010

“कुछ नये कुछ पुराने” (चर्चा मंच-142)

"चर्चा मंच" अंक - 142
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक
आइए आज के "चर्चा मंच" को हम एक नये और एक पुराने ब्लॉग की पोस्ट से कुछ कड़ियों को जोड़कर सजाते हैं-
क्षमा करें! इण्टरनेट समस्या के कारण
आज की चर्चा कुछ विलम्ब हो गया है!
Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

कार्टून:- दुनिया के मज़दूरो क्या तुम एक हो गए ? -
ब्लॉगोत्सव २०१०
जंग-ए-आजादी में क्रांतिकारियों की भूमिका : अमित कुमार
सोमवार, ३ मई २०१०
जीवन-वृत्त /नाम : अमित कुमार यादव /जन्म : २४ सितम्बर १९८६, तहबरपुर, आजमगढ़ (उ० प्र०)/शिक्षा : इलाहाबाद वि”वविद्यालय से स्नातक एवं तत्प”चात इंदिरा गांधी नेशनल ओपेन यूनिवर्सिटी से एम०ए० (लोक प्रकाशन),विधा : मुख्य रूप से लेख /प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं-हिन्दुस्तान, आज, अमर उजाला काम्पैक्ट, समरलोक, सबके दावेदार, सेवा चेतना, जीरो टाइम्स इत्यादि में रचनाओं का प्रकाशन । सम्मान-पुरस्कार : आउटलुक पत्रिका द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में पुरस्कृत। प्रस्तुत है इनका एक आलेख:
जंग-ए-आजादी में क्रांतिकारियों की भूमिका
१८५७ की क्रान्ति भारतीय इतिहास की एक युग परिवर्तनकारी घटना थी। इस क्रान्ति ने लोगों में गुलामी की जंजीरंे तोड़ने का साहस पैदा किया। यद्यपि अंग्रेजी हुकूमत ने इस क्रान्ति से निकली ज्वाला पर काबू पा लिया और शासकीय  ढाँचे में आधारभूत परिवर्तन करके भारत को सीधे ब्रिटि”ा क्रउन के नियंत्रण में कर दिया, पर यह कदम
उड़न तश्तरी ....

मजदूर दिवस के मजबूर - मजदूर दिवस पर भाषण देने दिल्ली से नेता जी गांव आये. मजदूरों के वर्तमान हालात और उसके सुधार एवं मजदूरों के उत्थान के लिए सरकार की भावी योजनाओं पर खुल कर ब...

शीर्षक..

साथ चलने की एक ज़िद जो छूट कर भी छूटी नहीं, फिर साथ है...

सपने के पीछे ज़िद..

शीर्षक हमारा सपना था, हम यानि ओम, आशीष और मैं. ओम तब ओम पथिक हुआ करते थे, आशीष तब कुमार आशीष होते थे और मैं खुद क्षितिज विवेक हुआ करता था. ये सपना मध्यप्रदेश के रीवा में तब के हम बच्चों की आँखों में अंखुआया था.
रीवा जो तब कस्बानुमा शहर था और शायद अब भी, वैसे तो यह मध्य्रप्रदेश के नक्शे में संभागीय मुख्यालय था पर सतना जिला मुख्यालय तब भी हमसे (रीवा से) अधिक विकसित,व्यवस्थित और अधिक व्यावसायिक शहर था और आज भी है. पर रीवा अपनी अकादमिक संस्थाओं और साहित्यिक सक्रियता के लिए तब भी अलग से पहचाना जाता था और आज भी है………
काव्य मंजूषा

कोई मुमताज़ फिर किसी ताज को अब ख़ुद ढहाती है... - हँसी भी लब पे है उसके,हमें आबाद करने को मगर क्यूं जां मेरी,उसके हमेशा दर्द खाती है हकीकी-इश्क कहिये या मजाजे-इश्क,पर हमको ख़ुदा की बुत की तरह ही हमेशा याद ...

दर्शन-प्राशन

विपरीत से तुम सीध में आओ

विपरीत से तुम सीध में आओ.
अरी! पीठ न तुम मुझको दिखाओ.
मैं तुम्हें बिन देखकर पहचान लेता हूँ.
कल्पना से मैं नयन का काम लेता हूँ…….
बुरा भला

आज होना है कसाब की किस्मत का फैसला - देश के इतिहास के सबसे बड़े हमले के जिम्मेदार एकमात्र जीवित आतंकी अजमल आमिर कसाब की किस्मत के फैसले का 17 महीने लंबा इंतजार अब से कुछ घंटो के बाद खत्म हो जा...

राम कहानी

खेलगाँव के पिछवाड़े पौधकुमार का जन्म
पिछले साल की ही बात है, दिल्ली के अक्षरधाम के पिछवाड़े जो खेलगाँव बसने जा रहा है वहाँ पर, उसी भूमि पर एक पौधे का पुनर्जन्म हुआ. इस जन्म में उसे नीम की योनी प्राप्त हुई. आसपास के वृक्षों ने उसे खूब प्यार किया. उसके पालन-पोषण का दायित्व और शिक्षा का उचित प्रबंध किया. वृक्ष-समुदाय में लार्ड मेकाले की शिक्षा-नीति के अनुसार शिक्षा नहीं दी जाती, वहाँ परोपकारिक-शिक्षा नीति के अनुसार सभी वनस्पतियाँ बिना ऊँच-नीच, बिना जाति-पाति, बिना भेद-भाव के शिक्षा गृहण करती हैं. पौधकुमार बचपन से काफी होनहार थे, उनके चिकने पत्ते इसका प्रमाण थे. कहते भी हैं कि "होनहार बिरवान के होत चीकने पात". शीशम तरु ने पौधकुमार को अपने आस-पास रहने वाले पेड़-पौधों के नाम और संबोधनों की जानकारी दी.
जैसे "अ-ल...ल..लला...ला.! इधर देखो, ये तुम्हारे जामुन अंकल हैं..., और ये तुम्हारी इमली चाची... और मैं तुम्हारा शीशम ता..ऊ.    ताऊ जी को ताऊ बोलो.. देखो हँस दिया…
….
काव्य 'वाणी'

इशारो की जबां.............. - छिपायें रखना जज्बातों को अच्छा नहीं | डरते जाना जालिम ज़माने से अच्छा नहीं || ना समझ सके जो इशारो की जबां को | उन्हें जुबां से समझाना भी अच्छा नहीं || [imag...

खोपड़ी की खुजली

हम हिंदी को बढ़ावा देते हैं !

शनिवार, १ मई २०१० | निपुण पाण्डेय
कहीं ना कहीं आपने भी देखा ही होगा | बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ ,"हम हिंदी को बढ़ावा देते हैं !" जी हाँ! हमारे देश के अमूमन हर बैंक में तो देखा ही होगा और साथ ही अन्य सरकारी कार्यालयों में भी | यूँ तो अंतरजाल की इस क्रांति के युग में अब बैंक जाना कम ही होता है, क्योंकि अधिकतर काम तो बैठे-बैठे ही हो जाते हैं | परन्तु कुछ दिन पहले ही कुछ पूछताछ करने के लिए बैंक जाना पड़ा | बैंक के अन्दर प्रवेश करते ही सामने लिखा दिख पड़ा "हम हिंदी को बढ़ावा देते हैं ' | इसके ठीक नीचे एक मोहतरमा बैठी दिखी तो मैंने जाकर उनसे कुछ जानकारी मांगी | मेरा प्रयास था की अब सब लोग हिंदी को बढ़ावा दे ही रहे हैं तो मैं क्यों पीछे रहूँ | मैंने बातचीत का क्रम हिंदी में ही आगे बढाया | परन्तु ये क्या ! सामने से मुझे अंग्रेजी में उत्तर मिलने लगे | फिर भी मैं हिंदी में ही पूछता रहा और बीच बीच में उनके ठीक उपर लटक रहे उस बोर्ड पर भी निगाह डाल लेता |
……
दिगंबर नासवा की ग़ज़ल
आज सुप्रसिद्ध कवि/गज़लकार/चिट्ठाकार  श्री दिगंबर नासवा जी उपस्थित हैं अपनी एक ग़ज़ल लेकर, अपनी ग़ज़लों के बारे में उनका कहना है कि "प्रवासी हूँ तो प्रवासी मन का दर्द कभी कभी कागज़ पर उतर आता है ... इस महोत्सव के लिए मेरी ग़ज़ल प्रस्तुत है ....
ब्लॉगोत्सव २०१० 
रवीन्द्र प्रभात

Ravindra Goyal

छूना है आकाश . . .

कुछ कहें तो . . .
कृपया बतलाएं आखिर क्या है यह ग्लोबल वार्मिंग और कौन है इसका ज़िम्मेदार ? शायद आप ही हमें समझा पाएं ताकि हम उस कबूतर को कम से कम इस भारी भरकम शब्द का आसान सा मतलब बतला सकें। उसे उसकी भाषा में समझा सकें कि भईया यह होती है ग्लोबल वार्मिंगा और तुम इस तरह प्रभावित होते हो। क्या आप बतला सकते हैं कि आप किस-किस तरह से इसका असर झेल रहें हैं। शायद कबूतर के साथ कुछ अपने सहचर भी जाग जाएं। आपके जवाब के इंतज़ार में आपका रवीन्द्र।
कमरे में कितने मच्छर.. कहाँ आदमी तन्हा है
एक काफी पुरानी ग़ज़ल मिल गयी किसी प्रतियोगिता के में भेजी थी ..आप लोगों से बाँट रहा हूँ ..ये सहरे का सपना है देखो कितना गीला हैमुझसे मिलता-जुलता हैसन्नाटे का चेहरा है नन्ही आँख की डिबिया में ख्वाब हींग सा महक़ा हैअपने घर के कोने मेंगीली आँखें रखता है मुझको….
कोना एक रुबाई का
  स्वप्निल कुमार 'आतिश'

दीप-प्रकाश

कहते हैं..डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है.. दुखी को संवेदना के दो बोल काफी होते हैं.. उसी तरह अंधेरे मैं दिए की टिमटिमाती लौ भी बहुत बड़ा सहारा होती है.. 'दीप-प्रकाश'..ये कोशिश है उन तक पहुँचने की जो ज़रूरतमंद हैं.. नहीं जानता कितनी सफल हो पायेगी.. लेकिन कोशिश तो है... जब क़दम उठे हैं तो सफल भी होंगे.. बस गुजारिश है उनसे जो इस ब्लॉग से होकर गुजरेंगे.. अगर कभी आपका भी दिल इस कारवां से जुड़ने को कहे तो दो क़दम ही सही..ज़रूर साथ चलियेगा .. क्योकि हमेशा एक से भले दो होते हैं..

कुछ हाथ.. जुड़े साथ.. बने "सहारू"

सक्षम होने का क्या मतलब है शायद कुछ लोगों के लिए अपनी ज़रूरतों को पूरी कर लेना कुछ लोगों के लिए अपनी ताकत दिखा देना या फ़िर कुछ के लिए समाज मैं अपनी अहमियत साबित करना... लेकिन कुछ लोग इसके ऊपर उठकर भी सोचते हैं.. वो लोग उस सक्षमता से समाज को कुछ दे
ने में विश्वास रखते हैं..
हरि शर्मा - नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे

घर मे चले राज सिर्फ़ बीबी का - भले तुम तीसमारखा ही हो - चाहे तुम सारी दुनिया के राजा हो भले तुम सबसे खतरनाक हो भले ही तुम परम स्वतन्त्र हो भले ही सारी दुनिया तुम्हारे बस मे हो भले ही तुम्हे सभी प्यार करत...

TANU'Z KRIATIVITY

तमन्ना ने ज़िन्दगी के कांधों पे सर रख कर पुछा, की मै कब पूरी हूँगी? जिंदगी ने हँस कर ज़वाब दिया, " जो पूरी हो जाए वो तमन्ना ही क्या|"

तलब लगी है
तलब लगी है, सांस लेनी है ढूँढ रहा हु |
भागा नहीं, हाफ्फ़ रहा हु |
पसीना भी आने लगा है अब,
कोई तिंका ही सही सहारा ढूँढ रहा हु |
कहा तक भागू,
कोई तो मिले जिसे पकड़ कर रुक सकू, शायद रो सकू |
…..
नीरज

किताबों की दुनिया - 28 - *" गागर में सागर "* आपने ये जुमला अक्सर सुना होगा लेकिन मैं नहीं जानता के आप में से कितने ऐसे हैं जिन्होंने इसे महसूस किया है. गागर में सागर वाले करिश्मे ब...
रतन चंद \
हिमाचल का लघुकथा संसार
लघुकथा आज हाशिये से निकलकर साहित्य की एक सशक्त विधा के रूप में दर्जहोने के बावजूद विसंगति यह देखने में आ रही है कि इसे अंतरंगता में समझने में अभी भी की हो रही हैं।अंग्रेजी में जहां हिन्दी की कहानी विधा को ‘शार्ट स्टोरी’ कहा जाता है वहीं की लोग लघुकथा कोही ‘शार्ट स्टोरी’ की संज्ञा दे देते हैं। बीसवीं सदी की शुरूआत में जब हिन्दी साहित्य में कहानीअपनी जड़ें जमा रही थीं तब कुछ लेखकों ने आकार में कई छोटी कहानियां लिखीं पर उस दौरानअलग से लघुकथा एक अलग विधा के रूप में अस्तित्व में नहीं आईथी। देश-विदेश की अन्य कई भाषाओं में भी समय- समय पर कथ्य के पफलक के अनुसार छोटी कहानियां लिखी गई हैंजिसमें भरपूर कथारस है। अपितु आठवें दशक के बाद लघुकथा ने धीरे-धीरे अपनी अलग पहचानबनानी शुरू की और अनगिनत लघुकथाकार उभर कर सामने आये।
………
poems from heart

Who is Friend - Love + Care = MOM Love + Fear = FATHER Love + Help = SISTER Love + Fight = BROTHER Love + Life = WIFE But.................. Love + Care + Fea...

Shahid "ajnabi"

चला गया , वो तो चला गया

चला गया - चला गया
आखिर वो चला गया
एक टीस देके चला गया
एक टीस लेके चला गया
चला गया वो तो चला गया
मैं ग़ज़लों और किताबों में ही रह गया
वो इसे हकीकत का नाम देके चला गया………
उच्चारण  
“आँसू हैं अनमोल” - “मेरा एक बहुत पुराना गीत” *आँसू हैं अनमोल, * *इन्हें बेकार गँवाना ठीक नही! * *हैं इनका कुछ मोल, * *इन्हें बे-वक्त बहाना ठीक नही! * * * *हीरक वाला, हर खदान * ..

भारत-भाग्य

गौरवशाली अतीत वाली पुण्यभूमि भारत के भाग्य को संवारने की बड़ी जिम्मेदारी बतौर टेक्नोक्रेट्स हम युवाओं पर भी है। इस विचार के साथ सामाजिक सरोकारों को समर्पित इस ब्लाग आंदोलन में आपका स्वागत है। बात चाहे खेत-खलिहान की हो, शिक्षा-साहित्य की या फिर आध्यात्म और सौंदर्य की, इस मंच पर खूब हल्ला होना है। वहीं राजनीति और खबरनवीसों की खबर तो यहां मिलेगी ही। हां छद्म बुद्धिजीवियों से जरूर थोड़ा बहुत परहेज किया जाएगा।

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो....
सवाल यह नहीं कि मसला हल कौन करे, सवाल तो यह है कि पहल कौन करे। नासूर बन चुकी नक्सली समस्या पर कुछ ऐसा ही हाल है हमारे देश के नेताओं का। दंतेवाड़ा की घटना के बाद भी जितनी ढपली उतने राग की तर्ज पर हर कोई अपनी-अपनी कह रहा है। कोई भी एक दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं। कांग्रेसी घटना के लिए मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह से इस्तीफा देने की मांग कर रहे हैं तो उनके नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपनी ही सरकार के गृहमंत्री चिदंबरम की कार्यशैली पर अंगुली उठा रहे हैं। वहीं बीजेपी भी जडें खोद-खोदकर समस्या के लिए पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को कठघरे में
ज़िन्दगी
   मौन मुखर हो जाये - अश्कों का बहना कोई बड़ी बात नहीं मज़ा तब है जब अश्क बहें भी और नज़र भी ना आयें और जहाँ मौन भी नज़रों में मुखर हो जाये…..

devmanipandey

एहसास की दुनिया में रोशन दिल की जागीरें हैं। कहते हैं जिसे सब प्यार यहाँ खुशबू की लकीरें हैं।

बड़ा लुत्फ़ था जब कुँआरे थे हम तुम !
पचहत्तर के हुए ज़फ़र गोरखपुरी

शहर के अज़ाब, गांव की मासूमियत और ज़िंदगी की वास्तविकताओं को सशक्त ज़ुबान देने वाले शायर ज़फ़र गोरखपुरी 5 मई 2010 को 75 साल के हो जाएंगे। माज़ी के दरीचे से देखें तो नौजवानी में उन्होंने क्या धूम मचाई थी - बड़ा लुत्फ़ था जब कुँआरे थे हम तुम ! फ़िल्म नूरे-इलाही की इस क़व्वाली से लेकर फ़िल्म बाज़ीगर के गीत- ‘किताबें बहुत सी पढ़ीं होंगी तुमने’ तक उनके पास रुपहले गीतों………
और अन्त में-
अगर आज कसाब को मृत्यु दंड मिल भी जाता है तो भी क्या...?
| Author: पी.सी.गोदियाल | Source: अंधड़ !
२६/११ के मुंबई हमलों की जांच कर रही ट्रायल कोर्ट के स्पेशल न्यायाधीश श्री एम् एल तहल्यानी, उस दरिन्दे कसाब को डेड साल चले न्यायिक उठापटक के बाद आज अपना फैसला सुनायेंगे ! मीडिया में इस बात का बड़ी बेसब्री से इन्तजार किया जा रहा है कि कसाब को क्या सजा मिलती है ! मगर मेरा मानना है कि यह बात ज्यादा महत्व नहीं रखती कि उसे क्या सजा मिलती है ? हमारी न्यायिक जटिलताओं की खिल्ली दुनिया उड़ा चुकी ! कसाब को यह पट्टी किसने पढ़ाई कि तुम नेपाल से भारतीय पुलिस द्वारा पकड़कर लाये जाने की कहानी गड़ो ? इस देश में ...

मेरी बात

Here you can read the poetry & other writings of Ghanshyam Maurya

सर्व-धर्म-समान तीरथ चाहिए.
सर्व-धर्म-समान तीरथ चाहिए।
ले चले सबको, वही पथ चाहिए।
भंग हो सकती तपस्याएँ कठिन,
अप्सरा या कोई मन्मथ चाहिए।
……

17 टिप्‍पणियां:

  1. सराहनीय प्रयास और अच्छी उम्दा प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /

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  2. शास्त्री जी कुछ भी हो वही पुराने अंदाज बरकरार है,प्रस्तुति कहीं से ढीली नही होनी पाई...लाज़वाब चर्चा ..बधाई

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  3. बहुत बढिया लागी चर्चा!
    आभार्!

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  4. बहुत दिनों बाद अवसर मिला यहाँ आने का ...........

    आनन्द आया .......

    हर बार की तरह इस बार भी अच्छा लगा

    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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