दिसम्बर का मास मेरे लिए बहुत ही व्यस्ततम महीना है! परन्तु चर्चा का मेरा दिन न खाली रह जाए इसलिए मात्र औपचारिकता ही निभा रही हूँ! डॉ. नूतन गैरोला |
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इसके बाद..अंदाज-ए-बयां और भी शायराना रहता है... ऐसे ही तो होते हैं....पहाड़ी ओहदे.. जिनमें...अब सदायें आसमां के पार नहीं जातीं ... में खो गया है..."गिलहरी" का आभास... और..मेरे जज्बात में इसलिए ...मन की गाँठें खोल... क्रोध,... और जीवन सवेरा |
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आज केवल इतने ही लिंक लगा पाई हूँ! डॉ. नूतन गैरोला |
very nice.
जवाब देंहटाएंव्यस्तता में भी बढ़िया चर्चा !
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत बढ़िया चर्चा ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंव्यस्तता के बावजूद आपने एक अच्छा सार-संकलन प्रस्तुत किया है. आभार .
जवाब देंहटाएंव्यस्त होने बावजूद बहुत अच्छे लिनक्स दिए हैं आपने..... मुझे जगह देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंाच्छे लिंक्स आभार।
जवाब देंहटाएंव्यस्तता के बावज़ूद बहुत अच्छी चर्चा ..अच्छे लिंक्स मिले .
जवाब देंहटाएंव्यस्त होने बावजूद बहुत अच्छे लिंक्स दिए हैं ………………सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंव्यवस्तता में भी अच्छी है चर्चा.
जवाब देंहटाएंacchi charcha!!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ...शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा ...आभार !
जवाब देंहटाएंमुंबई लोकल ट्रेन मैं देखें इंसानों के कई चेहरे एक साथ [35
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