नमस्कार , आइये चलते हैं आज की साप्ताहिक काव्य मंच की चर्चा पर …होली बीत चुकी है लेकिन अभी भी होली की फगुनाहट कहीं कहीं दिखाई दे रही है …होली के इस उत्सव में हमारे कुछ ब्लॉगर साथी मस्त थे तो कुछ त्रस्त थे .. खैर यही जीवन है कहीं गम है तो खुशी ….आज मैं इस मंच से एक खुशखबरी देना चाहती हूँ …. सुश्री शिखा वार्ष्णेय जिनका ब्लॉग है “स्पंदन” उनके हिंदी के प्रति किये कार्यों को देख तथा उनके संस्मरण के लिए भारतीय उच्चायोग लन्दन द्वारा “ लक्ष्मी मल्ल सिंघवी यू के “ अनुदान सम्मान दिया गया है ,उन्हें 250£ की धनराशि और मान पत्र प्रदान किया गया …. हमारी तरफ से शिखा जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें …. लीजिए एक झलक चित्रों की भी देख लें … |
मानपत्र ग्रहण करते हुए | |
रश्मि प्रभा जी ने कितनी गहनता से प्रेम को अभिव्यक्त किया है कि आखिर क्या है “प्रेम” जोड़े थे दिन उँगलियों पर बड़ी ऐंठन हुई थी अन्दर फिर धीरे धीरे मान लिया था मैंने प्यार एक इबादत है ज़रूरी नहीं कि इबादत करने पर खुदा आँखें खोल ही दे ! |
मनोज कुमार जी आज की परिस्थितियों के आगे कह रहे हैं --हार गया मन महँगाई के डर से
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होली का रंग उतरा नहीं कि वंदना गुप्ता जी बहुत ही निर्विकार भाव से कह रही हैं कि -उदास हूँ मैं ... चलिए देखते हैं आखिर क्या हुआ है .. अब न तुम्हारी याद /तुम्हारा ख्याल /और ना ही तुम कोई नही होता /आस पास / मगर फिर भी /उदास हूँ मैं…… |
एम० वर्मा जी होली के तीन दृश्य दिखा रहे हैं --बदरंग हो गए रंग सारी उमर तमन्ना मे बीती रंग लगाने की उसको बदरंग हो गये रंग अब सारे ..क्यों भला ? इसका खुलासा करिये ब्लॉग पढ़ कर | राजभाषा हिंदी पर पढ़िए श्याम नारायण मिश्र का नवगीत महकी फागुन की भोर पोर-पोर महकी फागुन की भोर, पिया बांसुरी बजाओ। |
राकेश खंडेलवाल जी ने ऋतुओं का खूबसूरत चित्रण किया है ---चैतिया सारंगियां अब लग गईं बजने हवा में गन्ध आकर कोई मोहक लग गई घुलने क्षितिज पर बादलों के बन्द द्वारे लग गये खुलने धरा ने श्वेत परदों को हटा कर खिड़कियाँ खोलीं गमकती ओस से पाटल कली के लग गये धुलने |
शिखा दीपक जी की एक गज़ल –दुआएं हो जाएँगी जिन्दा सभी वीरान महफ़िलें जो तेरे नाम के साथ एक मेरा भी जिक्र चले | आशा जी बता रही हैं रिश्तों का दर्द ..वही जानता है जिसने रिश्तों को पाला और निभाया होता है ..पढ़िए उनकी रचना दरकते रिश्ते |
सत्यम शिवम जी अपने भाई के जन्मदिन पर दुआ कर रहे हैं …मेरी इच्छा के बन दीप इतनी शक्ति दे ईश्वर, एक दिन जाओ दुनिया को जीत। मेरी इच्छा के बन दीप। |
राजेश उत्साही जी गौरैया दिवस पर लाये हैं एक खूबसूरत कविता --मासूम चिड़िया वह एक मासूम चिडि़या मेरी तस्वीर पर अपना घोंसला बनाना चाहती है | वंदना महतो क्या कह रहीं हैं -"तुम " से .. जैसे कुछ पन्ने उड़ कर कभी वापस आते नहीं, तुम भी किस्तों में उड़ जाते तो अच्छा रहता. |
इस ब्लॉग की देख रेख कर रही हैं अपर्णा मनोज और इस बार लायी हैं अर्पिता श्रीवास्तव की चुनी हुई रचनाएँ -- दिल दिल का एक छोटा सा हिस्सा रोशन धूप से भीगा जल से पसीजा ओस से सहेजा स्नेह से… और भी बहुत कुछ ब्लॉग पर जा कर पढ़ें |
रचना दीक्षित जी ले आयीं हैं पिटारा भर कर इन्द्रधनुषी रंग . रंगों का अजब फुहारा हूँ मैं. खुशिओं का पिटारा हूँ मैं. रह जाऊं अन्दर तो गुमसुम. बिखर जाऊं तो नज़ारा हूँ मैं. | अरुण सी० राय इस बार क्षणिकाओं में विस्तार ले कर आये हैं --प्रिय ! रंग देना इस होली बनियान /जिसमे हो गए हैं /असंख्य छेद /पीठ पर उगे /समय के काँटों से /उलझ कर, /रंग देना उसे प्रिये / |
बबुशा इतिहास के पन्नों से चुन कर लायी हैं विषय , जिसको आज के सन्दर्भ में देख रही हैं ..मैं क्रोधित हूँ तुम पर भीष्म ,सोचने पर विवश करती रचना …बहुतों के मन में प्रश्न उठा होगा लेकिन इनकी लेखनी ने इस प्रश्न को शब्द दिए हैं .. |
कितना सुखद है / कुछ नहीं सुनना बहरापन .... / सन्नाटा / नीरवता / शून्य! यह मैं नहीं कह रही …आनंद द्विवेदी जी लाये हैं अकेलापन | अरुण साथी व्यंग लिखने में माहिर हैं …उनकी एक रचना पढ़िए …ब्लॉगरिया ब्लॉगिंग करने की बिमारी, संक्रामक है बड़ी भारी। जिसको होता इसका इंफेक्शन, काम नहीं आता कोई इंजेक्शन। |
सार्थक सन्देश देती श्री जे० पी० तिवारी जी की रचना पढ़िए ..प्रकृति का रोष या मानव का दोष कैसा आया यह भयंकर भूकंप भीषण लाया कहर निज संग. देखो! ये लाया संग है सुनामी, जन-जीवन की कठिन कहानी. |
अजय कुमार जी होली के सुरूर में केतना बड़ा सच लिख दिए हैं ज़रा इहाँ देखें --अरे ई होली का है सुरूर | ज़खीरा ब्लॉग पर पढ़िए आरज़ू लखनवी की गज़ल --किसने भीगे बालों से ये झटका पानी |
दिगंबर नासवा जी अपनी खूबसूरत गज़ल में ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं , क्या प्रार्थना है वो आप पढ़िए --- इस तरह परिणय न हो कष्ट में भी हास्य की संभावना बाकी रहे प्रेम का बंधन रहे सदभावना बाकी रहे |
मुकेश मिश्रा जी गौरैया दिवस पर बहुत प्यारी रचना ले कर आये हैं ..एक प्रश्न के साथ - कहाँ गयी वो प्यारी फुदकन | योगेश शर्मा जी अपनी रचना के माध्यम से कह रहे हैं की हर जगह उदासी है गम है पर फिर भी उजाले की नींव हमें स्वयं ही तो रखनी होगी .. |
अनीता निहलानी जी ने जब यह जाने का प्रयास किया कि कैसे होती है -महाप्रलय … उनको क्या पता चला , यह जानिये उनकी रचना पढ़ कर … कैसी होती है महाप्रलय /झांका जब मैंने ग्रंथों में, /जहाँ पुकार-पुकार कह रहे /कवि-ऋषि अति स्पष्ट शब्दों में | |
रोली पाठक होली दहन के तरीके को बताते हुए सार्थक सन्देश दे रही हैं ..यदि इस बार ध्यान न रक्खा हो तो अगले वर्ष ख़याल रखियेगा --आज है होलिका दहन |
कभी सघन / कभी विरल / कभी सुनहरा / कभी बदरंग /कभी स्याह /कभी सतरंग …. डा० नीरव रंगों की नहीं बात कर रहे हैं …बात हो रही है --समय .... समय ... समय की |
अशोक व्यास लाये हैं क्षणिकाओं में आनंद रसधार श्वेत शिखर निर्मल विस्तार जैसे मुस्कुराता सीमारहित प्यार | ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी आज के सामाजिक और राजनैतिक वातावरण से क्षुब्ध हो कह उठे हैं .. जाने कैसी ये होली है आँसू में रंग घुला बैठे जाने कैसी ये होली है उम्मीदों को बहला बैठे जाने कैसी ये होली है |
अब यह गज़ल है या नज़्म मैं नहीं जानती पर इसके रचयिता दीपक मशाल जी का यह दावा है कि - ये जो भी है आपके दिल को छुएगी ज़रूर अलग-अलग जो बरसा छाया तो साथ था अरे काफिला-ए-बादल आया तो साथ था |
राजेन्द्र तेला “निरंतर" कह रहे हैं कि -सीप में बंद मोती किस काम का सीप में बंदमोती किस काम का बिना बांटे ज्ञान किस काम का | कवि हृदय किस तरह दर्द से प्रभावित होता है यह जानना है तो पढ़िए गिरधारी खंकरियाल जी की रचना ..दम तोड़ रही है यमुना ! /वृद्धाकार ! /तटबंधों पर रेत के टीले ! और उन पर उगते / सफ़ेद कांस केश ! /रुग्णित, विक्लांत ! |
सरकारी गतिविधियों से हैरान परेशान गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी की होली कैसे हुई आप स्वयं जाने -- कैसी होली , कैसा फाग कैसी होली , कैसा फाग । रिश्तों में जंजीर नही है काँटा तो है पीर नही है जहाँ भी देखो, जिसे भी देखो हंगामा और भागमभाग । कैसी होली कैसा फाग । |
होली तो बीत चुकी है , लेकिन फिर भी मंजुला जी ने जो कहा है उस पर एक नज़र डाली जा सकती है --एक संकल्प इस होली में | शहरों की होली कैसे इतनी बेरंग होती है जानिये घुघूती बासूती जी से .. बसंत तो आया नहीं , होली तुम क्या आ पाओगी |
उमा जी लाती हैं मन के मनके ----पढ़िए उनकी खूबसूरत रचना -मुक्तिबोध तक ... जाना है पथरीली- पगडंडी पर, पीडाओं को ढोकर चल--आसुओं से भीगी घास की चादर पर क्लान्त-भ्रान्त,मन की रेतीली घाटी में चुके भविष्य की फसल उगानी है |
विवेक मिश्र जी कह रहे हैं कि आज कल आंसुओं का मूल्य समझने वाले नहीं मिलते , इसलिए …रोको अपने अश्रु नयन में रोको अपने अश्रु नयन में , भूले से बाहर ना ढलके । | महेंद्र वर्मा जी इस बार बहुत खूबसूरत नवगीत ले कर आये हैं - पंछी के कोटर में सपनों के जाले। चुगती है संध्या भी नेह के निवाले। |
चर्चा के समापन की ओर बढते हुए डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की सरस्वती वंदना पढ़ाना चाहूंगी , ऐसे सुन्दर भाव सबके मन में वास करें यही कामना है --कुछ शब्द सरल भर दो - माँ मेरी रचना में, कुछ शब्द सरल भर दो। गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।। |
चर्चा का समापन स्वप्न मंजूषा जी की गज़ल से करना चाहूंगी जिसमें वो बहुत संज़ीदगी से कह रही हैं कि रिश्तों से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए …. चेहरे .. ताल्लुक़ से खिलवाड़ न कर, रिश्ते बिगड़ जाते हैं आँख में होकर भी चेहरे, दिल से उतर जाते हैं |
आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ ….आशा है लिंक्स आपको पसंद आयेंगे …आपके सुझावों का इंतज़ार है आपकी प्रतिक्रिया हमारा मनोबल बढ़ाने में सहायक होती है …फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को नयी चर्चा के साथ …नमस्कार ….संगीता स्वरुप |
सुश्री शिखा वार्ष्णेय जिनका ब्लॉग है “स्पंदन” उनके हिंदी के प्रति किये कार्यों को देख तथा उनके संस्मरण के लिए भारतीय उच्चायोग लन्दन द्वारा “ लक्ष्मी मल्ल सिंघवी यू के “ अनुदान सम्मान दिया गया है ,उन्हें 250£ की धनराशि और मान पत्र प्रदान किया गया …. हमारी तरफ से शिखा जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें ….
जवाब देंहटाएं--
इस उपलब्धि के लिए शुखा वार्ष्णेय जी क बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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संगीता जी!
आपकी बहुत पैनी नजर है!
आज की चरचा बहुत बढ़िया रही!
संगीता जी चर्चा मंच का जबाब नहीं। एक से बढ़कर एक चिठठे को शामिल किया गया है। ब्लॉग के भुख्खारों को यहां अच्छी खुराक मिल जाती है।
जवाब देंहटाएंआपके परिश्रम का फल ही है यह बधाई।
संगीता जी
जवाब देंहटाएंआप की आज की इस बसंती वाटिका में फू;ऑन की सुंगंध के साथ इसका मधर मिठास भी है. और यह मिठास है इस सूचना में- 'सुश्री शिखा वार्ष्णेय जिनका ब्लॉग है “स्पंदन” उनके हिंदी के प्रति किये कार्यों को देख तथा उनके संस्मरण के लिए भारतीय उच्चायोग लन्दन द्वारा “ लक्ष्मी मल्ल सिंघवी यू के “ अनुदान सम्मान दिया गया है '. प्रतिभा और लगन को सम्मान मिलना ही चाहिए. रचनाकर सम्मान का भूखा नहीं होता, यह सही है लेकिन सही यह भी है की यह मान-सम्मान ही हैं जो गति की बढ़ा देते हैं और प्रेरणा को बल प्रदान करते है. उन्हें बधाई.
इसक्र अतिरिक्त ढेर सारे संचयन है आपकी बगिया में. अभी एक-एक दो- दो लेने ही देख पाया हूँ. चाय पिने के बाद विधिवत पढूंगा. मेरी रचना को भी इनके साथ सम्मिलित करने हेतु आभार.
शिखा जी को सम्मान मिलना ब्लॉग जगत के लिए ख़ुशी का सबब है . उनकी लेखनी में निर्भीकता, देशप्रेम, और कविताओ में भावनाओ के ज्वार भाटा पाठको को हिंडोले देते रहते है . उनको मेरी शुभकामनाये . आप की चर्चा के बारे में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाना है .
जवाब देंहटाएंशिखा
जवाब देंहटाएंजी के लिए मन प्रसन्नता से भर गया |
उन्हे इस सम्मान के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं
और बहुत बहुत बधाई |संगीता जी आज की बहुरंगी चर्चा बहुत अच्छी लगी |आपकी महनत की जितनी प्रशंसा की जाए कम है |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
शिखा को इस सम्मान के लिए बहुत बधाई व शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंइस गुलदस्ते के सभी फूल बहुत ही खूबसूरत हैं ...चुनते हैं अभी बारी- बारी !
अच्छा संग्रह ,आभार मुझे भी इस चर्चा में स्थान देने का ।
जवाब देंहटाएंसुश्री शिखा वार्ष्णेय “ लक्ष्मी मल्ल सिंघवी यू के “ अनुदान सम्मान प्राप्ति पर बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा के लिए संगीता जी को बधाई.
सुंदर, रंगीन, काव्यमय चर्चा।
जवाब देंहटाएंशिखा जी को बधाई।
शिखा जी को बधाई और सुन्दर लिंक्स सजाने के लिए आप का आभार
जवाब देंहटाएंशिखा वार्ष्णेय जी को इस बहुमूल्य उपलब्धि पर बहुत-बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, एक साथ इतने सारे अच्छे लिंक देखे... पढ़ कर आनंद आ गया... बहुत-बहुत धन्यवाद!
शिखा जी को हिंदी की सेवा के लिए सम्मानित किये जाने पर बधाई !
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के गुलदस्ते को आज आपने काव्य विधा का हर रंग के फूलों से सजाकर बड़े ही सलीके से प्रस्तुत किया है ,धन्यवाद !
मेरी रचना को इस सार्थक मंच पर स्थान देने के लिए आभार !
आभारी हूं आपने अपनी चर्चा में जगह दी। आपने इस चर्चा के लिए जो पोस्ट चुनी हैं,वे भी अच्छी हैं।
जवाब देंहटाएंसुश्री शिखा वार्ष्णेय को इस विशिष्ट सम्मान की बधाईयां । चर्चामंच की बेहतरीन लिंक्स के लिये आपका आभार...
जवाब देंहटाएंमुझे चर्चा में स्थान देने हेतु धन्यवाद, अरुण जी का व्यंग्य पसंद आया और आपको भी होली कि शुभकामनाए
जवाब देंहटाएंआज तो मन को रंग दिया अपने खूबसूरत रंगों सुगंधों से.शिखा वार्ष्णेय जी को शुभकामनायें व बधाई.मेरी कविता का मान बढ़ाने के लिए अभार.
जवाब देंहटाएंशिखा जी को बधाई...
जवाब देंहटाएंचर्चा में जगह देने का आभार
खूबसूरत चयन, काव्य ने मन तृप्त कर दिया।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले शिखा जी को बहुत बहुत बधाई.......
जवाब देंहटाएंसंगीता जी...नमस्कार....मुझे हमेशा आपकी चर्चा का इंतजार होता है..बेसब्री से..बहुत ही खुबसुरती से आप चर्चा सजाती है..लाजवाब..बहुत कुछ सीखने को मिलता है..आपसे.......आज के चर्चा में "मेरे छोटे भाई के जन्मदिवस पर" मेरे द्वारा दी गयी कविता लेने हेतु...आभार......बस अपना आशीर्वाद बनाये रखे....धन्यवाद।
चर्चा मंच पर मुझे स्थान देना के लिए दिल से आभारी हूँ. संगीता जी ने इया मंच के द्वारा जो आशीर्वादों का पिटारा मेरे लिए खोला है उसके आभार के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.
जवाब देंहटाएंआप सभी का आपके बहमूल्य शब्दों और शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
और चर्चा के तो क्या कहने.
सुंदर लिंक्स, बेहतर रचनाओं का चुनाव
जवाब देंहटाएंशिखा जी को बधाइयां.
जवाब देंहटाएंसारे links अभी सरसरी तौर पर देख पाए हूँ. दुपहरिया को आराम से चख चख के मज़ा लिया जाएगा. मेरी रचना को स्थान दिया, अनुगृहीत हूँ.
संगीता जी को दूर की कौड़ी खोजने में महारत है, ये मैंने बहुत कम समय में जान लिया. आप लोगों के सानिध्य में कुछ पाठ सीख सकूँ. ऐसी आकांक्षा है. सभी को प्रणाम !
- बाबुषा
सबसे पहले शिखा जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें…………वे इसी तरह नित नयी ऊंचाइयां छूती रहें और दुनिया मे अपना और देश का नाम रौशन करती रहें।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा तो बहुत ही शानदार है ……………काफ़ी नये लिंक्स मिले…………आभार्।
आपने आज मेरी रचना "अकेलापन" http://anandkdwivedi.blogspot.com/2011/03/blog-post_15.html को यहाँ स्थान देकर मुझ जैसे नए रचनाकर को जो प्रोत्साहन दिया है मैं उसके लिए ह्रदय से आभारी हूँ !!
जवाब देंहटाएंek se badhkar ek rachnaayen..charcha manch aur aadarniya Sangita Di ka aabhaar jinke athak pryaas se itni sundar aur bhaav poorn rachnayen padhne ko mil saki..
जवाब देंहटाएंवा जी बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएंसंगीताजी आजकी मन भावनी चर्चा भी विविध रंगों को समेटे है, बधाई एवं आभार !
जवाब देंहटाएंचर्चा ए ख़ास , सबको लिया साथ ....
जवाब देंहटाएंशिखा को इस सम्मान के लिए बहुत बधाई व शुभकामनायें ..
शिखा जी को सम्मानित किए जाने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंचर्चामंच के माध्यम से अच्छा साहित्य पढ़ने को मिला।
मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए आभार।
शिखा जी को बधाई
जवाब देंहटाएंआप जिस अन्दाज से चर्चा करती है निराला है
sunder aur upyogi rachnao ki charcha ke liye badhayi.
जवाब देंहटाएंshikha ji ke jeewan ki is avismarneey uplabdhi ke liye bahut bahut badhayi.
सुश्री शिखा वार्ष्णेय जी खॊ "लक्ष्मी मल्ल सिंघवी यू के" अनुदान सम्मान प्राप्ति पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंरामराम
आपके मंच के माध्यम से शिखा जी का हार्दिक अभिनन्दन करना चाहती हूँ ! अपनी इस विशिष्ट उपलब्धि के लिये उन्हें हार्दिक बधाइयाँ ! साप्ताहिक काव्य मंच की जितनी प्रशंसा करूँ कम ही होगी ! आपके दिए बहुमूल्य लिंक्स सहेज लिये हैं उन्हें धीरे धीरे पढना होगा ! इतनी बेहतरीन चर्चा के लिये आभार एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंहिन्दी के लिये जब किसी को सम्मान मिलता है अच्छा लगता है । शिखा जी को बधाई ।चर्चामंच में मेरी रचना को शामिल किया इसके लिये शुक्रिया ।इस मंच में बहुत सारी रचनाएं हैं । अधिकांश पढ लीं हैं । अच्छी हैं ।
जवाब देंहटाएंITNA VIVIDHTAPURN, BAHUAYAMEE
जवाब देंहटाएंKAVITA MANCH SAJAANE KE LIYE
SAGEETAJEE KO BADHAEEYAN AUR SHUBHKAAMNAYEN
ITNA VIVIDHTAPURN, BAHUAYAMEE
जवाब देंहटाएंKAVITA MANCH SAJAANE KE LIYE
SAGEETAJEE KO BADHAEEYAN AUR SHUBHKAAMNAYEN
बहुत दिनों के बाद इस चर्चा मंच पर आई हूँ. शिखा जी को बधाई तो पहले भी दिया था, यहाँ भी उनके लिए शुभकामना ही रहेगी, उनकी यह उपलब्धि हम सबके लिए एक मिसाल की तरह है. पुरे लिंक्स तो नहीं पढ़े है अभी तक. नए ब्लॉगर में बाबुषा जी के ब्लॉग पर पहली बार गयी थी, उनकी रचना भी काफी अच्छी लगी. बाकि सब तो दिग्गज लोग है, उनके ब्लोग्स पर जाना एक सुखद अनुभूति तो अवश्य देता है, साथ ही प्रोत्साहन भी.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में मेरी पोस्ट को भी जगह देने के लिए बहुत धन्यवाद!