नमस्कार , एक बार फिर हाज़िर हूँ मंगलवार की चर्चा ले कर ..चर्चा मंच ऐसी वाटिका है जहाँ जाने पहचाने चेहरों के साथ नए चेहरों का भी परिचय मिलता है … ब्लॉग जगत में ऐसे मोती छिपे हैं जिनकी चमक स्वत: ही दिखाई दे जाती है ..बस इस समंदर में गोता लगना पड़ता है ..खैर आप तो नए मोतियों की चमक से आनंदित होईये .. और बताइए कि मोती असली ही हैं न ? सबसे पहले वाटिका ब्लॉग से चलते हैं आज की चर्चा पर -- |
मृत शरीर कितने ही प्रिय व्यक्ति का क्यों न हो बदबू देने लगता है थोड़े समय बाद किसी टूटे हुए रिश्ते को अन्तिम सांस तक संभाल कर जीने की चाह से बड़ी नहीं होती कोई यातना । |
मनोज जी विचार ब्लॉग पर लाये हैं एक ऐसी रचना जो मजबूर करती है सोचने पर … “ काम करती माँ “ कविता के आगे की कड़ी है यह झींगुर दास .. झींगुर दास ने देख लिए तीन पुश्त उस मालिक की देहरी के मालिक भी परलोक गए बच्चे उनके परदेश में हैं अब झींगुर करेगा क्या, खाएगा क्या? |
यूँ ही कभी कभी ठन्डे पड़ जाते हैं मेरे हाथ तितलियाँ सी यूँ ही मडराने लगती हैं पेट में |
हरकीरत हीर जी की हर रचना ज़िंदगी का अनुभव होती है …एक एक लफ्ज़ महसूस होता हुआ स लगता है … न जाने खुदा कब लिबास उतार दे .. झूठ ..... कुछ यूँ टँगा रहता है लोगों की जुबाँ पर के हर रोज़ उतारती हूँ ज़िस्म के .... |
आज आपके समक्ष लायी हूँ कविताओं के धनी एस० एन० शुक्ला जी को , फिलहाल कई कविताएँ पढ़ डाली हैं मैंने और बाकी भी पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही हूँ … जो अभी तक पढ़ी हैं उनमें से वीरवर कर्ण और प्रश्न ने बहुत प्रभावित किया है ..यहाँ उनकी एक और रचना लायी हूँ - कुछ लोग हवा के साथ चले, धारा के साथ बहे होंगें लोगों की नजरों में शायद वे ही तैराक रहे होंगे मैं सदा चला विपरीत धार, मझधार-पार से क्या लेना मैं विद्रोही बन जिया सदा, फिर जीत-हार से क्या लेना. |
जिंदगी से भरपूर इस लड़की की मृत्यु की खबर अखबार में पढ़ी ...किसी की नजर में फ़ूड पोइजनिंग का मामला था , तो कोई इसे जानबूझकर जहर खाना बता रहा था ...उस दिन अखबार में 4 लड़के -लड़कियों की आत्महत्या की खबर थी , भुलाये नहीं भूलता ...भरे-पूरे परिवार में किस तरह लोंग अकेले पड़ जाते हैं कि उनके पास आत्महत्या के सिवा चारा नहीं होता …. वाणी शर्मा जी अपने मन की बात इस रचना के माध्यम से कहना चाहती हैं -- जीने दो इन्हें अनन्य अद्भुत शांति सिमटी हो हमारी आँखों में अंतस तक भिगोती स्निग्धता जो देती रहे इन्हें साहस जीने का हौसला |
अतुल प्रकाश त्रिवेदी जी कॉल सेंटर में काम करने वाली लड़कियों की दिनचर्या को शब्द दे रहे हैं --गुड़ मॉर्निंग अभी अभी नभ में टूटा कोई तारा हमने नहीं देखा नदी के तट पर हर शाम की तरह खुद का प्रतिबिम्ब निहारता |
निवेदिता श्रीवास्तव जी दानवीर कर्ण के विषय में अपनी भावना व्यक्त कर रही हैं …सूर्य पुत्र या सूत पुत्र "कर्ण" आज सूर्य की , धरा पर झांकने को तत्पर,किरणों से मैं सूर्यपुत्र कुछ कहना चाहता हूँ मैंने तो कभी न पाली किसी के प्रति अपने मन में कोई दुर्भावना ,फिर - मुझे मिली किस अपराध की सजा ! |
कुश्वंश जी महाभारत के पत्रों को आज के युग में किस सन्दर्भ में देख रहे हैं ज़रा गौर करें --अंजाम नहीं मालूम महाभारत की द्रोपदी का प्राणांत कोई नहीं जानता, और जानता भी है तो पढने जैसा कुछ नहीं होगा उसमे, क्योकि द्रोपदी महाभारत समाप्त होने पर भी नहीं मरी, आज भी जिन्दा है, |
आशुतोष मौर्य जी कहते हैं “ मेरे मित्र सोमू दा की एसएमएस के जरिए भेजी गयी ये कुछ कविताएं बेहद प्यारी लगती हैं मुझे। इन कविताओं की सबसे खास बात यह है कि सोमू दा इन्हें अपनी मूल कविता संग्रह में कहीं नहीं रखते। ये कविताएं उन्होंने संदेश के निमित्त ही लिखी हैं। तो लीजिए पढ़िए उनके सोमू डा की रचनाएँ .. जो सच ही एक से बढ़ कर एक हैं ..सन्देश कविताएँ धरती और स्त्री में एक समानता है कि वह धरती की तरह है और एक अन्तर कि वह धरती नहीं वह एक समय में कई धुरी पर घूमती है कई बार तय करती है दूरी वहां तक जहां तरतीब में नहीं हैं चीजें घर जैसी छोटी दुनिया में कोई स्त्री कितने अद्भुत तरीके से धरती बनी रहती है |
देवेन्द्र गौतम जी की एक खूबसूरत गज़ल -- डूबने वाले को डूबने वाले को तिनके के सहारे थे बहुत. एक दरिया था यहां जिसके किनारे थे बहुत. एक तारा मैं भी रख लेता तो क्या जाता तेरा आस्मां वाले तेरे दामन में तारे थे बहुत. |
आनंद द्विवेदी जी बहुत से नज़ारे दिखा रहे हैं वेटिंग रूम से - प्रतीक्षालय में होना सुखद है, बनिस्बत होने के किसी प्रतीक्षा में .. हजारों चेहरे |
और इसके आगे की कड़ी पढ़िए ..वापसी .. प्रतीक्षा के बाद याद आ रहा है मुझे गुज़रते हुए इस अनिश्चितकालीन प्रतीक्षा से कहा था कभी |
मुझे नहीं पता कि देश का सबसे बड़ा लेबर बाज़ार कहाँ है लेबर बाज़ार कहाँ है लेकिन जब देखता हूं दिल्ली, नोएडा और गाज़ियाबाद के बीच नो मैन्स लैंड खोड़ा के चौक पर हर सुबह |
स्वराज्य करुण जी लाये हैं एक खूबसूरत गज़ल - ज़िंदगी की नदी में हमने जिसे अपने खून-पसीने से खूब सींचा है , नज़दीक उसके जा भी न सकें , ये कैसा बगीचा है ! कालीन जो तुमने बनायी, बिछी है उनके पाँव में , घर में तुम्हारे यहाँ महज काँटों का गलीचा है ! |
दिलबाग विर्क जी की हाईकू पढ़िए साहित्य सुरभि पर
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अना जी बता रही हैं कि आज बचपन कैसे बस्तों के बोझ तले दब रहा है - ये बचपन बस्तों के बोझ तले दबा हुआ बचपन बसंत में भी खिल न पाया ये बुझा हुआ बचपन बचपन वरदान था जो कभी अति सुन्दर पर अब क्यों लगता है ये जनम - जला बचपन |
ये जिंदगी, पता है क्या ? न खत्म हो, सज़ा है क्या ? है आँख क्यूँ भरी भरी ? किसी ने कुछ कहा है क्या ? |
सौरभ चौधरी “सुमन “ अपनी रचना के माध्यम से उस नन्हे शिशु के मन की बात बता रहे हैं जिसने अभी इस दुनिया में प्रवेश किया है … वो नन्हा क्या सोच सकता है .. ज़रा आप भी पढ़िए --- " माँ "...!!! कितना खुश था मैं माँ जब मैं तेरे अन्दर था माँ इस दुनिया से बचाकर कर रखा था तुमने कितने प्यार से पाला था तुमने |
क्या कहूँ तेरी आँखों के बारे मे जब भी इन्हें देखता हूँ तो लगता है इन आँखों मे झील की गहराई है इन आँखों मोती की सच्चाई है |
डा० कविता किरण जी अपनी गज़ल में कह रही हैं ---अमृत पी कर भी है मानव मरा हुआ अमृत पीकर भी है मानव मरा हुआ बरसातों में ठूंठ कहीं है हरा हुआ करके गंगा-स्नान धो लिए सारे पाप सोच रहे फिर सौदा कितना खरा हुआ |
चादर सी ,चूनर सी- चैत की चंदनिया झांझर सी,झूमर सी - चैत की चंदनिया महुआ की मधुता सी, मनभाती-मदमाती छिटके गुलमोहर सी - चैत की चंदनिया अनपढ़ - अनाड़ी सी ,सल्फी सी-ताड़ी-सी मादक-सी,मनहर सी - चैत की चंदनिया |
सामने तालाब पर भोरे-भोर आया था वह झलफल होने तक इंतजार करता रहा न जाने किसका न जाने क्यों |
रेखा श्रीवास्तव जी उम्र के उस पड़ाव पर आकर दर्द महसूस कर रही हैं जब शरीर थकने लगता है …बच्चे सब घोंसलों से निकल अपने आकाश में उड़ने लगते हैं ..अपना नया आशियाना बना लेते हैं -- दर्द किसी सूने घर का तेरी आवाज सुनी तो सुकून आया दिल को, वर्ना तुझे देखे हुए तो जमाना गुजर गया। कभी गूंजती थी किलकारियां इस आँगन में, वर्षों गुजर चुके है इसमें अब पसर गया। |
इस तरह अंतर जगत में साथ में मिलकर चले हम , दूर भी तो रह न पाए , पास आ पाए नहीं . |
मृदुला हर्षवर्धन जी न जाने क्यों कुछ चुप चुप सी हैं और कह रही हैं कि -आज मन बहुत उदास है ... तो चलिए कुछ उदासी दूर कर दी जाये .. आज मन बहुत उदास है सब कुछ तो है, जाने फिर किस की प्यास है भीड़ में अकेलेपन का अजीब सा एहसास है शुष्क आँखों के किसी कोने में, टूटी हुई आस है |
मेरी छाती में लोटती रहती है धूप दिन के दूसरे पहर तक; और फिर - सरकते हुए धरती के सुदूर कोने में चली जाती है ! |
गोपाल तिवारी जी एक बता रहे हैं कि राजनीति में अपने आकाओं के चक्कर लगाने से कुछ न कुछ तो हासिल हो ही जायेगा --- हास्य कविता राजनीति में जो अपने आका का परिक्रमा लगाएगा कभी नही तो कभी पूजा जाएगा और जो अकडन दिखलाएगा अवसर को गंवाएगा |
तुम्हारी ख्वाबों की दुनिया का कैनवस कितना विस्तृत है है ना ........... उसमे प्रेम के कितने अगणित रंग बिखरे पड़े हैं |
वर्षा सिंह खूबसूरत रचना से बता रही हैं कि मीठे बोल मन में कैसे अपार सुख को भर देते हैं ---बोल प्यार के कितना तरसा है मन मीठे बोल तुम्हारे सुन कर मेरी बोल तुम्हारे मिल जाएँ मन कि कलियाँ खिल जाएँ |
वटवृक्ष पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही हैं आनंद द्विवेदी जी को -- उनकी एक गज़ल खत लिख रहा हूँ तुमको-- न दर्द, ... न दुनिया के सरोकार लिखूंगा, ख़त लिख रहा हूँ तुमको, सिर्फ प्यार लिखूंगा ! तुम गुनगुना सको जिसे , वो गीत लिखूंगा , हर ख्वाब लिखूंगा, .. हर ऐतबार लिखूंगा ! |
कुर्सी मुकुट और दरबार रोटी पेटों की सरकार कुर्सी भरे पेट का राज रोटी भूखों की आवाज़ कुर्सी सपनों का संसार रोटी मजबूरी-बेगार |
चन्द्र भूषण मिश्रा “ गाफिल “ जी की खूबसूरत गज़ल …चर्चामंच पर पहली बार पेश है बस वही दूर हुआ जा रहा मंजिल की तरह मैँने चाहा है बहुत जिसको जानो-दिल की तरह। बस वही दूर हुआ जा रहा मंजिल की तरह॥ जुल्फ़-ज़िन्दाँ में हूँ मैं कैद एक मुद्दत से, कोई आ जाये मेरे वास्ते काफ़िल की तरह। |
ममता माँ की निःस्वार्थ सतत ही है अनमोल ****************** गोद समेटे धरा और जननी यही शाश्वत |
सर्वप्रथम कृष्ण मनुष्य फिर भगवान् कभी कुशल राजनेता कभी सारथी , ..... कभी सार कभी सत्य |
मनोज ब्लॉग पर श्यामनारायण मिश्र जी का खूबसूरत नवगीत गूंजता होगा नाम तुम्हारा घाटियों में गूंजता होगा तुम्हारा नाम। दूर प्राची के अधर से सारसों की दुधिया ध्वनि चू रही होगी। |
यौवन जैसा “रूप” कहाँ है, खुली हुई वो धूप कहाँ है, प्यास लगी है, कूप कहाँ है, खरपतवार उगी उपवन में। पंछी उड़ता नीलगगन में। |
और इस सीख के साथ ही देखिये क्या हाल है गर्मी का ? पढ़िए कुछ दोहे --दोहे - दो गंजे गर्मी के कारण हुए, हाल बहुत बेहाल। बाल वाङ्मय लिख रहे, मुँडवा करके बाल।। सिर घुटवा गंजे हुए, दोनों ब्लॉगर साथ। रवि जी ने रक्खा हुआ, कन्धे पर है हाथ।। |
चर्चा के समापन तक बहुत से लिंक्स दिए पर अभी भी लगता है … अभी कुछ और ....बाकी है .. समीर लाल जी की एक खूबसूरत गज़ल .. इन्हीं राहों से गुज़रे हैं मगर हर बार लगता है अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है हमेशा ज़ख़्मी दिल को दोस्तो ये खौफ रहता है अभी कुछ और,अभी कुछ और ,अभी कुछ और बाक़ी है |
लीजिए मैंने तो सारे मोती रख दिए आपके सामने … आपको कौन कितना आकर्षित करता है , यह आप ही बताएँगे … आपके सुझाव और प्रतिक्रिया का हमेशा इंतज़ार रहता है … आप जाँचिये – परखिये और मैं चली नए मोती इक्कठा करने … अरे अगले मंगलवार को भी तो लाने हैं न कुछ नए चेहरे …चलते चलते एक हास्य रचना यहाँ भी -- संगीता स्वरुप |
दी,
जवाब देंहटाएंचर्चा-मंच बेहुत संतुलित और अच्छा सजाया है..... मुझे भी स्थान देने के लिये आभार !
नए हों या पुराने चर्चा मंच पर तो सभी नए लगते हैं क्यूँ कि उनकी रचनाएँ तो नई होती हैं |
जवाब देंहटाएंआज की सार्थक और अच्छी लिंक्स लिए चर्चा के लियें
बधाई |
आशा
charcha manch ke madhyam se aapke hunaer ko salam , sunder sakshyon ke aktrikaran ko naman ,behatarin prayas . aabhar ji .
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक,
जवाब देंहटाएंसंगीता जी
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में स्थान देने और आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद. आप जैसी विदुषी द्वारा मेरी रचनाओं की प्रंशसा किये जाने से मैं महसूस कर रहा हूँ कि शायद मैं भी कुछ लिख पा रहा हूँ और भावों को अभिव्यक्ति दे पा रहा हूँ.
जब भोग हुआ यथार्थ किसी रचना के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है तो उसमें अंतरमन कि पीड़ा होती है, और वह रचना वास्तविकता के बहुत अधिक निकट होती है. अपेक्षा करता हूँ कि आपके मंच से जुड़े विद्वान रचनाकार मेरी प्रस्तुतियों के बारे में अपनी प्रतिक्रिया, टिप्पणियां देंगे ताकि यदि मेरी रचनाओं में कोई त्रुटियाँ हों तो हम उन्हें आगे सुधार सकें.
इसके साथ ही उत्कृष्ट रचनाएँ मेरे संपादन में प्रकाशित समाचार पत्र ''लौह स्तम्भ'' में प्रकाशनार्थ भी आमंत्रित हैं.
चर्चा मंच पर आमंत्रित करने के लिया एक बार पुनः धन्यवाद.
E-mail: editor_lauhstambh@yahoo.com
शुभप्रभात ..!!
जवाब देंहटाएंअच्छे लिनक्स ...बढ़िया चर्चा ..!!
संगीता जी आपकी चर्चा का अंदाज़ सबसे अलग है और बहुत सुंदर है. बढ़िया लिंक्स भी दिए है. आभार.
जवाब देंहटाएंपोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद ... बहुत ही सुन्दर और सार्थक चर्चा ... इतने सारे लिंक्स एक साथ डालने में आपने जो श्रम किया है उसके लिए दिल से आभार !
जवाब देंहटाएंbeautiful links as always. hats off to your immense and hard labour.
जवाब देंहटाएंsare moti hi seep se nikle hue prateet ho rahe hain .badhai.
जवाब देंहटाएंअसली मोती में मैं भी हूँ- अहोभाग्य
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता जी नमस्ते!
जवाब देंहटाएंप्रथमतः मेरी रचना चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद। आज के चर्चा मंच पर आपने जिन मोतियों की बानगी रखी है वो सभी वाकई अनमोल हैं। इनमें आनन्द द्विवेदी जी की ग़ज़ल ‘ख़त लिख रहा हूँ तुमको’, वंदना गुप्ता जी की प्रस्तुति ‘प्रेम का कैनवास’, बाबूषा की ‘मैं एक स्लेटी पहाड़ी हूँ’, आकुल जी की ‘इस तरह से’, रेखा जी का ‘दर्द किसी सूने घर का’ अरुण कुमार निगम की रचना ‘चैत की चंदनिया’ डॉ0 कविता किरण जी की ग़ज़ल ‘अमृत पीकर भी है मानव मरा हुआ’, सैल जी की ग़ज़ल ‘ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या’, रश्मि प्रभा जी की रचना ‘अमृत देवता के हाथ’ तथा अन्य सभी रचनाएँ मन के तार को झंकृत कर देने में पुर्णतः सक्षम हैं। समीर लाल जी ‘समीर’ की ग़ज़ल ‘अभी कुछ और बाकी है विशेष उल्लेखनीय है। समीर लाल जी बड़े हस्ताक्षर हैं, उनके बारे में कुछ भी कहना सूरज को दीया दिखाना ही है। पुनः बहुत-बहुत आभार।
-ग़ाफ़िल
अच्छे लिंक.
जवाब देंहटाएंकविता करते चालीस वर्ष बीत गए.यह विधा पिताजी से विरासत में प्राप्त हुई.अपनी जन्म स्थली दुर्ग में रहते तक तक स्थानीय साहित्यकारों और साहित्यिक मित्रों का सानिध्य मिला.नौकरी में निरंतर स्थानांतरण ने इस कवि को डायरी में कैद होने के लिए बाध्य कर दिया.कवितायेँ अनायास ही जन्म लेती रहीं,सायास लिखने का कभी प्रयास नहीं किया.लगभग एक वर्ष पूर्व gurturgoth.com के संजीव तिवारी जी ने ब्लाग तकनीक से परिचय कराया.जी.के.अवधिया जी ने ब्लॉग बनाना सिखाया.श्रीमती जी (श्रीमती सपना निगम जो स्वयं भी हिंदी और छत्तीसगढ़ी में अच्छा लिखती हैं) ने डायरी से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया.बस आ गया आप सभी के बीच.संगीता जी के स्नेह ने तो हजारों के सामने प्रस्तुत कर दिया. संजीवतिवारी जी, अवधिया जी, जीवन संगिनी सपना निगम जी और संगीता जी का आभार. आभार प्रकटकरने के लिये इससे बेहतर मंच और कहाँ मिल सकता है .
जवाब देंहटाएंआद. संगीता जी,
जवाब देंहटाएंआपने आज का चर्चा मंच बड़ी ही खूबसूरती के साथ अच्छे अच्छे लिंकों से सजाया है ,पढ़कर आनंद आ गया !
सुन्दर चर्चा के लिए आभार !
संगीता जी,
जवाब देंहटाएंआप चर्चा मंच को इतनी सुन्दरता से सजाती हैं...सार्थक और अच्छी लिंक्स के इतने खूबसूरत मोती पिरोती हैं कि देख (पढ़) कर मन प्रसन्न हो जाता है.
इन मोतियों की माला में मेरे गीत को भी स्थान देने के लिए हृदय से आभार....
link mila to yahan tak aa gaya,waise idhar Ka rasta shayad bhul gaya tha main. Bahut-see nayee,Tazgi bharee Rachna padhne ko milee ek sath. Shukriya sabhi rachnakaron ka, Sangita G ka vishesh taur par...
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता जी नमस्कार चर्चा मंच दिन प्रति दिन निखर रहा है शुभ कामनाएं आप ने बहुत ही सुन्दर मोती पिरोये धीरे धीरे ही पढ़ सकेंगे समयाभाव में -फिर मोतियों का आंकलन और आनंद लेंगे -बहुत ही मेहनत भरा काम आप का -प्रस्तुतीकरण का तरीका बहुत प्यारा छवि लिंक लेखक के नाम -बधाई हो आप को
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
बहुत सुन्दर लिंक्स सजाये हैं काफ़ी मेहनत की है ………कुछ ही देख पाई हूँ बाकी दिन मे पढती हूँ……………शानदार चर्चा…………हमेशा की तरह्।सच मे मोती ही निकाले हैं आज्।
जवाब देंहटाएंअनेकों रत्नों से जड़े इस खूबसूरत सागर में मुझे भी स्थान देने का शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत से सजाती हैं आप चर्चा.
सुन्दर चर्चा के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा, बेहतर लिंक्स, मुझे भी शामिल किया...जर्रानवाजी...शुक्रिया!
जवाब देंहटाएं---देवेंद्र गौतम
चर्चामंच में मेरी रचना का लिंक देने केलिए आभार...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचनाओं का संग्रह किया है आपने...
अभी कुछ ही पढ़ पाया हूँ बाकी भी देखना है...
Charcha Manch ek bahut hin upyogi manch hai janhan pathak upyogi rachnayein ek jagah pa sakte hain wahin blogger bhi apni rachnayon bahut logon tat panhucha sakte hai. hum sabko aisa manch pradan karne ke liye aapko dhanyabad
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत काव्यमंच है संगीता जी हमेशा की तरह ! हर रचना पढ़ने की इच्छा है और उत्सुकता भी ! आपका बहुत बहुत आभार इतने अच्छे लिंक्स उपलब्ध कराने के लिये !
जवाब देंहटाएंयूं ही उदास मन से कुछ लिखा था....
जवाब देंहटाएंआप सबकी सराहना हर बार मुझे बेहतरी की ओर ले जाती है
संगीता सवरूप जी आपके comments हर बार मुझे चकित कर देते हैं
की मेरी प्रस्तुति "चर्चा मंच" पर है
और मैं छोटे बच्चे की तरह बार खुश हों जाती हैं
बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपने तो हीरे-मोतियों की माला गूँथ दी है आज!
दो गंजों को स्थान देने के लिए आभार!
कितने दिनों बाद दीदी के साथ ब्लाग जगत कि सैर कर पाया ......
जवाब देंहटाएंथैंक्स दी...बहुत कुछ नया रहा कुछ कवी तो कुछ रचनाएँ ....कुछ का प्रस्तुतीकरण ...बाबुशा जी, शिखा वार्ष्णेय जी , ...और अरुण चन्द्र राय जी ने हमेशा कि तरह प्रभावित किया ...नयेपन के रूप में नोमान शौक जी बहुत पसंद आये ...
धन्यवाद आपका दीदी !
सार्थक काव्य चर्चा
जवाब देंहटाएंअभी तो मैं चर्चा मंच का 'च' भी नहीं पढ़ सकी हूँ आज ! सबसे पहले तो मैं जोरदार तालियाँ उन सब के लिए बजाना चाहती हूँ ,जो पूरा का पूरा चर्चा-मंच सुबह ही पढ़ डालते हैं (टिप्पणियों से ऐसा लगता है ) फिर मैं संगीता माँ के लिए ताली बजाना चाहती हूँ जो dedication से ये मंच सजाती हैं..कुछ एक बार जब मैंने रात में उनको चैट में पकड़ना चाहा तो पता चला अभी तो बड़े प्यार से चर्चा मंच सजाया जा रहा है..उनके इस समर्पण भाव के लिए आभार ( बल्कि सभी चर्चाकारों के लिए जोरदार तालियाँ हो जाएं ! :-) ) और फिर आखिरी ताली मैं अपने लिए बजाना चाहती हूँ कि जब देर रात आप लोग सो रहे होते हैं तब मैं चर्चा मंच पढ़ती हूँ ! :-) :-)
जवाब देंहटाएं'कुछ पन्ने' शामिल करने के लिए आभार माँ !
आदरणीय संगीता जी आपकी काव्य वाटिका में सजे फूल देख कर, साहित्य की उतरोत्तर प्रगति द्रस्थिगोचार होती है , एक से बढ़कर एक सजाये है मनके बधाई और अगले का इंतज़ार
जवाब देंहटाएंबड़ी प्रभावी चर्चा।
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को जगह देने के लिए धन्यवाद
चर्चा मंच के आज के इस अंक के सुन्दर काव्यात्मक प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई . मुझे भी आपने उदारतापूर्वक स्थान दिया . आभारी हूँ . बहुत-बहुत शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंआपकी मेहनत, लगन और चयन को एक बार फिर नमन।
जवाब देंहटाएंएक बात इस मंच से स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इस मंच का ब्लोग जगत को काफ़ी योगदान हो रहा है।
पिछले दो तीन चर्चाओं से देख व महसूस कर रहा हूं कि जब भी चर्चा में मेरी कोई पोस्ट रहती है मेरे ब्लॉग पर ट्राफ़िक बढ जाती है और पाठकों और टिप्पणियों की संख्या भी।
आभार मुझे मंच पर स्थान देने के लिए।
सुरुचिपूर्ण चयन के लिए बार बार साधुवाद.
जवाब देंहटाएंआपने इन कविताओं के बहाने जिजीविषा, करुणा, अस्मिता, आक्रोश, असंतोष, ऊब, प्रश्नाकुलता और हाशियाकृत समुदायों के विमर्श को संकलित रूप में प्रस्तुत कर दिया है जो कभी रससिक्त करता है तो कभी सक्रिय हस्तक्षेप के लिए प्रेरित .
पुनः धन्यवाद.
सादर
ऋषभदेव शर्मा
समीर लाल जी की कलम का कायल तो पहले सह ही था और आज शुक्ल जी को पढ़ा तो लगा की हिंदी के किसी महाकवि को पढ़ रहा हूँ .....
जवाब देंहटाएंवंदना जी के बारे मे क्या कहूँ उनके लिखे को तारीफ़ करने के लिए शब्दों का भंडार हमेशा ही कम होता है मेरे पास
कविता किरण जी के लिए तारीफ करना मतलब सूर्य की रश्मियों से आभा का पता पूंछना होगा
सारी तो नहीं पढ़ पाया हूँ अभी तक मै लेकिन जितनी भी पढ़ पाया हूँ वो सब के सब मोती हैं ....
अंत मे इतने विद्वानों तक मेरे कुछ लिखे को पहुँचाने के लिए दिल से धन्यवाद
हमेशा की तरह लाजवाब , शानदार ...
जवाब देंहटाएंइन अनमोल रचनाओं के बीच खुद को शामिल देखना उत्साहित करता है ...
आभार !
aaderneeya Sangeeta ji...Churcha manch mein shamil karne ke liye bahut bahut dhanywad...ek hi jagah itne rachnakaron ko padhne ka avsar mil jta hai...aabhar!!!!
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