आइए आज की चर्चा प्रारम्भ करता हूँ!
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मनोज पटेल ने अनुवाद का जो बीड़ा उठाया है वह तो काबिले गौर है ही पर जिस लगन और रफ्तार से अनुवाद कर रहें हैं वो हैरतअंगेज है. लगभग रोज ही किसी सुघड़ और सुन्दर कविता का अनुवाद कर रहे हैं उसी शृंखला में निजार कब्बानी की यह प्रेम कविता..
: चन्दन | Source: नई बात
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इस सॉफ्टवेर की सहयता से आप अपने हार्ड डिस्क के बारे में सारी जानकारी को अच्छी तरह से जान सकते है|
Deepesh Gautam | Source: Deepesh Gautam (दीप॓श गौतम)
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कभी हरे भरे ऊंचे पेड़ कुछ आम के कुछ नीम के कुछ बरगद और गुलमोहर के दिखाई देते थे घर की छत से..
यशवन्त | Source: जो मेरा मन कहे
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कभी सुख कभी दुःख क़ा साया , कभी धूप तो कभी छाया , कभी चमकती हुई आशा , कभी अँधेरी निराशा , कभी मुस्कुराते चेहरे ; कभी मुरझाई शक्ले , कभी सुनहरा प्रभात , कभी काली रात, कभी सूखती धरती, कभी बरसता बादल, ये सब देखना है...... तो जिन्दगी जीकर देखिये ! !
shikha kaushik | Source: vikhyat
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सुनो ..... जंगल के जानवरों सुनो कान खोल कर सुनो मैं तुम्हारे जैसा वफादार नहीं....
babanpandey | Source: " 21वीं सदी का इंद्रधनुष "
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अरविन्द जांगिड | Source: Arvind Jangid
एक शब्दवानी शीर्षक "पाखंड छोड़ भाई, असल भक्ति ले अपनाय" जो सीधे उन लोगों पर वार करती है धर्म के नाम पर नित नए पाखण्ड रचते हैं, वास्तविक ईश्वर भक्ति से कोसों दूर हैं।
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ये भी ख़ूब रही........... परिकल्पना ब्लॉग पर रवीन्द्र प्रभात जी ने आज की पोस्ट में पूछा था कि " वर्ष २०१० में हिन्दी ब्लोगिंग ने क्या खोया, क्या पाया ?" ...
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लडका लडकी जब आठ वर्ष के हों तभी लडकों को लडकों की और लडककियों को लडकियों शाला में भेज देवें लडके और लडकियों की पाठशाला दो कोश एक-दूसरे से दूर होनी चाहिए .
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इस तरह से मंजिल ए मकसद तक पहुंचे जब सबने हमसफ़र को अपना समझा एक समय था प्रचार प्रसार के लिए कोई साधन नहीं थे . लोगों को अपने विचार दूर दूर तक पहुँचाने के ..
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देखो मैं बेवफा नहीं हूँ यकीन कर लो ना मुहब्बत से जिन्दगी हँसीन कर लो ना।। कब तक यूँ ही धोखे खाते रहोगे यार तुम थोड़ा तो अपने आपको जहीन कर लो ना...
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जो बात कोई नहीं जानता वो मैं जानता हूँ, राज़ की बात है लेकिन आज मन में लहर आ गई इसलिए आपको बता रहा हूँ । प्लीज़ आप किसी को मत बताना
लघुकथा :: ईष्ट देव -भोलू प्रतिदिन की भांति उस दिन भी अपने ईष्ट देव पर चढ़ाने के लिए फूल लेने घर से निकला था।
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और अन्त में देखिए
बाराबंकी से प्रकाशित होने वाली
लोक संघर्ष पत्रिका का दिसम्बर 2010 का अंक
इसके स्वामी, प्रकाशक और मुद्रक हैं
रणधीर सिंह "सुमन"
इनका ई-मेल है-
loksangharsha@gmail.com
और ब्लॉग का पता है-
http://loksangharsha.blogspot.com/
इसमें विवादित ढाँचे के बारे में
बहुत ही महत्वपूर्ण लेख छपे हैं!
इस त्रैमासिक पत्रिका का वार्षिक सदस्यता शुल्क 100रु. है!
बाराबंकी से प्रकाशित होने वाली
लोक संघर्ष पत्रिका का दिसम्बर 2010 का अंक
इसके स्वामी, प्रकाशक और मुद्रक हैं
रणधीर सिंह "सुमन"
इनका ई-मेल है-
loksangharsha@gmail.com
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: अविनाश वाचस्पति | Source: नुक्कड़
श्रद्धांजलि!
विधि के विधान को कौन टाल सकता है!
परमपिता परमात्मा श्रीमती बृजलता की
आत्मा को शान्ति प्रदान करें!
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जवाब देंहटाएंसुप्रभात मयंक जी !
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद ...
जो इतने अच्छे लिंक्स आप यहाँ प्रस्तुत किये । माफ़ करिए , पहले वाली टिपण्णी गलती से हट गयी ।
आभारी ,
यज्ञ
मेरे ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है
http://ygdutt.blogspot.com
nice
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर , सुगढ व सुनियोजित चर्चा की है……………काफ़ी सारे लिंक्स पढ लिये……………बहुत बहुत आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे और बहुत सारे लिंक्स मिले ...सार्थक चर्चा के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सारे लिंक्स मिले ...सार्थक चर्चा ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंश्रीमती बृजलता जी को श्रद्धांजलि!
sundar charcha.. aur acche links .. Dhanyvaad
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे और बहुत सारे लिंक्स मिले ...सार्थक चर्चा के लिए आभार
जवाब देंहटाएंI have interpret a only one of the articles on your website trendy, and I really like your tastefulness of blogging. I added it to my favorites entanglement stage muster and resolve be checking back soon. Please repress out of order my position as ok and leave to me conscious what you think. Thanks.
जवाब देंहटाएंbahut sare links mile, saadgipoorn charcha.
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