नमस्कार , आज मंगलवार को फिर हाज़िर हूँ साप्ताहिक काव्य मंच ले कर ..ब्लॉग जगत के चमन से सुन्दर और सुगन्धित पुष्पों को चुन मंच रुपी गुलदस्ता सजाया है ..दो दिन से दिल्ली का मौसम भी खुशनुमा है .. मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू मन को तारो ताजा कर रही है ..और मैं ताजे फूलों का गुलदस्ता अपने पाठकों को भेंट कर रही हूँ … अब देखना है कि पाठकों को इसके फ़ूल कितने पसंद आते हैं … सबसे पहला पुष्प है डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की तमन्ना का … |
इस बार तो डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी एक अजीब-ओ-गरीब ख्वाहिश ले कर आए हैं …आप भी आनंद लीजिए उनकी रचना का --काश मैं नारी होता ! पति रात-दिन की ड्यूटी कर धन कमाता घर आकर खुद भोजन बनाता या होटल से लाता मैं ठाठ से खाता और हुक्म चलाता काश् मैं नारी होता |
रश्मि प्रभा जी ज़िंदगी को जीने का एक अलग ही अंदाज़ बता रही हैं और कह रही हैं कि --लगाओ बाज़ी रुको - समय फिर मौका ना दे उससे पहले आपस में खुलकर हंसो गरमागरम पकौड़े के साथ कहो - ओह कितना मिस किया तुम्हें फिर सर पर हाथ रखो , सहलाओ यकीनन अच्छी नींद आएगी |
ज़िंदगी में हर इंसान न जाने कितने भ्रमों को पाले रखता है .. और जब वो टूटते हैं तो जो महसूस होता है उसी को वंदना जी ने शब्द दिए हैं … -एक भ्रम और तोड़ दिया चलो अच्छा है आज एक भरम और तोड़ दिया तुम ही कहते थे ना दिल के उस हिस्से को मेरा वहाँ सिर्फ मेरा अधिकार है |
विचार ब्लॉग पर मनोज कुमार जी ने नदियों की पीड़ा को भी खूबसूरत शब्दों में पिरोया है …पर्वतांचल की नदियाँ पर्वतांचल की अधिकांश नदियां, गर्मी आते ही सूख जाती हैं। पहाड़ों से उतरने के पहले अपनी कल-कल, छल-छल, कोमल-उज्ज्वल, निश्छल धाराओं को किन्ही ठंढ़ी गुफाओं में छोड़ आती हैं। |
एम० वर्मा जी वैज्ञानिक तथ्यों को सोचते हुए तुलना कर रहे हैं मन के विज्ञान की --प्रतिध्वनि प्रतिध्वनित होने के लिये जरूरी है उच्च तीव्रता युक्त ध्वनि का किसी वस्तु से टकराव; जरूरी है - स्रोत ध्वनि और टकराव बिन्दु के बीच कोलाहल रहित एक निश्चित दूरी; |
मनोज ब्लॉग पर श्यामनारायण मिश्र का लिखा एक नवगीत पढ़िए -- मुक्त क्रीड़ामग्न होकर खिलखिलाना ऊब जाओ यदि कहीं ससुराल में एक दिन के वास्ते ही गांव आना।
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अजय झा जी आज कल क्या और कैसे लिख रहे हैं जानिये उनकी रचना से ही ---सामने रख कर आईना , किताब लिखने बैठा हूं मैं .... बारूद की स्याही से , नया इंकलाब लिखने बैठा हूं मैं , बहुत लिख लिया , शब्दों को सुंदर बना बना के , कसम से तुम्हारे लिए तो बहुत , खराब लिखने बैठा हूं मैं |
पल्लवी त्रिवेदी जी बहुत खूबसूरत रचना लायी हैं ..बिल्कुल अलग अंदाज़ की -- वो अलग था,सबसे अलग सारे भाई बहन जब परीक्षा की तैयारी में हलकान हो रहे होते वो छत पर आम की गुठली चूसता माउथ ऑर्गन बजा रहा होता |
डा० अनवर जमाल साहब की गज़ल पेश है -- मोम सा मिजाज़ है मेरा , मुझ पर इलज़ाम है कि पत्थर हूँ आरज़ू ए सहर का पैकर हूँ शाम ए ग़म का उदास मंज़र हूँ मोम का सा मिज़ाज है मेरा मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ |
डा० जे० पी० तिवारी जी प्रेम के मार्ग को प्रशस्त करते हुए बता रहे हैं - बात यहाँ प्रेम की है मित्र ! - भटक जाओगे. अक्षरों को मत पकड़ना - बहक जाओगे. शब्दों को मत पकड़ना - ठिठक जाओगे. |
रावेंद्रकुमार रवि जी एक बहुत ही सुन्दर श्रृंगार रस से भरपूर रचना लाये हैं ---पढ़िए उनका नवगीत --आँखों में उसकी जियरा मचल-मचल गाए, ज्यों नदिया में पतवार! प्यार की पड़ने लगी फुहार! प्यार की ... ... . |
वंदना शुक्ल जी बोनसाई के माध्यम से बता रही हैं कि लड़कियां कैसे भ्रम से जुडती हैं और कैसे टूट जाते हैं उनके भ्रम --- लड़की ,जैसे गुलाब का फूल छोटी सी प्यारी सी गुडिया घर भर कि आंख का तारा उछलती,कूदती खेलती ,तो घर भर खेलता उसके साथ |
देवी नागरानी जी मन की भटकन को शब्द दे रही हैं ….प्यास ही प्यास के माध्यम से - मेरा मन एक रेतीला कण ! एक अनबुझी प्यास लेकर बार-बार उस एक बूंद की तलाश में, जैसे पपीहे को बरसात की वो पहली बूंद |
टूटने लगती है हिम्मत लड़खड़ाने लगते हैं कदम, छल-कपट के बीच , कब तक चलेगा विश्वास का दम। उनके किये छलों को बार बार करते रहे माफ हम, और देखिये फिर भी उपहास का पात्र बनते रहे हम। |
सत्यम शिवम जी मन के कोमल भावों को अपनी रचना में व्यक्त करते हुए कह रहे हैं ---इस बार नहीं मैं पास तुम्हारे इस बार नहीं मै पास तुम्हारे! बहती है फिर भी मंद पवन, उन्मुक्त है फिर भी आज गगन, सरिता की कल-कल की मधुर-ध्वनि, सुनते होंगे प्रिय कर्ण तुम्हारे! इस बार नहीं मै पास तुम्हारे! |
क्या मैं पेड़ से झड़ती हुई सूखी पत्तियां हूँ जो बिखरी पड़ी है तुम्हारे क़दमों के आस-पास |
अमिताभ मीत … इन्होने ज़िंदगी में बहुत कुछ सीखा ..पर नहीं सीख पाए तो … सबसे ज़रुरी बातें वृद्ध हो गया हूँ बहुत कुछ किया ज़िन्दगी में बहुत कुछ पाया सोचता हूँ कि बहुत कुछ भी सीखा है |
रचनाकार पर पढ़िए रचना श्रीवास्तव की एक मर्मस्पर्शी कविता … हमारी भी सुनो कभी साथ दिया न किस्मत ने कभी अपनों ने भी मुंह फेर लिया कभी हम को इतेमाल किया कभी राह में ला के छोड़ दिया कोई दुत्कार देता है कोई दोचार आने पकड़ा के टाल देता है |
हरदीप कौर संधु जी अपने ननकाने को याद कर माँ से गुज़ारिश कर रही हैं कि - मुझे सांदल बार दिखा दे माँ आज मैं सांदल बार की बात करने जा रही हूँ जिसे पकिस्तान का मानचेस्टर(City of Textile ) भी कहा जाता है | मेरा ननिहाल परिवार भारत - पाकिस्तान के बटवारे से पहले वहाँ ही रहता था | मेरी पड़नानी अपने बीते दिनों को याद करतीहुई कहा करती थी , " जब हम बार में थे ...." और फिर वह कभी न खत्म होने वाली बातों की लड़ी शुरू कर देती--जिस मिट्टी से मामा आएनाना ने यहाँ हल चलाए चक्क नं : 52 तहसील समुंदरी अब वो फैसलाबाद कहलाए मुझे सांदल बार दिखा दे माँ |
निधि टंडन जी घर घर की कहानी को बड़ी सादगी से लिख लायी हैं ..अपनी रचना में -- सोच रही हैं कि बोलूं या न बोलूं ----पसोपेश अजीब पसोपेश में हूँ .... तुमसे जब बात होती है तो ,आये दिन तुम्हारी कोई न कोई बात खराब लग जाती है. |
प्रज्ञा तिवारी जी हास्य के साथ एक सार्थक सन्देश देती हुई लायीं हैं रचना – बम सड़क पर पड़ी चीज़ कभी ना उठाइए राह चलते उसे लाँघ जाइए चाहे कितना भी बेशकीमती हो पर्स न होने पाए उससे आपका स्पर्श उसमें हो सकता ज़ोरदार बम है आपकी ज़िंदगी क्या पैसे से कम है? |
शिल्पी मंजरी मन के गहन भावों को कलमबद्ध कर लायी हैं -- आस्था-विश्वास या हो स्वयं प्रश्न तुम, कभी सोचा तुमने क्यों मौन सी तुम, |
राजभाषा हिंदी ब्लॉग पर पढ़िए एक गुज़ारिश --- जा रहे हो कौन पथ पर ज्ञान चक्षु खोल कर विज्ञान का विस्तार कर जा रहे हो कौन पथ पर देखो ज़रा तुम सोच कर। |
चलो कुछ यूँ भी मोहब्बत निभाया जाये , दिल के ज़ज्बात को चेहरे पे न लाया जाये.. टूट कर गिरते सितारों से दुआ क्या मांगे? किसी तारे को फ़लक पर भी टिकाया जाए.. |
डा० ए० कीर्तिवर्धन जी की रचना … हर इंसान अपने चेहरे पर अलग अलग समय में अलग अलग मुखौटा पहने हुए नज़र आता है ---मुखौटों की दुनिया मुखौटों कि दुनिया मुखौटों कि दुनिया मे रहता है आदमी, मुखौटों पर मुखौटें लगता है आदमी| बार बार बदलकर देखता है मुखौटा, फिर नया मुखौटा लगता है आदमी| |
अंजू चौधरी जी … एक समसामयिक विषय “ऑनर किलिंग” पर रचना लायी हैं … फिर रिश्तो की दुहाई ये जात पात का अंतर ये गरीब की रेखा जो बांधी ..है अमीरों ने .. दिल से दिल का है मिलन ... फिर क्यों ये जिन्दगी है |
सुषमा “ आहुति “ जी प्यार के फलसफे को कुछ यूँ बयाँ कर रही हैं --तुमने नही कहा मुझसे कि मैं तुमसे प्यार करूँ तुमसे नही कहा मुझसे की मैं तुमसे प्यार करू कैसे फिर मैं तुमसे कोई शिकायत करू? मैंने तुमको चाहा है तुमसे प्यार किया है ये मेरा पागलपन है मैं इकरार करू |
आशा जी चिन्ता व्यक्त कर रही हैं बढती हुई मँहगाई पर --बदलता परिवेश प्रातःकाल अखवार की सुर्खियाँ प्रथम पृष्ठ पर कई समाचार ऊपर से नीचे तक समूचा हिला जाते हैं | |
तेरे क़श खींचते- खींचते कम्बख्त कैंसर न हो जाए ज़िन्दगी ! |
वाण भट्ट जी योद्धा और कायर का अन्तर स्पष्ट करते हुए अपनी बात कह रहे हैं -- देख तू उनकी छाती लहू से धरा है जिसने सींची हो किसान या कोई मजदूर हो |
-कुश्वंश जी रिश्तों की पीड़ा को महसूस करते हुए कह रहे हैं कि - कंक्रीट के जंगल में सब रिश्ते लहुलुहान हो गए, आये थे जीने सपनो को, ह्रदय-भींच सारे अपनों को, सपने सब शमशान हो गए, रिश्ते लहुलुहान हो गए............ |
वटवृक्ष पर इस बार रश्मि प्रभाजी लायी हैं ओम् आर्य जी की क्षणिकाएं -- मुझमें प्रेम नहीं अब हम सब या फिर हम सब में से ज्यादातर बड़े हुए और फिर बूढ़े और मर गए एक दिन बेमतलब और बुद्ध और कबीर के कहे पे पानी फेर दिया |
साधना वैद जी अपनी माताजी ज्ञानवती सक्सेना “ किरण “ जी की एक गहन अनुभूतियों से भरी रचना प्रस्तुत कर रही हैं -कृष्णागमन चित्रकार तूलिका उठाओ ! जैसा-जैसा कहूँ आज मैं वैसा चित्र बनाओ ! चित्रकार तूलिका उठाओ ! एक अँधेरा भग्न भवन हो , हर कोने में सूनापन हो , जिसमें इक दुखिया बैठी हो , नयन नीर नदिया बहती हो ! |
सुनीता शर्मा जी ग़मों की बात कर रही हैं कि गम क्या कहते हैं ---मैं तो खुशी का हमसाया हूँ अपने गमो से कब तक भागोगे तुम एक दिन सब तुम्हारे पास आ ही जायेंगे, चीख कर कहेगे यह हम है जिनसे जिनसे तुम्हे बेपनाह प्यार है...........! खुशी को तुम कब तक तलाश करोगे देखों मै तुम्हारे करीब हूं फिर तुम मुझसे नाता क्यों तोडना चाहते हो,खुशी तो नकारा है.........! |
इस शहर मैं भी रकीबों का ठिकाना निकला मेरी बरबादी का, अच्छा ये बहाना निकला मेरी कमनसीबी की, पूछों न तुम दुश्वारियां तुम न थी तो ये, मौसम भी सुहाना निकला |
कौशलेन्द्र जी इस बार क्षणिकाओं में गहन बात कर रहे हैं ---क्षणिकाएं ... कुम्हार दिन भर बेचे मिट्टी के दिए जब गहराई साँझ तो चल दिए कुम्हार एक टुकड़ा रोशनी माँगने उधार. |
चर्चा का समापन एक खूबसूरत गज़ल से कर रही हूँ … जो लाये हैं चंद्रभान भारद्वाज जी --जब कहीं दिलबर नहीं होता इक ज़िन्दगी में जब कहीं दिलबर नहीं होता होते दरो-दीवार तो पर घर नहीं होता जिसकी नसों में आग का दरिया न बहता हो काबिल भले हो वह मगर शायर नहीं होता |
मृदुला प्रधान जी एक सार्थक प्रश्न पूछ रही हैं … है किसी के पास जवाब ? - कि मुझे क्यों दीखता है?... संस्कारों के धज्जियों की धूल, जब उड़-उड़ कर, पड़ती है आँखों में, चुभन होती है, |
अमित कुमार एक माँ कि पीड़ा को कुछ यूँ व्यक्त कर रहे हैं --आद्यांत पिछले पंद्रह दिनों से बेटे के यहाँ स्टोर रूम में पड़ी थी दो रूम का फ्लैट और उस पर गर्मी सड़ी थी बेटे के बड़े आग्रह पर गाँव से शहर अपने दमे के इलाज के लिए आयी थी |
रचनाकार पर संजय दानी की खूबसूरत गज़ल ..चल पड़ा हूँ मुहब्बत के सफर में, पैरों पे छाले रगों में खामुशी है. मुझसे तन्हाई मेरी ये पूछती है, बेवफ़ाओं से तेरी क्यूं दोस्ती है। पानी के व्यापार में पैसा बहुत है, अब तराजू की गिरह में हर नदी है। |
साधना वैद जी एक गज़ल कह रही हैं …इंतज़ार वल्लाह नये दर्द रुलाने के वास्ते, यादें पुरानी सिर्फ लुभाने के वास्ते. कुछ तल्खियाँ भी बनके रहीं बोझ हमेशा, कुछ बात के नश्तर हैं चुभाने के वास्ते. |
पर मै जानती हूँ तेरे दिल में मै नही हूँ ? मेरा प्यार , मेरा अहसास !सब खोखला है तू मुझसे प्यार नही करता ? मैं तेरी आरजू इन आँखों में लिए भटकती रहूंगी तुझ से मिलने को अब मैं तरसती रहूंगी |
अब दीजिए इजाज़त … आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव सदैव आमंत्रित हैं … आशा है इन फूलों से मन सुरभित हुआ होगा …फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को एक नयी चर्चा के साथ …तब तक के लिए नमस्कार ..संगीता स्वरुप |
बहतरीन लिनक्स के साथ सुंदर चर्चा ..!!
जवाब देंहटाएंआभार.
भई वाह ! कमाल कर दिया इतनी शायरी जमा कर दी आपने । आप को भी मुबारक हो तमाम फ़नकारों को भी और साधना वैद जी को भी , उनकी मेहनत रंग ला रही है ।
जवाब देंहटाएंFantastic.
शुक्रिया ।
चुन कर गीतों के फूल लाई हैं ब्लॉग बगिया से ....
जवाब देंहटाएंकुछ जाने पहचाने , कुछ अनजाने ...
विस्तृत चर्चा , बेहतरीन लिंक्स ...
आभार !
manohari sankalan ,sampadan ,sadhuvad ji.
जवाब देंहटाएंवृहद और नवीनता लिए चर्चा |बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंआज इस मंच पर मेरी ,साधना और मम्मी की लिंक्स एक साथ देख कर अपार हर्ष हो रहा है |तीनों की
कवितायेँ एक साथ देखने का अरमान बहुत दिनों से मन में था |साधना की गजल वह भी उर्दू में बहुत अच्छी लगी |
आपने जो फूल सजाए हैं गुलदस्ते में उनकी सुगंध बहुत दूर और देर तक रहेगी |बहुत सी लिंक्स हैं आज पढ़ने के लिए |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
उम्दा लिंक हैं संगीता जी
जवाब देंहटाएंआज यही से पढेंगे..........आभार
सुंदर चर्चा .......बेहतरीन लिंक्स
जवाब देंहटाएंआप को बहुत बहुत बधाई |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
bhut bhut dhanywaad sangeeta madm ji... meri rachna ko charchamanch pe lane aur sarhana karne ki... iske sath hi bhut hi behtareen links se hame parchit karane ki...
जवाब देंहटाएंसार्थक और सारगर्भित चर्चा के लिये संगीता स्वरूप( गीत) जी को बधाई व और साहित्य के इस गुलदश्ते में मेरी भी ग़ज़ल रूपी फूल को पिरोने के लिये आपका आभार।
जवाब देंहटाएंहरेक गुल लाजवाब। बहुत सुंदर गुलदस्ता बनाया है आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक दिखाई दे रहे है ...नए लोगो से परिचय ..सार्थक है जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चर्चा..बेहतरीन लिंक्सों के साथ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स से सुसज्जित चर्चा…………काफ़ी पढ लिये हैं जो रह गये बाद मे पढती हूँ………नये लिंक्स भी मिले…………आभार्।
जवाब देंहटाएंसुन्दर काव्य चर्चा....
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स...
सुन्दर लिंक्स से सजी बहुत रोचक चर्चा..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चर्चा .
जवाब देंहटाएंआज तो दिनभर की व्यवस्था कर दी आपने. इतने सुन्दर लिंक्स लाती हो कि कोई भी छोड़ने का मन नहीं करता.
जवाब देंहटाएंवाह नवीनता लिए सुंदर चर्चा विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जवाब देंहटाएंसंगीता जी आपके काव्य चर्चा का इंतज़ार रहता है, अद्भुत चित्रण किया है आपने इस मंच पर , कविता पढना मेरा कमजोरी है , नवगीत, नयी अतुकांत कविताये मुझे भाती है आप ने बेहतर लिंक देकर सहितियक भूंख पूरी की है बधाई अगले का इंतज़ार
जवाब देंहटाएंबहन संगीता स्वरूप जी!
जवाब देंहटाएंसच पूछा जाए तो मैं भी मंगलवार आने का इन्तजार करता रहता हूँ!
क्योकि आप बहुत परिश्रम से चर्चा मंच को सजाती है!
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बढ़िया चर्चा के लिए आभार!
सुंदर चर्चा बहुत सुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर क जगह चुनिन्दा कविताओं को पाकर हर्ष हुआ...और ये भी लगा कि अगर यहाँ ना आता तो बहुत मिस करता...बड़े जतन से आपने जिन्हें आपने खोजा...वैसे सब पढ़ने के बाद लगा विचारों कि कमी कभी नहीं पड़ेगी...वैरायटी ऑफ़ थॉट्स...जब तक कवि ह्रदय जीवित हैं...
जवाब देंहटाएंपहली बार मेरी रचना चर्चा-मंच पर लाने के लिए आपका हार्दिक-हार्दिक धन्यवाद ..आज मैं बहुत खुश हूँ ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा.........बेहतरीन लिंक्स.....मैंने कुछ लोगों को पहली बार पढ़ा......अच्छा लगा.......रश्मिप्रभा जी कि रचना हमेशा कि तरह,सुन्दर .वंदना,बबुषा सब कि रचनाएँ देखीं...पढ़ी ......अलग अलग विचारों को मानो आपने एक जगह एकत्र कर दिया है......
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ......आपको धन्यवाद की आपने मेरी रचना को शामिल किया ..........साथ ही साथ ढेरों बधाई इतनी बढ़िया महफ़िल सजाने के लिए
आज कई नये लिंक्स मिले।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स...धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंwah.itne sunder links hain,der raat tak padhni hogi.mere liye dhanywad ke saath.....
जवाब देंहटाएंआज बेहद व्यस्त थी और एक भी लिकं नहीं देख पायी हूँ ! पुराना अखबार ..पुरानी किताबें पढ़ना मेरी पुरानी आदत है..आज के चर्चा मंच का मज़ा कल लिया जाएगा . 'कुछ पन्ने ' से बकवासेंशामिल करने के लिए आभारी हूँ संगीता माँ ! :-)
जवाब देंहटाएंसंगीता दी ! जय श्रीकृष्ण ! ! ! पिछले कई महीनों से इधर आने का प्रयास निष्फल हो रहा था ....आज प्रथम प्रयास में ही सफलता मिल गयी. यहाँ आने का सबसे बड़ा लाभ यही है कि कई अच्छे लिंक मिल जाते हैं....फिल्टर्ड ....और इस फिल्ट्रेशन के लिए आपको साधुवाद .
जवाब देंहटाएंसमग्र चर्चा ..
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार । बहुत अच्छी प्रस्तुति की सभी की ।
जवाब देंहटाएंsangeeta ji aapka bahut bahut dhnyavad ki aapne meri kavita li yahan to motiyon ka khazan bikhra pada hai sabhi kuchh padha kamal hai aapki mehnat ko naman
जवाब देंहटाएंrachana
Bahut dino baad aj apna blog khola apki tippadi dekh mann khila, aur apni rachna ko yu prakashit hote dekh, mann mai ek nayi aasha ka sanchar hua...
जवाब देंहटाएंAp hamesha hi mera marg-darshan kerti hai paratu is baar apne mujhe bahut mann dia "Charcha-manch" jaise blog mai shamil ker ke...
S-aabhar!
Shilpi