नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं रविवासरीय चर्चा के साथ। कुछ व्यस्ताओं के कारण अधिक पोस्ट पर नहीं जा पाया। फिर भी जितनों पर गया उनमें से कुछ चुने हुए लिंक दे रहा हूं। आशा है पसंद आएगा।
थैंक्स राम !
किसी शहर को जानना हो , उसकी ख़ूबसूरती निहारनी हो तो , उसे पैदल घूमो , या फिर छोटे रिक्शा में ...तेज भागते वाहनों से भी कभी किसी शहर को जाना जा सकता है।
डायरी का जीवन
डायरी लेखन किसी संभावित निष्कर्ष को ध्यान में रख कर नहीं होता है, पर उसमें विस्फोट की संभानायें बनी रहती हैं। कुछ भी हो, आपबीती को औरों के दृष्टिकोण से न देखकर स्वयं से बतियाने का एक सशक्त माध्यम हो सकता है डायरी लेखन।
"भीड़ में नर तलाश करते हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
ज़ाम दहशत के ढालने वालो,
पीड़ में सुर तलाश करते हो!
“रूप” की लग रहीं नुमाइश हैं,
हूर में उर तलाश करते हो!
शाहनामा
ख़ुद पर विश्वास ही है कि वह अपनी प्रेमिका को खोजने के लिए मुंबई पहुंच जाता है, बिना यह जाने कि मुंबई में उस लड़की का पता क्या है? सिर्फ यह जानता है कि उस लड़की को तैरना पसंद है, वह शायद किसी बीच पर मिल जाए। और दसवें दिन वह उसे मिलती भी है।
धर्म संबंधी धारणाएं
हर आदमी को मन-ही-मन ईश्वरीय सत्य का एहसास होता है। इसलिए अपने विवेक से ईमान रखना ही असली धर्म है। धर्मग्रंथों की सूक्ति केवल बाह्यांग हैं। इनकी अपेक्षा भीतर की नैतिक प्रेरणा को अधिक महत्त्व देना चाहिए। नीति ही धर्म की आत्मा होती है। इसीलिए धर्मशास्त्रों की सीख और धर्म-पीठों के आदेश यदि नीति की कसौटी पर खरे न उतरते हों तो वहां उनका विरोध कर अपनी अन्तःप्रेरणा से ईमान रखना ही असली धर्म-साधना है।
सबकी जड़ आप हैं !
from बेचैन आत्मा by देवेन्द्र पाण्डेय
दस वर्षीया सबसे छोटी पुत्री वहीं खड़ी थी
उसने तपाक से कहा...
आप कैसे बाप हैं ?
आपको इतना भी नहीं पता
सबकी जड़ आप हैं !
गांधी की टी-शर्ट तले बस्ती जलाने के गौरव से भरा दिल!
अमरीका के अपने ढाई बरस पहले के अनुभव और इस बार के अनुभव, दोनों के आधार पर मैं यह सोचता हूं कि वहां बसे हिन्दुओं का अधिक तर हिस्सा हिन्दुत्व को लेकर भारत में बसे आम हिन्दू के मुकाबले कुछ अधिक संवेदनशील और सक्रिय है। शायद अपनी जमीन से दूर रहते हुए लोगों को धर्म का महत्व कुछ अधिक लगता है। तो मैं बात कर रहा था कि गुजरात से अमरीका जाकर बसे हुए एक गुजराती सज्जन की जो कि इस दांडी मार्च में कुछ वक्त हमारे साथ रहे। उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि मैं अखबारनवीस हूं, और साम्प्रदायिकता को लेकर मेरी क्या सोच है, उसके बाद भी वे अगर खुलासे से मुझे गुजरात की घटनाओं के बारे में बताते रहे, तो मेरा मानना है कि उसे लिखने में कोई नैतिकता भी मेरे आड़े नहीं आती।
दोहे
mahendra verma
सगे पराये बन गये, दुर्दिन की है मार,
छाया भी संग छोड़ दे, जब आए अंधियार।
कान आंख दो दो मिले, जिह्वा केवल एक,
अधिक सुनें देखें मगर, बोलें मित अरु नेक।
मोगरे की महक... खुले आकाश में झिलमिलाते तारे... और आँगन में रात्रि विश्राम...
जी.के. अवधिया
आँगन के एक कोने में एक छोटी सी फुलवारी थी जिसमें हमारे बाबूजी गुलाब और मोगरे लगाया करते थे। मैं उस फुलवारी के पास ही स्टूल रखकर उस पर टेबल-फैन रखकर चला दिया करता था। टेबल-फैन की हवा यद्यपि गर्मी को शान्त करने के लिए अपर्याप्त होती थी किन्तु मोगरे के फूलों की महक को हम तक पहुँचाने में अवश्य ही कारगर होती थी। मोगरे की उस भीनी-भीनी महक से अभिभूत मैं घण्टों आँगन के ऊपर खुले आकाश में झिलमिलाते तारों को देखा करता था।
पहाड़िया
उबड़-खाबड़ जंगल-झाड़ के रस्ते लौट आते हैं
बैल-बकरी, सुअर, कुत्ते, गायें भी दालान में
साँझ की उबासी लिये
साथ लौटता है पहाड़िया बगाल
निठल्ला अपने सिर पर ढेर-सा आसमान
और झोलीभर सपने लिये
भारत में वृद्धों की स्थिति में सुधार आएगा .. पर अतिवृद्धों की स्थिति बिगडेगी !!
संगीता पुरी
‘खगोल शास्त्र’ के अंतर्गत ग्रहों के अध्ययन में हमेशा ही कुछ दिक्कतें आती रही हैं। कुछ गणनाओ के आधार पर यूरेनस औरनेप्च्यून की गति में हमेशा एक विचलन का कारण ढूंढते हुए वैज्ञानिकों ने एक ‘क्ष’ ग्रह (Planet X) की भविष्यवाणी की , जिसके कारण यूरेनस और नेप्च्यून की गति पर प्रभाव पड रहा था। अंतरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डबल्यू टोमबौघ इस ‘क्ष’ ग्रह के रूप में 1930 में प्लूटो खोज निकाला। लेकिन प्लूटो इतना छोटा निकला कि यह नेप्च्यून और यूरेनस की गति पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता है। वास्तव में प्लूटो इतना छोटा है कि सौरमंडल के सात चन्द्रमा ( हमारे चन्द्रमासहित) इससे बड़े है। इसकी कक्षा का वृत्ताकार नहीं होना और वरुण की कक्षा को काटना भी इसे ग्रह का दर्जा देने में विवाद पैदा करते रहें। इस बौने से ग्रह प्लूटो की पृथ्वी से लगभग 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर दूरी पर स्थित है और 248.5 साल में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है। इस तरह एक एक राशि पार करने में इसे लगभग पंद्रह वर्ष लग जाते हैं
शब्द-शर
अमा-निशा-सोम-आरुषी पर।
दिनकर की दिप-दिप आभा पर।
छंद कोकिला की कुहुकों पर,
गीत रचेंगे कवि पुहुपों पर।
कार्टून : सीबीआई दा जवाब नहीं
रिश्वत लेना नर का मांस खाने के समान-श्रीगुरुवाणी साहिब से संदेश (corruption anti
वैसे राजकाज से जुड़े लोगों का भ्रष्टाचार हमारे देश के लिये नयी बात नहीं है पर पहले यह कम था। अब तो यह स्थिति यह है कि राजकाज से जुड़े लोग जनहित की बात सोचने से अधिक अपने स्वार्थ पर अधिक ध्यान देते हैं। रिश्वत लेना उनके लिये कमाई है। कहने को तो हमारे देश में धर्मभीरु लोगों की कमी नहीं है पर सवाल यह उठता है कि उसके अनुसार आचरण कितने लोग करते हैं?
किताब की नायिका एवं महत्वपूर्ण पात्र
मैं जब उनसे मिला था, तब सर्दियों के दिन थे. तब शुरू के दिनों में वह मेरे लिएअन्जाना शहर था. बाद छुट्टी के मैं रेलवे ट्रैक के किनारे बैठा सिगरेट फूँका करताथा. और जब मन बेहद उदास हो जाया करता, तब मैं वापस अपने कमरे पर जाकिसी उपन्यास के पृष्ठ पर निगाहें गढ़ा लेता. और विचार के खंडहरों में बेहदअकेला घूमता रहता.
फ़ुरसत में … क्या पाठक का विकल्प आलोचक है?
पाठक का विकल्प आलोचक नहीं है। जागरूक पाठक अपना विमर्श खुद तैयार करता है। सृजन और आलोचना दोनों में समीक्षा का अर्थ बदल गया है। विरोध आम बात हो गई है। जहां एक ओर सृजन के नाम पर सतही रचनाएं आ रहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ़ आलोचना के नाम पर या तो दलबंदी हो रही है या पत्थरबाज़ी। लगता है वैचारिक संवेदना दिशाहीन हो गई है। साहित्य को परखने की कसौटी मत, वादों के हिचकोले खा रही है।
"भीड़ में नर तलाश करते हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्र...
नीड़ में ज़र तलाश करते हो!
भीड़ में नर तलाश करते हो!
छल-फरेबी के हाट में जाकर,
नीर में सर तलाश करते हो!!
इस ब्लॉग की आखिरी पोस्ट?
स्मार्ट इंडियन
इस ब्लॉग का अंत, तुरंत!
जी नहीं, बात वह नहीं है जो आप नहीं समझ रहे हैं। अगर आप यह ब्लॉग पढते हैं तो आपको अच्छी तरह पता है कि, मुझे टंकी पर चढने का कोई शौक नहीं है। मैं तो चाहता हूँ कि मैं रोज़ लिखूँ, परिकल्पना वाले रोज़ मेरे लेखन को इनाम दें, विभिन्न चर्चा मंच इसे चर्चित करें, यार-दोस्त इसे फेसबुक पर मशहूर करें, सुमन जी "सुपर नाइस" की टिप्पणी दें, आदि, आदि। मगर मेरे चाहने से क्या होता है।
आज बस इतना ही।
badhiya charcha .. aaj ke liye achche link mile...abhaar
जवाब देंहटाएंरविवासरीय चर्चा बहुत बढ़िया लिंकों से सजाई है आपने!
जवाब देंहटाएं--
आभार!
bahut badiya Links ke saath sajayee gayee charcha prastuti ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएंbadhiya charcha
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स से सुसज्जित संक्षिप्त चर्चा के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंसभी अच्छे लिंक्स को एक ही जगह उपलब्ध कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआज के दिन को सुन्दर ठंग से सजाया है …धन्यवाद
जवाब देंहटाएंउम्दा !
जवाब देंहटाएंमोम का सा मिज़ाज है मेरा / मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ -'Anwer'
सुघड़ -सुंदर -सुव्यवस्थित चर्चा ...!!
जवाब देंहटाएंआभार .
sundar charcha. abhaar.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स से सजी बहुत रोचक चर्चा..आभार
जवाब देंहटाएंSUPER NICE
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया चर्चा .. आभार !!
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त है पर सटीक है --आज की चर्चा- मच ---बधाई हो मनोज जी --आपसे बहुत कुछ सिखने को मिलेगा ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बड़े ही अच्छे लिंक्स प्राप्त हुये।
जवाब देंहटाएंबहुत संतुलित चर्चा अच्छे लिंक्स मिले ..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब कलेक्शन ,आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक,
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