नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं रविवासरीय चर्चा के साथ।
एक और घटना गए सप्ताह विचार-विमर्श का केन्द्र रही। इच्छा मृत्यु सही या नहीं। गद्य कार इसे अलग तरह से देखेंगे पर कवि की अनुभूति अलग है। रचना ने एक कविता सोच रहा हैं अरुणा शानबाग का बिस्तर प्रस्तुत की है।
अरुणा
मर तो तुम उस दिन ही गयी थी
जिस दिन एक दरिन्दे ने
तुम्हारा बलात्कार किया था
और तुम्हारे गले को बाँधा था
एक जंजीर से
जो लोग अपने कुत्ते के गले मे नहीं
उसके पट्टे मे बांधते हैं
इस कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाए कम है। कवयित्री का आक्रोश हमारे मनोभाव को आवाज़ देता है।
एक बिस्तर कि भी पीड़ा होती हैं
कब ख़तम होगी मेरी पीड़ा
अरुणा का बिस्तर सोच रहा हैं
और कामना कर रहा हैं
फिर किसी बिस्तर को न
बनना पडे
किसी बलात्कार पीड़िता
का हमसफ़र
ब्लॉगजगत में कभी न खत्म होने वाली बहस ज़ारी है। टिप्पणी चाहिए, न चाहिए, तारीफ़ हो न हो, हो तो क्या हो, न हो तो क्यों न हो ..। ज़ाकिर जी ने अपना पक्ष रखा है।
क्या व्यर्थ जा रहे हैं तारीफ में लिखे कमेण्ट ? कहते हैं आप मानें या न मानें पर प्रशंसा (भले ही झूठी क्यों न हो) शरीर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती है, प्रशंसा लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करती है। प्रशंसा हमें दूसरों के बारे में सोचना सिखाती है, प्रशंसा हमारे शुभेच्छुओं की संख्या बढ़ाती है, प्रशंसा हमारे जीवन में रस लाती है, प्रशंसा हमारी सफलता को नई ऊंचाईयों की ओर ले जाती है।ज़ाकिर भाई आप बहुत अच्छा लिखते हैं, आपकी बातें तार्किक और प्रेरक होती हैं। मैं तो बस ग़ालीब का एक शे’र लिखूंगा,
वरक़ तमाम हुआ और मद्ह बाक़ी है,
सफ़ीना चाहिए इस बह्रे-बेकराँ के लिये।
Patali-The-Village ने दादी मां की कहानियां सुनाते हुए आज एक बहुत ही सीख देती कहानी पेश किया है। किसी बनमें बरगद का एक विशाल वृक्ष था| उसकी घनी शाखाओं पर अनेक पक्षी रहा करते थे| उन्हीं में से एक शाख पर एक काक दम्पति रहता था और वृक्ष के ही खोखले में एक कला सांप रहता था| जब भी मादा कौआ अंडे देती तो वह उन्हें खा जाया करता था | कौए के अण्डों को खा जाना उस दुष्ट सर्प का स्वभाव बन गया था| काक दम्पति उसके इस आचरण से बहुत दुखी रहता था, परन्तु उन्हें इसका कोई उपाय नहीं सूझता था| श्रृंगाल ने उन्हें बताया कि शारीरिक बल से उपाय श्रेष्ट है और जब उनकी परेशानी दूर हुई तो
काक-दम्पति ने भी श्रृगाल को उसके बुद्धि चातुर्य के लिए धन्यवाद किया और फिर वे दोनों निश्चिन्त हो आनंदपूर्वक रहने लगे|
इसीलिए कहा गया है कि "बलवान को उपाय से ही जितना चाहिए"|
बेटा दूर जाए तो माँ का दिल कुछ कैसे धड़कता है . . बता रही हैं शारदा अरोरा, और उनके लिए उनकी तरफ़ से
ये दुआएँ हैं
कह दो इन चाँद सितारों से
हर रात चमकना होगा इन्हें
परदेस में मेरे लाडले को हिफाज़त से रखना होगा इन्हें
कोई माँ बैठी है इबादत में
घड़ियाँ गिनती , कलियाँ चुनती
अरविंद पाण्डेय प्रस्तुत कर रहे हैं कविता
तू भी न ले इंसान की अब जान ऐ खुदा ..उफनते सागर की उत्ताल
तरंगों का यह भीषण खेल.
रोक सकता है क्या यह मूढ़
मनुज अपनी सब शक्ति उड़ेल.
सतत विपरीत क्रिया से त्रस्त
प्रकृति जब होती है अति-क्रुद्ध.
आज की प्रकृति-विजयिनी शक्ति
भूल जाता है नर-उद्द्बुध.
आज जापान, मानवता की वैज्ञानिक-प्रज्ञा के सर्वश्रेष्ठ शिखर के रूप में सार्वभौम स्वीकृति प्राप्त कर चुका है..किन्तु वही जापान, पृथ्वी के चित्त में पल रहे भीषण क्रोध , महासागर की शीतल तरंगो के संभावित तप्त कोप का पूर्वानुमान नहीं कर पाया और क्रुद्ध धरती एवं कुपित महासागर के समक्ष उन नगरों और नगरवासियों को दया की भिक्षा माँगने का अवसर भी नहीं मिल पाया जो उस क्रोध के प्रत्यक्ष कारण नहीं थे.
Aparna Manoj Bhatnagar आज
हैं।
बिना आवाज़ के सन्नाटे को गिरने दो अपनी आत्मा के चारागाह पर
रखो आज मौन .
और एक उलटी गिनती पूरी होने तक
सागर को जी लेने दो समग्र ऊर्जा से
पहाड़ों पर गिरने दो बर्फ के झरने
जंगलों को बजाने दो बांसुरी
दूब को इतना फ़ैल जाने दो कि
ओस लेट पाए चैन से एक छोटी सुबह
बाल गीतों के बादशाह लाए हैं --
"मुझको पतंग बहुत भाती है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
नभ में उड़ती इठलाती है।
मुझको पतंग बहुत भाती है।।
रं
ग-बिरंगी चिड़िया जैसी,
लहर-लहर लहराती है।।
कलाबाजियाँ करती है जब,
मुझको बहुत लुभाती है।।
और दूसरे पल ही बनके मोहन खेल रहे हैं होली --
भोली बालाओं को, कान्हा बहलावे-फुसलावे,
धोखे से आ करके उनके मुँह पर रंग लगावे,
गोपियों के बिगड़े हैं हाल!
खेलते होली मोहनलाल!!
देवर-भाभी में होती है, जमकर आँख-मिचौली,
गली-गाँव में घूम रहीं हैं हुलियारों की टोली,
मचा है चारों ओर धमाल!
खेलते होली मोहनलाल!!
पता नहीं बादल छंट रहा है या घिर रहा है, क्योंकि
विचार पर इस बार है, आज के दिन ही गांधी जी ने डांडी मार्च किया था गांधी जी का नमक आंदोलन और दांडी पदयात्रा आधुनिक काल के शांतिपूर्ण संघर्ष का सबसे अनूठा उदाहरण है। यह गांधी जी के ही नेतृत्व और प्रशिक्षण का चमत्कार था कि लोग अंग्रेजी हुकूमत की लाठियों के प्रहार को अहिंसात्मक सत्याग्रह से नाकाम बना गए। यह एक ऐसा सफल आंदोलन था जिसने न सिर्फ ब्रिटेन को बल्कि सरे विश्व को स्तब्ध कर दिया था।
… और अब देखिए Minakshi Pant का संसार
हाहाकार है सारी दुनियां में ,
यहाँ जीने के आसार नहीं |
इस रंग बदलती दुनिया में ,
कौन एसा है जो बेकार नहीं |
हाय - हाय का शोर है हरतरफ ,
कोई कोना भी आबाद नहीं |
बात कहने से बात बिगडती है ,
बातों में अब शिष्टाचार नहीं ,
पढिए एक साक्षात्कार -
LBA रूबरू में आज ममत्व की देवी ::: रेखा श्रीवास्तव जीभारतीय महिला को खोजने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता है. हम अपने ब्लॉग जगत में ही देख लें तो उसकी छवि स्पष्ट होती है. वह प्रबुद्ध है और परिपक्व विचारों वाली भी है. मैंने किसी को ऐसा माना नहीं है. वैसे किरण बेदी को मैं प्रस्तुत कर सकती हूँ.
अब एक चेतावनी Hamarivani की --
Devendra Gehlod पेश कर रहे हैं अजनबी दुनिया में तेरा आशना मै ही तो था - मेहर लाल ज़िया फतेहाबादी
नाख़ुदा ओ मौज ए तूफ़ान की शिकायत क्या करूं
जिस ने ख़ुद किश्ती डुबो दी ऐ ख़ुदा मैं ही तो था
उस को बाहर ला के रुसवा कर दिया बाज़ार में
जो मुझे अन्दर से देता था सदा मैं ही तो था
अशोक बजाज बता रहे हैं
जापान में सुनामी: हर तरफ़ तबाही का मंज़र। जापान के इतिहास में सबसे भयंकर भूकंप और इसके बाद आए सूनामी ने देश के एक बड़े हिस्सा का नक्शा बदल कर रख दिया. 10 मीटर विशाल लहरों ने सैकड़ों लोगों का जीवन लील लिया और रास्ते में जो कुछ भी आया, उसे नष्ट कर दिया .कुमार राधारमण का एक और विचारोत्तेजक आलेख एडाप्टिव रेडियोथैरेपी पढिए।
कैंसर के इलाज में लिनियर एसीलरेटर का बहुत महत्व है। आज लिनियर एसीलरेटर मशीनों पर अत्याधुनिक तकनीकें जैसे - इमेज मोड्यूलेटेड एवं इमेज गाइडेड रेडियोथेरेपि उपलब्ध है, जो कि हमें त्रिआयामी रेडियोथेरेपि करने में मदद करती है। इससे शरीर के कैंसर वाले दूषित हिस्से में ज्यादा से ज्यादा एवं उसके एकदम नजदीक वाले अच्छे उत्तकों को कम से कम रेडिएशन जाता है।
विचार पर
प्रवीण पाण्डेय जी कह रहे है डरे डरे से मोरे सैंया।जब मन में छिपा हुआ सत्य अप्रत्याशित रूप से सामने आ जाता है, तब न कुछ बोलते बनता है और न कहीं देखते बनता है। बस अपनी चोरी पर मुस्करा कर माहौल को हल्का कर देते हैं। आप अपने घर पर हैं, चारों ओर परमहंसीय परिवेश निर्मित किये बैठे हैं, संभवतः ब्लॉग पढ़ रहे हैं। आपकी श्रीमतीजी आती हैं और चेहरे पर स्मित सी मुस्कान लिये हुये कुछ कहना प्रारम्भ ही करती हैं कि आप आगत की आशंका में उतराने लगते हैं। आप कहें न कहें पर आपका चेहरा पहले ही आपके मन की बात कह जाता है। अब चेहरा कहाँ तक कृत्रिमता ओढ़े बैठा रहेगा, जो मन में होगा वह व्यक्त ही कर देगा। अब यह देखकर श्रीमतीजी आप पर यह सत्य उजागर कर दें तो आपको कैसा लगेगा?
amit-nivedita लेकर आए हैं "रिश्तों के खंडहर"
रिश्तों की इमारत से,
हमने तो कोई पाया नहीं खींचा ,
हाँ अनुपात ज़रूर एक,
एक का कर लिया था |
पर शायद यह इमारत,
उनकी सपनों की इमारत ,
का एलिवेशन बिगाड़ रही थी ,
सो बड़े प्यार से,
अपने हिस्से के पाए ,
उन्हों ने खिसका लिए |
सुज्ञ प्रचार-प्रसार कर रहे हैं
निरामिष ब्लॉग : आहार जाग्रति। जगत में सुख और शान्ति का एक मात्र उपाय अहिंसा है, इसलिये सर्व मनुष्यों में अहिंसा का श्रेष्ठ भाव रहना आवश्यक है। उत्कृष्ट अहिंसा भाव, जीव-मात्र के प्रति अनुकम्पा से ही जाग्रत हो सकता है। चुंकि आहार ही सबकी प्रमुख आवश्यकता है, और इसी उद्देश्य से सर्वाधिक हिंसा की सम्भावनाएं बनती है,इसलिये अहिंसाभाव का प्रारंभ भी आहार से ही सुनिश्चित होगा।
आज बस इतना ही।
अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।
हैप्पी ब्लॉगिंग!!
आपका चर्चा करने का अन्दाज मुझे बहुत अच्छा लगता है!
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक मिले!
कुछ पर हो आया हूँ और कुछ पर जाना बाकी है!
सार्थक रविवारीय चर्चा ,
जवाब देंहटाएंग्राम -चौपाल का लिंक देने के लियें आभार .
सार्थक चर्चा.....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा चर्चा....
जवाब देंहटाएंआप चर्चामंच बनाने और सजाने में बड़ी मेहनत करते हैं ,ये देख कर ही लग रहा है.बहुत सुन्दर लिंक्स.
जवाब देंहटाएंसंतुलित चर्चा
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा.....
जवाब देंहटाएंआभार..!
बहुत अच्छी चर्चा ...हर पोस्ट को पढने को प्रेरित करती हुई ..
जवाब देंहटाएंमनोज जी इतना कहां ये तो बहुत बढिया अन्दाज़ रहा चर्चा का …………जिस अन्दाज़ मे आप चर्चा करते हैं उससे कोई भी पाठक सभी लिंक्स पढे बगैर नही रह सकता………………बहुत सुन्दर और सटीक चर्चा।
जवाब देंहटाएंएक से एक छंटे हुए लिंक हैं आज की चर्चा में. धन्यवाद मनोज जी.
जवाब देंहटाएंकई स्तरीय व पठनीय नये लिंक मिले।
जवाब देंहटाएंthanks
जवाब देंहटाएंमनोज जी! आपकी चर्चा बहुत सुन्दर लगी ..बहुत अच्छे लिंक्स भी जुड़े हैं... सुन्दर चर्चा के लिए बधाई..
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स मिले...सभी को देखा, पढ़ा...
जवाब देंहटाएंदिलचस्प एवं पठनीय लिंक्स देने के आपके श्रम के लिए हार्दिक आभार..
सार्थक चर्चा !
जवाब देंहटाएं