नमस्कार , हाज़िर हूँ आपके समक्ष मंगलवार की साप्ताहिक काव्य चर्चा ले कर …हम अक्सर बहुत से रचनाकारों को पढते हैं ….बहुत से ब्लोग्स पर जाते हैं ….लेकिन केवल रचना पढ़ कर और यदि मन हुआ तो टिप्पणी दे कर चले आते हैं …बहुत कम ही लोगों के प्रोफाईल देखते हैं ….आज जिन रचनाकारों की चर्चा इस मंच पर शामिल की गयी है उनकी कहानी सुनिए उनकी जुबानी ….आखिर वो अपने बारे में क्या कहते हैं …. |
![]() रश्मि प्रभा ----सौभाग्य मेरा की मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूँ और मेरा नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और मेरे नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियाँ मेरे नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन" , शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है. अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते...मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं.. सत्य हम खुद से डरते हैं खुद से भागते हैं और जब तक यह होता है कोई किनारा नहीं मिलता ! ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर ऐसा होता है |
![]() मुझको ऐसा गीत चाहिए मुझको ऐसे गीत चाहिये ! जो पतझड़ में मधुॠतु ला दे मुझको वह संगीत चाहिये ! मुझको ऐसे गीत चाहिये ! जो चुन लायें श्रम के मोती, जो वर लायें जीवन ज्योति, जो चेतायें दुनिया सोती, मुझको ऐसे मीत चाहिये ! |
![]() स्वप्न मंजूषा ---राँची में पैदा हुई, दिल्ली थी कर्मभूमि अब ओट्टावा ....मेरा नाम स्वप्न मंजूषा 'अदा' फूलों से मार डालो , हम पत्थर से जम गए हैं क्यूँ अश्क बहते-बहते, यूँ आज थम गए हैं इतने ग़म मिले कि, हम ग़म में ही रम गए हैं तुम बोल दो हमें वो, जो बोलना है तुमको फूलों से मार डालो, हम पत्थर से जम गए हैं | ![]() मेरे सपनो का शहर अनंत यात्राओं की अंतहीन पगडंडियों पर चलते चलते जब कभी थक जाती हूँ तब कुछ पल जीना चाहती हूँ सिर्फ तुम्हारे साथ |
![]() तुम शब्द स्म्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर -तुम दिवास्वप्न, तुम मायावी, तुम यायावरतुम प्रकम्पित अधरों के बीच अस्फुट स्वर ढूढ़ रहा मैं ठाँव तुम्हारा ढूढ़ रहा मैं गाँव तुम्हारा तुम यहाँ, फिर पलांश में जाने कहाँ गयी तुम रहस्यमयी, या फिर शायद कालजयी |
![]() गूंगे बहरे अंधे मिलकर ... तीन खड़े हैं, तीन बढे हैं तीन कर रहे मौज हैं यारा ! कौन कह रहा, कौन सुन रहा एक गूंगा, एक बहरा है ! गूंगा भी खामोश खडा है और बहरा भी ताक रहा है ! | ![]() लिख दिया उसने उसका नाम ज़िंदगी ख़्वाबों में ही सही सुनहरे हर्फ़ से लिखे खूबसूरत अफसाने हकीकत की जमीन पर सर पटकते रहे .... |
आतंकी हमला और खोया बचपन एक ताज सुनाता है प्यार की कहानी दूसरे की सुनिये मेरी ज़ुबानी. मेहनत से दोनों बने वर्षों की यह घटना भी पुरानी नहीं है बस कल परसों की. हम थे खोए ख़्वाबों में जिस रात दुश्मन लगाए बैठे थे घात |
![]() टूटी हुई , जंग लगी टूटी हुई,जंग लगी लोहे की एक कड़ाही, लुढ़की पड़ी है मेरे घर के , पिछले कोने में . कितनी होली-दिवाली देख चुकी है , बनाए हैं कितने पकवान वर्षों तक , | ![]() एस० एम० हबीब ----- ज़मीरे खुद में देखा, फ़क़त तारीको खलाश है. खुद को न पा सका, मुझे अपनी ही तलाश है….. अश्रुमय श्रद्धांजली ..२६/११ एक पतली नदी आँखों से मंथर बहती, समूचा भिगोती, समाती रही अंतर में बूंद - बूंद... |
आकर्षण कुछ लोग अत्यधिक सख्त होते है, या हो जाते हैं. जैसे कि तुम. सबने तुम्हें आज़मा के देखा. मैंने भी, अंतर इतना ही था, कि सब नमी से, व्यथित थे. और मैं, नमी के लिए |
![]() तस्वीर...सोचा एक तस्वीर बनाऊंआँखें बंद कीं कुछ लकीरें सी उभर आयीं टेढ़ी, मेढ़ी, आड़ी, तिरछी फिर सोचा, इसकी अपूर्णता को संवार लूं इसमें कोई रंग उतार दूं | ![]() अब भी तुम्हारी याद बहुत आती है अब भी तुम्हारी याद बहुत आती है, हर शाम के साथ तुम्हारे नाम की तनहाई मेरे कमरे में चली आती है; मैं भी रोज मन के ताले खोल बीते पलों की चादर बिछाने लगती हूँ |
![]() पलकों में रोती लडकी होठों में हंसती दिखती है , पलकों में रोती लडकी सपनों की झालर बुनती है ,तनिक बड़ी होती लडकी . गुड्डे गुड़िया खेल खिलौने पल में ओझल हो जाते अपने छोटे भाई बहन को बाहों में ढोती लडकी .. |
रात भर नींद को ढूंढती रह गईरात भर नींद को ढूँढती रह गयीमैं हवा से पता पूछती रह गयी . इत्तफाकन हुआ कि साजिश हुयी खुद नदी धार में डूबती रह गयी | ![]() अर्चना तिवारी ..लखनऊ उत्तर प्रदेश ---सुंदर, अँधेरा, वन है सघन, मैंने दिया है स्वयं को वचन, चिरनिद्रा न आये अभी, मुझे करना कोसों दूर गमन.. ज्ञान के दीप जला कर देखो कर्म को देव बना कर देखो सत्य के मार्ग पे जा कर देखो साथ में होंगे करोड़ों इक दिन पाँव तो पहले बढ़ा कर देखो |
जय बोलो लोकतंत्र की पल में तोला पल में माशा गिरगिट की सी चाल है इनकी . कभी इस पलड़े तो कभी उस पलड़े , थाली के बैगन सी गति है इनकी . दिल अंदर से काला है और दिमाग जटाओं में जकड़ा है |
![]() यशवंत ---लखनऊ ..उत्तर प्रदेश ----जीवन के २८ वें वर्ष में,एक संघर्षरत युवक. व्यवहार से मै एक भावुक और सादगी पसंद इंसान हूँ.लिखना-पढना,संगीत सुनना,फोटोग्राफी,और घूमना-फिरना मेरे शौक हैं. मेरे पिताजी श्री विजय माथुर लेखन के क्षेत्र में मेरे प्रेरक एवं मार्गदर्शक हैं… खिल उठे ये कलियाँ- रोज़ सुबह मैं देखता हूँ इन अनखिली कलियों को पीठ पर आशाओं का बोझा लादे | नवनीत नीरव --मौसम, रंग और सपने- ये तीन मेरे सबसे करीबी दोस्त हैं, जिनसे स्थायी सम्बन्ध रहे हैं मेरे. ये भी बदलते हैं लेकिन ईमानदारी से. न जाने कब से हमारा रिश्ता रहा है.थोड़ा मैं निभा रहा हूँ थोड़ा वे लोग मुझसे बाँट रहे हैं. दिन तो जैसे आते ही जाने की जिद करता है, पर रात से अपने ताल्लुकात कुछ गहरे हो रहे हैं… ख़्वाबों के छुट्टे बचपन से युवा बनते-बनते, न जाने कितने सयाने, कितने बड़े ख्वाब, संजोये थे मैंने , कोशिश यही थी कि, कभी इनसे, कोई बड़ी खुशी खरीदूंगा. |
![]() इंसान खो गया बदल बदल लिबास परेशान हो गया चेहरों पॅ चेहरे ओढ़ के हैरान हो गया ख़ुद की तलाश में लहूलुहान हो गया इंसान खो गया |
![]() यज्ञ दत्त मिश्रा ---बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता... जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता... ना जाने कब से हूं इस शहर में मुक़ीम मगर न कोई चीखा, न कोई रोया, न शर्माया मैं चलता रहूँगा अब न रुकुंगा , न डहर भूलूंगा , दिल में दहक ले , मैं चलता रहूँगा। मंजिल नजदीक नहीं, न मंजिल से दूर हूँ, वक़्त का आभाव है , मै चलता रहूँगा। | इन्द्रनील सैल ---I am a M.Tech in Applied Geology from Indian Institute of Technology, Kharagpur, I took up Exploration Geology as a career, and have been working as a Geologist in various places of Central India as well as abroad. क्या किया है तुने खुदा बनके क्या किया है तुने खुदा बनके । तू बता सब का आसरा बनके ॥ जिंदगी ने छुड़ा लिया दामन । मौत आई है मेहरबां बनके |
![]() मेरा होना ...यूँ होना नन्हीं उंगलियों में उलझा है टूथब्रश। पेस्ट लगे होठों पर थिरकी मुस्कान को बाबा उंगलियों से छू लेते हैं। हर्फों, गिनती, पहाड़े, व्याकरण में जीवन की सीख देते हैं। मेरा होना बाबा की पोती होना है। |
![]() डा० मोनिका शर्मा ----ज़रा अलग हटकर सोचना अच्छा लगता है । पढने लिखने में रूचि रखती हूँ| फुल टाइम माँ हूँ इसलिए बाकी सभी काम मेरे लिए पार्ट टाइम हैं। बस..... माँ ... जीती कम जागती ज्यादा है... माँ ...! जीवन जीती कम .... जागती ज्यादा है.....! माँ ...! खरीदती कम हिसाब लगाती ज्यादा है....! माँ ...! हंसती-गाती कम मुस्कुराती ज्यादा है.... माँ ...! बोलती कम मन में बुदबुदाती ज्यादा है...! | ![]() अनीता निहालानी ----पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से असम में निवास, पहले उत्तरप्रदेश में पली बढ़ी . तीन पुस्तकें कविताओं की प्रकाशित हुई हैं.इन्टरनेट पर अभी कुछ ही दिनों से लिखना शुरू किया है. बिन बदली बरसे ज्यों सावन भीतर ही तो तुम रहते हो खुद से दूरी क्यों सहते हो, जल में रहकर क्यों प्यासे हो स्वयं ही स्वयं को क्यों फांसे हो ! भीतर एक हँसी प्यारी है खनक न जिसकी सुनी किसी ने, भीतर एक खुला आकाश जगमग जलता परम प्रकाश |
![]() अच्छा लगता है- कुछ को दोस्त , कुछ को दुश्मन बनाना अच्छा लगता है मुझे तो रिश्ता -ए-इंसानियत निभाना अच्छा लगता है । सिर्फ लफ्जों से वयां न हो , कि अच्छे हैं हम मुझे सोच में , कर्म का कमाना अच्छा लगता है । |
![]() भावना साथी ---ek ladki hu es liye stree ke sabd or artho ko janne ki kosis me hu,jivan ko jina or samjhna chahti hu apne pure vajud ke sath.. विराम जीवन की इस पंक्ति पर विराम लग गया है इस ओर या उस ओर कहीं तो होगा इस जीवन का अर्थ | ![]() ऐ मेरे प्राण बता. ऐ मेरे प्राण बता क्या भुला पाओगे? वो झरोखे में छुपी तेरे नयनों की चुभन, गोरे रंग में जो घुली- वो गुलाबों की घुलन, तेरा तन छूकर आती संदली मलय पवन. |
![]() : कुछ बढाई गयी कुछ घटाई गयी कुछ बढाई गयी कुछ घटाई गयी, ज़िंदगी हर अदद आज़माई गयी। फ़ेंक दो ये किताबें अंधेरों की हैं, जिल्द उजली किरण की चढ़ाई गयी। टांग देते थे जिन खूटियों पर गगन, वो पुरानी दीवारें गिराई गयी |
![]() इंसान की मुकम्मिल पहचान मेरे राममुल्क की उम्मीद-ओ -अरमान मेरे राम,इंसान की मुकम्मिल पहचान मेरे राम। शिवाला की आरती के प्रान मेरे राम, रमजान की अज़ान के भगवान् मेरे राम। |
![]() मुखौटा दस चेहरे अपने कब चाहा था मैंने एक ही चेहरा अन्दर और एक ही चेहरा बाहर बनाये रखा बरसों |
जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रौशनी ये खीरगी, ये दिलबरी, ये कमसिनी, ये नाज़ुकी दो चार दिन का खेल है, सब कुछ यहाँ पर आरिजी खीरगी: चमक, दिलबरी: नखरे, आरिजी:क्षणिक हैवानियत हमको कभी मज़हब ने सिखलाई नहीं हमको लडाता कौन है ? ये सोचना है लाजिमी |
![]() डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी ---एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। मेरे बारे में अधिक जानकारी निम्न लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है। आपको शत नमन स्वागतम आपका कर रहा हर सुमन। आप आये यहाँ आपको शत नमन।। भक्त को मिल गये देव बिन जाप से, धन्य शिक्षा-सदन हो गया आपसे, आपके साथ आया सुगन्धित पवन। आप आये यहाँ आपको शत नमन। |
चलते चलते -----एक लिंक और ….. ![]() क्षणिकाएं ....कुछ लिखना .... तू चाहती थी कि मैं लिखूं तुझ पर कुछ पर पाता हूं खुद को असमर्थ कि तुम जो खुद एक किताब हो उसके पन्ने पलटते पलटते खुद मैं खो जाता हूं |
उम्मीद है आपको रचनाओं के साथ रचनाकारों का परिचय अच्छा लगा होगा ….आपकी प्रतिक्रियाओं और सुझावों का इंतज़ार है ….तो फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को इसी मंच पर नयी चर्चा के साथ ..तब तक …..नमस्कार …… संगीता स्वरुप |