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रविवार, मार्च 06, 2011

रविवासरीय चर्चा–06-02-2011

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं चर्चा के साथ।


आज की चर्चा शुरु करते हैं एक उम्दा ग़ज़ल के बेहतरीन शे’र से।

मुहब्बत एक खुशबु है हमेशा साथ चलती है
कोई   इंसान  तन्हाई  में  तन्हा  नहीं   रहता
बशीर बद्र की इस ग़ज़ल को  जगजीत सिंह की आवाज़ में आप सुन सकते हैं। आपको बस इस लिंक को क्लिक करना है।

परखना मत परखने से कोई अपना नहीं रहता - बशीर बद्र। इस गज़ल को Jakhira पर Devendra Gehlod पेश कर रहे हैं।

My Photoअब कोई इतना भी न परखे कि कोई छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए। एक लघुकथा है, जिसे प्रस्तुत कर रही हैं Sonal Rastogi.


भले ही हमारी उम्र में दो साल का अंतर हो पर अनुभव में कम से कम एक दशक का ... तुमको हमेशा मखमल मिला है और मैंने टाट को मखमल में बदला है ..खुरदुरेपन से मुलायमियत तक का सफ़र इतना आसान नहीं होता ...तुम्हारी आँखों में सपनो के बुलबुले देखकर घबराती हूँ जिस दिन धरातल से टकरायेंगे क्या होगा .

My Photoअपने बचपन या अतीत में लौटने की चाहत तो रहती है, पर क्या ये संभव है।

वह जानना चाहते हैं तो अपर्णा की सुनिए -

कभी यूँ लौट जाना चाहती है  एक नदी
अपने बचपन में
दूरस्थ घाटियों की वही सुरम्य गोद
देवदार का महा-स्पर्श समेटकर लाती
टुकड़ा-टुकड़ा धूप
बदली का कोमल हाथों से
धो देना म्लान मुख
और हरे छप्पर में लोरी गाती जंगली मैना

My Photoअगर रहना चाहते हैं निरोगी तो खाइए मटर, क्योंकि शोध से पता चला है

मटर ही नहीं,उसका छिलका भी उपयोगी होता है। बता रहे हैं कुमार राधारमण कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, ऐसी मटर प्रदर्शित की है, जिसका छिलका भी खाया जा सकता है। मटर की इस किस्म जीपी-901 को अभी तक आम नाम नहीं दिया गया है।

जो हाल है उसके अनुसार …. मैं क्यों बताऊं, खुद ही देखिए Kirtish Bhatt, Cartoonist का कार्टून: हर महीने नया पी एम्. देखिए
manmohan singh cartoon, congress cartoon, cvc cartoon, pmo cartoon, indian political cartoon

rajiv ले रहे हैं लॉयलटी टेस्ट! कहते हैं एक-दूसरे के प्रति इमोशनल कम्पैटबिलटी या अटैचमेंट ना होते ही भी संबंधों को ढोना इमोशनल अत्याचार की कटैगिरी में आता है. किसी भी रिलेशनशिप की शुरुआत अक्सर फिजिकल अट्रैक्शन से होती है. लेकिन कोई रिश्ता तभी परवान चढ़ता है जब पार्टनर्स इमोशनली कम्पैटबल हों.

My Photoप्रतिनियुक्ति पर दूसरे विभागों में गए केंद्रीय कर्मचारी और अधिकारी निर्धारित समय सीमा बीतने के बाद भी यदि अपने मूल विभाग में नहीं लौटते हैं तो उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। बता रहे हैं शिक्षामित्र कि

डीओपीटी का निर्देशःप्रतिनियुक्ति अवधि के बाद इंक्रीमेंट में लगेगा झटका

ताजा आदेश में कहा गया है कि अब इसका उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। इसके तहत तय सीमा के बाद की अवधि के कार्यकाल को सेवाकाल में नहीं जोड़ा जाएगा। पेंशन के लिए भी यह सेवाकाल नहीं जुड़ेगा। इसी तरह अगर कोई वेतन वृद्धि मिलनी होगी तो वह भी इस दौरान नहीं लागू होगी।

My Photoसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी का कहना है -

मान गये जबलपुर की मिट्टी में ब्लॉगिंग का कीड़ा है...!! शिवनी, धूमा, लाखनखेड़ा, बर्गी आदि बाजारों में टायर खोजते हम अंततः जबलपुर आ गये हैं। यहाँ टायर मिल गया है। करीब दो सौ किमी. चिन्तित अवस्था में चलते हुए अब हमें सकून मिला है तो यह हाल आपके हवाले कर रहा हूँ। यदि स्टेपनी का कमजोर टायर भी पंक्चर हो जाता तो हम क्या

करते?


''मैला आँचल'' के

अमर कथाकार

श्री फणीश्वर नाथ रेणु

को उनके जन्मदिन पर

श्रद्धांजलि दे रहे हैं Aravind Pandey -

Duniya Bananewale Kya tere man Me Samai

Aravind Pandey Sings .wmv

प्रीत बनाके तूने जीना सिखाया .

हंसना सिखाया , रोना सिखाया.

जीवन के पथ पर मीत मिलाये.


मीत मिलाके तूने सपने दिखाए .

सपने दिखाके तूने काहे को दे दी जुदाई.

काहे को दुनिया बनाई.

My Photoपी.सी.गोदियाल "परचेत" की चेतावनी =

सावधान ! यह ब्लॉग्गिंग और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के 'पर' कतरने की तैयारी हो सकती है ! भारत के सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम २००८ को अंतिम रूप दिया जा रहा है और पूरक नियमों को इसमें शामिल किया जा रहा है, जिसमे अप्रतयक्ष रूप से भारत सरकार को यह अधिकार होगा कि वह इंटरनेट पर प्रकाशित सामग्री को अपने ढंग से नियंत्रित कर सके और ब्लोगों को ब्लोंक कर सके !
एक संवेदनशील व जिम्मेदार सरकार और नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह ऐसी कोई आपत्तिजनक सामग्री सार्वजनिक मंचों पर प्रकाशित न करे या होने से रोके, जिसका समाज पर दुष्प्रभाव पड़ता हो!

अशोक कुमार पाण्डेय ले कर आए हैं दुख की हरियरी फसल!

आंसुओं की उदास नमी में ही नहीं

हँसी की टटका धूप में भी

पनप सकती है

दुख की हरियरी फसल




मेरा फोटोऔर अब Minakshi Pant का

सिर्फ अपना दर्द ही अपना

चारों तरफ क्रंदन ही क्रंदन 

इन्सान इतना  बेरहम

कब से हो गया |

किसी के दर्द से जैसे

उसका
कोई वास्ता ही नहीं |

अपने दर्द में इतनी झटपटाहट 

और दुसरे का दर्द ...

सिर्फ एक खिलखिलाहट |



afsarpathan बता रहे हैं

इतिहास और कह रहे हैं पर्यटन के नक़्शे से गुम कार्नवालिस! भारतीय पर्यटन के नक्शे से गुम लार्ड कार्नवालिस का मकबरा खुद की बेनूरी मायूस जरूर है मगर इससे होने वाली विदेशी मुद्रा की आमदनी से सरकार भी महरूम है। अगर सरकार व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कार्नवालिस के मकबरे का सुन्दरीकरण करा कर पर्यटकों कर खातिर उचित सुविधा मुहैया कराकर इसे भारत गाइड बुक व पर्यटन के नक्शे पर अंकित करा देती है तो इससे विदेशी मुद्रा तो अर्जित होगा ही बल्कि इस जांबाज गर्वनर जनरल के रूह को सुकून मिलेगा।



011स्वास्थ्य सेवाएं-मोबाइल की रोशनी में प्रसव! चौंकिए नहीं, पढिए और अपने विचार दीजिए।

पिछले दिनों एक समाचार पढा। हेडिंग थी, “मोबाइल की रोशनी में प्रसव” !

पढकर फ़िल्म थ्री इडियट्स की याद आ गई। फ़िल्म में गाड़ी की बैटरी की मदद से इनवर्टर बना कर डिलवरी करा दी गई। हम ताली बजाते और “ऑल इज़ वेल” गाते हॉल से बाहर निकल गए।

पर इस समाचार में ऐसा कोई अनोखा करतब करते थ्री इडियट्स नहीं थे। पूरा समाचार पढने के बाद मन में स्वाभाविक प्रश्न आया कि क्या हमारे देश की स्वास्थ्य सेवा में सब “ऑल इज़ वेल” है?

My Photoसतीश पंचम

भम्भ रर रहा है.....! फणीश्वरनाथ रेणु जी ने 'मैला आँचल' में एक जगह पूर्णिया के नील गोदाम का जिक्र करते हुए लिखा है कि - जब भी  गाँव का कोई नौजवान बियाह के बाद गौना करवा कर अपनी दुलहिन लेकर लौटता था तो रास्ते में पड़ने वाले नील गोदाम के पास पहुँचते ही कहता था कि गाड़ीवान....गाड़ी को जरा धीरे हाँको....दुलहिन नील गोदाम का हौज और साहब की कोठी देखना चाहती है । सुनते ही दुलहिन थोड़ा सा घूँघट सरका कर ........ओहार हटा कर देखती ..... यहाँ तो इंटो का ढेर है...........कोठी कहाँ है......।

My Photoसंजीव तिवारी परिचय करा रहे हैं गाँधीवादी विचारधारा के छत्तीसगढ़ी साहित्यकार -कोदूराम "दलित" से। दलित जी ने सन १९२६ से लिखना आरंभ किया. उन्होंने लगभग 800 कवितायेँ लिखीं. जिनमे कुछ कवितायेँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई और कुछ कविताओं का प्रसारण आकाशवाणी से हुआ. आज छत्तीसगढ़ी में लिखनेवाले निष्ठावान साहित्यकारों की पूरी पीढ़ी सामने आ चुकी है, किन्तु इस वट-वृक्ष को अपने लहू-पसीने से सींचनेवाले, खाद बनकर उनकी जड़ों में समा जानेवाले साहित्यकारों को हम न भूलें.

प्रवीण पाण्डेय की कविता पढिए मगन होके बहती है, जीवन की लहरी

हृदय में उमंगें उमड़तीं, मचलतीं,

जहाजों की पंछी बनी साथ चलतीं ।

कभी गुदगुदाती हैं यादें रुपहली,

मगन होके बहती है, जीवन की लहरी ।।

आज बस इतना ही।


अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।

16 टिप्‍पणियां:

  1. सीमित चर्चा देख कर, मन में जगी उमंग।
    चर्चा के अन्दाज़ ने, खूब जमाया रंग।।
    खूब जमाया रंग, लिंक है सुन्दर-सुन्दर।
    कूजे में भर दिया, आपने आज समन्दर।।
    कह मयंक कविराय, बनाओ छोटा पर्चा।
    खुश हो करके लोग, पढ़ेंगे सीमित चर्चा।।
    --
    बहुत सुन्दर लिंकों के साथ सजी हुई एक बढ़िया चर्चा!

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  2. सुंदर प्रारूप में बढ़िया चर्चा.

    जवाब देंहटाएं
  3. कुछ नये लिंक अपने गूगल रीडर में लेकर जा रहा हूँ। आभार।

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  4. बढ़िया चर्चा...
    सुन्दर लिंकों के साथ सजी हुई !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत संदर व् सार्थक चर्चा.बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  6. नए लिनक्स के लिए ...बढ़िया चर्चा
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर चर्चा | मुझे चर्चा में स्थान देने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर चर्चा ...अच्छे लिंक्स समेटे हैं .

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर चर्चा..सुन्दर लिंक्स के लिये आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. मुझे तो पता भी नहीं था की आपने मेरी रचना चर्चा मंच में लगाई है बस यहाँ आई तो देख कर बहुत ख़ुशी हुई दोस्त और भी बहुत से अच्छे -२ लिंक्स मिले |
    आपका बहुत - बहुत शुक्रिया |

    जवाब देंहटाएं

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