नमस्कार मित्रों!
रविवासरीय चर्चा में कुछ लिंक्स के साथ हाज़िर हूं।
१. तस्वीर
Sudhinama पर Sadhana Vaid
तस्वीर एक बनाई थी मोहब्बत की कभी ,
हर इक नक्श को पलकों से तब सँवारा था !
वफ़ा के रंग भर दिए थे हर एक गुंचे में ,
हर इक पंखुड़ी पे नाम बस तुम्हारा था !
२. फ़ुर्सत में : खट्टर पुराण द्वितीय अध्यायः
मनोज पर करण समस्तीपुरी
नमस्कार मित्रों !
श्रीरामचरितमानस में गोस्वामीजी ने कहा है, “भाय-कुभाय, अनख-आलसहुँ ! नाम लेत मंगल दिशि दसहुँ !!” किसी भी प्रकार से हो राम-नाम मंगलकारी ही होता है। मिथिला-वासी खट्टर काका अवध के रामजी की चर्चा की रसधारा बहा रहे हैं। – करण समस्तीपुरी
३.
हम जो आज हैं वो कल नहीं रहेंगे -- ( बदलाव प्रकृति का नियम है )
ZEAL पर ZEAL
समय गतिमान है , उसके साथ ही व्यक्ति और परिस्थिति दोनों बदलती रहती है। जो समय के साथ नहीं बदलता , वो बहुत पीछे छूट जाता है। प्रतिदिन और हर पल हम हज़ारों अनुभवों से दो-चार होते हैं । यदि हम में उन अनुभवों और अपनी गलतियों से सीखने की प्रवित्ति ही नहीं होगी तो जीवन व्यर्थ है।
४.
बाबा की रानी हूँ – मेरे जन्मदिन पर स्पेशल पोस्ट
लविज़ा | Laviza पर लविज़ा | Laviza
दूर आसमान में जब एक तारा टूटा था.. तब मम्मी और पापा की एक मन्नत पुरी हुई.. आज ही के दिन यानि 30-अप्रैल-2008 को मम्मी के दोनों हाथो में रुई के फोहे सी मैं आ गयी.. तब से लेकर अब तक मम्मी पापा ने हर वो लम्हा सँजोकर रखा है जिसने मुझे कली से फूल बनते देखा है.. मेरी नन्ही मुस्कुराहट हो या फिर गीली आँखों वाली राते.. पलंग के पीछे पापा का मोबाईल छुपाना.. या मम्मी की कंघी से बाल बनाना.. घर की उन सारी चीजों को इधर उधर करना और फिर मम्मी का उन्हें समेटना..
५.
कभी कभार पर जयदीप शेखर
1995 में जब पुरूलिया में हथियार गिराये गये थे, तब घर पर कुछ लोगों ने मुझसे प्रश्न किया था- आपकी वायु सेना के राडार क्या कर रहे थे? बिना अनुमति के एक हवाई जहाज ने बम्बई से बंगाल तक यात्रा कैसे कर ली?
६.
स्वास्थ्य-सबके लिए पर कुमार राधारमण
हमारे भोजन में फलों का अपना ही महत्व है। परन्तु हम यह नहीं जानते कि फल कब कैसे और क्यों खाना चाहिए। प्रत्येक चीज खाने के कुछ नियम हैं और यदि हम नियमों का पालन कर खायें या पीयें तो स्वास्थ के लिए अधिक लाभदायक होंगे।
हम सोचते हैं कि हमने फल खरीद लिये और उन्हें जब चाहा खा लिया। परंतु ऐसा नहीं है। हमें यह जानना आवश्यक और महत्वपूर्ण है कि फलों को किस प्रकार और कब खायें। फलों के खाने का सही तरीका क्या है? फलों को खाना खाने के बाद नहीं खाना चाहिए। फलों को खाली पेट खाना चाहिए। इससे आपके पाचन तंत्र की विषाक्तता दूर होगी और जीवन की कार्यशीलता में वृद्धि होगी, वजन घटने पर भी ऊर्जा शक्ति पर्याप्त मात्रा में मिलेगी।
७.
मनोरमा पर श्यामल सुमन
राष्ट्र-गान आये ना जिनको, वो संसद के पहरेदार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
८. मताधिकार संशोधन विधेयक का विरोध
विचार पर मनोज कुमार
अब तक के दक्षिण अफ़्रीका में बिताए दिनों में गांधी जी का अनुभव अनोखा था। इंग्लैंड से बैरिस्टर की उपाधि ग्रहण करने के कारण गांधी जी ने कई चीज़ें बतौर हक़ मागी, जैसे पहले दर्ज़े का टिकट, होटल के कमरे में ठरने के लिए कमरा। उनसे पहले दक्षिण अफ़्रीका में कोई भारतीय इस तरह की बात करने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था। गांधी जी के अनुभवों ने भारतीयों को यह समझा दिया कि गोरी जाति हर हाल में अपनी जातीय संप्रभुता क़ायम रखना चाहती है। चूंकि प्रवासी भारतीयों में केवल गांधी जी ही ऐसे थे, जो ब्रिटेन से पढ़कर आये थे, इसलिए रंगभेद के ख़िलाफ़ भरतीयों के आंदोलन चलाने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी उन्हीं पर आ पड़ी।
९. ”
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय
वर्षों पुराना दृश्य है, एक कुली अपने सर पर दो सूटकेस रखे हुये है, एक हाथ से उन्हे सहारा भी दे रहा है, दूसरे हाथ में एक और बैग, शरीर तना हुआ और चाल संतुलित, चला जा रहा है तेजी से पग बढ़ाते हुये, मुख की मांसपेशियाँ शारीरिक पीड़ा को सयत्न ढकने में प्रयासरत,आप साथ में चल रहे हैं और बहुधा आपकी साँस फूलने लगती है साथ चलने भर में। दृश्य आज भी वही रहता है, बस स्थान बदल जाते हैं, यात्री बदल जाते हैं।
१०.
anupama's sukrity! पर anupama's sukrity
प्रसुप्त तन्द्रिल से ..
मेरे मन के -
हंसकर खोल नयन
....
और
-
करता हुआ प्रहार ..
तम पर -
तम को चीरता हुआ ..
११. मंदार पर्वत, जिससे समुद्र-मंथन हुआ था. कहाँ है वह ?
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा,
मंदार पर्वत, वही जिसे मथानी बना कर समुद्र-मंथन किया गया था।
कहां है वह ? क्या उसका अस्तित्व है ?
१२.
*साहित्य प्रेमी संघ* पर शिखा कौशिक
हर तरफ मायूसियाँ ,चेहरों पर उदासियाँ ,
थी जहाँ पर महफ़िलें ;है वहां तन्हाईयाँ !
कुदरती इन जलजलों से कांपती इंसानियत ,
उड़ गयी सबकी हंसी ;बस गम की हैं गहराइयाँ !
१३.
.......चाँद पुखराज का...... पर पारुल "पुखराज"
कुछ गीत, कुछ चेहरे जो बेहद पसंद रहे … एक साथ अपनी जगह सहेजते हुए
कुछ और ज़माना कहता है
फिल्म-छोटी-छोटी बातें
स्वर-मीना कपूर
संगीत-अनिल बिस्वास
१४.
Vyom ke Paar...व्योम के पार पर अल्पना वर्मा
'ये गुलों का रंगीं शहर है '..जी हाँ, जिस शहर में मैं रहती हूँ उसी शहर 'अलैन ' को एमिरात का 'बागों का शहर' /'फूलों का शहर' सालों से कहा जाता है.
अब तो यहाँ इस नाम को सार्थक करता है यहाँ बना फूलों का एक ऐसा अनूठा बाग़ जिस का नाम गिनिस बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज़ हो गया है.
१५.
प्रवाहहीन रुग्ण-मानसिकता के शिकार लोग !
अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत"
आखिरकार प्रिंस विलियम और केट मिड्लटन की शाही शादी का भोज डकारने के बाद दुनियाभर के मीडिया और गतिहीन रुग्ण मानसिकता के शिकार विश्वभर के तमाम लोगो द्वारा पैदा किया गया एक अजीवो-गरीब वातावरण अब जाकर कुछ ठंडा पड़ा है ! किन्तु एक डर अभी भी बना हुआ है कि हो सकता है कि शाही दम्पति सुहागरात मनाने हेतु अपने पुराने औपनिवेश के राजमहलों को ही प्राथमिकता दे, अगर ऐसा हुआ तो इस पश्चिमी विक्षोभ के कारण बने हवा के कम दबाव के अभी और कुछ दिन तक चलने की आशंका है !
१६.
*साहित्य प्रेमी संघ* पर निशा मित्तल
एक पढ़े लिखे परिवार में अम्माजी से बात हो रही थी ,बातों बातों में कोई बर्तन टूटने की घटना वो अपने परिवार की बता रही थीं.(ध्यान से पढिये) उनकी पुत्री का नाम था भावना और पुत्रवधू का नाम रजनी था.संयोग से बर्तन एक बार पुत्री से टूटा और किसी और दिन पुत्रवधू से .उन्होंने घटना बताते हुए कहा "रजनी ने अचार वाला मर्तबान (बर्नी,जार) तोड़ दिया" कुछ देर बाद वो बोलीं",भावना से जार टूट गया." खैर मुझसे चुप न रहा गया ,मैंने पूछा अम्माजी "ऐसा कैसे संभव है कि बहु रजनी ने तोड़ दिया और बेटी भावना से टूट गया" अम्माजी थोडा संकोच में थीं,उन्होंने बात सम्भाल ली.(यहाँ स्पष्ट करना चाहती हूँ कि वो अम्माजी एक बहुत अच्छी सास थीं,आज वो इस दुनिया में नहीं हैं.)
१७.
क्रांति स्वर..... पर Vijai Mathur
राम और सीता ने रावण के सामने आने पर एक गंभीर व्यूह -रचना की और उसमें रावण को फंसना ही पडा.वेश बदले रावण के ख़ुफ़िया -मुखिया मारीची को काफी दूर दौड़ा कर और रावण की पहुँच से बाहर हो जाने पर मार डाला और लक्ष्मण को भी वहीं सीता जी द्वारा भेज दिया गया.निराश और हताश रावण ने राम को अपने सामने लाने हेतु छल से सीता को अपने साथ लंका ले जाने का उपक्रम किया लेकिन वह अनभिग्य था कि,यही तो राम खुद चाहते थे कि वह सीता को लंका ले जाए तो सीता वहां से अपने वायरलेस (जो उनकी अंगूठी में फिट था) से लंका की गोपनीय जानकारियाँ जुटा -जुटा कर राम को भेजती रहें.
१८.
ये ऐसा गीत है जिसको सभी ने मिल के गाना है
स्वप्न मेरे................ पर दिगम्बर नासवा
किसी का घर जलाने की कभी साजिश नहीं करना
जहां हों फूस के छप्पर वहां बारिश नहीं करना
जो पाना है तो खोने के लिया तैयार हो जाओ
जो खोने से है डर पाने की फिर ख्वाहिश नहीं करना
१९.
तीसरी समस्या पूर्ति - कुण्डलिया - छठी किश्त - सुंदरियाँ इठला रहीं रन-वर्षा के साथ
समस्या पूर्ति मंच पर Navin C. Chaturvedi
समस्या पूर्ति मंच द्वारा कुण्डलिया छन्द पर आयोजित इस आयोजन में अब तक हम ८ सरस्वती पुत्रों के २५ कुण्डलिया छन्द पढ़ चुके हैं| अब पढ़ते हैं दो और सरस्वती पुत्रों को| भाई दिलबाग विर्क जी पहली बार इस आयोजन में शामिल हुए हैं और छन्द साहित्य में उन का रुझान देखते हुए आशा बँधती है कि और भी कई कवियों से आने वाले समय में और भी सुन्दर सुन्दर छन्द पढ़ने को मिलेंगे| आदरणीय बृजेश त्रिपाठी जी ने भी अस्वस्थता के बीच समय निकाल कर अपने छन्द भेजे हैं| मंच इन दोनों का सहृदय आभार प्रकट करता है|
२०.
सफ़ेद घर पर सतीश पंचम
आज हफ्ते भर की छुट्टी गाँव में बिता कर वापस मुंबई लौट रहा हूँ। सुबह
सुबह के माहौल के बीच बनारस से गाड़ी पकड़ने के लिये सरकारी रोडवेज बस से जाने की बजाय प्राईवेट बस से सफर कर रहा हूँ। पीछे कन्डक्टर किसी से बहस में उलझा था। रह रहकर बाकियों से टिकट पूछ रहा था, पैसे ले दे रहा था। हरहुआ के पास बस रूकी और कोई यात्री उतरा। उसके उतरते ही कन्डक्टर ने कोई गंदी सी गाली दी। पास बैठे एक यात्री ने यूं ही पूछा - का भईल हो ? कंडक्टर ने उसी रौ में बड़बड़ाते कहा- अरे वही पुलिसवा यार......ससुर लोग पराईबेट जानके जब देखिए तब कपार पे सवार रहते हैं.....कमाएंगे कंडालन रूपईय्या औ किराया मांगो तो गां* खोल देंगे। एतना पे भी रूबाब हाईए रहेगा।
२१.
Amrita Tanmay पर Amrita Tanmay
ढाई - अक्षर की कथा
आधा सुख,आधी व्यथा
चार क्षणों का जीवन
कभी विरह,कभी मिलन
२२.
Kashish - My Poetry पर Kailash C Sharma
देख चुके जीवन में
रंग सभी मौसम के,
इंतज़ार है
पतझड़ का,
जो उड़ा कर ले जाये
सूखे पीले पत्तों को
कहीं दूर
किसी अनज़ान सफ़र पर.
२३. इंतजार २
kase kahun? पर kase kahun?
(बरसो बाद मंदिर में मधु और मधुसुदन ने एक दूसरे को देखा और उनकी कई पुरानी यादे जाग उठी.) अब आगे.....
तुम यहाँ कैसे मधु ने पूछा.
अभी चार पांच महीने पहले ही ट्रान्सफर हो कर यहाँ आया हूँ. पास ही की कॉलोनी में मकान लिया है . कभी कभार शाम को यहाँ आ जाता हूँ. इस मंदिर में बहुत शांति मिलती है. बहुत सारी बातें याद करते हुए शाम निकल जाती है.
में भी यहाँ इसीलिए आती हूँ. कहते हुए मधु ने जीभ काट ली वह दूर देखने लगी.
२४. कार्टून: सरकार मजाक भी करती है.
Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA पर Kirtish Bhatt, Cartoonist
२५. हमारे प्रिंसिपल बेकसूर हैं!
सम्वेदना के स्वर पर सम्वेदना के स्वर
पिछले दिनों चंडीगढ़ के एक नामी स्कूल सेंट जेवियर में एक दुर्घटना घटी. बताया गया कि दसवीं कक्षा की एक छात्रा, स्कूल की तीसरी मंज़िल से गिर पड़ी। यह खबर न सिर्फ चंडीगढ़ बल्कि देश भर के मीडिया में चर्चा का विषय बन गयी।
२६.
'क्रांति' का जंतर मंतर : अरुंधति रॉय
एक ज़िद्दी धुन पर Ek ziddi dhun
बीस साल पहले जब उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का दौर हम पर थोपा गया तब हमें बताया गया था कि सार्वजनिक उद्योग और सार्वजनिक संपत्ति में इतना भ्रष्टाचार और इतनी अकर्मण्यता फैल गई है कि अब उनका निजीकरण ज़रूरी है। हमें बताया गया था कि मूल समस्या इस प्रणाली में ही है।
२७.
जोरू से बिगड़ी बात, हुये जाति से बाहर
एक आलसी का चिठ्ठा पर गिरिजेश राव
बहुत दिनों पहले किसी पुरवे में एक आदमी रहता था। वह अपनी जाति पंचायत का मुखिया था। बहुत अनुशासनप्रिय था और निर्मम दंड देने के लिये जाना जाता था। एक दिन उसे कुलदेवी का सपना आया - तुम दंड देने में बहुत निर्मम हो गये हो। यह ठीक नहीं। अपने को सुधारो।
सबेरे उसने अपनी पत्नी को बात बताई तो उस भली महिला ने उसे राह सुझाई - दंड ऐसा दो कि लोग बहुत दुखी न हों और भय भी बना रहे।
२८.
"दीपक जलते जाएँगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
उच्चारण पर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
नेह अगर होगा खुश होकर दीपक जलते जाएँगे।
धरती पर फैला सारा अँधियारा हरते जाएँगे।।
२९.
*साहित्य प्रेमी संघ* पर आशा
मैं जो चाहूँ ,जैसे चाहूँ ,
सपने में सब साकार करूँ ,
बचपन की याद समेटे ही ,
खेलूँ कूदूँ हँसती जाऊँ ,
२९.
आलोचक के प्रति कवि मन के उद्गार..
कुछ औरों की , कुछ अपनी ... पर अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
आलोचक के प्रति कवि मन के उद्गार..
गुणदोष कथन को लोगों द्वारा आलोचना कहा गया है। यह प्रक्रिया एक निर्ममता माँगती है, इसलिये आलोचक का निर्मम होना उसकी मजबूरी हो जाती है। पर उसका प्रयोजन सत्व-पूर्ण होता है। अभी ब्लोगबुड में एक ब्लोग पर कविता पर आलोचना को लेकर बहस-नुमा चीजें दिखीं। आज पढ़ते कुछ चीजें मिलीं तो सोचा यहाँ साझा करूँ ताकि लोग ब्लोगबुड में भी गुणदोष कथन करने वाले को इतनी वक्र दृष्टि से न देखें।
३०.
आवारा सजदे पर Ashish
उजड़ी-उजड़ी हर आस लगे
ज़िन्दगी राम का बनवास लगे
तू की बहती हुई नदी के समान
तुझको देखूं तो मुझे प्यास लगे
मेरी सोच पर रेखा श्रीवास्तव
हम रोज नए ब्लॉग देख रहे हैं और इसके साथ ही ब्लॉग पर कमेन्ट में अपना प्रचार करने का कामकर रहे हैं। रोज पढ़ती हूँ , मेरे पास उनके उत्तर में लिखने को कुछ भी नहीं होता हैं । क्या हमारेपास धर्म और संप्रदाय के ऊपर आरोप प्रत्यारोप के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता है। रोज नए ब्लॉगनए ऐलान के साथ - ऐसा नहीं है कि इसमें ऊर्जा खर्च नहीं होती है या फिर हमारी बौद्धिक काउपयोंग नहीं होता है।
३२.
कार्टून:- हाय ! अमीर होना भी श्राप हो गया...
Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून
मेरे अरमान.. मेरे सपने.. पर दर्शन कौर धनोए
मै भी क्या शै हूँ ,क्या चीज हूँ
खाया था कभी तीर कोई
आज जब दर्द ने सताया तो ,
तेरी याद आई !!!
३४.
ब्लोगिंग / इन्टरनेट की दुनिया के सम्बन्ध
नारी , NAARI पर रचना
ब्लोगिंग / इन्टरनेट की दुनिया के सम्बन्ध आभासी दुनिया हैं ये और यहाँ कौन क्या हैं और क्या दिखता हैं दोनों में अंतर हैं । लेकिन ये तो रीयल दुनिया में भी होता हैं । नकाब तो वहां भी हैं हर चहेरे पर ।
३५.
गर्मी की एक सुबह, उदयपुर में फतेहसागर के किनारे - अजित गुप्ता
from अजित गुप्ता का कोना by ajit gupta
आइए गर्मी में सुहाने पलों को जी लें। जैसे आपके जीवन में सुबह की एक प्याली चाय तरोताजगी भर देती है और सारा दिन काम के लिए स्फूर्ति देती है, बस ऐसे ही भोर की ठण्डी पुरवाई आपको सारा दिन तरोताजा रखने में सक्षम है। कैसे? अरे मेरे अनुभव का लाभ ले। बस सुबह 5 बजे निद्रा देवी को बाय-बाय कह दें और आनन-फानन में अपने नित्य के कार्यों को सम्पादित करके पैरों में जूते डालिए और निकल पड़िए सूनी सड़क को गुलजार करने।
३६.
यूँ भी तो हो - एक इच्छा - एक कविता
खस्ता शेर - खुदा खैर पर स्मार्ट इंडियन
काजू सड़ते शराब हो जाते
गदहे सज के नवाब हो जाते
पानी खेतों में पड़ गया होता
गेंहूँ खिल के गुलाब हो जाते
विहंगम चर्चा के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंek aisee charcha jiski charcha kai dino taq hogi bahut sarthak bahut sundar.aabhari hoon kai aur links se jodne ke liye.
जवाब देंहटाएंविस्तृत और बहु आयामी चर्चा |
जवाब देंहटाएंबधाई
आज की चर्चा में मेरी उस्त शामिल करने के लिए आभार
आशा
charcha manch aap jaise charchakaron kee pratibha ka kayal hai .aapki charcha hamesha kee tarah taro taaza karne vali hai.sahitya premi sangh se meri kavita kampti insaniyat ko aapne aaj isme sthan diya hai is ke liye main aapki aabhari hoon.thanks.
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा...ढ़ेरों लिंक...वाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लिंक्स के साथ सजी चर्चा कुर्सी पर जमे रहने के लिये विवश करती है ! मेरी रचना को आपने इसमें स्थान दिया ! आभारी हूँ ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंलिंक अलग से नहीं खुलता है इसलिए परेशानी होती है। फिर भी सभी लिंक सुंदर है, आभार।
जवाब देंहटाएंमनोज जी नमस्कार -सुंदर ,विस्तृत और बढ़िया चर्चा |
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |आपके इतने बढ़िया सुझाव के लिए आभार |अमल ज़रूर करूंगी |
मनोज जी आपकी चर्चा का अंदाज़ एकदम अलग होता है और चर्चा होनी भी ऐसी ही चाहिए. बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंपठनीय लिंक्स के उत्तम चयन हेतु आभार सहित...
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह आज भी कुछ नये ब्लॉग पढ़ने को मिले।
जवाब देंहटाएंसुंदर ,विस्तृत और बढ़िया चर्चा ही आपकी पहचान है…………………बहुत अच्छी चर्चा आभार्।
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा .... मेरी रचना को स्थान दिया .... आपका बहुत बहुत धन्यवाद ....
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बढ़िया चर्चा ...
जवाब देंहटाएंbahut acchi rachnaon se saji charcha
जवाब देंहटाएंतीन दिन के दिल्ली प्रवास के बाद आज ही घर लौटा हूँ!
जवाब देंहटाएं--
चर्चा बहुत बढ़िया लग रही है!
आपका आभार!
सुन्दर लिंक्स से सजी रोचक चर्चा..मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिये धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया और विस्तृत चर्चा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुन्दर. बहुआयामी चर्चा.... आभार...
जवाब देंहटाएंअरुण साथी जी कि परेशानी से अपने को सहमत पाता हूँ.
सादर...
विस्तृत और उम्दा चर्चा ....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और विस्तृत चर्चा।
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा ..Thanks Sir.
जवाब देंहटाएं